ओणम राजा महाबली की अपने लोगों के पास लौट कर आने की कहानी का प्रतीक है। यह दस दिवसीय उत्सव सभी मलियाली लोगों के लिए उल्लास का पर्व है जो इस दिन अपने राजा का स्वागत करते हैं।
ओणम नवधान्य पर्व (फसल काटने का त्योहार) भी है। इस दिन घर के बाहर रंग बिरंगे, खूबसूरत फूलों से तैयार की गई रंगोलियाँ उस प्रचुरता और समृद्धि की भावना को जागृत करती हैं, ओणम जिसका प्रतीकोत्सव है। और नए वस्त्र तथा सोने के गहने से सजी महिलाओं की तो बात ही क्या! ओणम महोत्सव की हर चीज पूर्वकाल के वैभवशाली इतिहास की याद दिलाती है। शानदार भोज के उपरांत कैकोट्टिटल, तुम्बी तुल्लई, कुम्माट्टिकाली और पुलिकाली जैसे अद्भुत लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है।
ओणम का त्योहार महान असुर राजा महाबली की पाताल लोक से घर वापसी की स्मृति में मनाया जाता है।

महाबली, जो प्रह्लाद के पौत्र थे, एक शक्तिशाली और ज्ञानवान राजा थे और ज्ञान का बहुत आदर करते थे। एक बार की बात है जब महाबली कोई यज्ञ कर रहे थे, तो एक नाटे और ओजस्वी युवक ने यज्ञशाला में प्रवेश किया। उस समय जैसे कि प्रथा थी, महाबली ने उस तेजस्वी युवा का स्वागत किया और उससे वहाँ आने की मनोरथ को पूछा। तो उस युवक ने केवल उतनी भूमि देने का निवेदन किया जो उसके तीन कदमों द्वारा नापी जा सके।
अपने गुरु शुक्राचार्य की चेतावनी के बावजूद महाबली ने युवा की प्रार्थना तुरंत स्वीकार कर ली। उन्होंने चेतावनी दी कि अतिथि कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं।
कथा के अनुसार, जैसे ही तीन कदम भूमि की स्वीकृति हुई, युवा वामन ने त्रिविक्रम का विराट रूप धारण कर लिया और अपने पहले कदम से पूरी पृथ्वी नाप ली। और अपने दूसरे कदम से उन्होंने पूरा आकाश भी नाप लिया। इन दो पदों से ही राजा महाबली का पूर्ण राज्य, पृथ्वी और आकाश नापने के पश्चात् वामन ने राजा से प्रश्न किया कि वह अपना तीसरा कदम कहाँ रखे?
ईश्वर के परम भक्त, प्रह्लाद के पौत्र राजा महाबली ने श्रद्धा और समर्पण के साथ खुशी-खुशी अपना सिर तीसरे कदम के लिए अपना सिर आगे बढ़ा दिया।
महाबली के समर्पण को देख कर भगवान विष्णु ने राजा को आशीर्वाद दिया और उसे पाताल लोक में भेज दिया। साथ में वचन दिया कि अगले मन्वन्तर में उनको इंद्र बना देंगे और स्वयं भगवान पाताल के द्वार की रक्षा करेंगे।
महाबली के राज्य की प्रजा के निवेदन पर, विष्णु ने महाबली को वर्ष में एक बार पाताललोक से वापस अपने लोगों के बीच आने की आज्ञा दे दी। यह दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है।
गहरा अर्थ
वामन अवतार एक पौराणिक कथा है अर्थात् ऐतिहासिक या वैज्ञानिक घटनाओं को कथा के रूप में बता कर उसमें छिपे हुए नैतिकता के उपदेश को समझाती है। महाबली एक महान असुर राजा थे। लेकिन उनकी अहंकार उनकी इस संपत्ति से उत्पन्न हुई थी कि वे जितनी भूमि देख सकते थे, वह सब भूमि का स्वामी था और उन्हें अजेय माना जाता था।
अहंकार तो इतना बड़ा हो सकता है जितने विशाल यह धरती और आकाश हैं, परंतु ज्ञान और विनम्रता व्यक्ति को अहंकार से ऊपर उठाने में सहायता करते हैं। वामन की भाँति अहंकार पर भी तीन साधारण चरणों में विजय प्राप्त की जा सकती है।
प्रथम कदम: पृथ्वी का आँकलन करें – अपने चारों ओर दृष्टि डालें और इस पृथ्वी पर अपनी तरह विशाल संख्या में रहने वाले अन्य जीवों को देख कर विनम्र हो जाएँ।
द्वितीय कदम: आकाश की ओर देखें – ऊपर खुले आकाश की ओर दृष्टि डालें, गगन की विशालता और ब्रह्मांड में स्थित असंख्य अन्य लोकों को देख तथा ब्रह्मांड की तुलना में आपका अस्तित्व कितना तुच्छ और नगण्य है, इस विचार से विनम्र हो जाएँ।
तीसरा कदम: अपना हाथ अपने सिर पर रखें – स्वीकार करें कि जन्म मृत्यु का चक्र, न केवल जीव जंतुओं, बल्कि स्वयं ब्रह्मांड के संदर्भ में प्रत्येक जन्म में, हमारा जीवन काल अति लघु है और संपूर्ण ब्रह्मांड के बड़े चित्र में में हमारी भूमिका और भी छोटी है।
श्रावण मास का महत्व
ओणम शब्द तिरुवोणम अथवा श्रावणम का संक्षिप्त रूप है, क्योंकि यह त्योहार भारतीय कैलेंडर के अनुसार श्रावण महीने में श्रावण नक्षत्र के तहत मनाया जाता है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार श्रावण महीना उत्तर भारत में जुलाई – अगस्त, और दक्षिण भारत में अगस्त- सितंबर में पड़ता है। इस महीने को श्रावण कहा गया है क्योंकि इस महीने में पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र में आती है।
आकाश में अंकित तीन पदचिह्न
श्रावण नक्षत्र वह तारा समूह है, जिसे पश्चिमी खगोलशास्त्र में अल्टेयर के नाम से जाना जाता है, जो आकीला नक्षत्र में स्थित एक चमकीला तारा है, इसके साथ ही बीटा और गामा आकीला, जो इसके दोनों ओर स्थित हैं।
इन तीन नक्षत्रों को वामन के विशालकाय त्रिविक्रमा स्वरूप में तीन कदम माना जाता है। यह आश्चर्यचकित करने वाली बात है कि महाबली और वामन की लोककथा में श्रवण नाम के नक्षत्र की क्या भूमिका हो सकती है? श्रवण शब्द का अर्थ है सुनना, ध्यान देना। आकाश में यह तीन नक्षत्र महाबली द्वारा अपने गुरु की अवज्ञा के कारण हुए परिणाम को दर्शाते हैं और सदा स्मरण और सचेत करवाते रहते हैं कि हमें नेक सलाह को ध्यानपूर्वक सुनना और उस पर अमल करना चाहिए।