नवरात्रि पर्व मनाने की विधि और उसके पीछे का विज्ञान
नवरात्रि आर्ट ऑफ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में हर वर्ष मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं। इस आयोजन में नौ दिन तक घड़ी की सुइयों जैसी समयनिष्ठा के साथ प्राचीन वैदिक पूजाऐं संचालित की जाती हैं और इसके लिए पर्दे के पीछे भी बहुत कुछ हो रहा होता है।
आर्ट ऑफ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में स्थित वेद आगम संस्कृत महापाठशाला के प्रधानाचार्य होने के नाते, बहुत कुछ श्री ए० एस० सुन्दरमूर्ति शिवम जी पर निर्भर रहता है, जो इन सभी पूजाओं के लिए मुख्य आचार्य की भूमिका में भी रहते हैं।
वह पुजारियों के परिवार से आते हैं और उन्होंने विश्व भर में 1005 कुम्भाभिषेकम् तथा 2100 से अधिक चण्डी होम का संचालन किया है। वह वर्ष 1994 से ही आर्ट ऑफ लिविंग अंतरराष्ट्रीय केंद्र में नवरात्रि यज्ञों को संचालित करते आ रहे हैं। इन आयोजनों के संबंध में कुछ गहरे प्रश्नों के उत्तर उनके द्वारा ही दिए गए हैं:
आर्ट ऑफ लिविंग नवरात्रि की पृष्ठभूमि क्या है?
नवरात्रि दो प्रकार की होती है। इनमें से एक का आयोजन चैत्र मास (अप्रैल) में होता है, इसे वसन्त नवरात्रि कहते हैं और यह मुख्यतः उत्तर भारत में मनायी जाती है। दक्षिण भारत में शारदीय (शरद) नवरात्रि असौज मास अर्थात् सितंबर-अक्तूबर में मनायी जाती है।
आर्ट ऑफ लिविंग में शारदीय नवरात्रि, पूज्य गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के आशीर्वाद से इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के कल्याण, शांति तथा समृद्धि के संकल्प के साथ मनायी जाती है। दैवी शक्ति का आह्वान किया जाता है ताकि प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान तथा इन तीन शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त हो:
- इच्छा शक्ति
- क्रिया शक्ति
- ज्ञान शक्ति
हम देखते हैं कि पूजा मंडप में हर कार्य निर्धारित समय पर ही होता है। नवरात्रि में समय का क्या महत्व है?
नवरात्रि की पूजाऐं और अनुष्ठान शैव अगम, शाक्त तंत्र तथा रुद्रायमल, शारदा तिलक, परशुराम कल्पसूत्र, श्री विद्या तन्त्रमंड मन्त्रमहार्णव, देवी माहात्म्य आदि पवित्र धर्मग्रन्थों में बताए अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध विधि से किए जाते हैं। इन मूलग्रंथों में सभी अनुष्ठानों तथा पूजाओं को शुभ मुहूर्त अनुसार परिशुद्ध तरीके से विधिपूर्वक करने का ढंग बताया गया है। इनमें दिए गए दिशानिर्देशों का विस्तार से अध्ययन करके उनका पालन किया जाता है और उनका परिशुद्ध क्रियान्वयन हमारे निपुण पंडितों द्वारा किया जाता है। हमारे गुरुकुल के शिष्यों को इस क्षेत्र में अति प्रभावशाली ढंग से प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वह वरिष्ठ और विशेषज्ञ पुजारियों की सहायता कर पाएँ और सब अनुष्ठान निर्धारित समय में संपन्न हो सकें।
क्या आप नवरात्रि पूजाओं के लिए की जाने वाली तैयारियों के विषय में कुछ गहरी बातें साझा कर सकते हैं?
