जीवन में करियर/ व्यवसाय महत्वपूर्ण है पर उसके साथ साथ सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास भी महत्वपूर्ण है। दोनों एक साथ चलते हैं। कुछ लोगों का ध्यान केवल करियर पर तो कुछ का केवल व्यक्तित्व विकास पर ही होता है। यदि इनमें से एक की भी कमी हो तो आप जीवन में संतुष्टि का अनुभव नहीं कर सकते। इसलिए दोनों को साथ लेकर चलो – योग्यता भी तथा व्यक्तित्व विकास भी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको एक अच्छे इंसान होना चाहिए। अच्छा होने का मतलब केवल मीठा और बहुत सज्जन होना नहीं है, बल्कि मजबूत होना भी है। यह सत्य है कि आपके मीठे शब्दों का प्रभाव पड़ता है, लेकिन इसके साथ ही आपको मजबूत भी होना चाहिए। यही DSN (कार्यक्रम) में होता है। यह आपको भीतर से मजबूत और अटल बना देता है।
व्यक्तित्व विकास के लिए पाँच गुण
सभी लेबलो को उखाड़ फेंकें
सर्वप्रथम अपने ऊपर कोई लेबल मत चिपकाओ। “मैं अंतर्मुखी हूँ। मैं बहिर्मुखी हूँ।” यदि आप सोचते हो कि आप बहिर्मुखी हो तो आप अपने साथ रहने में भी बेचैन महसूस करते हो। और यदि आप स्वयं को अंतर्मुखी समझते हो तो आप दूसरे लोगों के साथ बैठने में असहज महसूस करते हो। यह आपके चारों ओर एक सीमा बाँध देता है। ऐसे में आप थोड़ा प्रयास कर के यह देखो कि ऐसा क्या है जो आपको पसंद नहीं है और कहीं यह आपके लिए हानिकारक तो नहीं।
खिलखिला कर हंसो
यदि कोई आपसे कहे कि “तुम गधे हो।” तो आप उत्तर दो, “तुम्हें यह आवाज कैसी लगती है?” (और फिर गधे की नकल करते हुए उसकी आवाज निकालो)। आप हंसते हंसते लोट पोट हो जाओगे। और वे लोग भी हंसने लगेंगे। हास्य हमारा सर्वोत्तम हथियार है जिससे आप सभी विवादों से बच सकते हो। यह संस्कारी, सभ्य तथा सुशिक्षित व्यक्ति की पहचान है। यदि आपका मजाक बनाया जाता है तो उसे मजाक में ही वापस करो।
यदि आप में मजाक करने की कला नहीं है तो आप जीवन में सफल नहीं हो पाओगे। परंतु आप अतिरिक्त प्रयास कर के अपने भीतर मजाक करने की कला बढ़ा नहीं सकते। जब आप आत्मविश्वासी, निश्चिंत और तनावमुक्त हैं, तो हास्य आपके भीतर से अपने आप आता है। आप हास्य की प्रवृत्ति श्रम द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते, आपको केवल निश्चिंत, तनावमुक्त, संतुष्ट और केंद्रित होना है। सिर्फ केंद्रित रहने से ही आपके अंदर से हास्य व्यंग्य अपने आप बाहर आने लगता है।
यह ‘कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है’ से ‘सब कुछ महत्वपूर्ण है’ का संगम है। अपने भीतर दोनों भावनाओं को रखो! यदि सब कुछ ही महत्वपूर्ण है तो हास्य के लिए कोई स्थान नहीं है। और यदि कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, तो भी हास्य के लिए कोई स्थान नहीं है। किसी को प्रभावित करने का प्रयास कभी मत करो। इसमें आप बुरी तरह से असफल होंगे। जब लोग किसी को हंसाने की कोशिश करते हैं तो वह बेवकूफी और बचकाना हास्य लगता है। जो लोग बुद्धिमान और परिपक्व होते हैं उनमें हास्यरस होना एक स्वाभाविक गुण है। यदि हम इस अकड़ को छोड़ दें तो हम संवाद में बहुत अच्छे हो जाएँगे। और यदि आपकी संवाद क्षमता अच्छी है तो आप निश्चित ही सफल होने में सक्षम हैं।
मूर्ख लोग हास्य को भी गंभीरता से लेते हैं! निर्दयी लोग हास्य का उपयोग दूसरों का अपमान करने के लिए करते हैं। गैर जिम्मेदार लोग हास्य का उपयोग अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए करते हैं। बुद्धिमान लोग हास्य का उपयोग अपमान के खिलाफ एक ढाल के रूप में करते हैं। ज्ञानी लोग हास्य को ज्ञान का प्रकाश फैलाने और प्रत्येक स्थिति को हल्का बनाने में उपयोग करते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
