ध्यान के बारे में सामान्य भ्रांतियां
1. ध्यान मतलब एकाग्रता
ध्यान वास्तव में विकेन्द्रीकरण है। ध्यान का प्रतिफल एकाग्रता है। एकाग्र होने में प्रयास करना पड़ता है जबकि ध्यान का अर्थ है मन को पूर्ण रूप से विश्राम देना। ध्यान में सब कुछ छोड़ देना होता है और जब वह अवस्था प्राप्त होती है तो आप गहरे विश्राम की अवस्था में होते हो। और जब मन विश्रांति में होता है तो आप अच्छी तरह से एकाग्र हो सकते हो।
2. ध्यान एक धार्मिक अनुष्ठान है
योग और ध्यान प्राचीन प्रथाएँ हैं जो सब धर्मों से परे हैं। ध्यान के लिए किसी भी मत, धर्म अथवा देश का कोई बंधन नहीं है। वास्तव में ध्यान तो विभिन्न मतों, धर्मों और देशों को जोड़ने का कार्य करता है। जिस प्रकार सूर्य सब के लिए निकलता है, वायु सबके लिए चलती है, उसी प्रकार से ध्यान भी सबको लाभ देता है।
हम किसी भी पृष्ठभूमि, धर्म और संस्कृति के लोगों को आने और ध्यान को एक उत्सव के रूप में मनाने को प्रोत्साहित करते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
3. ध्यान के लिए पद्मासन में बैठना होता है
मन के व्यवहार को विस्तार से समझने और उसकी व्याख्या के लिए पतञ्जलि योग सूत्र एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित अध्ययन प्रस्तुत करता है। “स्थिरम सुखम आसनम” महर्षि पतञ्जलि द्वारा दिया गया एक सूत्र है। उनके अनुसार, ध्यान करते समय आराम से स्थिर मुद्रा में बैठना अधिक महत्वपूर्ण है। ऐसा करने से हमारा अनुभव अधिक गहरा होता है। आप सुखासन में, किसी कुर्सी पर, सोफे पर – कहीं भी बैठ सकते हैं – यह सब ठीक है। जब आप ध्यान आरंभ करें तो रीढ़ की हड्डी को सीधा रख कर बैठें, और अपने सिर, गर्दन तथा कंधों को आरामदायक स्थिति में रहने दें।
4. ध्यान वृद्ध लोगों के लिए है
ध्यान का विस्तार सार्वभौमिक है और यह सभी आयु वर्ग के लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाता है। आठ या नौ वर्ष की कच्ची उम्र से भी ध्यान का अभ्यास आरंभ किया जा सकता है। जिस प्रकार स्नान करने से शरीर शुद्ध होता है, उसी प्रकार ध्यान करने से हमारा मन निर्मल और तनाव रहित रहता है।
5. ध्यान किसी सम्मोहन विद्या जैसा है
ध्यान वास्तव में सम्मोहन का प्रतिकार (प्रतिविष) है। सम्मोहन क्रिया में व्यक्ति को यह आभास नहीं रहता कि उसके साथ क्या हो रहा है। जबकि ध्यान में हर पल पूर्णतया सजगता बनी रहती है। सम्मोहन में व्यक्ति को उसके मन में पड़े हुए प्रभावों, पड़ी हुई धारणाओं में से पुनः गुजारा जाता है, जबकि ध्यान व्यक्ति को उन प्रभावों, उन धारणाओं से मुक्त करता है। यह हमारी चेतना को नूतन और निर्मल बनाता है। सम्मोहन क्रिया हमारे शरीर की उपापचयी (मेटाबॉलिक) क्रिया को बढ़ाती है, जबकि ध्यान से इसमें कमी आती है।
यदि आप प्रतिदिन प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करते हैं तो कोई आपको सम्मोहित कर ही नहीं सकता।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
6. ध्यान का मतलब है विचारों को रोकना