सभी पूजाएँ नवरात्रि के अंतिम पांच दिनों में की जाती हैं, अर्थात् षष्ठी तिथि अथवा छटे दिन से।
पूजा की तैयारियाँ चरणबद्ध तरीके से की जाती हैं जिनका क्रम निम्नानुसार है:
- सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है पूजा सामग्री एकत्रित करना – ‘द्रव्य संग्रहण’ तथा उचित मात्रा में- ‘द्रव्य प्रमाण’। यह सामग्री मुख्यतः केरल, हिमाचल प्रदेश और कुछ जम्मू से भी आती है।
- दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है यज्ञशाला के क्षेत्र को यज्ञशाला नियमों के अनुसार तैयार करना। इस प्रक्रिया को यज्ञशाला निर्माण मण्डल लेपन कहते हैं जिसमें वैज्ञानिक विधि से आकृतियाँ बनाई जाती हैं। इनमें से कुछ मुख्य मण्डल हैं गणेश मण्डल, वास्तु मण्डल, नवग्रह मण्डल और सुदर्शन मण्डल।
- पंचभूत अथवा पञ्च तत्वों की पूजा की जाती है
- जल तत्व की कलश में,
- अग्नि तत्व की हवनकुंड में, ज्योति के रूप में,
- वायु तत्व की मंत्र जाप द्वारा,
- पृथ्वी तत्व की पूजा मंडलों के रूप में
- यह सब पूजा आकाश तत्व के सानिध्य में ही होती हैं
- तत्पश्चात् आता है, ‘पंचासन वेदिका’- जिसमें चण्डी यज्ञ का मुख्य कलश स्थापित करने के लिए मंच का निर्माण किया जाता है।
- मंच के आधार में कूर्मासन (कच्छप/कछुआ, जो स्थिरता का सूचक है) होता है। कूर्मासन के ऊपर कुछ और आकृतियाँ बनाई जाती हैं जो क्रमानुसार इस प्रकार से हैं:
- कूर्मासन के ऊपर सिंहासन, सिंह होता है।
- सिंहासन, सिंह वीरता या शक्ति को दर्शाता है।
- योगासन अर्थात् आठ सिद्धों की आकृतियाँ जो योग के आठ अंगों के सूचक हैं।
- पद्मासन, कमल, जो ब्रह्मज्ञान, पूर्ण रूप से खिली हुई चेतना की स्थिति का सूचक है।
- और सबसे ऊपर कलश स्थापना, अर्थात् उस जल से भरे घट को रखना जिसमें देवी माँ की शक्ति अभिमंत्रित की जाती है।
- सभी कलशों पर आकर्षक डिज़ाइन में सूत को लपेट कर उन्हें तैयार किया जाता है और इन कलशों में पवित्र नदियों से लाया गया जल तथा औषधीय जड़ी बूटियाँ डाली जाती हैं। कलश के ऊपर, मुँह पर आम के पत्ते रखे जाते हैं और उनके ऊपर नारियल रख कर उसे चंदन, कुमकुम, दरबा घास और विशेष सुगंधित पुष्पों से सजाया जाता है।
- यज्ञ आरंभ होने से पहले वास्तु पूजा की जाती है जिसमें धरती माँ की पूजा होती है और अंकुर्पणम किया जाता है जिसमें नौ प्रकार के अनाजों का पूरी यज्ञशाला में चारों दिशाओं में रोपण किया जाता है। यह खाद्यान्नों तथा कृषकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए किया जाता है। इन प्रार्थनाओं में भूमि की उत्पादन क्षमता में वृद्धि की कामना की जाती है।
- होमकुंड को तैयार करना: होमकुंड को यज्ञशाला के पूर्व दिशा में बनाया जाता है।
- पद्म कुंड उस प्रकार का होमकुंड है जो हमारे आश्रम में चण्डी होम के लिए बनाया जाता है।
- एक और प्रकार का कुंड है ‘योनि कुंड’। इसमें निर्मित किए जाने वाले कुंड का आकार आहुति में अर्पित किए जाने वाली सामग्री की मात्रा पर निर्भर करता है, अर्थात् पवित्र अग्नि में कितनी मात्रा में भौतिक सामग्री अर्पित की जानी है।
