बाधा को हटाए और एकाग्रता हासिल करें
आप यहाँ आए हैं (यह लेख पढ़ रहे हैं) और आप एकाग्र होने को इच्छुक हैं। यह अपने आप में एक अच्छी बात है, क्योंकि आप में एकाग्र होने के गुण तो पहले से ही मौजूद हैं। आप इस बात से अभिज्ञ हैं कि आप केंद्रित रहना चाहते हैं और यह आभास भी है कि आप का मन इधर उधर भागता रहता है, इसका मतलब यह हुआ कि आप केंद्रित तो हैं ही।
एकाग्रता का अर्थ है मन की स्वाभाविक प्रकृति के विपरीत जा कर उसे किसी एक बिंदु, किसी एक विषय पर केंद्रित करना। इसका मतलब यह है कि आप अपने मन को किसी ऐसे स्थान पर केंद्रित करने का प्रयास कर रहे हैं जो मन की स्वाभाविक प्रकृति नहीं है। मन तो एक वस्तु से दूसरी पर कूदता रहता है और एक आकर्षण से दूसरे, उससे भी अधिक बड़े आकर्षण की ओर भागता है।
इस प्रकार हम केंद्रित रहने के लिए अपने मन के साथ जोर जबरदस्ती ही कर रहे होते हैं। हम प्रायः बच्चों से कुछ ऐसा काम जबरदस्ती करवाना चाहते हैं जो उनके लिए स्वाभाविक रूप से रुचिकर नहीं है; इससे बच्चे अत्याधिक तनाव और दबाव में आ जाते हैं। उन्हें ऐसे ऐसे विषय पढ़ने के लिए कहा जाता है जिनमें उनको कोई रुचि नहीं होती। इससे वह बहुत अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं।
बाधा: बिन बुलाए अतिथि
यह तो आप जानते ही हैं कि जब हम अपने नेत्र बंद कर के बैठते हैं तो अपने विचारों, अपने सपनों में खो जाते हैं। मन सदैव उस ओर भागता है जहाँ अधिक आकर्षण हो। जब आप कोई बहुत स्वादिष्ट भोजन कर रहे होते हो तो आपका पूरा ध्यान भोजन पर ही होता है। किंतु जैसे ही टेलीविजन पर कोई दृश्य या कोई सुंदर चित्र आ जाता है तो आप भोजन को भूल कर उसे ही देखने में मग्न हो जाते हैं। हमारा मन सदैव ही एक वस्तु से दूसरी वस्तु की ओर भागता रहता है और वह सदा उस ओर जाता है जो अधिक मनोरंजक हो। किंतु यह आवश्यक तो नहीं कि वह आनंद का स्रोत हो। वास्तव में ऐसा होता भी नहीं।
बाधा को जानें
इस बात पर ध्यान दो कि आपको क्या चीज विचलित कर रही है। इन्द्रियों पर उत्तेजनाओं की निरंतर वर्षा हमारे भीतर जड़ता ला सकती है। उदाहरण के लिए यदि आप बहुत अधिक चलचित्र देख रहे हो। जब आप अत्याधिक चलचित्र देखते हो तो मन पर इतने अधिक प्रभाव पड़ते हैं कि आपका मन विमूढ़ हो जाता है। क्योंकि चलचित्र देखना एक आदत बन गई है। इसलिए एक सप्ताह के लिए सिनेमा देखना छोड़ दो।
यह जान लें कि आप मन को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं कर सकते। अभ्यास तथा अनुभव से ही मन शांत होने लगेगा।
आमंत्रित बाधा अच्छे हैं!
