गर्भावस्था प्रत्येक महिला के जीवन का एक रोमांचक समय होता है! यह उम्मीदों से भरा एक समय होता है। आनंदित होने का समय और एक नए जीवनन का संसार में स्वागत करने का समय! ह एक ऐसा समय भी है जब तीव्र परिवर्तन हो रहे होते हैं – शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से। एक सूक्ष्म कोशिका का पूर्णतः विकसित नन्हे बच्चे के रूप में कायाकल्प हो जाता है जबकि उसकी माँ कई बदलावों का सामना करती है – कुछ रोचक और कुछ कठिन।

एक माँ के रूप में आपको लगातार हो रही परिवर्तनशील अवस्थाओं से सामंजस्य बिठाना पड़ता है और उनसे जूझना भी पड़ता है। यह सब आपके नियंत्रण से बाहर होता है और प्राय: असुविधा का कारण भी। गर्भावस्था में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में ‘ध्यान’ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कठिन समय में राहत प्रदान करने के अतिरिक्त गर्भावस्था के विभिन्न चरणों को स्वीकार करने में भी ‘ध्यान’ सहायक है।  जिससे आप जीवन के इस सुंदर पड़ाव से सुगमतापूर्वक निकल जाते हैं। आपके भीतर एक नया जीवन फल फूल रहा है, इस मधुर वास्तविकता का आनंद लेने में भी ‘ध्यान’ सहायता करता है।

आइए, गर्भावस्था की प्रत्येक तिमाही में होने वाले घटनाक्रम के विषय में जान लें।

पहले तिमाही

पहले तिमाही में आपके शरीर में हॉर्मोन से संबंधित कई परिवर्तन होते रहते हैं। आप मॉर्निंग सिकनेस (सुबह की बीमारी) या एसिडिटी का अनुभव कर सकती हैं। कई बार आपको चक्कर भी आ सकते हैं। यह अति आवश्यक है कि इस समय में आप स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक भोजन का सेवन करें और अपने ‘प्राण ऊर्जा’ स्तर को ऊँचा बनाए रखें। इस समय में भ्रूण का विकास धीमी गति से होता है। तंत्रिका तंत्र उसमें सबसे पहले विकसित होता है। इसका अर्थ यह है कि आपके शिशु के मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी तथा तंत्रिकाएँ इस चरण में विकसित हो रही हैं। बाल, नाखून, आँखें, स्वर यंत्र, और मांसपेशियाँ भी आकार लेने लगती हैं।

शिशु के कान प्रथम तिमाही में विकसित होते हैं इसलिए मंत्रों या  हल्की सुखदायक संगीत जैसे वीणा सुनना एक उत्तम विचार है। इस सब का शिशु के तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

दूसरे तिमाही

दूसरे तिमाही में शिशु गर्भ के अंदर हिलना आरंभ कर देता है। यह हिचकियाँ तथा जम्हाइयाँ भी ले सकता है। इस कारण से आपको अपने भीतर तितलियाँ उड़ने जैसी संवेदनाओं का अनुभव हो सकता है। शरीर में हो रहे हार्मोन संबंधी परिवर्तन के कारण आपका मन (मूड) बार बार बदल सकता है और आपको भावनात्मक उथल पुथल का अनुभव हो सकता है। ऐसे समय में आपको अपने निकट और प्रिय जनों के सहारे की आवश्यकता हो सकती है।

तीसरी तिमाही

तीसरी तिमाही गर्भावस्था की सबसे चुनौतीपूर्ण अवस्था होती है। इस अवधि में वजन बढ़ने के कारण आपको असुविधा हो सकती है। जैसे जैसे शिशु प्रसव की तैयारी के लिए उचित स्थिति में आने लगता है, आपको अपने श्रोणी क्षेत्र तथा जघनास्थी (प्यूबिक हड्डी) में खिंचाव का अनुभव हो सकता है। आपको पीठ में दर्द हो सकती है तथा आपके लिए चलना कठिन हो सकता है।

गर्भावस्था में ‘ध्यान’ कैसे सहायता कर सकता है?

