ध्यान (meditation)

कर्म और ध्यान का रहस्य | Karma – the secret of dealing with it through meditation in Hindi |

कर्म का क्या अर्थ है? (What does karma mean?)

कर्म का शाब्दिक अर्थ है कोई भी क्रिया।

कर्म का रास्ता बहुत अजीब है। जितना आप इसे समझते हैं यह उतना ही आपको आश्चर्यचकित करता है। यह लोगों को मिलाता भी है और उन्हें दूर भी कर देता है। कर्म के कारण ही कोई व्यक्ति कमजोर हो जाता है और कोई व्यक्ति शक्तिशाली। कर्म ही किसी को गरीब तो किसी को अमीर बनाता है। इस संसार में जो भी संघर्ष हो रहा है वो सब कर्म बंधन के कारण ही है।

कर्म आपकी तार्किक और बौद्धिक क्षमता के परे है। जब आप कर्म को समझने लगते हैं तो आप घटनाओं और लोगों से बंधना बंद कर देते हैं और आपकी स्व के लिए यात्रा प्रारंभ हो जाती है।

कर्म के तीन प्रकार (Three types of karma)

अच्छी और बुरी बातें कर्म के आधार पर ही घटित होती हैं। जब समय अच्छा होता है, तो दुश्मन भी दोस्त जैसा व्यवहार करने लगते हैं। जिन लोगों के लिए आपने बहुत कुछ किया होता है वो भी कभी कभी आपके दुश्मन बन जाते हैं। आपके जीवन में ऐसे लोग भी आपके मददगार बनकर आ जाते हैं जिनके लिए आपने कभी भी कुछ नहीं किया होता है। इस सब में समय की भूमिका ही सबसे महत्वपूर्ण होती है।

सिर्फ मनुष्यों में ही यह क्षमता होती है कि वे समय के प्रभाव को बदल दें और स्वंय कर्म के बंधन से मुक्त कर सकें। और केवल कुछ लोग ही अपने जीवन में इससे मुक्त होने के उद्देश्य को स्थापित कर पाते हैं।

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कुछ कर्म बदले जा सकते हैं जबकि कुछ कर्म नहीं बदले जा सकते

इसके लिए सबसे पहले हमें कर्म के तीनों प्रकारों को जानना होगा,

जो की है ।

  1. प्रारब्ध,
  2. संचित और
  3. आगामी
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प्रारब्ध कर्म (Prarabdha karma)

प्रारब्ध का अर्थ है ‘शुरु किया हुआ’ – जो कर्म पहले से ही चल रहा है। प्रारब्ध कर्म वह है जिसका परिणाम वर्तमान में आपको मिल रहा है। आप इसे बदल नहीं सकते क्योंकि यह पहले से ही घटित हो रहा है।

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संचित कर्म (Sanchita karma)

संचित कर्म वे कर्म हैं जिन्हें आप इकट्ठा करते हैं – जो हम अपने साथ लेकर आए हैं। संचित कर्म इकट्ठा किए गए वे कर्म हैं जिन्हें आध्यात्मिक क्रियाओं जैसे कि ध्यान आदि के द्वारा समाप्त किया जा सकता है।

हम अपने संचित कर्मों को प्रार्थना, सेवा और लोगों मे प्रेम व आनंद बाँटकर भी समाप्त कर सकते हैं। सत्संग (सत्य का साथ-जो कि निश्चित रूप से ऐसे बुद्धिमान और दयावान लोगों की संगति में मिलता है जिनकी उपस्थिति में हम स्वंय को बेहतर और आनंदपूर्ण महसूस करते हैं) सभी प्रकार के नकारात्मक कर्मों के बीजों को नष्ट कर देता है।

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आगामी कर्म (Agami karma)

