विद्यार्थी पढ़ने के लिए लम्बे समय तक बैठने के कारण या खिलाड़ी खेलते हुए कहीं चोट लगने के कारण अक्सर पीठ दर्द की शिकायत करते हैं। एक थकाने वाला, चिंताओं से भरा, बहुत कुछ चाहने वाला जीवन वयस्कों और बड़े लोगों से आमतौर पर पीठ दर्द की शिकायत करवाता है या सायटिका का दर्द भी पीठ दर्द का कारण बनता है। क्या आपको पता है कि भारत में पीठ के निचले हिस्से में दर्द एक चिंता का विषय बन गया है? भारत के करीब 60% लोग अपने जीवन के किसी ना किसी भी मोड़ पर पीठ के निचले हिस्से में दर्द से परेशान होते हैं।
पीठ दर्द, आयुर्वेद में जिसे कटिग्राम कहते हैं, अक्सर भोजन ठीक से न पचने के कारण और ‘वात’ के असंतुलन के कारण होता है। यदि पाचन शक्ति ठीक नहीं है तो शरीर में आंव जमा हो जाता है जो ‘वात’ से मिलकर शरीर के विभिन्न हिस्सों में इकट्ठा हो जाता है और अंत में पीठ दर्द का कारण बनता है।
पीठ दर्द का इलाज केवल इस समस्या को जड़ से खत्म करना नहीं बल्कि सारी समस्या को ठीक कर खुशहाली लाना है। इस आयुर्वेदिक उपचार के बाद माँसपेशियाँ शक्तिशाली बनती हैं व इंसान अपने को जवान महसूस करता है।
पीठ दर्द के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा (Kamar Dard Ka Ayurvedic ilaj)
निम्नलिखित आयुर्वेदिक उपचारों से पीठ दर्द के कारण रूपांतरित हो सकते हैं –
- अभयंग – अभयंग या गरम तेल की मालिश पूरे शरीर पर की जाती है, इसमें अधिक ध्यान पीठ के निचले हिस्से पर रखा जाता है। यह शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा देता है। अगर एक बार मरीज सीख जाता है तो वह अपने आप भी अभयंग कर सकता है।
- वस्ती – वस्ती शरीर के दोषों को बाहर निकालने का उपाय है। खास जड़ीबूटियों से बनी दवाइयाँ गुदा के रास्ते या योनि के रास्ते डाली जाती हैं ताकि जहरीला पदार्थ बाहर आ सकें।
- कटी वस्ती – जड़ी बूटियों का हल्का गरम औषधिक तेल कटित्रिक भाग में कुछ देर के लिए रखा जाता है।
- स्नेह वस्ती – इसके द्वारा शरीर को शुद्ध करने के लिए औषधीय तेलों से एनीमा दिया जाता है। यह शरीर में जमा हुए जहरीले पदार्थ बाहर निकालकर शरीर की सभी महत्वपूर्ण प्रणालियों को साफ करता है।
- कषाया वस्ती – यह एक दवाइयों का काढ़ा है।
- बारी-बारी से गर्म और ठंडी चिकित्सा – यदि चोट लगने के कारण पीठ दर्द होता है चोट लगने के तुरंत बाद लगाने से बर्फ प्रभावशाली हो सकती है। आपरेशन के बाद के दर्द को भी यह ठीक कर सकता है। बर्फ को अगर एक तौलिये में लपेटकर लगाया जा सकता है या बाजार से बर्फ का पैक लिया जा सकता है। ताप चिकित्सा जैसे कि हीटिंग पैड, हीट रैप्स, गर्म पानी से स्नान और गर्म जैल पैक सस्ते भी हैं और आसान भी। कुछ मरीजों को एक चिकित्सा से दर्द से आराम आ जाता है, आप बदल बदल कर दोनों तरह की चिकित्सा कर सकते हैं।
- मर्म चिकित्सा – शरीर के ऐसे जोड़ जहाँ जीवनदायिनी ऊर्जा पदार्थ बन जाती है, जहाँ विचार पदार्थ रुपी ऊर्जा बन जाते हैं – यह सब शरीर के अंदर बने बिजली के स्विच हैं। दिमागी चिन्ता इन सभी क्षेत्रों में ऊर्जा प्रवाह को रोकती है। मर्म बिन्दुओं पर आराम से छूने से कई भावनात्मक अवरोध खुल जाते हैं जो कि जीवन देने वाली ऊर्जा को साथ जोड़ने वाले अंगों और ऊतकों से होकर जाती है, बदले में यह ऊर्जा का बहाव अंगों को ऊर्जावान बनाता है।