जो कुछ भी आप कर रहे हैं, उसे छोड़ कर कुछ ऐसा करो जो उससे बिल्कुल भी प्रासंगिक न हो। उदाहरणार्थ, यदि आप घर को सजा रहे हैं तो उसे छोड़ कर घास काटने लगें या खरीदारी करने चले जाओ! जब आप कुछ अति महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हों तो उसे त्याग कर कोई ऐसा कार्य करने लगो जो अप्रासंगिक अथवा निरर्थक हो। इससे हमारी रचनात्मकता में वृद्धि होती है। प्रासंगिक कार्य हमें अपने कार्य से बांधे रखते हैं। जबकि असंगत या अप्रासंगिक कार्य जीवन को एक खेल बना देते हैं।
एकाग्रता के मित्र
प्रेम
यदि आप किसी चीज को पसंद करते हैं तो आपको केंद्रित होने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे में फोकस तो पहले से ही होता है। प्रेम अपने संग केंद्रीकरण लाता ही है। मान लो आप किसी व्यंजन को पसंद करते हैं, या कोई मूवी आपको अच्छी लगती है, तो दो या तीन घंटे तक तो आप वास्तव में केंद्रित रहते हो। टेलीविजन और स्क्रीन पर आपका ध्यान इसलिए एकाग्रचित होता है क्योंकि आप किसी चीज को पसंद कर रहे होते हैं। जब आप किसी चीज को पसंद करते हैं तो मन उसमें स्वतः ही केंद्रित हो जाता है।
लोभ और भय
लोभ भी आपको किसी ऐसे स्थान पर केंद्रित कर देता है जिसे आप पसंद नहीं करते। इस प्रकार वांछित परिणाम पाने के लिए कोई लालची भी हो सकता है, परंतु किसी भी कीमत पर नहीं। उदाहरण के लिए ज्ञान पाने के लिए थोड़ा बहुत लालच करना उचित है, किंतु यदि आप अधिक जानने के इच्छुक हैं, आप सीखना चाहते है, आप झटपट ज्ञान के शिखर पर चढ़ना चाहते हैं, तो यह आपको केंद्रित होने के लिए प्रेरित करता है परन्तु यदि यह आवश्यकता से अधिक हो जाए तो आप अपने उद्देश्य को खराब ही कर रहे हो।
किंतु जहाँ लालच होता है, उसके साथ भय अपने आप केंद्रीकृत हो जाता है। असफल होने का भय आपको और अधिक उत्साही और सक्रिय बनाता है। भय आपको अपने चुने हुए मार्ग पर बनाए रखता है। क्योंकि भय का अर्थ है प्रेम उल्टा खड़ा हुआ है, इसलिए जो निष्कर्ष प्रेम से निकाला जा सकता है, वही निष्कर्ष भय से भी निकाल सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे में थोड़ा सा भी भय है तो वह ध्यानपूर्वक और केंद्रित हो कर ही चलेगा।
वैराग्य
वैराग्य भी केंद्रित कर सकता है। यह ऐसा कुछ नहीं है जिसका अभ्यास आप बलपूर्वक कर सकें और फिर कहें कि, “मैं वैरागी होना चाहता हूँ”। मन तो कहता है, “तुम यह करना चाहते हो” और तुम कहते हो, “नहीं, मुझे वैरागी बनना चाहिए”। यह कोई बौद्धिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक परिघटना है।
मन की तृष्णाएँ आपको वर्तमान पल में बने रहने से रोक सकती हैं। वैराग्य आपको वर्तमान से इतना गहरे से जोड़ता है कि आप जो कुछ भी करते हो, उसमें पूरे 100 प्रतिशत लिप्त हो जाते हो। यह आपको आनंद, संतुष्टि और शक्ति देता है।
श्वास
श्वास क्रिया आपके मन को केन्द्रित कर सकती है। साँस का प्रभाव आपके मस्तिष्क और मन पर पड़ता है। क्या अपने कभी इस पर ध्यान दिया है कि जब आप क्रोधित, या उत्तेजित, या उदास या विश्रांति में होते हो तो आपकी साँस कैसे चलती है? अभी, इस समय, जब आप यह पढ़ रहे हो, तो ध्यान से देखो, आपकी साँस कैसे चल रही है। हमारी साँसों में एक निश्चित लयबद्धता होती है। यदि आप सीधे अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकते यह काम आप साँस के द्वारा कर सकते हैं। योग, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया इसे आसन तथा रोचक बना देते हैं।
