गुणों को संतुलित कैसे करें

त्रिगुण (तीनों गुण), एक के बाद एक, क्रमानुसार आते हैं। इसीलिए व्यक्ति स्वाभाविक रूप से तीनों गुणों को ही समय समय पर अनुभव करता है। तथापि, कुछ अन्य कारण भी हैं जो इन गुणों को प्रभावित करते रहते हैं और उनमें से एक है हम किस प्रकार की जीवनशैली का चयन अपने लिए करते हैं। यह दोतरफा मार्ग की तरह है। उत्तम तथा स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से हमारे जीवन में सत्व की वृद्धि होती है जिससे रजस तथा तमस को कम करने में सहायता मिलती है।

पशुओं का जीवन प्रकृति के अनुसार चलता है। वे कभी भी किसी चीज की अति नहीं करते। वे न तो क्षमता  से अधिक काम करते हैं, न खाते हैं, और न ही सहवास करते हैं। वे कोई कार्य भी क्षमता से अधिक नहीं कर सकते क्योंकि वे इसके लिए स्वतंत्र नहीं हैं।

इसके विपरीत मनुष्यों को यह स्वतंत्रता मिली हुई है या आप कह सकते हैं कि उन्हें अपने विवेक का उपयोग करने का वरदान मिला हुआ है , अर्थात् क्या करें, कितना करें, कब करें और करें भी या नहीं । यह, करें या न करें, का चुनाव करने के लिए विवेक के रूप में शक्ति इन्हें मिली हुई है, क्योंकि वे स्वतंत्र हैं। हम अधिक खा सकते हैं और फिर बीमार पड़ सकते हैं। हम अधिक सो कर आलसी और सुस्त हो सकते हैं। हम अन्य क्रियाओं का अतिभोग करके अशांत अथवा अन्य समस्याओं का शिकार हो सकते हैं ; और यह इसलिए क्योंकि इन सब के कारण हमारे गुणों में असंतुलन पैदा हो जाता है जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

हम इन गुणों को संतुलित कैसे कर सकते हैं?

इन गुणों को आध्यात्मिक प्रक्रियाओं, स्वस्थ जीवनशैली तथा सात्विक आहार का सेवन करके संतुलित किया जा सकता है।

आध्यात्मिक प्रक्रियाएँ इसमें कैसे सहायक हैं?

सभी आध्यात्मिक क्रियाओं का उद्देश्य है हमारे भीतर सत्व के स्तर को बढ़ाना,  और यह हमारी मूल प्रकृति  में  परिवर्तन ला देता है। जैसे जैसे हमारे सत्व में वृद्धि होती जाती है, हमारे स्वभाव में परिवर्तन आता जाता है। और जैसे जैसे सत्व में वृद्धि होती है, उसके साथ साथ ही ज्ञान, सजगता, सतर्कता तथा जीवन में आनंद भी बढ़ता जाता है। यह सभी गुण सत्त्व के साथ स्वयं प्रकट होने लगते हैं।

दुःख और पीड़ा रजस के साथ आते हैं तथा भ्रम  (भ्रान्ति) और नीरसता तमस के साथ। इसलिए यह आवश्यक है कि हम थोड़े थोड़े अंतराल पर समय निकाल कर कुछ आध्यात्मिक क्रियाओं में संलिप्त होते रहें।

यहाँ नीचे कुछ आध्यात्मिक क्रियाएँ बताई गई हैं जिनका जीवन में समावेश करके हम अपने भीतर के सत्त्व को बढ़ा सकते हैं:

  • योगासन: शरीर तथा मन से अशांति/ बेचैनी, जिसका कारण रजस है, को दूर करने के लिए योग एक उत्कृष्ट उपाय है। 15 से 20 मिनट का योगाभ्यास नित्य करने  से हम अपने स्नायु तंत्र को शांत कर सकते हैं।
  • प्राणायाम तथा श्वसन क्रियाएँ: प्राणायाम एक प्राचीन पद्यति है जिसका मुख्य उद्देश्य शरीर में ऑक्सीजन प्रवाह को बढ़ाना और सुचारू करना है। आप जितनी अधिक ऑक्सीजन ग्रहण करते हो उतना ही अधिक ऊर्जावान रहते हो।
  • उपवास: उपवास सदियों पुरानी तकनीक है जिसके लाभ लंबे समय  से बताए जाते रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने तथा सत्त्व की वृद्धि करने के लिए उपवास सर्वश्रेष्ठ तकनीक है। नियमित उपवास को अपनी जीवनशैली का अंग बनाना और उसका उपयोग करना बहुत अच्छा उपाय है। यदि किसी कारणवश आप उपवास करने में असमर्थ हैं तो भी आप सप्ताह के एक दिन सामान्य भोजन से कुछ अल्प मात्रा में भोजन ग्रहण करने का विकल्प चुन सकते हैं अथवा केवल उन्हीं विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं जिनमें सत्व गुण प्रचुर मात्रा में हों।
  • ध्यान: ध्यान सत्व बढ़ाने के विभिन्न उपायों में  से एक उत्तम उपाय है। जितना अधिक आप ध्यान करते हो, उतना आपमें सत्व बढ़ता है और जितना अधिक सत्त्व होता है उतना आपका ध्यान गहरा होता जाता है।

स्वस्थ जीवनशैली अपनाना आवश्यक क्यों है?