- चतुस्थम्भ पूजा या धर्म, ज्ञान, वैराग्य तथा ईश्वर्या, यह चार स्तंभ, भीतरी भाग में खड़े किए जाते हैं। बाह्य क्षेत्र में षोडश स्तंभ अर्थात् 16 स्तंभ खड़े किए जाते हैं जो मानव जीवन के 16 पहलुओं (रूपों) को इंगित करते हैं।
- अष्टध्वज अर्थात् आठ ध्वज यज्ञशाला के बाहरी भाग में लगाए जाते हैं जिनके आठ पताकाएँ, जिनके ऊपर हाथी की आकृतियाँ उकेरी होती हैं, भी लगाई जाती हैं।
- अष्टमंगल या आठ साज सज्जा के उपकरण यज्ञशाला के भीतरी भाग में स्थापित किए जाते हैं। यह आठ उपकरण हैं, दर्पण, पूर्णकुंभ (कुंभ), वृषभ (बैल की आकृति), दो चामर (चँवर), श्रीवत्सम (एक आकृति), स्वस्तिकम (एक आकृति), शंख तथा दीप।
- भीतरी भाग में अलंकारिक चित्र अथवा रंगोलियाँ उकेरी जाती हैं तथा यज्ञशाला को आम के पत्तों, केले के तनों, गन्नों से सजाया जाता है तथा दीप भी प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
- यज्ञशाला की सीमाओं पर अनाजों के शीघ्र स्फुटित होने वाले बीजों को बो कर अलंकृत किया जाता है। इन कोपलों में मंत्रों को अवशोषित करने की क्षमता होती है – अशुद्धि मंत्र। इन अनाजों के शीघ्र स्फुरित होने के लिए आराधना की जाती है जिससे वह चण्डी यज्ञ के निर्बाध संचालन के लिए आशीर्वाद दें।
एक आध्यात्मिक साधक के लिए नवरात्रि का क्या महत्व है?
नवरात्रि में हम शक्ति के नियम या तत्त्व को उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह उत्सव शरद ऋतु में मनाया जाता है और इसमें शक्ति के तीन रूपों, इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति, की आगमों में बताई विधि अनुसार पूजा अर्चना की जाती है। कल्पशास्त्रों अथवा पुराणों के अनुसार देवी शक्ति की आराधना महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के रूप में की जाती है। इन नौ दिन में देवी महात्यम और श्रीमद् देवी भागवतम के श्लोकों का उच्चारण किया जाता है।
यह एक विशिष्ट उत्सव है जिसमें एक ओर तो उत्सव ही उत्सव है और दूसरी ओर व्यक्ति स्वयं के भीतर गहरे उतर कर ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
इसके अतिरिक्त मन में छ: प्रकार की विकृतियाँ, अथवा वासनाएँ होती हैं:
- काम
- क्रोध
- लोभ
- मोह
- मद
- मत्सर
यह विकृतियाँ किसी भी व्यक्ति को नियंत्रण से बाहर कर सकती हैं और आध्यात्मिक पथ में बाधा बन सकती हैं। दैवी शक्ति की कृपा से नवरात्रि के नौ दिनों में इन विकृतियों से मुक्त हुआ जा सकता है।
इसलिए इन दिनों में तपस्या या उपासना के साथ साथ ध्यान भी किया जाता है। पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से हमें बना बनाया और सरलता से अनुसरणीय मार्ग मिला है। उनके मार्गदर्शन में हम अणिमा, महिमा, तथा लघिमा द्वारा सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं।
नवरात्रि में संकल्प का क्या महत्व है?
