क्या यह सच है कि पूजा के दौरान चंडी होम के 1008 भाग होते हैं?

चंडी होम दो प्रकार का होता है

  • लघु चंडी होम (कम समय का)
  • महा चंडी होम (लम्बे समय का)

लघु चंडी होम

लघु चंडी होम में देवी का आह्वाहन किया जाता है और फिर उसके बाद नवाक्षरी मंत्र का जाप होता है। होम के बाद देवी पूजा होती है और इसे एक ही बार, कुछ घंटों के लिए ही करते हैं।

महा चंडी होम

महा चंडी होम को नौ बार कर सकते हैं और इसे नव-चंडी होम कहते हैं। जब इसे 100 बार किया जाता है तब इसे ‘शत-चंडी होम’ कहते हैं, जब 1000 बार किया जाता है तब उसे ‘सहस्र- चंडी होम’ कहते हैं। और जब इसे 10,000 बार किया जाता है तब यह ‘आयुत-चंडी होम’ कहलाता है। इन सभी यज्ञों की विभिन्न विधियाँ हैं और सामान्य रूप से नव चंडी होम ही किया जाता है। आर्ट ऑफ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में शत-चंडी होम करते हैं। 

होम का अनुष्ठान

  • गुरु अनुग्रह – यह गुरु का मार्गदर्शन और आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है।
  • देवता अनुग्रह – इसमें देवताओं की आज्ञा ली जाती है।
  • विघ्नेश्वर पूजा – भगवान गणेश की पूजा, जो सभी विघ्नों का नाश करते हैं। और इसके बाद ‘पूर्वांग पूजा’।
  • आचार्य अनुग्रह – यज्ञ को करने वाले सबसे वरिष्ठ मुख्य पंडित जी का आशीर्वाद। सबसे वरिष्ठ पंडित को ‘ब्रह्मा’ कहते हैं।
  • महा संकल्प – यज्ञ आरम्भ के पहले महा-संकल्प लिया जाता है, जिसमें दिन, समय और जिस जगह पर पूजा संपन्न की जा रही है उसका जाप होता है। होम का नाम और कारण भी बोला जाता है और इसके बाद पूजा आरम्भ होती है।
  • ग्रह प्रीति – नौ ग्रहों को प्रार्थना की जाती है कि होम बिना किसी विघ्न के संपन्न हो जाए। सभी नौ ग्रहों के आशीर्वाद का आह्वाहन किया जाता है, जिससे यदि पूजा के नक्षत्र, राशि या लग्न में कोई भी त्रुटि हो, तो वह ठीक हो जाए।
  • नंदी शोभनम – ऋषियों और वृद्ध जनों से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की जाती है।
  • मधुपर्क पूजा – दूध, शहद और घी को आपस में मिलाया जाता है और एक विशिष्ट मंत्र का जाप करते हैं। इस मिश्रण को वे सभी पंडित ग्रहण करते हैं जो होम कर रहे हैं, जिससे पूजा करते समय उनके मन में मधुरता बनी रहे।
  • गौदान – गौ पूजा के बाद, गौ का दान करते हैं।
  • पुण्याहवाचन – जिस स्थान पर पूजा की जा रही है, उस स्थान की शुद्धि।
  • पंचगव्य – पांच तत्व जिनके माध्यम से शरीर की शुद्धि हो रही है।
  • वास्तु शांति – भूमि देवताओं से प्रार्थना।
  • मृत संग्रहण – रेत या लकड़ी से मृत्यु ली जाती है।
  • अंकुरार्पण – नौ प्रकार के अनाज को गमले में लगाते हैं जो दूध और पानी में डूबे होते हैं।
  • रक्षा बंधन – आचार्य अपने दाहिने हाथ में पीला धागा बांधते हैं, जो पूजा के लिए आचार्य का संकल्प होता है।

