ध्यान करना सीखने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ध्यान क्या है और क्या नहीं। और यह भी कि ध्यान करने से क्या लाभ होगा?
ध्यान क्या है? (Meditation in Hindi)
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ध्यान एकाग्र होना नहीं है; यह नींद भी नहीं है।
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ध्यान सजगतापूर्वक विश्राम करना और तनाव मुक्त होना है।
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ध्यान श्रम साध्य नहीं है।
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ध्यान हमारे अन्त:कर्ण के गहरे मौन, अत्यंतता और आत्मा को जानने में सहायक है।
क्या ध्यान कोई भी कर सकता है?
आराम सबको चाहिए। किंतु वास्तव में हमें पता नहीं है कि पूर्ण रूप से विश्राम कैसे मिलता है। ध्यान हमारे लिए कोई नई अथवा बाह्य वस्तु नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने जन्म से कुछ माह पहले हम ध्यान ही कर रहे होते हैं। आप अपनी माँ के गर्भ में होते हो तो कुछ भी नहीं कर रहे होते हो। आप अपना भोजन तक नहीं चबा रहे होते हो। बस मस्त रहते हुए द्रव्य में तैरते रहते हो। यह ध्यान अथवा पूर्ण विश्राम ही है। तब आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता था, आपके लिए सब कुछ किया जा रहा था। इसलिए, इस क्रियाशील संसार में आने से पहले प्रत्येक जीवात्मा की नैसर्गिक इच्छा उसी पूर्ण विश्रांति की अवस्था में लौट जाने की होती है। ऐसा इसलिए भी है कि इस ब्रह्मांड में सब कुछ एक चक्रानुसार चल रहा है। हर चीज अपने स्रोत में वापस जाना चाहती है।
जब आपको भूख लगती है तो स्वाभाविक रूप से आपका मन कुछ खाने को करता है। ऐसे ही यदि प्यास लगी हो तो पानी पीने की इच्छा होती है। उसी प्रकार आत्मा ध्यान के लिए तरसती है और यह तड़प प्रत्येक व्यक्ति में होती है।
आपको ध्यान से क्या लाभ होगा? (Meditation Benefits in Hindi)
पुराने समय में ऋषि मुनि केवल योग्य शिष्यों और साधकों को ही ध्यान करना सिखाते थे। आधुनिक युग में, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने इस ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपलब्ध करा दिया है ताकि उनके जीवन में गुणात्मक सुधार आ सके। और जब उनको उच्चतम ज्ञान पाने की ललक होगी तो वे इस की गहराई में उतर जाएँगे। इस प्रकार यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी रूप में लाभदायक है ही।
कुछ लोग समुद्र तट पर सैर करने जाते हैं ताकि उनको ताजा हवा और अधिक ऑक्सीजन मिल सके और इसमें उनको प्रसन्नता मिलती है। कुछ लोग ऐसे होंगे जो पानी में अपने पाँव डाल देते हैं और सागर के विशाल स्पर्श को अनुभव करते हैं। कुछ और ऐसे भी होते हैं जो सागर की लहरों में उतर जाते हैं या स्कूबा गोताखोरी करते हैं और उनको मूँगे और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ मिल जाती हैं। अतः यह आप पर निर्भर है कि आप तट पर चलना, सागर में तैरना या गहरे उतर कर गोतखोरी करना चाहते हैं। सागर तो आपके लिए पूर्ण रूप से उपलब्ध है। ध्यान भी कुछ ऐसा ही है।
ध्यान की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को है क्योंकि हर व्यक्ति कभी कम न होने वाले आनंद और उस प्यार को, जो पूर्णतः दोषरहित और शाश्वत् हो, को पाना चाहता है।
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ध्यान से गहरा विश्राम और स्पष्टता आती है