हमारे विचार किसी निमंत्रण पर नहीं आते। हमें उनके आने का आभास तभी होता है जब वह आ चुके होते हैं। विचार आकाश में छाने वाले बादलों के समान हैं। वे अपने आप आते हैं और अपने आप चले भी जाते हैं। विचारों को रोकने, उन्हें नियंत्रित करने के लिए तो प्रयत्न करना पड़ेगा जबकि मन की शांति अप्रयत्नशीलता से ही संभव है। ध्यान करते समय न तो हम अच्छे विचारों की अभिलाषा करते हैं और न ही बुरे विचारों के प्रति विमुख होते हैं। हम तो केवल एक मूक दर्शक की तरह होते हैं, जो साक्षी भाव से सभी प्रकार के विचारों से परे जा कर अपने भीतर, गहरे मौन में उतर जाते हैं।
7. ध्यान जीवन की समस्याओं से भागने का मार्ग है
इसके एकदम विपरीत, ध्यान आपको जीवन की समस्याओं का सामना मुस्कुरा कर करने के लिए सशक्त बनाता है। ध्यान करने से आपके भीतर समस्याओं का सामना रुचिकर तथा सकारात्मक ढंग से करने की क्षमताएँ तथा कौशल विकसित होने लगते हैं। व्यक्ति अथवा परिस्थिति, जैसी भी हैं, उसे वैसा स्वीकार करने की योग्यता विकसित होती है और आप उनके प्रति सजगता पूर्वक कार्रवाई कर सकते हैं। आप भूतकाल की घटनाओं को लेकर सोचते नहीं रहते और भविष्य को लेकर चिंतित नहीं रहते। ध्यान से हमारे आत्मबल और अंदरूनी शक्ति में वृद्धि होती है। यद्यपि जीवन में चुनौतियाँ तो आती हैं और आएँगी भी, तथापि ध्यान का नियमित अभ्यास करने से विश्वास के साथ उनका सामना करने और शीघ्र ही आगे बढ़ जाने में सहायता मिलती है।
8. आनंद / परम् शांति प्राप्ति के लिए आपको घंटों ध्यान करना पड़ता है
गहरे अनुभव के लिए आपको घंटों बैठ कर ध्यान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपके अंत:करण, अंतरात्मा से आपका जुड़ाव एक पल में, किसी भी पल हो सकता है। बीस मिनट का सहज समाधि ध्यान नित्य दो बार, आपको अपने अन्तस् में ले जाने के लिए पर्याप्त है। जब आप प्रतिदिन ध्यान करने लगते हो तो आपके ध्यान की गुणवत्ता उन्नत होने लगती है। आपको ध्यान से होने वाले लाभ भी अनुभव में आने लगते हैं।
9. यदि आप ध्यान करोगे तो एक दिन साधु – संन्यासी बन जाओगे
आपको ध्यान करने और आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए भौतिक जीवनशैली का त्याग करने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में तो जब आप ध्यान करने लगते हो तो आपका जीवन अधिक सुखद और आनंदमयी हो जाता है। तनाव रहित और शांत मन के साथ आप स्वयं तो प्रसन्न रहते ही हो, अपने आसपास दूसरों को भी प्रसन्न रहने में सहायता करते हो।
10. ध्यान से लाभ के लिए कुछ विशेष समय पर, किसी विशेष दिशा में बैठना आवश्यक है
ध्यान के लिए कोई भी समय अच्छा है और सभी दिशाएँ इसके लिए उपयुक्त हैं। हमें केवल यह सुनिश्चित करना है कि आपका पेट भरा हुआ न हो, नहीं तो ध्यान करते हुए आप नींद में जा सकते हो। फिर भी, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ध्यान साधना करना अच्छी आदत है। ऐसा करने से आप दिनभर शांत तथा ऊर्जावान अनुभव करोगे।
हमें आशा है कि हमने ध्यान को लेकर सामान्य व प्रचलित भ्रांतियों का भंडाफोड़ कर दिया है। अब आपको ध्यान से होने वाले प्रभाव तथा लाभ के विषय में अधिक स्पष्टता हो गई होगी।