रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥
अर्थ – उस भगवान शिव को कोटि कोटि नमन जिनके सिर के केश किसी घने जंगल की भाँति हैं, जिन के कंठ में माँ गंगा की निर्मल धारा सदैव बहती है; और जिनके गले में पड़े हुए सर्प फूलों के हार जैसे लगते हैं। डम डम डम – डमरूओं से निकलने वाली ऐसी ध्वनि है जो भगवान शिव द्वारा किए गए भावना और आवेश से भरपूर नृत्य को दर्शा रही है।
कितना सुंदर वर्णन है भगवान शिव का। ऐसा वर्णन कोई भक्त ही कर सकता है। आप यह जान कर अचंभित हो जायेंगे की इस स्त्रोत के रचियता हैं लंकापति रावण। रावण भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने यह स्त्रोत कई सालों पहले लिखा था। महाकाव्य रामायण में रावण माता सीता के अपहरण के लिए जाना जाता है। लेकिन, कुछ ही लोग रावण की भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति से अवगत होगें। इस लेख में हम रावण के उस पक्ष को आप के सामने प्रस्तुत करेंगे जो परम भक्त भी था और एक महान कलाकार, विद्वान व प्रभावशाली कवी भी थे।

शिव तांडव स्तोत्र के रचयिता कौन थे?
शिव तांडव स्तोत्र की रचना रावण ने की थी। शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव के अलौकिक नृत्य को दर्शाता है। जो सभी नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है। इस भजन में 15 श्लोक हैं और प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव की निर्भय और अनंत सुंदरता को वर्णित किया गया है।
रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना क्यों की!
भारत में दिव्यता को अनेकों नाम से पुकारा गया है। भगवान शिव के कई नामों में से जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है वो है भोलेनाथ के रूप में उनको सम्भोदित किया जाना। इसका अर्थ है वो चेतना जिसमें कोई दोष नहीं है, वो चेतना आनंद स्वरुप है।
प्रसिद्ध कथा के अनुसार: जो सच्चे मन से भगवान शिव की अराधना करता है, भगवान उनसे प्रसन्न हो उन्हें कुछ न कुछ वरदान अवश्य देते हैं। सभी राक्षस गणों ने इस बात का लाभ उठाया और उन्होंने भगवान शिव की अराधना की जिससे वो उनको प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर सकें।
रावण, जो की न सिर्फ एक प्रकांड पंडित था अपितु एक महान योद्धा, प्रशासक भी था। वो भगवान शिव का परम भक्त था। वो राक्षसों के राजा के रूप में जाना जाता था। वह अपने आप से और अपनी शक्तियों से बहुत प्रेम करता था।
स्तोत्र रचने की कहानी शुरू होती है, जब रावण भगवान शिव को अपने साथ लंका ले जाने के लिए कैलास पर्वत को उठाने की कोशिश करता है। भगवान शिव उस समय ध्यानमग्न थे। रावण की इस कोशिश से चारों ओर हाहाकार मच गया। उसने कैलास पर्वत को उठाने के लिए हाथ आगे किये और उसने पर्वत को थोड़ा सा उठाया ही था की भगवान ने अपने पाँव के अंगूठे को धरती पर रख कर उसे थोड़ा सा दबाया। इस प्रक्रिया में रावण के हाथ की उंगलियाँ पर्वत के निचे दब गईं। इस पीड़ा में रावण ने भगवान शिव की स्तुति की और उनका बहुत ही सुंदर वर्णन इस स्तुति में किया। भगवान शिव उसकी स्तुति में तल्लीन हो गए और रावण से बहुत प्रसन्न भी हुए। इस स्तुति को हम “शिव तांडव स्तोत्र” के रूप में जानते हैं।
भगवान शिव रावण से प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। तो रावण ने ने उनसे सबसे शक्तिशाली अस्त्र की मांग की, जिससे कोई भी उसका विनाश न कर सके और वो अविनाशी ही रहे।
शिव तांडव स्तोत्र के क्या लाभ हैं? (Shiv Tandav Stotram ke fayde)
शिव तांडव स्तोत्र के अनेक लाभ हैं। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने या सुनने से व्यक्ति को अपार शक्ति, सौंदर्य तथा मानसिक बल मिलती हैं। यह भी कहते हैं कि शिव तांडव स्त्रोत का मंत्रोच्चार सभी नकारात्मक शक्तियों को जीवन से दूर कर के वातावरण को पवित्र बना देता है।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय क्या है और इससे क्या लाभ होता है
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने का कोई विशेष समय नहीं है और यह किसी भी समय किया जा सकता है। लेकिन निम्न समयों पर इसका पाठ करने के कुछ विशेष लाभ हैं:
- ग्रहण के समय: ऐसी मान्यता है कि यदि आप ग्रहण के समय “ॐ नमः शिवाय” या “शिव तांडव स्त्रोत” का जाप करते हैं तो यह सभी ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम कर देता है। ग्रहण के समय जाप, ध्यान या प्रार्थना करने का प्रभाव किसी अन्य समय की अपेक्षा सौ गुणा अधिक हो जाता है।
- सुबह और शाम के समय: मान्यता है कि ब्रह्म मुहूर्त में किए गए किसी भी कार्य का प्रभाव कई गुणा बढ़ जाता है। उस समय में किए गए कार्य की उत्पादकता कम शक्ति का उपयोग करके भी दोगुना हो जाती है। ऐसे ही, शाम के समय प्रत्येक घर में दिया या रोशनी तो जलाई ही जाती है और बहुत से घरों में प्रार्थनाएँ भी की जाती हैं। कुछ लोग तो सत्संग और कीर्तन का आयोजन कर उनकी सकारात्मक तरंगों में भी डूब जाते हैं।
- प्रदोष व्रत: प्रदोष काल हिंदू पंचांग के अनुसार तेरहवें दिन पड़ता है, इसीलिए इसे त्रयोदशी तिथि भी कहते हैं। यह तिथि प्रत्येक पक्ष में आती है। कहते हैं कि प्रत्येक त्रयोदशी तिथि को शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से सभी पापों का नाश होता है। ध्यान रहे कि प्रदोष काल स्थान विशेष के अनुसार परिवर्तित होता है।
शिव तांडव स्तोत्र सीखने की विधि (Shiv Tandav Stotram Learning Steps)
सही तरीके से और सही उच्चारण के साथ पाठ करना अत्यंत आवश्यक है। आजकल बहुत से लोग इसके अर्थ को समझे बिना ही जल्दी में और बिना ठीक उच्चारण के, इस मंत्र को पाठ कर देते हैं।
शिव तांडव स्तोत्र को सीखने के लिए आपको पहले कम से कम 5 या 6 बार सुन कर उसके अर्थ तथा सही उच्चारण को समझना चाहिए। तत्पश्चात् इसके रिकॉर्ड को चला कर साथ साथ गाने का अभ्यास करते रहें। स्त्रोत को गा गा कर सीखने की अनुशंसा की जाती है क्योंकि ऐसा करने से आप इसे शीघ्र कंठस्थ कर पाएंगे।
शिव तांडव स्तोत्र वीडियो
शिव तांडव स्तोत्र के संस्कृत श्लोक एवं हिन्दी अर्थ (Shiv Tandav Stotram Lyrics & meaning in Hindi)
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥
भगवान शिव की जटाओं से पवित्र नदी गंगा बहती है, जो उनके गले को पवित्र करती है, उनके गले से सर्प माला की तरह लटकता है, उनके डमरू से डम-डम-डम की ध्वनि निकलती है जो हवा में गूंजती है, भगवान शिव अपना तांडव नृत्य करते हैं; भगवान हम सभी का कल्याण करें!
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥
पवित्र गंगा की लहरों की पंक्तियाँ भगवान शिव की जटाओं से होकर बहती हैं, यह उनके सिर को गौरवान्वित करती हैं, नदी की लहरें उनके बालों की गहराई में बहती हैं, भगवान शिव के माथे की सतह पर एक चमकदार अग्नि जलती है, और अर्धचंद्र उनके सिर पर एक सुंदर आभूषण की भाँति सजा है। (हम उन में निरंतर आनंद पाएं!)
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥
उस भगवान शिव को बारम्बार नमस्कार है, जो पर्वतराज (पार्वती) की पुत्री के क्रीड़ारत पति हैं, जिनके मन में समस्त जीवों सहित सारा ब्रह्माण्ड स्थित है, जिनकी सर्वव्यापी, दयालु दृष्टि समस्त कष्टों को दूर कर देती है, जो दिशाओं को अपने वस्त्र के रूप में धारण करते हैं।
(मेरा मन उन में आनन्द प्राप्त करे!)
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥
भगवान शिव को नमस्कार है, जो रेंगने वाले सर्प के लाल-भूरे फन पर मणि की चमक के जैसे चमकते हैं, जो दिशा की देवियों के मुख पर कदंब रस के समान लाल कुमकुम लगाते हैं, जो हाथी की खाल से बना लबादा पहनते हैं, मैं उन भूतों के स्वामी में आनंद प्राप्त करूं!
(भूत – अर्थात कैलाश की रक्षा करने वाले रहस्यमय प्राणी)
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥५॥
भगवान शिव को नमस्कार, जिनके चरणों की शोभा उन फूलों की धूल से बनी है, जो सभी देवताओं – इंद्र, विष्णु और अन्य के सिरों से गिरती है, जिनकी जटाएँ सर्प-माला से बंधी हैं, जिनके सिर पर मुकुट के रूप में चकोरा (एक पौराणिक पक्षी जो चांदनी पीता है) का मित्र, चंद्रमा विराजमान है। (भगवान शिव हमें समृद्धि प्रदान करें!)
