भगवान गणेश का जन्म (Birth of Ganesh in Hindi)

यह समझने के लिए कि हर पूजा की आरम्भ में और किसी भी नए कार्य के आरम्भ से पूर्व भगवान गणेश की पूजा क्यों की जाती है, हमें भगवान गणेश के पीछे के प्रतीकवाद को समझने की जरूरत है।

गणेश जी के जन्म की कथा प्रसिद्ध है। गणेश का जन्म पार्वती के शरीर की मैल के संग्रह से हुआ था। ‘पार्वती’ किसी उत्सव या त्यौहार की उच्च ऊर्जा है और इस उच्च ऊर्जा में हमेशा नकारात्मकता का कोई न कोई अंश होता है। यह अपवित्रता का प्रतीक है। जब मिट्टी के इस शरीर का सामना ‘शिव तत्व’, ‘अद्वैत तत्व’ से हुआ, तो इसका सिर, यानी अहंकार, अलग हो गया और फिर उसकी जगह एक हाथी का सिर लगा दिया गया।

भगवान शिव का आशीर्वाद

गणेश को स्वयं भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया था कि किसी भी शुभ अवसर या पूजा की शुरुआत में उनकी पूजा की जाएगी।

भगवान गणेश हाथी के सिर वाले थे। हाथी ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। हाथी के प्रमुख गुण बुद्धि और सहजता हैं। हाथी का विशाल सिर बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। हाथी बाधाओं के आसपास नही चलते; न ही बाधाएं उन्हें रोक सकती है। वे बस उन्हें हटा देते हैं और सहजता का संकेत देते हुए आगे बढ़ जाते हैं। इसलिए जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये गुण जागृत होते हैं और हम इन गुणों को धारण करते हैं।

इस प्रकार किसी भी पूजा की आरम्भ से पहले, हम भगवान गणेश का आह्वान करते हैं, जिसका अर्थ है कि हमें अपनी आत्मा में भगवान गणेश के तत्व को जागृत करना है। इससे हमें नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर बढ़ने में सहायता मिलेगी। हम मिट्टी से गणपति की मूर्ति बनाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि जो जीवन हमारे भीतर मौजूद है, जो स्वयं भगवान हैं, वही कुछ समय के लिए मूर्ति में निवास करें ताकि हम उनके साथ खेल सकें। 

पूजा का फल

इसलिए जब हम उनकी पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर सभी अच्छे गुण खिलते हैं। वह ज्ञान और बुद्धि के स्वामी भी हैं। ज्ञान का उदय तभी होता है जब हम स्वयं के प्रति जागरूक हो जाते हैं। जब जड़ता होती है तो न ज्ञान होता है, न विवेक, न जीवन में कोई चैतन्य या प्रगति होती है। इसलिए चेतना को जागृत करना होगा और चेतना के अधिष्ठाता गणेश हैं। इसीलिए हर पूजा से पहले चेतना जागृत करने के लिए भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

इसलिए मूर्ति स्थापित करें, असीम प्रेम से उसकी पूजा करें, ध्यान करें और अपने अंदर भगवान गणेश का अनुभव करें। यह गणेश चतुर्थी उत्सव का प्रतीकात्मक सार है, गणेश तत्व को जगाने के लिए, जो हमारे अंदर छिपा हुआ है।

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