यदि आप अपनी सांस को नियंत्रित कर सकते हैं, तो जान लीजिए कि आप अपने मन को भी नियंत्रित कर सकते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
कभी आपको इस बात पर आश्चर्य हुआ कि आपको दो नासिकाएँ क्यों दी गई हैं? इनके स्थान पर एक बड़ा छेद भी तो हो सकता था! जब आप बायीं नासिका से साँस लेते हो तो यह आपके मस्तिष्क के दाएँ को प्रभावित करता है और जब दायीं नासिका से साँस लेते हो तो यह मस्तिष्क के बाएँ भाग पर प्रभाव डालता है। वैज्ञानिकों ने अभी हाल के वर्षों में पता लगाया है कि जब आप दायीं नासिका से श्वास लेते हो तो उस समय बायीं नासिका से साँस लेने की तुलना में हमारा मेटाबोलिज्म दो गुना तेज हो जाता है।
ध्यान: एकाग्रता के लिए सबसे अच्छा मित्र
एकाग्र होने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है; ध्यान अपर्यत्नशील है।
एकाग्रता ध्यान का परिणाम है – यह स्वयं में ध्यान नहीं है। कैसे?
जब मन गहरी विश्राम की स्थिति में होता है, वह ताजा और जीवंत हो उठता है। और उस गहरे विश्राम के बाद, आपकी एकाग्रता स्वाभाविक रूप से आ जाती है। यह स्वाभाविक है। एकाग्रता बिना किसी प्रयास के, बिना किसी तनाव के हो जाती है।
दुर्भाग्यवश, विश्व के अनेक भागों में ध्यान को एकाग्र होने का एक और अभ्यास अथवा चिंतन माना जाता है। वास्तव में ऐसी नहीं है। ध्यान “कुछ न करने” की कला है। यह एक ऐसा कौशल है जिसमें आप अपने मन को शांत करके और कुछ भी प्रयत्न न कर के अपने अंतःकरण के आकाश तत्व की विशालता को अनुभव करते हैं। इसलिए ‘अप्रयत्न’ ध्यान का मूल मंत्र है। और यदि आप नित्य कुछ मिनट के लिए ध्यान कर सकते हैं तो पाएँगे कि आपकी एकाग्रता में सुधार हुआ है और आपकी बौद्धिक क्षमताओं का विस्तार हुआ है।
ध्यान, एकाग्रता से बुद्धि को तीक्ष्ण करता है और मन को विश्राम दे कर उसे विस्तार देता है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
जब भी आप ध्यान के लिए बैठें, तो अपने आसपास के पूरे संसार को जैसा है वैसे ही छोड़ दो। बार बार ध्यान का अभ्यास करने से हम इच्छानुसार अपने तंत्र को विश्राम में ले जा सकते हैं या उसे फिर से क्रियाशील बना सकते हैं। सजगतापूर्वक ऐसा करने की योग्यता एक मूल्यवान गुण है।
एकाग्रता बढ़ाने के लिए गुरुदेव द्वारा निर्देशित ध्यान
हमारी पूर्व की पीढ़ियों के पास पर्याप्त समय होता था और वह अधिक समय तक निर्देशित व अन्य लंबी अवधि के ध्यान का घंटों बैठकर अभ्यास कर सकते थे। किंतु वर्तमान पीढ़ी के लिए, जिसको अनेक प्रकार की बाह्य उत्तेजनात्मक परिस्थियाँ का सामना करना पड़ता है, अपनी साँसों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है और यह कारगर भी है।
एकाग्रता ध्यान का प्रतिफल है। आप सीधे एकाग्रता को नहीं पा सकते परंतु यदि आप नित्य ध्यान का कुछ मिनट भी अभ्यास करते हैं तो अपना मन केंद्रित होने लगेगा और एकाग्रता स्वतः आने लगेगी।
प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया™ सीख कर एकाग्रता बढ़ाये द्वारा और बाधा को दूर करें।