‘आगामी’का शाब्दिक अर्थ होता है जो अभी नहीं आया है। आगामी कर्म वे कर्म होते हैं जो अभी आपके सामने आए नहीं हैः वे कर्म जो भविष्य में आने वाले हैं। यदि आप कोई अपराध करते हैं तो हो सकता है कि आप आज न पकड़े जाएं परंतु इस बात की पूरी संभावना है कि आप भविष्य में पकड़े जाएँगे। ये आपके द्वारा किए गए कार्यों के भविष्य के कर्म हैं। हमारे मस्तिष्क पर हमारे कुछ कार्य इस प्रकार की मजबूत छाप छोड़ते हैं जो भविष्य के कर्म का रूप ले लेते हैं।

आप किसी के भी साथ जो कुछ भी करते हैं वो आपको वापस मिलता है। यही कर्म का सिद्धांत है।

इसलिए हमारे कर्म हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर अच्छे या बुरे हो सकते हैं।

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अच्छे कर्म (Good karmas)

ये वो अच्छे काम हैं जो आप दूसरों के लिए करते हैं, और फिर आप उन कार्यों में बंध जाते हैं, आपको उसके बदले में प्रशंसा या कुछ परिणाम मिलने की आशा होती है। “मैंने बहुत सेवा की है या मैंने दस वर्षों तक ध्यान किया है, इसलिए मुझे इसका कुछ भौतिक परिणाम मिलना चाहिए या मुझे इसके बदले में आध्यात्मिकता प्राप्त होनी चाहिए”। कभी कभी लोग अच्छे काम करने के बाद भी दुखी हो जाते हैं क्योंकि उन्हें इसके बदले में कुछ प्रशंसा मिलने की आशा होती है। तो यह आशा कर्म बन जाती है। आप लोगों की भलाई अपने स्वभाव के कारण करें। जब आप अपने कार्यों के परिणाम से नहीं जुड़ते हैं तो आप कर्म एक बंधन से मुक्त हो जाते हैं। इसलिए भगवान कृष्ण भागवत गीता में कहते हैः अपने कर्मों के फल मुझे अर्पित कर दो। जब आप दूसरों की भलाई की कामना करते हैं, तो आपके साथ भी अच्छी चीजें ही घटित होती हैं। यही प्रकृति का नियम है।

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बुरे कर्म (Bad karmas)

जो कुछ भी दूसरों को नुकसान पहुँचाने की नीयत से किया जाता है चाहे वो विचार हो या कार्य वह बुरे कर्म कहलाते हैं। गुरुदेव श्री श्री रविशंकर ने बहुत सुन्दरता के साथ बताया है कि हमें बुरे कर्मों से दूर क्यों रहना चाहिए। वो कहते हैः हमें कुछ भी बुरा क्यों नहीं करना चाहिए, आइए इसे समझें।

 

यदि आप कुछ बुरा करते हैं तो आपकी नींद गायब हो जाती है, आपके मन की शांति भंग हो जाती है, और इसके कारण आपका स्वास्थ्य खराब होने लगता है। कुछ न कुछ आपके मन को कचोटता रहता है। और जब कभी कुछ बात आपके मन को कचोटती है तो आप कुछ भी सृजनात्मक नहीं कर पाते हैं, और आप दुखी रहने लगते हैं।

हमें दूसरे लोगों को धोखा क्यों नहीं देना चाहिए? इसका सीधा सा कारण यह है कि हम स्वंय यह नहीं चाहेंगे कि कोई और व्यक्ति हमें धोखा दे, है न? जो कुछ भी हम दूसरों के लिए करते हैं वो हमारे पास वापस लौट कर आता है। यही कर्म का सिद्धांत है।

क्या आप  जानते हैं

जब आप किसी की प्रशंसा करते हैं, तो आप उनके अच्छे कर्म का प्रभाव ग्रहण करते हैं और जब आप किसी की बुराई करते हैं तो आप उसके बुरे कर्मों का प्रभाव ग्रहण करते हैं।