- मेरू चिकित्सा – यह मेरूदण्ड की समस्याओं का हल है। यह रीढ़ की हड्डी के बीच के भाग पर, शरीर में बिजली प्रवाहित करने वाले हिस्से पर काम करती है और उन कारणों का निवारण करती है जिन से हम ठीक से खड़े या बैठ नहीं पाते हैं। यह शरीर में बहने वाले पदार्थों, तंत्रिका तंत्र में बहने वाले पदार्थ, हड्डियों व अलग अलग आसनों में काम करता है।
यह केवल रोगियों के लिए ही नहीं बल्कि स्वस्थ लोगों के लिए भी काम करता है। स्वस्थ लोग बेहतर स्वास्थ्य अनुभव के लिए मेरु चिकित्सा ले सकते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
- संवेदना – शरीर के जहरीले पदार्थ पसीने के रास्ते बाहर निकालने के लिए जड़ीबूटियों की भाप का प्रयोग किया जाता है।
- धानयअमल धारा – जड़ी बूटियों से बना गरम तरल प्रभावित हिस्से पर डालने से पीठ दर्द में आराम मिलता है।
- पोडिकिजि – यह एक मालिश है जिसमें पाउडर बनाई गई जड़ी बूटियाँ एक कपड़े में बांध कर मालिश की जाती है।
- इलाकिझी – वात शांत करने वाली इलाकिझी पत्तियाँ मरीज पर इस तरह लगाई जाती हैं ताकि उसे पसीना आ सके।
- पिझिचिल – यह एक ऐसा इलाज है जिसमें कपड़े को गरम औषधीय तेल में डुबोकर मरीज की पीठ पर निचोड़ दिया जाता है और मालिश की जाती है।यह बीमारी की गंभीरता देखकर 7-21 दिन तक की जाती है।
- नजवाराकिज – यहाँ औषधीय चावल इस्तेमाल किए जाते हैं। यह चिकित्सा कठोर माँसपेशियों को ढीला करने में सहायता करती है, यह दर्द से राहत देती है और खून के प्रवाह को तेज करती है।
- पिचू – एक सूती कपड़े की मोटी तह जिसे गरम औषधीय तेल में डुबाकर प्रभावित क्षेत्र में लगाया जाता है। समय समय पर इस तेल को बदला जाता है।
- रक्तपात – डॉक्टर अक्सर बाजू और गर्दन की नसें और धमनियाँ काटते हैं ताकि रीढ़ की हड्डी के गठिया से बचा जा सके।
आयुर्वेदिक जीवनशैली में परिवर्तन
- ऐसा भोजन लेना जो ताजा, गरम और अच्छे से हजम होने वाला हो, जैसे हल्दी, वैलेरियन, हापस, जुनून का फूल। यह दिमागी चिन्ता कम करते हैं और सूजन ठीक करते हैं।
- सूखे भोजन जैसे चिप्स, नमकीन, कुकीज, बिस्कुट, जूस से बचना चाहिए।
- वात कम करने वाला भोजन करना चाहिए जैसे गाय का घी, खट्टा व नमकीन भोजन, कुदरती मिठास वाले भोजन जैसे अनाज, फलों का जूस, मीठा भोजन – सब ‘वात’ को शांत करते हैं।
- अधिक थकाने वाला व्यायाम और शरीर को थकाने वाले काम भी ‘वात’ का संतुलन बिगाड़ते हैं।
- योग व नाड़ी शोधन प्राणायाम करना।
- ठंडी जगह बैठने व फ्रिज के भोजन से बचना चाहिए।
- तीखे व कड़वे भोजन से बचना चाहिए।
- सही मुद्रा में बैठना चाहिए।
क्या आपको मालूम है कि हमारे शरीर का हर भाग तंत्रिका तंत्र से जुड़ा हुआ है? हमारे तंत्रिका तंत्र के माहिर डॉक्टर तंत्रिका तंत्र के मुफ्त वेबिनार में आपको तंत्रिका तंत्र को ठीक रखने और उसकी सभी समस्याओं का हल बताएंगे।
अपने पास समय नोट करके रखें
आयुर्वेदिक दवाइयाँ (Karam Dard ke liye Ayurvedic Dava)
यदि पीठ दर्द का कारण वात दोष है तो आयुर्वेदिक दवाई जैसे पिसनहारा चूरन, अशवगनधा, वेदानतका वटी, वेदानतका लेप पित्त दोष को ठीक कर देती हैं। इस तरह यह मरीज को पीठ दर्द से राहत दिलवाती हैं। यह दवाइयाँ अपने वेदाचार्य के अनुसार लेनी चाहिए।
सभी के शरीर की संरचना अलग होती है, इसलिए सभी की समस्या और आवश्यकताएँ अलग हो सकती हैं, इसलिए पीठ दर्द से छुटकारा पाने के लिए एक योग्य नाड़ी परीक्षक से पूरा निरीक्षण व इलाज करवाना चाहिए।
डॉक्टर श्वेता तिवारी, नाड़ी वैद्य, श्री श्री तत्व के विचारों द्वारा संगृहित
लेखिका: प्रतिभा शर्मा