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥६॥
भगवान शिव, जिन्होंने अपने मस्तक पर जलती हुई अग्नि से प्रेम के देवता को भस्म कर दिया, जो स्वर्ग के नेताओं द्वारा पूज्य हैं, जिनका माथा अर्धचंद्र की चमक और शीतल किरणों से मोहक है, वे हम पर अपनी कृपा बरसाएँ, जिससे हमें सिद्धियों की सम्पत्ति प्राप्त हों।
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद् धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥
भगवान शिव को नमस्कार है, जिनका माथा धगड़-धगड़ ध्वनि से जलता है, जिन्होंने (प्रेम के देवता के) पांच बाण अग्नि को समर्पित कर दिए, जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के वक्षस्थल पर सजावटी रेखाएँ बनाने में सक्षम एकमात्र कलाकार हैं। (हम उन में शांति पाएं!)
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥८॥
भगवान शिव को नमस्कार, जिनकी गर्दन पूर्णिमा की रात के काले बादलों की परतों के समान काली है, जो अपने सिर पर चंद्रमा और दिव्य नदी को धारण करते हुए मोहक हैं, जो इस ब्रह्मांड का समस्त भार वहन करते हैं। (वे हमें समृद्धि का आशीर्वाद दें!)
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥
भगवान शिव को नमस्कार, जिनकी गर्दन पूर्ण रूप से विकसित से नीले कमल के पुष्पपुञ्ज (जिनका उपयोग मंदिरों में किया जाता है) की चमक से चमकती है, जो ब्रह्मांड के घनघोर कालेपन की तरह दिखते हैं, जिन्होंने मन्मथ (प्रेम के देवता), त्रिपुरा (३ शहर) को नष्ट कर दिया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों और यज्ञों को नष्ट कर दिया, जिन्होंने अंधक (उनके अंधे बेटे) को नष्ट कर दिया, जिन्होंने हाथी दानव (गजासुर) और मृत्यु के देवता (यम) को नष्ट कर दिया। (वह हमें समृद्धि का आशीर्वाद दें!)
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥
भगवान शिव को नमस्कार है, जिनके चारों ओर मधुमक्खियाँ उड़ती रहती हैं, क्योंकि कदंब पुष्पों की शुभ और मधुर सुगंध उनके चारों ओर व्याप्त है, जिन्होंने मन्मथ (प्रेम के देवता), त्रिपुरा (तीन नगर) का नाश किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों और यज्ञों को नष्ट कर दिया, जिन्होंने अंधक (उनके अंधे पुत्र), गजासुर नामक हाथी राक्षस और यम के देवता का नाश किया। (वे हमें समृद्धि प्रदान करें!)
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद् विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
भगवान शिव को नमस्कार है, जिनके मस्तक पर अग्नि है, जो आकाश में विचरण करने वाले सर्प के श्वास के कारण निरन्तर बढ़ती रहती है, जिनका ताण्डव नृत्य धिमिद-धिमिद के अनुरूप है, भगवान शिव की जय हो!
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर् गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥१२॥
संसार के विभिन्न रूपों के प्रति, सर्प और माला के प्रति, सबसे मूल्यवान रत्न के प्रति तथा धूल के ढेले के प्रति, तथा मित्रों और शत्रुओं के प्रति, घास के एक पत्ते और कमल पुष्प के प्रति, सामान्य लोगों और सम्राटों के प्रति, भगवान शिव की समदृष्टि है – मैं भला उस भगवान सदाशिव की पूजा कहाँ कर सकता हूँ?
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥
मैं कब प्रसन्न हो सकता हूँ, दिव्य नदी गंगा के पास एक गुफा में रहते हुए, हर समय अपने सिर के ऊपर हाथ जोड़े हुए, एक गौरवशाली माथे और जीवंत आँखों के साथ भगवान को समर्पित, शिव के मंत्र के साथ अपने अशुद्ध विचारों को धोते हुए!
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥१४॥
जो कोई भी इस स्तोत्र को पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है, वह हमेशा के लिए शुद्ध हो जाता है और महान गुरु शिव की गहरी भक्ति में डूब जाता है जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कोई दूसरा रास्ता या शरण नहीं है, भगवान शिव का मात्र स्मरण ही मोह और वैराग्य को दूर कर देता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥१५॥
जो मनुष्य प्रातःकाल भगवान शिव की पूजा के बाद रावण रचित इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे रथ, हाथी, घोड़े युक्त सम्पत्ति प्राप्त होती है। भगवान शम्भू ऐसे लोगों को सदैव समृद्धि प्रदान करते हैं।
ॐ नमः शिवाय!!