वसंत पंचमी का त्योहार शरद ऋतु के समापन तथा बसंत ऋतु के आगमन के आरंभ के परिवर्तनकाल का सूचक है। मकर संक्रांति (14 अथवा 15 जनवरी), के पश्चात् सूर्य देवता मकर रेखा से उत्तर की ओर अपनी यात्रा आरंभ करते हैं तो धीरे धीरे सर्दी कम होने तथा मौसम में उष्णता आने लगती है। मौसम में होने वाले इस सुखद परिवर्तन से बसंत ऋतु का आगमन होने लगता है, और इसके साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में, विशेषकर उत्तर भारत में लोग कड़ाके की ठंड से राहत महसूस करते हैं। लगभग तीस दिन के इस परिवर्तनशील समय के उपरांत, बसंत पंचमी से आरंभ हो कर होली के समय तक, बसंत ऋतु अपने पूरे यौवन में दिखाई देती है। 

वसंत पंचमी हिंदू पंचांग के माघ मास के शुक्ल पक्ष के पाँचवे दिन पड़ती है। अंग्रेजी कैलेंडर (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के अनुसार यह जनवरी- फरवरी के समय होता है।

देवी त्रिमूर्ति से संबंध

पृथ्वी के इस भाग में वसंत पंचमी का बहुत महत्व माना गया है। प्राचीन समय में वसंत पंचमी सरस्वती नदी का त्योहार भी माना जाता था। भारत के अनेक क्षेत्रों में इस दिन को “सरस्वती पूजन दिवस” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी सरस्वती को संतुष्ट करने हेतु उनकी पूजा की जाती है। घरों में देवी सरस्वती की पूजा की जाती है तथा देवी सरस्वती के मंदिरों को अनेक प्रकार भव्य रूप से सजाया जाता है, जहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को श्री पंचमी  के रूप में मनाते हैं, यहाँ “श्री” शब्द, देवी लक्ष्मी के एक नाम को दर्शाता है। वसंत पंचमी की उस दिन के रूप में भी मान्यता है कि इसी दिन, माता पार्वती ने भगवान शिव कि तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा था। इस प्रकार, वसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में पूज्य तीनों देवियों, (त्रिमूर्ति, त्रिदेवी) से संबंध रखता है। दूसरे शब्दों में, यह वो दिन है जब ज्ञान, समृद्धि तथा सृजनता, इन तीनों शक्तियों की पूजा की जाती है।

सरस्वती से सम्बंध

वसंत पंचमी, सरस्वती नदी तथा देवी सरस्वती से कैसे सम्बन्धित है, आइए जानते हैं।

सरस्वती नदी उत्तर-पश्चिमी भारत में बहने वाली एक प्राचीन नदी थी जो समय के साथ साथ लुप्त हो गई। उन दिनों में बसंत ऋतु के आगमन पर हिमालय के हिमनद (ग्लेशियर) पिघलने के कारण सरस्वती नदी में जल का प्रवाह बढ़ जाता था। इससे इस क्षेत्र के खेत सरसों के फूलों से भर जाते थे और नदी के दोनों छोरों पर, कई कई मीलों दूर तक सरसों के पीले फूल अपनी छटा बिखेर कर अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर देते थे। यहाँ यह जानना रोचक है कि भारतीय परंपराओं के अनुसार पीला रंग ज्ञान को दर्शाता है। यही बसंत का रंग है। 

 ज्ञानोत्सव के रूप में

पुरातन काल में अनेक ऋषियों ने अपने आश्रम सरस्वती नदी के तटों पर स्थापित किए। महर्षि वेद व्यास का आश्रम भी यहीं था। इसलिए सरस्वती नदी के किनारे ही वेदों, उपनिषदों, और अन्य ग्रंथों की रचना तथा उनका संकलन हुआ। इस प्रकार से यह नदी ज्ञान और बुद्धिमता की देवी सरस्वती का पर्याय बन गई।

वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का शृंगार पीताम्बरी परिधान में किया जाता है, जो इस त्योहार तथा इस नदी से उनके गहरे रिश्ते का परिचायक है और उसे पूर्णता प्रदान करता है। इस दिन लोग भी पीले वस्त्र धारण करते हैं और पीले रंग के ही व्यंजन बनाते, खाते तथा एक दूसरे से साझा करते हैं। इसके साथ ही, कुछ मान्यताओं तथा परंपराओं में बच्चों की औपचारिक शिक्षा भी वसंत पंचमी से आरंभ की जाती है क्योंकि वसंत पंचमी का दिन देवी सरस्वती की आराधना का दिन है।