यज्ञ के आरम्भ से पहले यह सभी अनुष्ठान (पूर्वांग पूजा) किए जाते हैं।

यज्ञ आरम्भ

  • दीप पूजा – कलश के दोनों ओर दो प्रकार के दीप रखे जाते हैं। बायीं तरफ ‘दुर्गा दीप’ जिसमें तिल का तेल होता है और दायीं तरफ ‘लक्ष्मी दीप’ जिसे घी से जलाया जाता है।
  • षोडश मातृका पूजा – 16 मातृका देवियों की प्रार्थना की जाती है।
  • आचार्य एवं ऋत्विक वरणा – वेदों, शास्त्रों और आगम की भिन्न शाखाओं से विशेषज्ञ आचार्य और पंडितों को आमंत्रित करते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, साथ ही इतिहासपुराण और शैवागम का भी जाप करते हैं।
  • आचार्य अनुग्रह – यज्ञ को करने वाले सबसे वरिष्ठ मुख्य पंडित जी का आशीर्वाद। सबसे वरिष्ठ पंडित को ‘ब्रह्मा’ कहते हैं।
  • महा संकल्प – जिस दिन पूजा की जाती है उस दिन, काल और जहाँ पूजा की जाती है वह स्थान – इन सबका उच्चारण करके महासंकल्प लिया जाता है। होम के नाम और उद्देश्य का भी उल्लेख किया जाता है। यहीं से पूजा की शुरुआत होती है।
  • चंडी महा यज्ञ मंडप पूजा – 53 प्रकार की अलग अलग पूजाएँ करते हैं और 10 दिशाओं के ईश्वरों की आराधना करते हैं।
  • द्वार तोरण, ध्वज, पताका स्थापना – मंडप में विशेष प्रकार की पत्तियों को विशेष दिशाओं में बांधते हैं।
  • आचार्य आसन पूजा – यज्ञ करने के लिए जिन मुख्य पंडित को नियुक्त किया गया है, वे अब देवी पूजा आरम्भ करते हैं और नवाक्षरी मंत्र का जाप करते हैं।
  • पद्यादी पात्र परिकल्पना – आहुतियों की तैयारी की जाती है।
  • कुंभ स्थापना – वह मुख्य कलश जिसमें पवित्र नदियों का जल है, उसकी स्थापना की जाती है।
  • पुस्तक पूजा और देवी सप्तशती पारायण – इसके बाद देवी सप्तशती पुस्तक और फिर देवी सप्तशती का जाप किया जाता है, जिसमें देवी महात्म्य का वर्णन है।

देवी का आह्वाहन और पूजा

  • अग्नि कार्य – अरुणी लकड़ी की दो डंडियों के बीच घर्षण करके अग्नि उत्पन्न की जाती है, इसे ‘अग्नि-मंथन’ कहते हैं। देवी का अग्नि में आह्वाहन करते हैं और फिर अग्नि में आहुतियाँ दी जाती हैं। जिस प्रकार का होम कर रहे हैं, उसके अनुसार ही आहुति दी जातीं हैं – जैसे 1000, 10,000, 1,00,000 आहुति इत्यादि। सप्तशती 13 भागों में विभाजित है और हर भाग के लिए देवी का एक विशेष रूप है। इन सभी 13 देवियों को उन्हीं के विशेष मन्त्रजाप के द्वारा आह्वाहन किया जाता है और उन्हें विशेष आहुति दी जाती हैं। ऐसा करने से, उस विशिष्ट देवी के आशीर्वाद का विशिष्ट प्रभाव मिलता है।
  • 64 योगिनी और 64 भैरव की पूजा
  • कादंबरी पूजा
  • वदुका भैरव पूजा
  • गौ पूजा
  • गज पूजा
  • अश्व पूजा
  • कन्या पूजा
  • सुवासिनी पूजा
  • दम्पति पूजा

मंगल आरती के उपरांत आहुति

  • सौभाग्य द्रव्य समर्पण – 108 प्रकार की औषधीय जड़ी बूटी और फल, मुख्य होम कुंड में श्रीसूक्त मंत्रजाप के साथ डाले जाते हैं।
  • वसोधरा – अब चमक मंत्र का जाप होता है।
  • महा पूर्णाहुती – अंत में एक लाल साड़ी, घी, सूखे नारियल में शहद, नवरत्न, पंचलोह की आहुति देते हैं।
  • संयोजन – पूजा का प्रभाव और तरंगें अब मुख्य कलश में स्थानांतरित कर दी जातीं हैं।
  • रक्षाधारण – मुख्य होम कुंड से रक्षा ली जाती है और उसे कलश में लगाया जाता है, इसके बाद पूजा होती है।
  • कलशाभिषेक – इस मुख्य कलश के पवित्र जल को अब देवियों की मूर्ति को अर्पण करते हैं।
  • विशेष प्रार्थनाओं के द्वारा पूरी पृथ्वी को आशीर्वाद दिया जाता है, और अब इस पवित्र जल को पूज्य गुरुदेव पर छिड़का जाता है, और उन सभी लोगों पर जिन्होंने इस यज्ञ में भाग लिया है।
  • इसके बाद गुरु सबको प्रसाद देते हैं और सबको आशीर्वाद देते हैं। इस प्रकार चंडी होम के 1008 से अधिक भाग हैं।

नवरात्रि का महोत्सव आर्ट ऑफ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र का सबसे बड़ा उत्सव है जिसे हर वर्ष मनाया जाता है। इसमें हजारों लोग भाग लेते हैं। नौ दिनों तक प्राचीन वैदिक पूजाओं का आयोजन सुनिश्चित समय के अनुसार किया जाता है और इस दौरान इस वातावरण में हर व्यक्ति को अलौकिक अनुभूति होती है।