ध्यान या नींद?
नये ध्यान करने वाले ध्यान के दौरान अक्सर ऐसा महसूस करते हैं, जैसे कि वे नींद में हैं, जबकि वास्तव में वे ध्यानावस्था में पहुँच चुके होते हैं। ये स्वाभाविक है, क्योंकि जब तक हम ध्यान से परिचित नहीं होते हैं, तब तक हम गहरे विश्राम को, विशेषकर नींद को ही इससे सम्बद्ध कर पाते हैं।
तनाव और थकान से छुटकारा
नि:संदेह, हम कभी कभार ध्यान में सो जाते है किन्तु कोई बात नहीं । ध्यान के दौरान यह महत्वपूर्ण है कि हम सतर्क होकर नींद से बचने की कोशिश नहीं करें। इसके बजाय, ध्यान के दौरान सुस्ती और नींद को थकान और तनाव से मुक्ति की तरह मानें। हम में से कुछ लोगों को ध्यान के दौरान (और कभी कभी ध्यान के बाद) ढेर सारी नींद और थकान से गुजरना आवश्यक होता है। हमें याद रखना चाहिए कि यह एक बेहद लाभकारी शुद्धि की प्रक्रिया का संकेत देता है।
अगर आपको ध्यान में सोने की तीव्र इच्छा हो रही है, तो बिल्कुल ऐसा ही करें। (लेकिन लेटें नहीं, जब तक आपको यह अत्यंत आवश्यक न लगे !! ) जब जाग जाएँ, तब उठकर बैठें और लगभग 5 अतिरिक्त मिनटों के लिए ध्यान लगायें । ध्यान में आ गयी नींद आपके शरीर में संचित थकान, और तनाव को दूर कर चुकी होगी, अत: नींद के बाद एक छोटा सा ध्यान बेहद लाभकारी है।
जागरूकता और निद्रा सूर्योदय और अन्धकार जैसे है, जबकि स्वप्न इन दोनों के बीच की गोधूलि बेला की तरह है। ध्यान बाह्य आकाश की ओर उड़ान की तरह है जहां कोई सूर्योदय नहीं, कोई सूर्यास्त नहीं – कुछ भी नहीं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
World Meditation Day
● Livewith Gurudev Sri Sri Ravi Shankar
विश्व ध्यान दिवस
● सीधा प्रसारण 21 दिसंबर, 8 PM
ध्यान और नींद में भिन्नताएँ
कुछ समय के नियमित ध्यान के अभ्यास के बाद, ध्यान कर्ता महसूस कर लेते है कि ध्यान और नींद अलग – अलग अवस्थाएं हैं। नींद से बाहर आने पर थोड़ी सुस्ती लग सकती है। लेकिन गहरी स्थिरता से उपजी “अ – मन” की अवस्था से उभर कर आने पर कोई भी स्पष्टता का आनन्द ले सकता है, शांति महसूस कर सकता है और वस्तुत: प्रसन्न रह सकता है ।
साथ ही साथ, गहरी निद्रा और ध्यान के दौरान श्वास अलग प्रकार से चलती है। ध्यान की गहन अवस्थाएं बेहद धीमे श्वासों से संबंधित होती है, और यहां तक के सांसों के स्थगन से भी, जबकि निद्रा में श्वास की गति कम हो जाती है।
आपके ध्यान के दौरान, कृपया ये हिसाब मत लगाइए कि आप सो रहे थे या फिर कुछ क्षण गहरे ध्यान में थे, ऐसा करने से ध्यान की सरल प्रक्रिया में हस्तक्षेप होगा। यह उक्ति कि “जो भी होगा अच्छा होगा”, बहुत अच्छी मन: स्थिति की प्रवृत्ति को बताती है।
ध्यान और निद्रा के बीच का प्रमुख भेद है, ध्यान में सजगता और नींद में असजगता । लेकिन ध्यान वाली सजगता, जागृत अवस्था से अलग गुण लिए हुए होती है। इस निद्रा और ध्यान के अंतर को, चेतना के चार प्रकार – मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार – जागृत, स्वप्न और निद्रा की अवस्थाओं में ये कैसे कार्य करते है, को समझना होगा और साथ ही चेतना की चौथी अवस्था, जो कि ध्यान में अनुभव में आती है, जिसे परम्परागत तौर पर तुरीय अवस्था भी कहते है, को भी समझना होगा। जागृत अवस्था में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार सभी कुछ एक सीमा तक कार्यशील रहते हैं। स्वप्नावस्था में केवल चित्त सक्रिय रहता है। गहरी निद्रा में, सभी चारों मिट जाते हैं – चेतना – केवल विश्राम करती है – बिना किसी हलचल के।
ध्यान की अवस्था में, मन जिसे इन्द्रियों निरंतर सूचनाएँ देती रहती हैं, वह पूर्ण रूप से पृष्ठभूमि में चला जाता है। अहं भी निष्क्रिय हो जाता है परन्तु बुद्धि और चित्त अब भी सूक्ष्मता से कार्य करते रहते हैं। ध्यान काफी हद तक निद्रा के समान है लेकिन सूक्ष्म भाव अथवा लेशमात्र बुद्धि इसमें बनी रहती है, और तुरीय अवस्था में, हमें सहज ही अपनी सच्ची प्रकृति का बोध होने लगता है।
ऑनलाइन निःशुल्क 21 दिवसीय
ध्यान चुनौती
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के साथ
प्रतिदिन 20 मिनट
7 am / 11 am / 7 pm IST
गहन शुद्धि के लिये ध्यान को “हो जाने” देना
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर हमें बताते है कि “हो जाने देना” के दो प्रकार होते है। एक है जहां सब कुछ छूट जाता है और आप बेसुध होकर अचेतन में डूब जाते हैं। यह निद्रा है, एक तामसिक अवस्था जहां कोई भी ज्ञान का भान नहीं होता । दूसरे “जाने देने” का प्रकार आपको पूर्ण विश्राम की अनुमति देता है लेकिन थोड़ी धारणा अथवा सजगता के साथ, जो आगे भी ध्यान के दौरान थोड़ी मात्रा में सतत जारी रहता है – यही ध्यान है।
ध्यान और निद्रा, दोनों ही अध:चयापचय (हाइपो मेटाबोलिक) अवस्था है जहां श्वसन और दूसरी शारीरिक क्रियाएं कम हो जाती है। दोनों ही तनाव से मुक्त तो करती हैं, लेकिन ध्यान जो विश्राम देता है वो उस नींद द्वारा मिले विश्राम से भी काफी गहरा होता है। इसलिए इससे शरीर, चेतना पर पड़ी गहरी छापें अथवा संस्कार मिट जाती हैं।
फिर भी ध्यान पूर्णतया निद्रा से परे है। यह चेतना ही है जो भली भांति जानते हुए अपनी ही चेतना के प्रति जागृत होने लगती है। यही चेतना जागृत, स्वप्न और निद्रावस्था में मौजूद रहती है और सभी अवस्थाओं की साक्षी भी होती है। यद्यपि, निद्रा में चेतना अपने किसी भी रूप में कार्यरत नहीं होती है, लेकिन यह कहीं न कहीं निद्रा की साक्षी जरूर रहती है। इसी से आप जान सकते हैं कि आप को “अच्छी नींद” आई है।
क्रिस डेल, एडवांस्ड मेडिटेशन प्रोग्राम शिक्षक द्वारा लिखित।