किसी भी पूजा के लिए प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। अपने कार्य में लक्ष्य पाने में सफल होने के लिए हम पूजा के आरंभ में ईश्वर को प्रार्थना करते हैं और इसी को संकल्प कहते हैं। जब आश्रम में इतने विशाल परिमाण का यज्ञ हो रहा हो तो सामूहिक संकल्प लेने से हमारे सहित समस्त विश्व पर कृपा बरसती ही है, मन शुद्ध होता है और हमें स्पष्टता मिलती है।
जब संकल्प एक व्यक्ति द्वारा अपने परिवार के लिए लिया जाता है तो उसे आत्मार्थ संकल्प कहते हैं। और जब संकल्प समूचे विश्व के कल्याण के लिए हो तो उसे परार्थ संकल्प कहते हैं।
क्या यह सही है कि चण्डी होम में पूजा के 1008 भाग होते हैं?
चण्डी होम दो प्रकार का होता है – लघु चण्डी होम और महा चण्डी होम।
लघु चण्डी होम में देवी का आह्वान करने के उपरांत नवाक्षरी मंत्र का जाप किया जाता है। होम के पश्चात् देवी पूजा की जाती है। यह केवल एक बार में और चंद घंटों के लिए ही किया जाता है।
महा चण्डी होम नौ बार तक किया जा सकता है, इसलिए इसे ‘नव चण्डी होम’ भी कहते हैं। जब यह 100 बार किया जाए तो इसे ‘शत् चण्डी होम’ कहा जाता है; यदि 1000 बार किया जाए तो ‘सहस्र चण्डी होम’ कहते हैं; और यदि 10,000 बार किया जाए तो यह ‘आयुत चण्डी होम’ कहलाता है।
1. यज्ञ प्रारंभ करने से पहले कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?
पूजा इस प्रकार आरंभ होती है
- गुरु अनुग्रह: यह गुरु का मार्गदर्शन और आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है।
- देवता अनुग्रह: इसमें देवताओं की आज्ञा ली जाती है।
- विघ्नेश्वर पूजा: इसमें भगवान गणेश को सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके पश्चात् पूर्वांग पूजा की जाती हैं।
- आचार्य अनुग्रह: पंडितों में सबसे वरिष्ठ मुख्य पंडित जी का आशीर्वाद लिया जाता है। वही पूरे यज्ञ का संचालन करते हैं। सबसे वरिष्ठ पंडित जी को ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।
- महा संकल्प: महा संकल्प लिया जाता है, जिसमें दिन, समय, और स्थान, जहाँ पूजा की जा रही है, उसका जाप किया जाता है। होम का नाम और कारण भी बोला जाता है; इसके पश्चात् पूजा आरंभ होती है।
- ग्रह प्रीति: हम नौ ग्रहों को प्रार्थना करते हैं कि होम निर्विघ्न और सुचारू रूप से संपन्न हो जाए। सभी नौ ग्रहों के आशीर्वाद का आह्वान करके उनका आशीर्वाद लिया जाता है ताकि जिस नक्षत्र, राशि और लग्न में पूजा की जा रही है, उसमें कोई त्रुटि हो तो वह दूर हो जाए।
- नंदी शोभनम: ऋषियों तथा बड़े बूढ़ों के आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की जाती है।
