ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के अनूठे प्रतीक हैं। ज्योति का अर्थ है, ‘प्रकाश’ और लिंग का अर्थ है, ‘चिन्ह’। ज्योतिर्लिंग का अर्थ है ‘भगवान शिव का कांतिमय चिन्ह’।
ज्योतिर्लिंगों के पीछे की पौराणिक कहानी
एक बार, भगवान शिव और भगवान विष्णु में इस बात पर वाद विवाद हो गया कि सृष्टि का सर्वोच्च रचयिता कौन हैं। इस विवाद को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक विशाल प्रकाश स्तंभ का रूप धारण किया और भगवान विष्णु से कहा कि इस स्तंभ का अंतिम छोर ढूँढे। दोनों में से कोई भी उसके छोर को नहीं पा सका। पौराणिक कहानी के अनुरूप, इन प्रकाश स्तंभों की अभिव्यक्ति शिव के सभी ज्योतिर्लिंग मंदिरों में पाई जाती है, जिन में भगवान शिव को ज्योति लिंग के रूप में दर्शाया गया है।
भारत में 12 ज्योतिर्लिंग
देश भर में 12 ज्योतिर्लिंग हैं और यह सब हिंदुओं के लिए पवित्र स्थान हैं। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई, इस के पीछे एक अलग कहानी है। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के साथ कोई न कोई पौराणिक कहानी जुड़ी हुई है।
1. सोमनाथ – गुजरात
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटन नामक स्थान पर स्थित है। एक बार प्रजापति दक्ष ने चन्द्र देवता को श्राप दिया कि चंद्रमा अपना तेज खो देगा। तब चन्द्र देवता ने उस श्राप से मुक्त होने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर चंद्रमा को दर्शन दिए और उनको श्राप से मुक्त किया और चन्द्र देवता को प्रत्येक माह में दो सप्ताह बढ़ने और दो सप्ताह घटने की अनुमति दे दी। चन्द्र देवता ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भगवान शिव के सम्मान में एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। इस ज्योतिर्लिंग का नाम “सोमनाथ” रखा गया, जिसका अर्थ होता है “चंद्रमा का भगवान”।

2. मल्लिकार्जुन – आंध्र प्रदेश
मल्लिकार्जुना ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीसेलम नामक स्थान पर स्थित है। एक बार की बात है, भगवान कार्तिकेय अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती से नाराज हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि माता पिता ने उनके साथ न्यायोचित व्यवहार नहीं किया है। वह कैलाश छोड़ कर दक्षिण में श्रीसेलम पर्वत पर आ कर रहने आ गए। उनके पीछे पीछे उनके माता पिता भी वहीं आ गए और अपने पुत्र के निकट ही छदम रूप में आदिवासियों संग रहने लगे। जब कार्तिकेय को इस का पता चला तो उसने अपने माता पिता की आराधना की और श्रीसेलम में एक ज्योतिर्लिंग स्थापित किया। कृष्णा नदी के तट पर प्रकट भगवान शिव के इस रूप को ‘अर्जुन’ और माता पार्वती को ‘मल्लिका’ नाम से जाना गया। इस प्रकार ज्योतिर्लिंग का नाम उन दोनों नामों से मिल कर ‘मल्लीकार्जुन’ पड़ा।
3. महाकालेश्वर – मध्य प्रदेश
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर, उज्जैन में स्थित है। प्राचीन काल में उज्जैन के राजा चन्द्रसेन थे जो भगवान शिव के परम भक्त थे। उस काल में उज्जैन पर उनके विरोधी राजाओं द्वारा आक्रमण किया गया। शत्रुओं ने लगभग पूरे उज्जैन नगर पर नियंत्रण कर लिया तो राजा चन्द्रसेन और उनके अनुयायियों ने भगवान शिव के सामने पराजय तथा विनाश से बचाने की कई बार प्रार्थना की। भगवान शिव ठीक समय पर अपने महाकाल रूप में वहाँ प्रकट हुए और राजा चन्द्रसेन के शत्रुओं का पूर्णतया विनाश कर दिया। तब राजा और अन्य भक्तों की प्रार्थना पर भगवान शिव ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ उपस्थित रहने की सहमति दी। यह उनका काल (समय) सम्राट रूप है।
4. ओंकारेश्वर – मध्य प्रदेश
