भगवान शिव के अनेक रूप और अवतार हुए हैं (रूप जिसमें कोई देव/ देवी शरीर रूप में प्रकट होते हैं)। यद्यपि एक योगी के रूप में उनकी मूल छवि को श्रद्धापूर्वक सर्वत्र पूजा जाता है, तथापि उनके पशुपति नाथ और विश्वनाथ के रूप में अवतार भी बहुत प्रसिद्ध हैं। किंतु भगवान शिव के सबसे भयावह अवतारों में से एक, कालभैरव अवतार हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कालभैरव अष्टकम में शिव के इस रूप को नग्न, काला, खोपड़ियों की माला पहने हुए, तीन आँखों वाला, चारों हाथों में विनाशकारी हथियार और साँपों से लिपटे हुए रूप में दर्शाया गया है।

उनको इस रूप में दर्शाया जाना उनके वैराग, शान्त तथा समाधिस्थ रूप से अलग है, जिस रूप की आराधना अनेक लोगों द्वारा की जाती है। किंतु प्रतीकात्मक रूप से कालभैरव के साथ गहरा अर्थ जुड़ा हुआ है। यह जानने से पहले आइए पहले हम कालभैरव अष्टकम के बोलों को पढ़ और समझ लें।
कालभैरव: रूप का अर्थ
कालभैरव का वाहन श्वान (कुत्ता) है। यह भगवान शिव का सबसे भयंकर रूप है। कालभैरव मृत्यु या समय (काल) के देवता हैं। आध्यात्मिकता में मृत्यु और काल का अर्थ समान है, और दोनों प्रतीकात्मक शब्द हैं। श्वान शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है ; श्वा और न। वैदिक साहित्य के अनुसार श्वा का अर्थ होता है ‘कल’ (जो दिन बीत गया हो) या ‘कल’ (दिन जो आने वाला है) तथा ‘न’ का अर्थ है नहीं। अतः श्वान का अर्थ हुआ वह जो न तो बीता हुआ कल और न ही आने वाला कल हो, मतलब जो केवल वर्तमान, इसी पल में है।
कालभैरव के छिपे हुए आध्यात्मिक प्रतीक
हमने देखा कि कालभैरव न तो बीता हुआ और न ही आने वाला कल है। वह तो सदैव वर्तमान में ही स्थित है। और कालभैरव काशी नगरी के देवता भी हैं। इसमें भी प्रतीकात्मक रहस्य छिपा है। तांत्रिक विद्या में काशी को आज्ञा चक्र के रूप में जाना जाता है, और यह दोनों भौंहों के बीच में स्थित होता है।
कालभैरव को विकराल रूप में दर्शाया जाता है। यह दर्शाता है कि समय सब कुछ खा जाता है। इस जगत में जो कुछ भी है, समय के साथ नष्ट हो ही जाएगा। हजारों साल पहले हुए राजा, महाराजा, विश्व के आश्चर्य जो आज हैं, तथा जो कुछ भी भविष्य में यहाँ आने वाला हैं, वह सब समय के साथ नष्ट हो जाएगा।
और समय कहाँ है? यह न तो भूतकाल में और न ही भविष्य काल में है। यह तो केवल और केवल वर्तमान में है। और जब हमें समय और वर्तमान पल का बोध होता है, हमारे शरीर का ज्ञान बिंदु, ‘आज्ञा चक्र’ प्रमुखता से निखर आता है जो कि हमारे भीतर कालभैरव की उपस्थिति को दर्शाता है। यह ज्ञान हमें गहन समाधि की अवस्था में ले जाता है जिसको ‘भैरव’ की स्थिति भी कहा जाता है।
कालभैरव अष्टकम में जहाँ आदि शंकराचार्य कालभैरव की स्तुति काशी नगर के देवता के रूप में कर रहे हैं, वास्तव में तो उनका अभिप्राय आज्ञा चक्र से है, अर्थात् संपूर्ण सजगता का महत्व ही समझा रहे हैं। इसका गुणगान सभी देवताओं द्वारा भी किया गया है। आदि शंकराचार्य बताते हैं कि सभी दैवी शक्तियाँ, सभी देवता भी उस परम् आनंद और समाधि की अवस्था पाने की चाह में कालभैरव के चरणों में शीश झुकाते हैं।
कालभैरव का पाठ करने के लाभ (kalabhairava Ashtakam ke fayde)
प्रतिदिन कालभैरव अष्टकम का पाठ करने और कालभैरव की अवस्था का स्मरण करने मात्र से हमें ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हमें अज्ञात, अदृश्य और अबोधगम्य प्रतिभाओं और सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इस अष्टकम का पाठ हमें शोक, मोह, दीनता, लोभ, कोप और ताप आदि दुखों, संतापों और पीड़ाओं से मुक्त कर देता है।
भगवान कालभैरव को भूतों के संघ के नायक के रूप में भी जाना जाता है। अर्थात् पञ्चभूतों – पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश का अधिपति। वह जीवन की समस्त प्रतिष्ठित उत्कृष्टताँओं, सभी प्रकार के ज्ञान जिसकी हमें चाह है, के दाता भी हैं। कोई कार्य सीखने और उसमें उत्कृष्टता पाने में बहुत अंतर है और यह परम् आनंद की स्थिति व्यक्ति को इच्छित श्रेष्ठता प्रदान करती है। कालभैरव का स्मरण करने से व्यक्ति को परम आनंद की ऐसी अनुभूति होती है जिसमें सब चिंताएँ दूर हो जाती हैं और कुछ भी आपको परेशान नहीं करता।