- मधुपर्क पूजा: दुग्ध, शहद और घी को आपस में मिला कर एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है। जो पंडित जी होम करा रहे होते हैं, वह इस मिश्रण को पी जाते हैं ताकि पूजा करते समय उनके मन में मधुरता बनी रहे।
- गौदान: इसमें गौ पूजा करने के पश्चात् गौ दान किया जाता है।
- पुण्याहवाचन: यह जिस स्थान पर पूजा की जा रही है उस स्थान की शुद्धि करता है।
- पञ्चगव्यम: यह वह पाँच तत्व हैं जिनसे शरीर की शुद्धि होती है।
- वास्तु शांति: यह भूमि देवता के लिए एक प्रार्थना है।
- मृत संग्रहण: मृत्यु रेत अथवा लकड़ी से ली जाती है।
- अंकुरार्पण: इसमें नौ प्रकार के अनाज को गमलों में लगाते हैं जो दूध और पानी में डूबे होते हैं।
- रक्षा बंधन: इसमें आचार्य अपने दाहिने हाथ में पीला धागा बांधते हैं जो पूजा के लिए आचार्य का संकल्प होता है।
यह सभी अनुष्ठान (पूर्वांग पूजा) यज्ञ आरंभ करने से पहले किए जाते हैं।
2. यज्ञ आरंभ होने पर क्या क्या करना होता है
यज्ञ आरंभ होने के पश्चात् बहुत से अनुष्ठान करने होते हैं जो इस प्रकार हैं:
- दीप पूजा: मुख्य कलश के दोनों ओर दो प्रकार के दीप रखे जाते हैं। बायीं ओर तिल के तेल से भरा दुर्गा दीप जलाया जाता है जबकि दायीं ओर लक्ष्मी दीप रख कर उसे घी से प्रज्वलित किया जाता है।
- षोडश मातृका पूजा: इसमें 16 देवियों का आह्वान किया जाता है।
- आचार्य एवम् ऋत्विक वरणा: इसमें वेदों, शास्त्रों तथा आगमों की विभिन्न शाखाओं में पारंगत आचार्यों तथा पंडितों को कार्य सौंपा जाता है। उनके द्वारा चारों वेदों- ऋग, यजुर, साम तथा अथर्व, और इतिहास पुराण तथा शैवागम का जाप भी होता है।
- आचार्य अनुग्रह: सबसे वरिष्ठ पंडित जी का आशीर्वाद लिया जाता है। पूरा यज्ञ उन्ही की देख रेख में संपन्न होता है। वरिष्ठम पंडित जी को ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।
- महा संकल्प: जिस दिन पूजा की जाती है, उस दिन, समय (काल) और जहाँ पूजा की जानी है, उस स्थान का नाम लेकर महा संकल्प लिया जाता है। होम के नाम और उसके उद्देश्य का भी उल्लेख किया जाता है। तत्पश्चात् पूजा आरंभ होती है।
- चण्डी महायज्ञ मंटप पूजा: इसमें 53 प्रकार की मुख्य पूजाऐं की जाती हैं तथा दसों दिशाओं के देवताओं की आराधना की जाती है।
- द्वार, तोरण, ध्वज, पताका स्थापना: मंडप में विशेष प्रकार की पत्तियों को उनके लिए निर्दिष्ट विशेष दिशा में बांधा जाता है।
- आचार्य आसन पूजा: पूजा के लिए नियुक्त मुख्य पंडित जी देवी पूजा का आरंभ करते हैं तथा नवाक्षरी मंत्र का जाप भी करते हैं।
- गौदान: इसमें गौ पूजा करके गाय का दान किया जाता है।
- पद्यादी पात्र परिकल्पना: आहुतियों की तैयारी की जाती है।.