नदी जब शांत होती है तो उसमें सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। उसी प्रकार जब मन शांत हो तो हमारी अभिव्यक्ति अधिक स्पष्ट होती है। ध्यान के निरंतर अभ्यास से गहरे विश्राम की स्थिति और शांति पाई जा सकती है। और यह शांति प्रायः ध्यान के वास्तविक समय से बहुत आगे तक बनी रहती है।
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सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती हैं
हम सब किसी न किसी विशेष प्रकार की तरंगें बिखेरते रहते हैं और जब हम तनाव ग्रस्त, क्रोधित, परेशान या निराश होते हैं तो उसका प्रभाव इन तरंगों पर भी पड़ता है। ध्यान में इन तरंगों को परिवर्तित करके उन्हें सकारात्मक और सृजनात्मक बनाने का सामर्थ्य होता है जिससे हमारे विचारों तथा भावनाओं में स्पष्टता आती है। यह हमारे मन पर पड़ी हुई पुरानी छापों को मिटाता है और हमारे विचारों को सही दिशा में मोड़ कर उन्हें केंद्रित करता है, जिससे हमें मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता की अवस्था पाने में सहायता मिलती है। हमारे अवलोकन बोध, धारणा तथा अभिव्यक्ति की समझ में भी सुधार होता है।
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नींद से भी अधिक गहरा विश्राम
ध्यान और नींद, दोनों से ही हमें गहरा विश्राम मिलता है। तथापि, ध्यान द्वारा प्राप्त विश्राम की गुणवत्ता नींद द्वारा पाए जाने वाले विश्राम से श्रेष्ठतर होती है। नींद की अपेक्षा ध्यान हमें कहीं अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। ध्यान से इतना विश्राम मिलता है जो गहरी से गहरी नींद से भी नहीं मिल पाता। ध्यान करने से आप अपने भीतर के ऊर्जा स्रोत को जागृत करके अपने शरीर को ऊर्जा का भंडार बना सकते हैं।
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ऊर्जा स्तर में वृद्धि
चिंताएँ, परेशानियाँ और तनाव विकर्षण से भी अधिक हानिकारक हो सकते हैं। दैनिक जीवन में होने वाली समस्याएँ और भविष्य को लेकर भय हमारे मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। यह सर्वमान्य है कि ध्यान से हमारे शरीर की प्राण ऊर्जा में सुधार होता है। जैसे जैसे प्राणिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, चिंता अपने आप कम होने लगती है। इस प्रकार ध्यान का नियमित अभ्यास करने से अवसाद, चिंताओं या आघात जनित तनाव जैसी समस्याओं में सुधारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं।
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सकारात्मक सोच से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार
विभिन्न अध्ययनों ने प्रमाणित किया है कि ध्यान न केवल मस्तिष्क की सकारात्मक भावनाओं के उत्प्रेरित करने वाले भाग को अधिक क्रियाशील बनाता है अपितु इसका हमारे समग्र मानसिक स्वास्थ्य पर भी घनात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ…
ध्यान से हमारी सजगता में सुधार होता है और हमारे क्रियाकलाप अधिक उद्देश्यपूर्ण होने लगते हैं। जीवन की विषम परिस्थितियों के प्रति हमारा व्यवहार प्रतिक्रियात्मक न हो कर प्रत्युत्तर देने की दिशा में परिवर्तित होने लगता है। ध्यान हमारी सोचने की क्षमता, एकाग्रता, समस्या समाधान कौशल तथा भावनात्मक परेशानियों का सामना करके उन के प्रति स्वयं को ढालने और उन से पार पाने की शक्ति में भी सुधारात्मक भूमिका निभाता है। अनुसंधान यह भी दर्शाते हैं कि ध्यान करने से आपका मूड ऊपर उठता है, नींद की गुणवत्ता और उसके पैटर्न में सुधार होता है तथा आपके संज्ञानात्मक कौशल का विकास होता है। ध्यान के अभ्यास से बहुत ज्यादा सोचने, क्षीण सतर्कता तथा मन के भटकाव जैसे मस्तिष्क के व्यवहार को भी मोड़ कर सही दिशा में लाया जा सकता है।