अपनी मुस्कान को सस्ता और क्रोध को महंगा बनाओ।
प्रतिबद्ध बनो
जीवन में प्रतिबद्धता आवश्यक है। प्रतिबद्धता के अभाव में जीवन में न तो स्थिरता, न कोई आनंद, और न ही कोई उन्नति हो सकती है। बाढ़ तथा बहती नदी के बीच यही अंतर है कि नदी में पानी एक निश्चित दिशा में नियंत्रित रूप से बहता है। बाढ़ के दौरान पानी मलीन होता है और उसकी कोई दिशा नहीं होती। इसी प्रकार हमारे जीवन में ऊर्जा को भी बहने के लिए किसी न किसी दिशा की आवश्यकता होती है। यदि आप इसे दिशा नहीं देते तो फिर सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है। आजकल अधिकतर लोग अव्यवस्थित जीवन जी रहे हैं क्योंकि उनकी कोई दिशा नहीं है। जब भी आप आनंदित होते हैं तो आपके भीतर जीवन ऊर्जा होती है; किंतु जब इस ऊर्जा को पता ही नहीं होता कि किस ओर जाना है या इसका उपयोग कैसे किया जाना है तो यह वहीं अटक जाती है। और जब यह रुक जाती है तो इसमें से दुर्गंध आने लगती है! जिस प्रकार पानी को बहते ही रहना चाहिए होता है, उसी प्रकार से जीवन को भी चलते रहना चाहिए। जीवन ऊर्जा को एक दिशा में बहने के लिए प्रतिबद्धता आवश्यक है।
जिस प्रकार कार में पेट्रोल समाप्त होने पर उसे बार बार भरवाना पड़ता है, उसी प्रकार आपकी प्रतिबद्धता और समर्पण भी समय के साथ क्षीण होने लगते हैं, और इसे लगातार नवीनीकरण की आवश्यकता होती है! आपको समर्पण और पुनः समर्पण बार बार करना होगा। जब समर्पण भी पूर्ण रूप से न हो तो यह असंतोष और शिकायतों को जन्म देता है। संपूर्ण समर्पण असाधारण उत्साह, जोश, विश्वास और चुनौती लाता है और इसमें अहंकार के लिए कोई जगह नहीं रहती।
प्रतिबद्धता तभी अनुभव में आती है जब यह सुविधा से आगे निकल जाती है। जो कार्य सुविधानुसार किया जाए उसे आप प्रतिबद्धता नहीं कह सकते। ज्ञानियों के लिए प्रतिबद्धता ही सुविधा है। जब कभी भी उनकी प्रतिबद्धता में कमी आती है, तो यह उनके लिए सुविधाजनक भी नहीं रहता। और आलसी व्यक्ति के लिए प्रतिबद्धता कष्टदायक है, हालांकि यह उनके लिए सबसे अच्छा उपाय है।
अप्रतिबद्ध मन दुखी होता है। एक प्रतिबद्ध मन को कभी कभी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है परंतु उसे अपने मेहनत का फल अवश्य मिलता है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
परिस्थति के अनुरूप ढल जाओ
आप जानते ही हो, मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि हमारे पास असीमित अनुकूलन क्षमता है। जो दौड़ सकता है, वह रुक भी सकता है। और जो खड़ा है,वह दौड़ भी सकता है। यदि हम अपनी इन विपरीत क्षमताओं का उपयोग करना भूल जाते हैं, तो हम अपने जीवन के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, एक दरवाजा जो बंद हो सकता है, उसे खोला भी जाना चाहिए। और जो दरवाजा खोला जा सकता है, वह बंद भी किया जाना चाहिए। नहीं तो उसे दरवाजा कह ही नहीं सकते। इसी प्रकार मनुष्य का अस्तित्व है। हमारे पास क्रियाशील रहने की योग्यता है और साथ ही उसे त्याग कर शांत और स्थिर होने की योग्यता भी है। आपके पास बात करने, बोलने और लगातार बकबक करने की क्षमता है, और आपके पास चुप रहने की क्षमता भी होनी चाहिए। क्योंकि जब आप चुप रहते हैं, जब आप शांत रहते हैं, तभी आप सुनते हैं, समझते हैं और सोचते हैं।