- कुंभ स्थापना: मुख्य कलश, जिसमें पवित्र नदियों का जल भरा गया है, स्थापित किया जाता है।
- पुस्तक पूजा व पारायण पूजा: इसके बाद देवी सप्तशती पुस्तक की पूजा और तत्पश्चात् देवी सप्तशती का जाप होता है, जो देवी माहात्म्य है।
- देवी का आह्वान: इसमें देवी का आह्वान किया जाता है।
- अग्नि कार्य: अरुणी लकड़ी की डंडियों के बीच घर्षण करके ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है, इसे अग्नि मंथन कहते हैं। इस अग्नि में देवी का आह्वान किया जाता है और उसके पश्चात् उसमें आहुतियाँ डाली जाती हैं। किए जा रहे विशिष्ट होम के लिए निर्दिष्ट आहुतियाँ दी जाती हैं, जैसे कि 1,000, 10,000, 1,00,000 आदि आहुतियाँ। सप्तशती को 13 खंडों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक खंड के लिए देवी का विशेष रूप है। सभी 13 देवियों का आह्वान उनके लिए विशेषतया निर्दिष्ट मंत्रों द्वारा ही किया जाता है तथा उसी के अनुसार विशेष आहुतियाँ भी दी जाती हैं। ऐसा करने से उस विशिष्ट देवी के आशीर्वाद का विशिष्ट लाभ मिलता है।
- योगिनी व भैरव पूजा: 4 योगिनियों तथा 64 भैरवों के लिए पूजा की जाती है।
- कादम्बरी पूजा
- वादुका भैरव पूजा
- गौ पूजा
- गज पूजा
- अश्व पूजा
- कन्या पूजा
- सुवासिनी पूजा
- दंपत्ति पूजा
मंगला आरती के उपरांत इन सब में कई प्रकार की आहुतियाँ दी जाती हैं
- सौभाग्य द्रव्य समर्पण: श्रीसूक्त मंत्र के जाप सहित 108 प्रकार की औषधीय जड़ी बूटियों तथा फलों की आहुति मुख्य हवन कुंड में अर्पित की जाती हैं।
- वसोधरा: अब चमो: मंत्रों का जाप होता है।
- महा पूर्णाहुति: यह अंतिम आहुति है जिसमें लाल साड़ी, घी, और सूखे नारियल में शहद, नवरत्न अर्थात् नौ बहुमूल्य रत्न तथा पंचलोह अर्पित किए जाते है।
- संयोजन: पूजा के प्रभाव तथा तरंगें अब मुख्य कलश में स्थानांतरित कर दी जाती हैं।
- रक्षाधारण: मुख्य हवन कुंड से रक्षा ली जाती है और उसे मुख्य कलश पर लगाया जाता है। तत्पश्चात् उसकी पूजा होती है।
- कलाशाभिषेक: मुख्य कलश के जल को अब देवियों की मूर्ति को अर्पित करते हैं।
- विशेष प्रार्थनाओं द्वारा समूची पृथ्वी को आशीर्वाद दिया जाता है। पवित्र जल को पूज्य गुरुदेव पर तथा वहाँ उपस्थित सभी लोगों पर छिड़का जाता है।
- अंत में गुरु प्रसाद देते हैं और सब को आशीर्वाद देते हैं।
वेद पंडितों को ऐसी घड़ी की सुइयों जैसी समयबद्धता सुनिश्चित करने के लिए कैसा प्रशिक्षण दिया जाता है?
- वेद आगम संस्कृत महा पाठशाला के शिष्य प्रतिदिन योगाभ्यास, सुदर्शन क्रिया तथा ध्यान का अभ्यास करते हैं जो उनको शारीरिक तथा मानसिक रूप से सचेत रखता है।
- इसके साथ साथ वे गुरुकुल के प्रशिक्षण प्रोग्राम के नियमों व विनियमों का पालन करते हैं।
चण्डी होम करने के लिए उनको मंत्र दीक्षा दी जाती है। वे यज्ञ के प्रत्येक चरण के लिए भली भाँति प्रशिक्षित होते हैं। यह चण्डी होम के दिन समयबद्ध तरीके से कार्य निर्वाहन में उनकी सहायता करता है। प्रशिक्षुओं को आगम पाठशाला में चण्डी होम से एक सप्ताह पहले चण्डी होम का अभ्यासी प्रशिक्षण भी दिया जाता है। - इसके अतिरिक्त 12 सप्ताह का देवी माहात्म्य का जाप करने का अभ्यास भी कराया जाता है।
कौन कौन से छ: प्रकार के यज्ञ किए जाते हैं और उनका व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव है?