फरवरी – एक लघु और मधुर माह

माता सरस्वती को सृजनात्मकता की देवी रूप में भी जाना जाता है। पुराने समय में वसंत पंचमी से ही महीने भर मनाए जाने वाले वसंतोत्सव का आरंभ होता था जिसका अंत होली के त्योहार के रूप में होता था। जैसा कि हम जानते हैं, वसंत पंचमी फ़रवरी मास में आती है। फ़रवरी माह को विवाह शादियों के लिए भी उपयुक्त माना जाता था। किवदंतियों के अनुसार देवताओं का विवाह भी इसी माह में होता था। भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी मास में हुआ था। 

वसंत पंचमी की पौराणिक कथाएँ

आईए, अब हम संक्षेप में वसंत पंचमी से जुड़ी हुई लोकप्रिय पौराणिक कथाओं पर दृष्टि डालें।

कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव घोर तपस्या में लीन थे। उस समय तारकासुर नाम के एक असुर को वरदान मिला हुआ था कि उसके जीवन का अंत केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव होगा। यह जान कर कि भगवान शिव तो लंबे समय तक घोर तपस्या में रहने वाले हैं और एक तपस्वी होने के नाते माता सती द्वारा आत्मदाह करके प्राण त्यागने के कारण उनके पुनः विवाह करने की संभावना अति क्षीण हो गई है, उसने समूची पृथ्वी पर उत्पात करना आरंभ कर दिया। इसी बीच देवी सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ। पार्वती ने भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प लिया था। किंतु भगवान शिव पर इसका कोई असर नहीं हुआ। तब पार्वती ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। वसंत पंचमी का ही दिन था जब कामदेव भगवान शिव के पास गए और उन्होंने भगवान शिव का ध्यान आकर्षित करने और उनकी तपस्या भंग करने के उद्देश्य से कैलाश पर्वत पर एक मायावी इंद्रधनुष बनाया। अंत में भगवान शिव की समाधि तो भंग हो गई परंतु क्रोधित हो कर उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया। उसके पश्चात उन्होंने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। उस विवाह से जन्मे भगवान कार्तिकेय ने अंततः तारकासुर का अंत किया। 

विभिन्न क्षेत्रों में वसंत उत्सव

सरस्वती पूजन दिवस के अतिरिक्त भारत के विभिन्न प्रदेशों में वसंत पंचमी का त्योहार अलग अलग प्रकार से भी मनाया जाता है।

पंजाब में वसंत ऋतु को पतंग उत्सव के रूप में मनाया जाता है। लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं तथा पीले चावल बना कर खाते हैं। सिख पुरुष पीले रंग की पगड़ियाँ पहनते हैं। महाराष्ट्र में शादी के उपरांत प्रथम वसंत पंचमी पर विवाहित जोड़े  पीले वस्त्र पहन कर मंदिरों में जाते हैं। राजस्थान में इस दिन लोग चमेली के फूलों की मालाएँ पहनते हैं। बिहार में सूर्य देवता की  प्राचीन मूर्ति की स्थापना वसंत पंचमी के दिन ही की गई थी। इस दिन वहाँ सूर्य देव की मूर्ति को धोया तथा सजा कर दिन भर उत्सव मनाया जाता है। 

मुस्लिम समुदाय के सूफी संतों का महत्व

मुस्लिम समाज के सूफ़ी संतों के लिए भी वसंत पंचमी का बहुत महत्व है। कुछ सूफ़ी मान्यताओं के अनुसार तेरहवीं सदी में दिल्ली के महान सूफ़ी कवि अमीर ख़ुसरो ने हिंदू महिलाओं को वसंत पंचमी पर पीले फूल ले जाते हुए देखा। तब उन्होंने इस प्रथा को अन्य सूफ़ी संतों में फैलाया जिसका पालन आज तक भी चिश्ती वंश के मुस्लिम सूफ़ी संतों द्वारा किया जाता है। वसंत पंचमी के दिन ही कुछ मुस्लिम सूफ़ी लोग दिल्ली की मशहूर निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर सजदा करते हैं।

इस प्रकार वसंत पंचमी का त्योहार भारतवर्ष के अलग अलग भागों में, अलग अलग ढंग से, अलग अलग कारणों से मनाया जाता है। यह दिन प्रेम तथा ज्ञान का उत्सव मानाने के लिए है। 

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