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर मन्धाता नामक द्वीप पर स्थित है। इस द्वीप पर राजा मन्धाता ने भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए घोर तपस्या की थी, इसीलिए इसका नाम मन्धाता पड़ा। उस समय भगवान शिव राजा के सम्मुख ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। मन्धाता द्वीप का आकार हिन्दी के शब्द “ॐ” के रूप में है इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम ओंकारेश्वर पड़ा। यह ज्योतिर्लिंग ‘ओंकार’ (ओम् की तरंगें), के भगवान रूप में प्रसिद्ध है।
5. केदारनाथ- उत्तराखण्ड
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हिमालय पर्वत की ऊँची चोटियों के बीच उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। महाभारत युद्ध के उपरान्त पाण्डवों ने युद्ध में स्वयं द्वारा किए गए अनैतिक कार्यों के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे क्षमा माँगने के मनोरथ से तपस्या की। किंतु भगवान शिव ने सरलता से अपनी पहचान उनके सम्मुख प्रकट नहीं की। बल्कि भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण किया और उस क्षेत्र में भूमि के नीचे छुप गए। अंत में उन्होंने उस स्थान पर अपनी एक झलक दिखाई और उस स्थान पर पाण्डव भाइयों द्वारा एक शिवलिंग की स्थापना की गई। केदार के अनेक अर्थों में एक अर्थ होता है ‘क्यारी’ अथवा ‘चारागाह’, इसलिए इस शिवलिंग का नाम केदारनाथ पड़ा क्योंकि भगवान शिव ने स्वयं को उस क्यारी, चारागाह में छिपाया था। उन्हें भूमि का भगवान भी कहा जाता है।
6. भीमाशंकर – महाराष्ट्र
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के पुणे नगर के समीप भोरगिरी गाँव में स्थापित है। भीमा, रावण के भाई कुम्भकर्ण, जिनका वध भगवान राम के हाथों हुआ था, का पुत्र था। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए भीमा ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे अनेक शक्तिशाली वरदान प्राप्त कर लिए। तदुरान्त यह असुर समूचे विश्व में ताण्डव मचाने लगा। उसी समय कामरूपेश्वर, जो भगवान शिव के अन्यन्य भक्त थे, एक शिव लिंग की पूजा में तल्लीन थे। जब असुर भीमा ने उस लिंग को नष्ट करने का प्रयास किया तो उस लिंग से भगवान शिव स्वयं प्रकट हो कर भीमा को भस्म कर दिया। तब देवताओं और ऋषि मुनियों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट रहने की विनती की, जिस स्थान पर उन्होंने भीमा को पराजित किया था। इस प्रकार वह स्थान भीमाशंकर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
7. विश्वनाथ – उत्तर प्रदेश
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के काशी नगर में स्थित है। किंवदन्तियों के अनुसार भगवान शिव अन्य सभी देवताओं पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए काशी में पृथ्वी की सतहों को चीर कर एक प्रकाश स्तंभ के रूप में निकले और वह प्रकाश स्तंभ आकाश में अनंत ऊँचाई तक ऊपर उठता रहा। तब सब आकाशीय शक्तियों ने उन्हें विश्वनाथ, अर्थात ब्रह्मांड का भगवान, कह कर उनका अभिवादन किया। उस स्थान पर, जहाँ भगवान शिव ने अपनी महिमा प्रकट की थी, एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई। इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी हुई और भी अनेक लोक कथाएँ और किदवन्तियाँ हैं।
8. त्र्यम्बकेश्वर – महाराष्ट्र