1) गणपति होम – किसी भी कार्य को करने में सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों प्रकार की ऊर्जा प्रभाव डालती हैं। आवश्यक नहीं कि यह ऊर्जाएँ बाह्य वातावरण में ही हों, ये हमारे शरीर तथा मन में भी हो सकती हैं। इसलिए हम सब प्रकार के विघ्नों को दूर करने वाले, भगवान गणेश जी की पूजा करते हैं। परंपरा अनुसार किसी भी यज्ञ को आरंभ करने से पहले गणेश होम और पूजा की जाती है।
2) सुब्रमण्यम् होम – भगवान सुब्रमण्यम् ‘विजय’ के भगवान हैं। किसी भी कार्य में सफल होने के लिए ज्ञान शक्ति की आवश्यकता होती है। अतः ब्राह्मण्य मंत्रों के जाप से भगवान सुब्रमण्यम् का आह्वान किया जाता है।
3) नवग्रह होम – नवग्रह, अथवा नौ ग्रह महत्वपूर्ण हैं और उनकी चाल या ग्रहगति से यह संपूर्ण पृथ्वी और इस पर रहने वाला प्रत्येक जीव प्रभावित होता है। इसलिए हम नौ ग्रहों के सम्मान में नौ प्रकार की आहुतियाँ डालते हैं। आहुतियों के साथ साथ प्रत्येक ग्रह से संबंधित विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। विशिष्ट ग्रह हमारे शरीर के विशिष्ट अंगों पर प्रभाव डालते हैं और वे विशिष्ट अनाजों तथा रत्नों पर भी प्रभाव डालते हैं।
पृथ्वी पर जो कुछ भी घट रहा है, ग्रहों का प्रभाव उस पर होता ही है। पूजा में हम नव ग्रहों उनके नकारात्मक प्रभावों को टालने अथवा कम करने तथा जो सकारात्मक प्रभाव वे हम पर डाल रहे हैं उन्हें बढ़ाने की प्रार्थना करते हैं।
4) रुद्र होम – रुद्र होम से हमें शांति मिलती है और हमारे जीवन से सब प्रकार की निराशा दूर होती है। इस होमा में नमों और चमों मंत्रों सहित रुद्र मंत्रों का जाप किया जाता है। रुद्र मंत्र ध्यान में गहरे उतरने तथा हमारे भीतर तीनों गुणों, सत्व, रजस और तमस को संतुलित करने में सहायता करते हैं। रुद्र मंत्रों के जाप से इन तीनों गुणों का विलय होता है और हमें गहरे ध्यान की शून्यता में उतरने में सहायता मिलती है। आर्ट ऑफ लिविंग अंतरराष्ट्रीय केंद्र में 11 पंडित रुद्र मंत्रों का ग्यारह बार जाप करके रुद्र होमा करते हैं जिसे ‘एकादश रुद्र होम’ कहा जाता है।
5) सुदर्शन होम – सुदर्शन होम हमें बुरी दृष्टि तथा नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है और हमें परम आनंद की ओर अग्रसर करता है। इस होम में सुदर्शन मंत्र तथा विष्णु सहस्रनाम् का जाप किया जाता है। सुदर्शन होम में लक्ष्मी मंत्रों और श्रीसुख मंत्रों का जाप भी होता है।
6) ऋषि होम – यह होम नवरात्रि के अंतिम दिन किया जाता है। ऋषि ‘दृष्टांर:’ होते हैं अर्थात् वो जिन्होंने गहरी समाधि में लीन हो कर आकाश से वेद मंत्रों को श्रुति द्वारा प्राप्त किया है। हम ऋषि होम करके उन महान ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होंने मानव कल्याण के लिए यह पवित्र ज्ञान हमें उपलब्ध करवाया है। सप्तृषियों तथा दूसरे महत्वपूर्ण ऋषियों के लिए प्रार्थनाएँ की जाती हैं और इसका आरंभ गुरु पूजा से किया जाता है।
मेरे विचार से पूज्य गुरुदेव की कृपा और अनुकंपा से तथा उनकी दूरदर्शिता के अनुसार ऐसी पूजा केवल आर्ट ऑफ लिविंग अंतरराष्ट्रीय केंद्र में ही होती है।