आपकी ध्यान यात्रा के पाँच पड़ाव
ध्यान मार्ग पर यात्रा का आरंभ विश्राम से होता है। जैसे जैसे आप ध्यान का नियमित अभ्यास करते जाते हैं, आप इस यात्रा में कई पड़ावों से होकर आगे बढ़ेंगे।
- प्रथम चरण : विश्रांति
- द्वितीय चरण : ऊर्जा
- तृतीय चरण : सृजनात्मकता
- चतुर्थ चरण : गहरा अंतर्ज्ञान, ज्ञान तथा बुद्धिमता
- पंचम चरण: अवर्णीय ( वर्णनातीत) ! आप समष्टि संग एकता अनुभव करने लगते हैं
ध्यान करने के आश्चर्यजनक रूप से सरल तरीके
शारीरिक व्यायाम
जब हमारा शरीर लयबद्ध रूप से कुछ आसन करता है, मुद्राएँ बनाता है तो मन स्वतः ही ध्यान में चला जाता है। यदि आप अति अधिक क्रियाशील हैं अथवा अगाध विश्राम में हैं तो आप ध्यान में नहीं जा सकते। परंतु ऐसी अवस्था में जब शरीर एक उचित स्तर तक थका तो हो, किंतु अत्यधिक थका हुआ न हो; उस सूक्ष्म संतुलन की अवस्था में, आपका पूरा तंत्र ही ध्यानस्थ हो जाता है।
इंद्रिय सुख
किसी विशेष इंद्रिय वस्तु में शत प्रतिशत लिप्तता भी आपको ध्यान की अवस्था में ला सकती है। जैसे कि
आप आराम से लेट कर आकाश को निहारते रहें। आप एकदम तन्मय हो कर संगीत सुनने में मग्न हों, तो एक स्थिति आती है जब मन पूर्णतः शांत हो जाता है।
प्राणायाम
श्वसन तकनीकों और प्राणायाम के प्रयोग से मन शांत और स्थिर हो जाता है और आप आसानी से ध्यान में उतर जाते हैं। साँस के व्यायाम करने के उपरांत बस अपनी आँखें बंद कर के स्थिर अवस्था में बैठ जाएँ।
भावनात्मक शिखर पर
ध्यानस्थ होने का चौथा उपाय है सकारात्मक तथा नकारात्मक, दोनों प्रकार की भावनाओं को एक समान मानना। जब आप बिलकुल निराश या अत्यंत क्रोध में होते हैं, तो आप के मुँह से निकलता है, “मैं हार मानता हूँ।” उसका अर्थ होता है, “बस और नहीं। अब मैं अधिक सहन नहीं कर सकता।” उन क्षणों में, यदि आप कुण्ठा, या अवसाद, या हिंसा की ओर नहीं जाते तो एक ऐसा पल आता है जब मन एकदम शांत और स्थिर हो जाता है।
अपने दृष्टिकोण का विस्तार करें, अपने संस्कारों को सुदृढ़ करें
पाँचवाँ उपाय है बुद्धि, ज्ञान और सजगता के माध्यम से ध्यान में उतरना। इसको ज्ञान योग कहते हैं। ध्यान में बैठ कर आपको ज्ञान होगा कि यह शरीर अरबों-खरबों कोशिकाओं से मिल कर बना है और आप अनुभव करेंगे कि अंदर गहरे में कुछ ऐसा है जो उत्तेजित हो रहा है। जब आप इस ब्रह्मांड की व्यापकता के प्रति सजग होते हैं तो जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण ही बदल जाता है। मैं कौन हूँ? मैं क्या हूँ? मैं कहाँ हूँ? इस अनंत ब्रह्मांड के संदर्भ में आप का अस्तित्व क्या है? ऐसे विचारों से हमारे भीतर कुछ परिवर्तन होने लगता है।
पूर्ण विश्राम
ध्यान करने के लिए आपको सिर्फ यह ज्ञात होना चाहिए कि विश्राम में कैसे जाया जाए। जिस प्रकार यदि आप मालिश की मेज पर लेटे हैं तो आप अपने शरीर को मालिश करने वाले को सौंप देते हैं, उसी प्रकार, ध्यान में भी आपको कुछ नहीं करना होता। प्रकृति अथवा आत्मा आपका ध्यान रखने के लिए हैं।
“मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे कुछ नहीं करना। मैं कुछ नहीं हूँ।”