कालभैरव अष्टकम के संस्कृत श्लोक एवं हिन्दी अर्थ (kalabhairava Ashtakam Lyrics & meaning in Hindi)
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥१॥
जिनके चरण कमलों की पूजा देवराज इन्द्र द्वारा की जाती है; जिन्होंने सर्प को एक यज्ञोपवीत के रूप में धारण किया है, जिनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है और जो अति करुणामयी हैं; जिनकी स्तुति देवों के मुनि नारद और सभी योगियों द्वारा की जाती है; जो दिगंबर रूप में रहते हैं, जिनका आवरण समूचा आकाश है, जो उनके स्वच्छंद रूप का प्रतीक है; काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥२॥
जिनकी आभा सहस्रों सूर्यों के प्रकाश के समान है, जो अपने भक्तों को जन्म मृत्यु के चक्र से रक्षा करते हैं, और जो सबसे महान हैं ; जिनका कंठ नीला है, जो हमारी इच्छाओं और आशाओं को पूरा करते हैं और जिनके तीन नेत्र हैं; जो स्वयं काल के लिए भी काल हैं और जिनके नयन पंकज के पुष्प जैसे हैं; जिनके हाथ में त्रिशूल समूचे ब्रह्मांड का रक्षक है और जो अविनाशी हैं; काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥३॥
जिनके हाथों में त्रिशूल, कुल्हाड़ी, फंदा (कमंद) और गदा धारण किए हैं; जिनका शरीर स्याह है, जो स्वयं आदिदेव हैं और अविनाशी हैं और सांसारिक दुःखों से परे हैं; जो सर्वशक्तिमान हैं, और अद्भुत तांडव उनका प्रिय नृत्य है; काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥४॥
जो सभी इच्छाओं और मुक्ति, दोनों प्रदान करते हैं और जिनका रूप मनमोहक है; जो अपने भक्तों से सदा प्रेम करते हैं और समूचे ब्रह्मांड में, तीनों लोकों में में स्थित हैं; जो अपनी कमर पर घंटियाँ जड़ी हुई सोने का कमर बंध बंधी है और जब भगवान चलते हैं तो उनमें से सुरीले सुर निकलते हैं, काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥५॥
काशी नगर के स्वामी, भगवान कालभैरव, जो सदैव धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करते हैं, जो हमें कर्मों के बंधन से मुक्त करके हमारी आत्माओं को मुक्त करते हैं; और जो अपने तन पर सुनहरे रंग के सर्प लपेटे हुए हैं; काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥६॥
जिनके दोनों पैरों में रत्नजड़ित खड़ाऊँ सजे हैं; जो शाश्वत्, अद्वैत इष्ट देव हैं और हमारी कामनाओं को पूरा करते हैं; जो मृत्यु के देवता, यम का घमंड चकनाचूर करते हैं, जिनके भयानक दाँत हमारे लिए मुक्तिदाता हैं; काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥७॥
जिनके हास्य की प्रचंड ध्वनि कमल जनित ब्रह्मा जी द्वारा रचित सृष्टियों को नष्ट कर देती हैं, अर्थात् हमारे मन की भ्रांतियों को दूर करती है; जिनके एक दृष्टिपात मात्र से हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं; जो अष्टसिद्धि के दाता हैं और जो खोपड़ियों से बनी माला धारण किए हुए हैं, काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥८॥
जो भूतों और प्रेतों के राजा हैं, जो कीर्ति प्रदान करते हैं; जो काशी की प्रजा को उनके पापों और सत्य, नीतिगत कर्मों, दोनों से मुक्त करते हैं; जो हमें नीति और सत्य का मार्ग दिखाते हैं और जो ब्रह्मांड के आदिदेव हैं, काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्॥९॥
इस अतिसुंदर, गीत, जो ज्ञान तथा मुक्ति का स्रोत है, जो व्यक्ति में सत्य और नीति के आदर्शों को स्थापित करने वाला है, जो दुःख, राग, निर्धनता, लोभ, क्रोध, और ताप को नाश करने वाले कालभैरव अष्टाकम के आठ श्लोकों का पठन वाचन करते हैं, मृत्यु उपरांत उस भगवान कालभैरव अर्थात् शिव चरणों को प्राप्त करते हैं।