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के नासिक शहर के निकट स्थित है। एक समय में ऋषि गौतम और उनकी भार्या वहाँ निवास करते थे। उनके पास भगवान वरुण द्वारा प्रदत्त एक बिना तल का अक्षय पात्र था जिसमें निरंतर असीमित अन्न देने की क्षमता थी। इसे देख कर अन्य ऋषिगण उनसे ईर्ष्या करने लगे। उन्होंने एक छदम गाय को ऋषि गौतम के आश्रम में भेज कर वहाँ उसे प्राण त्यागते हुए दिखा दिया और ऋषि गौतम पर गौ हत्या के पाप का आरोप लगा कर उन्हें कलंकित करने लगे। तब ऋषि गौतम ने भगवान शिव की स्तुति करके उन्हें प्रसन्न किया और उन्हें माँ गंगा को उनके आश्रम तक लाने की प्रार्थना की जिससे वह स्थान पवित्र हो सके। भगवान शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने गंगा नदी को उस आश्रम के निकट से बहने का अनुरोध किया। यह नदी गोदावरी नदी के नाम से जानी जाती है। तत्पश्चात ऋषि गौतम व अन्य भक्तों की प्रार्थना पर भगवान शिव ने स्वयं को उस नदी के तट पर एक ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित किया जिसका नाम त्र्यम्बकेश्वर है। यह भगवान शिव का त्रिनेत्र (त्रिंबका) रूप है।

9. वैद्यनाथ – झारखण्ड
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। एक बार रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद स्वरूप एक ज्योतिर्लिंग का प्रसाद दिया और उसे लंका में स्थापित करने को कहा, जिससे वह तीनों लोकों में अजेय हो जाएगा। किंतु भगवान शिव ने रावण को चेतावनी दी कि उस ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाते समय मार्ग में कहीं भी, किसी परिस्थिति में भी, भूमि पर न रखे। कैलाश से लंका जाते समय रास्ते में रावण को थोड़ी नींद आने लगी और उसने विश्राम करने की सोची। उसने समीप ही उपस्थित किसी बच्चे को थोड़े समय के लिए ज्योतिर्लिंग उठाए रखने को कहा और स्वयं विश्राम करने लगा। वह बालक उस ज्योतिर्लिंग के वजन को नहीं सँभाल पाया और उसने वह भूमि पर रख दिया। तब वह ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर जड़ हो गया और रावण उसे दोबारा उठा ही नहीं पाया। यही ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह वैद्य जनों के भगवान हैं।
10. नागेश्वर – गुजरात
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका जिले में स्थित है। समुद्र के नीचे एक नगर था जिसमें समुद्री साँपों का निवास था। उस नगर में भगवान शिव की भक्त, सुप्रिया नाम की एक सर्पिणी को दारुका नामक असुर ने बंधक बना लिया। उसकी कैद में रहते हुए सुप्रिया और अन्य भक्तों ने निरंतर जाप करके शिव का आह्वान किया। तब भगवान शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने असुर का संहार करके अपने भक्तों को मुक्त किया। तब भगवान शिव ने स्वयं को द्वारका में सागर के किनारे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित किया। यह ज्योतिर्लिंग नाग जाति (सभी सर्पों) के भगवान हैं।
11. रामेश्वरम – तमिलनाडू
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के दक्षिणी छोर पर तमिल नाडू राज्य में स्थित है। रावण से युद्ध करने के लिए भगवान राम ने भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए इस लिंग की स्थापना स्वयं की थी। यह ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान राम का भी श्रद्धेय है।
12. घृष्णेश्वर – महाराष्ट्र
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। वहाँ कुसुमा नाम की एक महिला थी जो भगवान शिव की परम भक्त थी। उसकी दिनचर्या में अपने इष्ट की आराधना प्रति दिन नियमित रूप से करना सम्मिलित था और इसमें वह शिवलिंग की प्रतिमा को एक तालाब में डुबो कर अभिषेक करवाती थी। उसके पति की एक और पत्नी भी थी जो समाज में कुसुमा की बढ़ती लोकप्रियता और सम्मान को देख कर उससे ईर्ष्या करने लगी। इस द्वेष के वशीभूत हो कर क्रोध में उसने कुसुमा के इकलोते पुत्र को मार दिया। अपने पुत्र की हत्या का समाचार सुन कर कुसुमा बहुत व्यथित