कई बार कोई नकारात्मकता, किसी की शिकायत या किसी भी तरह का मतभेद आप को प्रभावित नहीं करता। कभी ठीक इसके विपरीत एक छोटी सी बात पर आप परेशान हो जाते हैं, क्या कभी आप ने इस बात पर ध्यान दिया है |
दरअसल यह सब आपके मन का खेल है।
जब हमारे अंदर की उर्जा उच्च स्तर की है और सकारात्मक है, तब हम प्रसन्न और शांत रहते हैं, यदि वही उर्जा कम होती है तब हम दुखी हो जाते हैं।
खुशी की बात यह है कि उर्जा का यह खेल बस पल भर का है और हम अपने उर्जा के स्तर को कभी भी बढ़ा सकते हैं। ‘ध्यान’ इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमने अक्सर लोगों को पूछते हुए सुना है कि, “सकारात्मकता बढ़ाने के लिए कोई विशेष ‘ध्यान’ है ?” वास्तव में जितने नियमित रूप से हम ध्यान करते हैं उतनी ही सकारात्मक उर्जा हमें प्राप्त होती है।
ध्यान कैसे कार्य करता है?
- ध्यान शरीर को आराम पहुँचाता है: नियमित ध्यान के अभ्यास से मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्तर पर कुछ बदलाव होते हैं। ध्यान के दौरान हमारा चयापचय (मेटाबोलिज़म) धीमा हो जाता है और शरीर के सभी अंगो को गहन विश्राम मिलता है।
- ध्यान मन को शांत और उर्जावान बनाता है: ध्यान मन को खाली करता है और दिमाग से अनुपयोगी विचारों को समाप्त करता है। ध्यान से मन पर पड़े हुए कई जन्मों के संस्कारों की छाप मिट जाती है और अनावश्यक भावनात्मक विचार भी परेशान नहीं करते |
- चेतना का स्तर ऊपर उठता है : ध्यान से हमारी चेतना का स्तर ऊपर उठता है, यह हमारी चेतना में सकारात्मक परिवर्तन करता है | स्वस्थ्य मन और शरीर, ऊर्जा की वृद्धि में महत्वपूण भूमिका निभाते हैं| इसीलिए प्रतिदिन ध्यान करना अति आवश्यक है |
आयुर्वेद आवश्यक है :
ऊर्जा का स्तर के बढ़ने से, मनुष्य में सत्त्व की वृद्धि होती है|
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक मनुष्य में यह तीन गुण होते हैं:
- रजो गुण: इस गुण के कारण शरीर और मन कार्यरत रहता है|अगर हमारे भीतर “रजस” न हो तो हम कोई भी कार्य नहीं सकते |
- तमो गुण: यह विश्राम के लिए ज़रूरी है, यदि हमारे भीतर लेशमात्र भी “तमस” न हो तो हम विश्राम कर ही नहीं पायेंगे| जब “तमस” असंतुलित होता है तब भ्रम उत्पन्न होने लगता है |
- सतो गुण: सत्त्व गुण से हमारे भीतर स्पष्टता, न्याय और ज्ञान की वृद्धि होती है। जब वातावरण में या हमारे शरीर में सत्त्व की वृद्धि होती है तब हम हल्कापन, जागरूकता, प्रसन्नचित्त और उत्साहित अनुभव करते हैं| हमारा किसी भी परिस्थिति को देखने का दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट होता है।
जब हमारे भीतर सकारात्मक उर्जा होती है तो हम अपने भीतर निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव करते हैं :
- उत्साहपूर्ण
- कृतज्ञता और सराहना
- स्वयं को और अपने आसपास के लोगों को प्रसन्न रखना
- स्थिर होना
- सजगता
- आत्मविश्वास
जब भी किसी कारणवश हमारी सकारात्मकता में कमी होती है तो हमारे भीतर निम्नलिखित लक्षण प्रबल हो जाते हैं :
- हमेशा शिकायत करते रहने की प्रवृत्ति
- स्वयं पर आरोप लगाना या दूसरों पर दोषारोपण करना
- चिंता या निराशा के भाव में डूबे रहना
- भय में जीना
- क्रोध
- जीवन के प्रति उदासीनता का भाव होना
- निरुत्साहित रहना
अपने भीतर सात्विक तत्त्व को बढ़ाएं :
- अच्छा खाएं: हम जो भी भोजन करते हैं उसका हमारे शरीर पर, और सत्त्व, रजस, तमस पर बहुत असर पड़ता है। उदाहरण के लिए हरी सब्ज़ियाँ, ताज़े फल हल्के होते हैं और आसानी से पच भी जाते हैं, तो यह हुए सात्त्विक भोजन। वह भोजन जिनमें शक्कर होती है या जो खट्टे या तीख़े होते हैं जैसे अचार आदि- ये राजसिक भोजन हैं | ठीक ऐसे ही, मांसाहार भोजन, तला हुआ भोजन, या ठंडा भोजन ये तामसिक भोजन होता है।
- स्वच्छ हवा में सांस लें: यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि हमारे 90% पोषक तत्त्व ऑक्सीजन से आते हैं और भोजन एवं जल से बाकी से 10% पोषक तत्त्व हमें प्राप्त होते हैं। प्राणायाम से हमारे फेफड़ों में प्राण ऊर्जा का विकास होता है और सत्त्व बढ़ता है। सुदर्शन क्रिया, एक शक्तिशाली श्वसन प्रक्रिया है जो आर्ट ऑफ़ लिविंग के हैप्पीनेस प्रोग्राम में सिखाई जाती है, जिससे शरीर, सांस और मन के मध्य सही तालमेल बनता है।
- ध्यान: आपका ध्यान जितना गहरा होता है आप में उतना ही सत्त्व बढ़ता है या जितना सत्त्व आप में होता है उतना गहन आपका ध्यान होता है। ध्यान सरल, सहज और सबसे प्रभावी अभ्यास है,
तो अगली बार, उदासीन महसूस करने से पहले सोचें कि ध्यान का एक छोटा सा सत्र आप की कितनी सहायता कर सकता है। जब आप ध्यान का नियमित अभ्यास करते हैं, तो ध्यान स्वत: ही होने लगता है। ‘सकारात्मक ऊर्जा के लिए ध्यान करना आवश्यक है’ या फिर ‘नकारात्मकता दूर करने के लिए ध्यान करना है’ इस भाव से हटकर जब आप में ‘ध्यान करना मुझे अच्छा लगता है’ वाला भाव उत्पन्न हो तब समझ लीजियेगा की ध्यान आपके स्वभाव का अभिन्न अंग बन चुका है।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के प्रवचनों से प्रेरित
आर्ट ऑफ़ लिविंग की वरिष्ठ प्रशिक्षक, डॉ. प्रेमा शेषाद्री द्वारा लिखित