कर्म व ध्यान में संबंध

ध्यान आपके जीवन में समरसता और एकाग्रता लाता है; यह जीवन के प्रति आपकी आकांक्षाओं को कम करने में मदद करता है, आपके अपराध बोध, शर्म तथा आरोप लगाने की प्रवृत्ति को कम करता है। यह आपको लालसाओं से रहित करता है, और भौतिकवाद से दूर रहने में मदद करता है। इसलिए जैसा कि भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि यह वो अवस्था होती है कि यदि आप कर्म करते भी हैं तो भी आप कर्म के बंधन में नहीं बंधते।

बिना लालसा के प्रेम करना, आकांक्षाओं से रहित हो जाना, इस सब से आप पुनः जन्म नहीं लेते हैं और फिर कर्म का चक्र रुक जाता है।

इसी प्रकार जब आप दूसरों को और खुद को आरोप लगाना बंद कर देते हैं तो और जब अपराध बोध, दुख या शर्म की भावना के घने बादल हमारे अंतरात्मा से छंट जाते हैं तो हम मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं।

यह मुक्ति सिर्फ तभी मिलती है जब आपको गुरु के माध्यम से ध्यान के द्वारा अपने भीतर के परमात्मा का अहसास हो जाता है।

कर्म के रहस्य को उद्घाटित करते हुए गुरुदेव की वाणी सुनें।

ध्यान द्वारा कर्मफल से कैसे बचा जा सकता है ? How to get rid of karma through meditation?

परम पूज्य गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर : कुछ कर्मों का फल बदला जा सकता है और कुछ का नहीं।

जब आप कोई मिठाई, मीठा व्यंजन बनाते हैं, बनाते हुए अगर चीनी या घी कुछ कम हो तो शरुआत में, पकने से पहले आप ज़्यादा डालकर इसे ठीक कर सकते हैं। अगर कोई और चीज़ या सामग्री अधिक तो उसे भी सुधारा, ठीक किया जा सकता है। किन्तु एक बार पक जाने के पश्चात यह संभव नहीं है।

दूध मीठी या खट्टी दही में परिवर्तित होता है और अगर दही खट्टी हो गयी हो तो इसे मीठा भी किया जा सकता है। परन्तु दोनों में से किसी को भी वापिस दूध में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार प्रारब्ध कर्मो का फल नहीं बदला जा सकता किन्तु संचित कर्मो का फल आध्यात्मिक प्रयासों द्वारा बदला जा सकता है।

कर्मफल से मुक्ति पाने का अर्थ है उन कर्मो के प्रभाव, उनकी छाप से छूट जाना, मुक्त हो जाना। संचित कर्मो के प्रभाव से व्यक्ति की मानसिकता, प्रवृति स्थापित होती है। मनुष्य ध्यान,आध्यात्मिक क्रियाओं द्वारा इन प्रवृतियों, मानसिकताओं से मुक्ति पा सकता है। ध्यान,आध्यात्मिक प्रयासों द्वारा अत्याधिक कष्ट देने वाले कर्मो के प्रभाव को कम से कम किया, बदला जा सकता है।

ध्यान के समय हमारे बुरे कर्मो के प्रभाव का नाश होता है - सबकुछ धुलकर साफ सा हो जाता है। कुछ शेष नहीं रहता और आप एक ऐसी गहन शून्यता का अनुभव करते हैं जिसमें सब भय, डर, चिन्ताएँ मिट जाती, लुप्त हो जाती हैं। यह एक अनमोल अनुभव है - इसी क्षण आप इसका आनंद ले सकते हैं।

ध्यान के माध्यम से, बुरे कर्मों को मिटाया जा सकता है। इससे पहले यह शरीर, प्राण छूट जाएँ, अपने कर्म फलों के प्रभाव, अपनी अनभिज्ञता, अज्ञानता से मुक्त हो लें।

श्री रवीश कथूरिआ द्वारा संग्रहित, गुरुदेव श्री श्री रविशंकर की ज्ञान वार्ताओं (Wisdom talks by Sri Sri Ravi Shankar) के आधार पर

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