समाधि के चार स्तरों पर करें शिव का अनुभव
दिव्यता को गहनता से अनुभव करने के 4 स्तर हैं।
1. सामीप्य
सामीप्य का अर्थ है यह जानना की हम उस दिव्य चेतना के बहुत पास है और हम उनको अत्यंत प्रिय भी है। यह अनुभव आपको कब प्राप्त होगा? क्या कल प्राप्त होगा, उसके अगले दिन प्राप्त होगा या दस दिन बाद या कुछ महीनों बाद यह अनुभव प्राप्त होगा? नहीं! अभी, इसी क्षण में, यह मान लीजिये की आप दिव्यता के अत्यंत क़रीब हैं। गुरु यही करते हैं। उस दिव्यता का अनुभव करने में गुरु आपकी मदद करते हैं।
2. सानिध्य
सानिध्य माने उस दिव्यता को महसूस करना और अपने भीतर उस दिव्यता को जगाना। जब भी आप ध्यान करते हैं, आप उस दिव्यता के प्रति सजग हो जाते हैं; आप उस दिव्यता को महसूस भी करते हैं। उदाहरण के लिए:- हवा हर क्षण हमारे आस पास और हमारे भीतर बाहर है ही, लेकिन हमें हर क्षण यह महसूस नहीं होता। ठीक इसी तरह, हमारा आवरण हर पल भगवान् से ही घिरा हुआ है, लेकिन हमें उसकी उपस्थिति का एहसास नहीं होता। दिव्यता की उपस्थिति का अनुभव करने के लिए ही, हम पूजा करते हैं, यज्ञ का आयोजन करते हैं और विभिन्न त्यौहारों का उत्सव मानते हैं।
3. सारुप्य
सारुप्य का अर्थ है दिव्यता को अपने भीतर और बाहर हर जगह और कण कण में देखना। यह महसूस करना कि, “दिव्यता मुझ में है, अभी है, यही है, इसी क्षण है और मैं ही उस दिव्य चेतना का प्रतीक हूँ”। इसका यह अर्थ है, आपके स्मरण में यह बात लाना की आप और आपके आस पास मौजूद सभी लोग उस दिव्य चेतना से पृथक नहीं है, बल्कि उस दिव्यता का ही एक अंश हैं। गहन विश्राम में और मौन में ही इस एकाकीपन का एहसास हो सकता है। एक शांत, ठहरे हुआ मन ही इसका अनुभव कर सकता है।
4. सायुज्य
दिव्यता को महसूस करने का जो चौथा और सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर है, वो है सायुज्य। सायुज्य का अर्थ है संपूर्ण रूप से दिव्यता के संग एकरस हो जाना, जहाँ आपको अपने और वो दिव्य चेतना में कुछ भी अलग दिखाई न दे। इस स्थिति में कुछ भी द्वैत नहीं है, सब अद्वैत है। इस पूर्णता का अनुभव केवल और केवल गहन मौन में ही किया जा सकता है। उस अवस्था में जहाँ आप परमात्मा के संग एक हो जाते हैं।
ये समाधि के चार स्तर हैं। समाधि (यानि गहन विश्राम) में, हम परम - शिव के साथ एकजुट हो जाते हैं।
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