  • ध्यान एक उपचार प्रक्रिया की शुरुआत करता है और जो शिशु के सम्पूर्ण स्वास्थ्य में सहायक है।
  • ध्यान का उद्देश्य ही है शरीर में जीवन ऊर्जा अथवा प्राण शक्ति को बढ़ाना। ऐसे समय में जब आपको शिशु के विकास के लिए ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता होती है, ध्यान का अभ्यास करना माँ और शिशु, दोनों के लिए लाभकारी हो सकता है।
  • ‘ध्यान’ प्रत्यक्ष रूप से आपके आहार को भी प्रभावित करता है। शरीर स्वतः ही जंक खाद्य पदार्थों की लालसा को रोक देता है। आपके भीतर से सजगता आती है और आप स्वास्थ्यवर्धक आहार का स्वतः ही चुनाव करने लगते हैं। शिशु के पोषण के लिए यह आवश्यक है।
  • गर्भावस्था में दौरान मन (मूड) परिवर्तित होना और भावनात्मक उथल पुथल होना स्वाभाविक है। जैसे जैसे शिशु की इंद्रियाँ विकसित होने लगती हैं, वह उन सभी भावनाओं को अनुभव करने लगता है जिनसे आप गुजरते हो। इसलिए आवश्यक है कि आप खुश, शांत तथा तनाव मुक्त रहें। इस समय पर ‘सहज समाधि ध्यान योग’ आपके तथा शिशु के लिए विशेष रूप से अच्छा है। वास्तव में, आप अपने सहज मंत्र के साथ अपने पूरे गर्भावस्था में दिन में तीन से चार बार तक ध्यान कर सकती हैं। 
  • ध्यान आपके मन को शांत करता है और भावनात्मक स्तर पर होने वाली उथल पुथल का सामना करने की शक्ति भी। शरीर को विश्राम देने का भी यह एक उत्तम विकल्प है। यह रीढ़ की हड्डी से दबाव दूर करने में भी सहायक है जिससे आप गर्भावस्था के अंतिम चरण में अधिक सुखद अनुभव करती हो।
  • व्यस्त जीवन शैली ने गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप और मधुमेह सामान्य घटनाएँ हो गई हैं। ध्यान द्वारा इन समस्याओं का सुगमता से सामना किया जा सकता है, जिससे माँ के लिए बिना जटिलताओं के प्राकृतिक प्रसूति होने की संभावना बढ़ जाती है।

स्वस्थ गर्भावस्था के लिए सुझाव

  • इस अवस्था में माँ के लिए आध्यात्मिक गतिविधियों से जुड़े रहना लाभप्रद है।
  • मंत्रोचार तथा मधुर संगीत और ज्ञान चर्चाओं का श्रवण करना लाभलायक होगा। गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर की ज्ञान चर्चाएँ ज्ञानवर्धक तथा मन को शांत करने वाली होती हैं।
  • आक्रामक और हिंसक परिस्थितियों से दूर रहें। यदि आपको सिनेमा देखने का शौक है तो अशांत करने वाली सिनेमा से दूर ही रहें।

सुखद गर्भावस्था के लिए अपने प्रियजनों संग ध्यान करना एक सुविचार है; समूह में ध्यान साधना करने से उसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। समूह में ध्यान करने वाला प्रत्येक व्यक्ति शांत और प्रसन्नचित्त रहता है। इसके साथ साथ यह आपको जीवन के नाजुक और अत्यंत महत्वपूर्ण समय में सतर्क और सजग भी रखता है।

गर्भावस्था की प्रथम दो तिमाही में आप कुछ योगासनों अभ्यास कर सकती हैं। ये आपको गर्भावस्था से संबंधित असुविधाजनक परिस्थितियों और लक्षणों का सामना करने में तथा सुखद प्रसूति प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक होते हैं। मार्जरी आसन, त्रिकोणासन और पवनमुक्तासन इनके चंद उदाहरण हैं। आप गर्भावस्था में इन आसनों का अभ्यास कर सकती हैं। किंतु ध्यान रहे, स्वयं यह आसन आरंभ करने से पहले अपने डाक्टर से परामर्श अवश्य कर लें।

गर्भावस्था में आहार संबंधी सुझाव

पहले तिमाही: ठंडा दूध पियें और शीघ्र पचने वाला भोजन ग्रहण करें। खट्टे और तीखे खाद्य पदार्थों से बचें। यदि कब्ज की स्थिति बनती है तो आप मृदु अनुलोमन या मातृवस्ती जैसी आयुर्वेदिक औषधियाँ ले सकती हैं।

तथापि, कोई भी दवा लेने से पूर्व किसी आयुर्वेदिक डाक्टर से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। 

दूसरे तिमाही: दिन भर थोड़े थोड़े अंतराल के पश्चात पौष्टिक आहार, थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाते रहें। फलों का जूस न पियें क्योंकि इससे वमन हो सकता है। दूध, चावल, नारियल का पानी, चावल का पानी, खीर तथा घी का सेवन करना उचित होगा।

तीसरी तिमाही: दूध की क्रीम, शहद और घी लेने की सलाह दी जाती है।

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए पौष्टिक व्यंजन

सामग्री:

अंजीर – 250 ग्राम|खुबानी – 250 ग्राम|काली खजूर – 250 ग्राम|बादाम – 100 ग्राम|पिस्ता (बिना नमक का) – 100 ग्राम|खीरे के बीज – 100 ग्राम|सूरजमुखी के बीज – 100 ग्राम|कद्दू के बीज – 100 ग्राम|खरबूजे के बीज – 100 ग्राम|अखरोट – 100 ग्राम| चिरोंजी – 50 ग्राम|जयफल – 3 |दालचीनी – 25 ग्राम|केसर – 2 चुटकी

बनाने की विधि: 

  1. अंजीर, काली खजूर और खुबानी को बारीक काट लें।
  2. बादाम, सूरजमुखी, कद्दू और ख़रबूज़े के बीज, अखरोट, चिरौंजी, दालचीनी, और जयफल को पीस लें।
  3. सबको मिला कर उन्हें गूँथ लें और लोई बना कर एक प्लेट में फैला दें।
  4. सेट होने के पश्चात् वर्गाकार टुकड़ों में काट लें।

प्रतिदिन सुबह एक टुकड़ा गर्म दूध के साथ खायें।

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