एक स्वस्थ जीवनशैली, जिसमें सभी कार्य धैर्य और संयम से किए जाएँ, हमारे भीतर सत्त्व के स्तर को बनाए रखने का मूल समाधान है। भोजन, निद्रा अथवा किसी भी कार्य की अति करने से शरीर में रजस और तमस गुणों में वृद्धि होती है जिसका प्रभाव हमारे स्वभाव पर पड़ता है।

इसलिए हमारी दादी-नानी द्वारा बताए गए जीवनशैली संबंधित गुर वास्तव में अति महत्वपूर्ण हैं।

“जल्दी सोना और जल्दी उठना, मानुष को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है।”
“दौलत कमाने के लिए अपनी सेहत को दाँव पर मत लगाओ और फिर कमाई हुई दौलत को स्वास्थ्य पर।”
“सुबह का नाश्ता राजा की तरह,  दोपहर का भोजन राजकुमार की तरह और रात का भोजन दरिद्र  की तरह करो।”

इन युक्तियों का पालन करना एक उत्तम विचार है क्योंकि यह वास्तव में आपके भीतर के सत्त्व को बनाए रखते हैं।

यहाँ कुछ दिशानिर्देश दिए जा रहे हैं जिनको अपना कर ऐसा जीवन जिया जा सकता है जो सत्त्व को बनाए रखने में सहायक हो:

  • व्यायाम: सप्ताह में कम से कम तीन बार व्यायाम करना अति लाभप्रद है। प्रातः उठ कर सैर करना अथवा दौड़ना दिन आरंभ करने का उत्तम ढंग है।
  • देर रात तक न जागते रहें: रात में सही समय पर सोएँ और प्रातः जल्दी उठ कर सूर्योदय की वैभवता में भागीदार बनें। 
  • रात्रि का भोजन समय पर करें: प्रतिदिन हम जो भोजन खाते हैं, उसका अधिकतर भाग सूर्य की रोशनी रहते हुए ग्रहण करना बहुत अच्छी आदत है, क्योंकि सूर्य का हमारे पाचन तंत्र पर गहरा प्रभाव होता है।
  • किसी कार्य की अति न करें: ज्यादा सिनेमा न देखें, ज्यादा भोजन न खाएँ, ज्यादा न सोएँ और ज्यादा काम भी न करें । एक सर्वांगीण जीवनशैली वह है जिसमें हर कार्य संयम और धैर्यपूर्वक किया जाए। सामान्य, विनम्र तथा साधारण रहने का प्रयास करते रहें। यदि आप ऐसा कर पाते हो तो यह निश्चित ही असाधारण है!

सात्विक आहार कैसे अंतर ला सकता है?

भोजन को भी सात्विक, राजसिक तथा तामसिक की श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। सात्विक गुणों से भरपूर भोजन का सेवन करने से हमारे भीतर सतोगुण बढ़ता है और यही बात शेष दोनों प्रकार के भोजन और गुणों पर भी लागू होती है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम सात्विक आहार ही खाएँ।

सात्विक आहार वह है जिसमें ताजे फल, सभी प्रकार की सब्जियाँ( प्याज और लहसुन को छोड़ कर), सूखे मेवे, बीज, साबुत अनाज, ताजा दूध और मीठे मसाले, जैसे कि दालचीनी, इलायची, सौंठ ( अदरक) पुदीना, तुलसी आदि। सात्विक खाद्य पदार्थ सामान्यतः पचने में आसान होते हैं और वे शरीर में भारीपन या सुस्ती नहीं लाते।

जिस भोजन में शकर, तेल अथवा तीखे मसालों की अधिकता होती है वे राजसिक गुणों वाले होते हैं। सामिष (माँसाहारी) भोजन और ऐसे भोजन जिनमें प्याज़ और लहसुन अधिक मात्रा में हों, तामसिक भोजन होते हैं।

एक और महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि केवल उतना ही खाएँ जितना आवश्यक हो, ताकि वह  आसानी से पच जाए। शरीर को हर समय हल्का ही अनुभव होते रहना चाहिए। अतः भोजन सदैव उचित मात्रा में और अल्प मात्रा के मसालेवाला ताजा भोजन हमारे शरीर में सत्त्व का स्तर ऊँचा रखने के लिए उत्तम मिश्रण है।