और उदास हो गई किंतु उसने फिर भी भगवान शिव की पूजा करना जारी रखा। उसकी स्थितप्रज्ञ भक्ति को देख कर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और जैसे ही कुसुमा ने उस दिन शिवलिंग को तालाब के जल में डुबोया, उसका पुत्र जीवित हो उठा। तब भगवान शिव ने कुसुमा और अन्य ग्रामवासियों को साक्षात दर्शन दिए। कुसुमा द्वारा अनेक बार प्रार्थना करने पर भगवान शिव वहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हुए जिसे घृष्णेश्वर, के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘करुणा के भगवान (घृष्णा)’।
देश के अलग अलग भागों में ज्योतिर्लिंग स्थापित करने का उद्देश्य
भारत में लोग अनेक भाषाएँ बोलते हैं। यदि काशी में एक भाषा बोली जाती है तो रामेश्वरम में कोई दूसरी। प्राचीन समय में लोगों को रामेश्वरम की यात्रा करने को कहा जाता था और वहाँ से उन्हें तीर्थ यात्रा के लिए काशी धाम जा कर पवित्र गंगा में स्नान करना होता था। तत्पश्चात उन्हें वहाँ से गंगाजल लेकर काशी से रामेश्वरम वापस आकर उस जल से ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करना होता था। इसके पश्चात भी उन्हें वहाँ से प्रसाद लेकर पुनः काशी विश्वनाथ मंदिर में चढ़ाने जाना पड़ता था।
पुराने समय में यह सब करने के पीछे का आशय यह था कि लोगों को देश के विभिन्न भागों में स्थित धार्मिक स्थलों का भ्रमण करवा कर उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न की जाए। यही कारण है कि सभी 12 ज्योतिर्लिंग किसी एक स्थान विशेष अथवा किसी एक राज्य में स्थापित नहीं किए गए। उनमें से कुछ उत्तर में तो कुछ दक्षिण में, और कुछ पश्चिम में – इस प्रकार वे सब तरफ फैले हुए हैं।
राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ना
पुराने समय में जिन स्थानों पर ज्योतिर्लिंग स्थापित थे, उन स्थानों पर पहुँचना आसान नहीं था। उन तीर्थों तक पहुँचने के लिए दुर्गम मार्गों से होकर जाना पड़ता था। इसके लिए घने जंगलों, खतरनाक घाटियों, नगरों के खंडहरों और बर्फ से ढकी चोटियों को लांघना पड़ता था। उदाहरण के लिए केदारनाथ हिमालय पर्वतमाला में बहुत ऊँचाई पर स्थित है। इस प्रकार भगवान शिव को समर्पित पवित्र तीर्थस्थलों को देश के भिन्न भिन्न भागों में स्थापित करके उस समय के हमारे साधु संतों ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
ज्योतिर्लिंग तीर्थयात्रा के मार्ग
अब आपने ज्योतिर्लिंगों के महत्व और उनमें से प्रत्येक ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कहानी के विषय में तो जान लिया, तो क्या अब आप इन ज्योतिर्लिंगों की तीर्थयात्रा पर जाने की योजना बना रहे हैं? क्या आपके मन में संशय है कि यात्रा की रूप रेखा कैसे बनाई जाए? चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि आप जहाँ भी रहते हों, आपके लिए इन स्थानों पर पहुँचने के लिए हम क्रमानुसार मार्ग बता रहे हैं।
उत्तर भारत से
यदि आप उत्तर में रहते हैं तो उत्तराखण्ड में केदारनाथ आपका प्रथम गंतव्य स्थान होगा। वहाँ से आप उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ और फिर झारखंड में वैद्यनाथधाम जाएँ। तत्पश्चात आप को मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर जाना है। उसके बाद गुजरात में नागेश्वर और सोमनाथ की यात्रा करें। फिर वहाँ से महाराष्ट्र आ जाएँ जहाँ आप क्रमानुसार घृष्णेश्वर, भीमाशंकर और त्र्यंबकेश्वर जाएँ। इस के पश्चात आप आंध्र प्रदेश में मल्लीकार्जुना पहुँचे और अंत में तमिलनाडु के रामेश्वरम पहुँच कर आपकी तीर्थ यात्रा पूर्ण होगी।
इस यात्रा में ज्योतिर्लिंगों का मार्ग इस प्रकार होगा:
केदारनाथ-काशी विश्वनाथ- बैद्यनाथ- ओंकारेश्वर- महाकालेश्वर- नागेश्वर-सोमनाथ-घृष्णेश्वर- भीमाशंकर- त्र्यम्बकेश्वर-मल्लीकार्जुना- रामेश्वरम
दक्षिण भारत से
जो लोग दक्षिण भारत में रहते हैं, उनके लिए तमिलनाडु में रामेश्वरम पहला लक्ष्य होगा। वहाँ से आप आंध्र प्रदेश में मल्लीकार्जुना आएँगे और फिर पश्चिम की ओर जाते हुए महाराष्ट्र में प्रवेश करेंगे जहाँ तीन ज्योतिर्लिंग हैं। यहाँ सबसे पहला गंतव्य भीमाशंकर होगा और उसके बाद घृष्णेश्वर और त्र्यम्बकेश्वर। महाराष्ट्र से आप मध्य प्रदेश आएँ जहाँ ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर स्थित हैं। यहाँ से गुजरात निकट ही है जहाँ आप नागेश्वर और सोमनाथ जाएँ। गुजरात से आपकी यात्रा ऊपर उत्तर की ओर सीधे, उत्तराखण्ड राज्य में केदारनाथ की होगी। तत्पश्चात उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ और अंत में घर वापसी से पहले झारखंड में वैद्यनाथ आपका अंतिम पड़ाव होगा।
इस यात्रा में ज्योतिर्लिंगों का मार्ग:
रामेश्वरम्- मल्लीकार्जुना- भीमाशंकर – घृष्णेश्वर- त्र्यम्बकेश्वर- ओंकारेश्वर महाकालेश्वर- सोमनाथ-नागेश्वर-केदारनाथ-काशी विश्वनाथ-वैद्यनाथ
पश्चिम भारत से
यदि आप देश के पश्चिमी भाग में रहते हैं तो सबसे पहले महाराष्ट्र में त्र्यंबकेश्वर, भीमाशंकर और घृष्णेश्वर की, इसी क्रम में यात्रा करें। अब आप गुजरात के सोमनाथ तथा नागेश्वर जाएँ। वहाँ से आप मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर आ जाएँ। तत्पश्चात उत्तराखण्ड में केदारनाथ पहुँचें। उसके पश्चात नीचे उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ आ जाएँ और वहाँ से झारखंड में वैद्यनाथ। आपकी यात्रा अब आंध्र प्रदेश में मल्लीकार्जुना की ओर आएगी और अंत में घर वापसी से पहले तमिलनाडु में रामेश्वरम जाएँ।
इस यात्रा में ज्योतिर्लिंगों का मार्ग
त्र्यंबकेश्वर- भीमाशंकर- घृष्णेश्वर-सोमनाथ-नागेश्वर-ओंकारेश्वर-महाकालेश्वर- केदारनाथ-काशी विश्वनाथ-वैद्यनाथ- मल्लीकार्जुना- रामेश्वरम
पूर्वी भारत से
जिन लोगों ने अपनी यात्रा पूर्वी भारत से आरंभ करनी है, उनके लिए प्रथम ज्योतिर्लिंग झारखंड में वैद्यनाथ होगा। वहाँ से वे उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ और फिर हिमालय पर्वत में स्थित केदारनाथ जाएँ। उनका अगला गंतव्य स्थान मध्य प्रदेश में महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर होगा। वहाँ से वह गुजरात के नागेश्वर और फिर सोमनाथ का रूख करेंगे। तत्पश्चात आपकी यात्रा महाराष्ट्र की होगी जहाँ आप घृष्णेश्वर, भीमाशंकर और त्र्यम्बकेश्वर, इसी क्रमानुसार जाएँ। वहाँ से यात्रा का अंतिम चरण आंध्र प्रदेश में मल्लीकार्जुन और घर वापसी से पहले अंतिम पड़ाव तमिलनाडु का रामेश्वरम धाम होगा।
इस यात्रा में ज्योतिर्लिंगों का मार्ग
वैद्यनाथ- काशी विश्वनाथ – केदारनाथ- महाकालेश्वर-ओंकारेश्वर – सोमनाथ-नागेश्वर-घृष्णेश्वर – भीमाशंकर-त्र्यम्बकेश्वर- मल्लीकार्जुना- रामेश्वरम
सात ज्योतिर्लिंगों का समूह
बारह ज्योतिर्लिंगों में से निम्नलिखित सात ज्योतिर्लिंग एक दूसरे के निकट ही आस पास के राज्यों, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं:
- सोमनाथ – गुजरात
- नागेश्वर – गुजरात
- महाकालेश्वर – मध्य प्रदेश
- ओंकारेश्वर – मध्य प्रदेश
- घृष्णेश्वर – महाराष्ट्र
- भीमाशंकर – महाराष्ट्र
- त्र्यम्बकेश्वर – महाराष्ट्र
इन सात ज्योतिर्लिंगों की यात्रा उनके एक दूसरे के निकट स्थित होने के कारण आसानी से की जा सकती है। इसी प्रकार केदारनाथ, काशी विश्वनाथ और वैद्यनाथ अपेक्षाकृत पास पास ही हैं, इसलिए उनके दर्शन एक ही यात्रा में किए जा सकते हैं। दक्षिण में दो ज्योतिर्लिंग, मल्लीकार्जुना और रामेश्वरम हैं।