हमारे अस्तित्व के सात स्तर हैं, जो कि शरीर, साँस, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार तथा स्वयं अथवा आत्मा हैं। परंतु यह हमें कैसे प्रभावित करते हैं, अधिकतर इस बारे में हम अनभिज्ञ रहते हैं। साँस का हमारे शरीर पर नियंत्रण है; हमारे निर्णय, हमारी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं; अहंकार का असर हमारे व्यवहार पर पड़ता है; चित्त सभी घटनाओं को सहेज कर रखता है; तथा आत्मा हमें शुद्ध और निर्मल करती है। स्वास्थ्य केवल भौतिक शरीर तक ही सीमित नहीं है, अपितु उसका विस्तार शरीर से आगे परे है। मन तथा शरीर का संबंध और अधिक समझने के लिए निम्न उदाहरण को देखें।
आप अपनी मनपसंद नौकरी में अपने लक्ष्यों को नित्य प्रति हासिल कर रहे हैं और आपके पास शानदार परिवार और मित्रगणों का समूह भी है, परंतु तनाव की वजह से आप गंभीर रूप से पीठ दर्द से पीड़ित हैं। यह शारीरिक अवरोध धीरे-धीरे आपके कार्य को प्रभावित करेगा और उसमें बाधा उत्पन्न करेगा। इस उदाहरण से हम मन व शरीर के सम्बंध तथा उसके प्रभाव को समझ सकते हैं। अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य मानसिक शांति लाता है और यदि शरीर अस्वस्थ हो तो मन भी अशांत रहता है।
मन तथा शरीर संबंधी क्रियाओं के 4 लाभ
- मानसिक स्वास्थ्य में बढ़ोतरी
हमारा शारीरिक स्वास्थ्य हमारी मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। आपने देखा होगा कि मानसिक रोगियों में अवसाद, व्याकुलता, आत्म-संदेह आदि लक्षण उनको कमजोर और आलसी बना देते हैं। यहाँ तक कि कोई पुराने या दीर्घकालिक शारीरिक दर्द से भी हमारा मन हमेशा खराब ही रहता है। इसलिए मन और शरीर के परस्पर संबंधों को पोषित करने वाली क्रियाओं व योजनाओं को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करने से बहुत लाभ होता है।
- नशा मुक्ति में सहायक
शरीर मन को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। इस तथ्य का ज्ञान होने से हमें मन और शरीर के परस्पर संबंधों में बेहतर समन्वय के लिए उपचार की उचित पद्यति अपनाने में सहायता मिलती है। और, रोग निवृत्ति उपचार के दौरान स्वयं से सकारात्मक बातचीत बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि मन में ठान लिया जाए कि आप अब से नशा बिलकुल नहीं करेंगे तो आप वास्तव में वैसा ही करने लगते हैं। इसके विपरीत भी यही बात लागू होती है।
- तनाव को संभालने में सहायक
शरीर तथा मन के परस्पर संबंधों का बेहतर ज्ञान होने से तनाव को लेकर हमारे व्यवहार में हमें लाभ मिलता है। किसी भी परिस्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया करने की भावना शांत होने लगती है और आपके व्यवहार में लचीलापन आता है।
- आयु लंबी व जीवन स्वस्थ होता है
शरीर की स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों, जैसे आघात, सर्जरी, हृदय रोग, और संपूर्ण स्वस्थ जीवन के लिए भी मन और शरीर का बेहतर समन्वय होना अति आवश्यक है।
शरीर-मन संबंध को बेहतर बनाने के 5 उपाय
- योग व ध्यान
योग व ध्यान हमारे मन की सजगता बढ़ाते हैं और शरीर में लचीलेपन को भी बढ़ाते हैं। इसका प्रभाव हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व पर दिखने लगता है, जब हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है तथा भावनाएँ नियंत्रण में रहने लगती हैं।
हमारे साँस लेने के तरीके यह दर्शाते हैं कि हम अधिकतर समय कैसा महसूस करते हैं। जैसे, जब हम तनाव में होते हैं तब हमारी श्वास प्रक्रिया उथली, स्तही होती है और जब मन शांत है तो श्वास गहरी होती है। सुदर्शन क्रिया लयबद्ध तरीके से श्वास लेने की एक ऐसी तकनीक है जिससे हमारे मन में स्थिरता आती है और हमें हमारे पूर्वाग्रहों से छुटकारा मिलता है। क्रिया का नियमित अभ्यास करने से हमारे भीतर वास्तव में, अपना जीवन बेहतर ढंग से संचालित करने में निपुणता आती है।
- गहरी साँसें लेना
लंबी, गहरी साँसें लेने से हमारी सजगता बढ़ती है जिससे हम अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं। इससे हमारे मस्तिष्क की कार्यकुशलता में सुधार आता है और दीर्घकालिक बीमारियों से लड़ने की शक्ति भी बढ़ती है।
- निर्देशित कल्पनाएँ
किसी की ऐसी तस्वीरें देख कर, जो उन्होंने कहीं छुट्टियाँ बिताते हुए ली हों, जैसे कि पहाड़ों में ट्रैकिंग करते हुए, क्या आपने भी आनंदित महसूस किया? ऐसे ही, किसी दिन कोई अवसादपूर्ण अथवा निराशाजनक समाचार सुन कर आपको भी यह भय सताता है कि कहीं ऐसा आपके अथवा आपके परिवार के साथ न हो जाए? यह सब कल्पनाओं का प्रभाव है। सकारात्मक निर्देशित कल्पनाओं के नियमित अभ्यास से मन व शरीर के संबंधों में परिवर्तन आता है, यह हमें तरोताजा कर देती हैं और हमारे ऊर्जा के स्तरों में सुधार लाती हैं।
- उचित पोषण
पौष्टिक भोजन हमारे मन को नियंत्रण में रखता है, क्योंकि इससे शरीर अधिक चुस्त रहता है और पाचन क्रिया तेज होती है। यदि हम नियमित रूप से पौष्टिक आहार का सेवन करते हैं तो मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों, नशीले पदार्थों के सेवन से उत्पन्न रोगों आदि का उपचार करना सुगम हो जाता है।
निष्कर्ष
मन और शरीर हमारे दो अनमोल रत्न हैं और इनके संबंध के प्रति समग्र दृष्टिकोण से पीड़ा रहित एवं परिपूर्ण जीवन सुनिश्चित हो जाता है। आप इनमें कितनी गहराई तक समन्वय बैठाना चाहते हैं, इस पर आपको आज ही निर्णय लेना चाहिए और उस पर काम करना चाहिए। आखिर, सकारात्मक मनोवैज्ञानिक सोच भविष्य में कई प्रकार की उपचार पद्यतियों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।