अनादी काल से भारत में हर सोमवार रुद्र पूजा करने का चलन है। रुद्र भगवान शिव के पराक्रमी रूप को दर्शाता है। पूजा का अर्थ है, जो पूर्णता से किया जाए। रुद्र पूजा करना या उसमें सशरीर उपस्थित होना हमारे भीतर आंतरिक शांति और पूर्णता लाने के लिए किया जाता है। वैदिक ग्रंथो द्वारा रुद्र पूजा को सबसे बड़ी पूजा बताया गया है, जिससे कुप्रभाव दूर होते हैं, मनोकामना पूर्ण होती है और सर्वांगीण समृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार कई दोषों के निवारण के लिए रुद्र पूजा को एक उपाय बताया गया है।

रुद्र पूजा क्यों करते हैं?

यह संसार उर्जा का एक खेल है, सकारात्मक और नकारात्मक। जब हम शिव की आराधना करते हैं – शिव; जो कि संहार करते हैं, रोग, अवसाद और उदासी के रूप में जो भी नकारात्मक ऊर्जा हमारे भीतर और आसपास है उसका संहार करने का सबसे आसान उपाय है रुद्र पूजा। इसे करने से सकारात्मक ऊर्जा जैसे शांन्ति, उल्लास और समृद्धि की बढ़ोतरी होती है, जिससे हमारे शरीर, मन और आत्मा प्रसन्न रहते हैं।

रुद्र पूजा कैसे की जाती है?

रुद्र पूजा में एक क्रिस्टल के शिवलिंग (जो भगवान शिव का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करते हैं) का दही, दूध, घी, शहद आदि सामग्रियों से अभिषेक किया जाता है। चन्दन, भस्म और पुष्प से शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है तथा प्रेम भाव से बेल पत्र, धतूरा एवं फल अर्पित किए जाते हैं। श्रद्धा और कृतज्ञता के भाव से भगवान का विधिवत पूजन किया जाता है। वेद आगमा वैदिक महापाठशाला (गुरुकुल) में विशेष रूप से प्रशिक्षित पुजारी और वैदिक शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थी यह विशेष पूजा सम्पन्न कराते हैं। पूजा के दौरान मंत्रों का जप इतना शुद्ध और लयमय होता है की संपूर्ण वातावरण दिव्यता से भर जाता है और सभी को गहन ध्यान की अनुभूति होती है।

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