ध्यान मतलब पूर्ण विश्राम; कुछ न चाहना, कुछ न होना, कुछ न करना और फिर भी अनायास ही पूर्णतः सजगता में होना। यदि हम यह अपना सकते हैं तो हम सहज ही गहरे ध्यान में उतर सकते हैं।
ध्यान कैसे करें (Meditation Steps in Hindi)
आर्ट ऑफ लिविंग का सहज समाधि ध्यान योग कार्यक्रम है जिसमें आपको स्वयं से ध्यान करना सिखाया जाता है।
जो मंत्र हम लेते हैं, हमारा मन भी उसी मंत्र का रूप ले लेता है। “मन: त्रयते इति मंत्र:” – अर्थात् ऐसा मंत्र जो बार बार मन में लाया जाए ताकि मन ही वह मंत्र बन जाए। मन उस मंत्र से भर जाना चाहिए। जिस पल भी यह स्थिति आती है, मन स्वतः ही चिंतामुक्त हो जाता है।
कई बार हम बहुत अधिक विचारों में खो जाते हैं या बहुत सी बातों को लेकर व्याकुल हो जाते हैं। जब भी कोई विचार मन में उठता है, उससे मुक्त होना सरल नहीं होता। वह विचार बार बार हमारे मन में आता ही रहता है, और आप उससे मुक्त होने के लिए कुछ और करने का सोचते भी हैं तो आप तब तक असुविधा अनुभव करते रहते हैं जब तक वह विचार समाप्त नहीं हो जाता। यह आँख में पड़े रेत के कण के समान चुभता ही रहता है। ऐसे ही, जब आप किसी बात को लेकर उदास होते हैं तो वह उदासी आपका पीछा ही नहीं छोड़ती। कई बार आप मन को समझाते भी हैं कि यह एक छोटा सा मुद्दा है और इसको लेकर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। किंतु हमारा मन या बुद्धि उस पर कोई ध्यान नहीं देते। ऐसे में मंत्र का जाप करना सहायता कर सकता है।
किसी भी मंत्र में शक्ति और भाव होता है। जब हमारा मन मंत्र से ओत प्रोत होता है तो वह शक्तिशाली हो जाता है। प्रत्येक मंत्र की शक्ति का अनुभव उठने वाली तरंगों द्वारा अनुभव किया जा सकता है।
सहज समाधि ध्यान एक मंत्र आधारित ध्यान है। विचारों से परे जाने के लिए और अपने अस्तित्व के स्रोत तक पहुँचने के लिए यह एक सरलतम तथा सर्वाधिक नैसर्गिक उपाय है। यह कोई बीजारोपण करने और उसे मिट्टी से ढकने के समान है। मंत्र एक बीज ही है।
आज, जब पृथ्वी पर अवसाद बहुत तीव्रता से फैल रहा है, हमें बहुत सारे प्रसन्नचित्त व्यक्तियों की आवश्यकता है। जाने माने जरा चिकित्सक, डा० अक्षय वासुदेव द्वारा किए गए अनुसंधान से पता चला है कि सामान्यत: ध्यान करने से केवल 20 प्रतिशत अवसाद पीड़ितों को लाभ मिलता है, जबकि सहज समाधि ध्यान से 70 प्रतिशत तक लोग लाभान्वित हो सकते हैं।
आपको सिर्फ यह करना है… कुछ भी नहीं!
ध्यान मतलब: नैसर्गिक होना, अपने स्वयं से और विश्व में हर चीज के प्रति सहज होना। आपको सिर्फ यह सीखना है कि विश्राम में कैसे जाएँ। जैसे, आप जब मालिश की मेज पर लेटते हो तो क्या करते हो? आप सिर्फ मालिश करने वाले को अपनी देखभाल के लिए सौंप देते हो। ध्यान में भी ऐसा ही है। आप को कुछ भी नहीं करना है, प्रकृति को आपकी देखभाल करने दो। सब प्रकार की चेष्टाओं को छोड़ दो क्योंकि जो कुछ भी हम प्रयास से प्राप्त करते हो वह भौतिक रूप में और एक सीमा में होता है। भौतिक जगत में प्रयास की आवश्यकता होती है। यदि आप श्रम नहीं करते हो तो आप कोई व्यापार, किसी घर का निर्माण अथवा कोई आजीविका नहीं बना सकते। सिर्फ बैठने और सोचते रहने से कुछ नहीं होने वाला। भौतिक जगत में हर चीज के लिए कुछ श्रम की आवश्यकता होती है। किंतु आध्यात्मिक जगत में कुछ प्राप्त करने के लिए इसका विपरीत करना होता है – अचेष्टा! केवल कुछ मिनट के लिए बैठना और कोई चेष्टा न करना, बस यही चाहिए आपको। आध्यात्मिक जगत में सब प्रयास ‘छोड़ देने‘ की दिशा में होने चाहिए। तभी आप कुछ बड़ा – बहुत बड़ा, प्राप्त करोगे!