यह संसार विरोधाभासों से भरी है; जीवन विरोधाभासों से भरा है। हमें कुशलता पूर्वक विरोधाभासों को अपना कर, विरोधाभासों को स्थान देते हुए और मुस्कुराते हुए जीवन जीना ही कला है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
संवेदनशील, किंतु समझदार बनो
संवेनशील होने के साथ समझदार होना सर्वोत्तम मेल है। तीक्ष्ण बुद्धि और कोमल हृदय दोनों का एक साथ होना सबसे आदर्श मेल है। प्रायः दिल के अच्छे लोग स्पष्ट नहीं सोच पाते। उनकी सोच व्यावहारिक नहीं होती। वे अक्सर भावनाओं में बह जाते हैं। और जो बुद्धि से तीक्ष्ण होते हैं, बहुत समझदार होते हैं, वे दूसरों की आवश्यकताओं, उनकी अनुभूतियों तथा भावनाओं के प्रति असंवेदनशील होते हैं। यह दोनों अवस्थाएँ ही अपूर्ण हैं। है न ? ऐसी बुद्धिमता जिसके पीछे कपट हो, का कोई मूल्य नहीं होता। और ऐसी भोलापन, जिसमें बुद्धिमता न हो, का भी कोई मूल्य नहीं होता। प्रायः हम देखते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति उतने भोले नहीं होते। किंतु हमें जिसकी आवश्यकता है और जो प्राप्त किया जा सकता है, वह है तीक्ष्ण बुद्धिमता के साथ भोलापन।
व्यक्तित्व के पूर्णतः खिलने के लिए 5 स्थान जहाँ हमें अवश्य जाना चाहिए
प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में पाँच दिन इन पाँच स्थानों पर अवश्य व्यतीत करने चाहिएँ
1. जेल
करुणा के लिए…
आप सबको एक दिन जेल में उन अपराधियों के साथ बिताना चाहिए जो वहाँ सजा भुगत रहे हैं। उनसे बात कर के देखो। आपके जीवन में परिवर्तन आ जाएगा। आपके मन में उनके प्रति करुणा जाग उठेगी। उनके साथ बैठकर उनसे बात करने और उनके घावों पर मलहम लगा कर परिवर्तन लाने के लिए कोई नहीं है। जेल में एक दिन बिता कर आपका दृष्टिकोण बदल हो जाएगा, आपके पूर्वाग्रह समाप्त हो जाएँगे और दूसरों को दोषी मान कर उनकी निंदा करने की आपकी प्रवृत्ति मिट जाएगी।
2. विद्यालय
धैर्य के लिए…
एक दिन विद्यालय में, हो सके तो उन बच्चों के साथ जिनकी विशेष आवश्यकताएँ होती हैं, और वहाँ आपको उन्हें कुछ पढ़ाना है। वे कितनी बार गलतियाँ करते हैं, आपके लिए उनको कोई कविताएँ दोहराने के लिए कैसी कैसी चुनौती का सामना करना पड़ेगा, फिर भी आपको उन्हें पढ़ाना ही है? क्या आपको इसका आभास है कि आपमें इसके लिए कितना धैर्य होना चाहिए? प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक कॉलेजों के प्रोफेसरों की अपेक्षा बहुत अधिक विकसित और सुलझे हुए होते हैं क्योंकि बच्चों को सिखाने के लिए बहुत अधिक धैर्य की आवश्यकता होती है। जिसमें धैर्य की कमी हो, उसे प्राथमिक विद्यालय में भेज दो।
3. किसान
विश्वास के लिए…
एक दिन किसान के साथ उसके खेत में, बगीचे में बिताओ। वहाँ मिट्टी में काम करो, बीज बोओ, और देखो कि बीज कैसे अंकुरित होते हैं। यह देखने के लिए कि बीज कैसे फूटते हैं, पेड़-पौधों का ध्यान कैसे रखा जाता है, आपको बहुत अधिक धैर्यवान होना पड़ेगा। इसके लिए एक दिन पर्याप्त नहीं है। जब आप वृक्षों की छँटाई करते हैं तो आप उनकी जड़ों को नहीं काट देते। पेड़ों की डालियों को इस लिए काटा जाता है ताकि वे अच्छे से बढ़ सकें।
4. अस्पताल
जीवन की नश्वरता जानने के लिए…
एक दिन अस्पताल में, हो सके तो मरणासन्न रोगियों के अस्पताल अथवा वार्ड में बिताओ, और देखो कि जीवन कितना अस्थायी है। हाँ, जो लोग वहाँ स्थायी रूप से कार्य कर रहे होते हैं, वे कुछ हद तक इसके प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं। क्योंकि वे इसमें अभ्यस्त हो गए हैं। जब आप किसी कार्य के अभ्यस्त हो जाते हैं तो आप उससे कुछ नया नहीं सीखते। परंतु जब आपने कोई कार्य कभी न किया हो और कुछ नया देखने और कुछ नया करने के लिए वहाँ जाते हो तो आप बहुत कुछ सीखते हो।
5. पागलखाना
मन खुला रखने के लिए…
एक दिन पागलखाने में व्यतीत करो और देखो कि वहाँ के लोग क्या बातें करते हैं। क्या आप उनकी बातों को गंभीरता से लोगे? यदि आप उनकी बातों को गंभीरता से लोगे तो सम्भवतः आप भी वहाँ रह रहे रोगियों में ही शामिल हैं। आपको भी उन्हीं के साथ होना चाहिए। हम प्रायः लोगों की बातों पर अधिक ध्यान देते हैं और उनके शब्दों को गंभीरता से सुनते हैं। सब घटनाएँ, सब कुछ जैसे होनी हैं, होती ही हैं या वह सब सृष्टि के एक अन्य स्तर, अन्य नियमानुसार होनी ही हैं। किंतु हम उन सब बातों को संजीदगी ले लेते हैं कि फलाने आदमी ने क्या कहा, उस महिला ने क्या कहा, किसने क्या कहा और इस प्रकार की तमाम बातें। हम इन बातों को दिल पर ले लेते हैं और फिर आग बबूला हो जाते हैं। यह हमारे मन को नकारात्मक, और हमें जड़ बुद्धि बना देता है और हमें परेशान कर देता है। जिसने जो कहना था, वह तो अपनी बात कह कर चला गया परंतु उसके कहे शब्द हमारे मन में ऐसे घर कर जाते हैं कि हम क्रोध में आग बबूला हो जाते हैं। यह सब आपको अति कठोर और असंवेदनशील बना देता है। आपको यह आभास भी नहीं रहता कि आप कैसा व्यवहार कर रहे हैं। आप अपनी प्रतिक्रियाओं, अपनी धारणाओं के प्रति भी सजग नहीं रहते जिससे आपकी अभिव्यक्ति गड़बड़ा जाती है अथवा अशिष्टता पूर्ण हो जाती है।
यदि आप चाहते हैं कि दूसरे आपको पसंद करें…
- दूसरों को आंकना, उन पर राय बनाना बंद कर दो।
- दूसरों की ओर उँगली दिखाना या उनकीं गलतियों को बार बार दिखाना बंद कर दें, वरना लोग आपको उतना पसंद नहीं करेंगे।
- दूसरों का ध्यान, उनसे आदर पाने की इच्छा का त्याग करें।
मुख्य संदेश
व्यक्तित्व ऐसी चीज है जिससे लोगों की धारणाएँ बनती हैं। जीवन की सम्पूर्ण यात्रा ही ‘मैं कुछ हूँ’ से ‘मैं कुछ नहीं हूँ’ की ओर, और फिर ‘मैं कुछ नहीं हूँ’ से ‘मैं सबका हूँ’ तक है। यदि कोई अपने व्यक्तित्व के विचार में ही उलझा हुआ है तो उसके लिए जीवन में उन्नति की संभावना बहुत कम है। सब कुछ परिवर्तनशील है। लोग बदलते हैं, उनके विचार बदलते हैं। हमें यह मूलभूत सत्य स्वीकार करना चाहिए। इसलिए आपने किसी के प्रति कोई राय, कोई धारणा बनाई है तो वह निर्णय कभी भी बदल सकता है। इस संभावना पर ध्यान दो कि लोग और चीजें कभी भी, किसी भी समय बदल सकती हैं, और अपने निर्णयों, अपनी धारणाओं को पकड़ कर मत रखो।
जब आपका मन शिकायत नहीं कर रहा होता, जिम्मेदारी, साहस और आत्मविश्वास से भरा है; तब आप अवर्णनीय रूप से सुंदर होते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
आप प्रायः सब प्रकार के नारे सुनते रहते हो, “पर्यावरण की रक्षा करो”, “जल बचाओ”, “पृथ्वी बचाओ”, “वृक्ष बचाओ”! इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, “किसी भी कीमत पर अपने मन को बचाओ”।
प्रतिबद्धता, साहस, आत्मविश्वास, करुणा, जीवन में यह सब स्वतः ही आ जाता है, जब हमारी प्राणशक्ति निरंतर हमारे केंद्र में प्रवाहित होती रहती है। योगाभ्यास, ध्यान और अन्य आध्यात्मिक क्रियाओं से यह सक्रिय होती है।
योग, ध्यान और दुनिया का सबसे बहुमुखी श्वसन अभ्यास – आर्ट ऑफ लिविंग की सुदर्शन क्रिया™ सीख कर, आकर्षक तथा मनमोहक व्यक्तित्व पाने के लिए मन प्रबंधन की अपनी यात्रा आज से ही प्रारंभ करें।