लोक कथाओं के अनुसार देवी अथवा देवी माँ ने भयावह राक्षसों, जो प्रायः विश्व शांति को खंडित और समाज में भय उत्पन्न करते रहते थे, के साथ अनेक विध्वंसक युद्ध किए। राक्षसों के उत्पात से त्रस्त देवता उस समय प्रार्थना करते थे कि कोई ईश्वरीय शक्ति इस समस्या से मुक्ति दिलाए। तो देवी माँ ने आगे आ कर वैश्विक शांति के लिए अनेक संग्राम किए।
देवी माँ ने जिस प्रकार युद्ध किए, वह आज भी उनके शौर्य और वीरता की गाथाओं के रूप में प्रचलित हैं तथा उनके भक्तों में उनके प्रति एक श्रद्धायुक्त भय की भावना तथा गहरी आस्था उत्पन्न करते हैं।
कालांतर में यह कथाऐं उत्तर भारत में दुर्गा सप्तशती के नाम से प्रसिद्ध हुईं। इन्हें दक्षिण में देवी माहात्म्य और पश्चिम बंगाल में चण्डी के रूप में जाना जाता है। दुर्गा सप्तशती का संकलन और लेखन महाभारत के रचयिता वेद व्यास जी द्वारा किया गया और मार्कण्डेय पुराण में इसका वर्णन मिलता है। इस पुस्तक में कुल 13 अध्याय हैं जिनमें देवी की शौर्य गाथाओं को 700 श्लोकों द्वारा वर्णित किया गया है।
देवी माँ ने अलग अलग अवतार लेकर शत्रुओं को पराजित कर उनका संहार किया। कुछ राक्षसों का वध उन्होंने देवी विष्णु माया के तामसिक अवतार में, कुछ का देवी लक्ष्मी के राजसिक अवतार में तो कुछ अन्य का माँ सरस्वती के सात्विक अवतार में किया।
दुर्गा सप्तशती पठन की विधि (durga saptashati path vidhi)
पारंपरिक रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ दो तरीकों से किया जाता है
1. त्रयंगम
त्रयंगम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नवाक्षरी मंत्र के साथ देवी कवच, अर्गला स्त्रोतम और देवी कीलकम का पाठ किया जाता है। साथ ही दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ किया जाता है।
2. नवांगम
नवांगम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मुख्य पाठ से पहले नौ प्रार्थनाएँ पढ़ी जाती हैं
- देवी न्यास
- देवी आह्वान
- देवी नमामि
- अर्गली स्त्रोतम्
- कीलक स्त्रोतम्
- देवी हृदय
- ढाल
- देवी ध्यान
- देवी कवच
इन प्रार्थनाओं का पाठ करने के उपरांत दुर्गा सप्तशती के अध्याय पढ़े जाते हैं।
दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रि के समय भी किया जाता है जिसमें सभी अध्ययों को नौ दिन में बाँट दिया जाता है।
प्रथम दिन – अध्याय 1 – मधु कैटभ संहार
दूसरे दिन – अध्याय 2,3 और 4 – महिषासुर संहार
तीसरे दिन – अध्याय 5 और 6 – धूम्रलोचन वध
चौथे दिन – अध्याय 7 – चंड मुंड वध
पाँचवें दिन – अध्याय 8 – रक्तबीज संहार
छटे दिन – अध्याय 9 और 10 – शुम्भ निशुंभ वध
सातवें दिन – अध्याय 11 – नारायणी स्तुति
आठवें दिन – अध्याय 12 – फल श्रुति
नौवें दिन – अध्याय 13 – देवी का राजा सुरथ और वैश्य (व्यापारी) को आशीर्वाद
विजय दशमी (दशहरा) के दिन देवी अपराध क्षमा स्त्रोतम् का पाठ किया जाता है।
देवी की महिमा को बखान करती दुर्गा सप्तशती की इन कथाओं को नवरात्रि के आठवें दिन किए जाने वाले चण्डी होम में भी पढ़ा जाता है।
दुर्गा सप्तशती पढ़ने के लाभ (durga saptashati ke fayde)
दुर्गा सप्तशती का बारहवाँ अध्याय “पहला श्रुति” है जिसमें इस पवित्र पुस्तक का पठन करने के लाभ बताए गए हैं और जिनका महत्व स्वयं देवी माँ ने देवताओं को बताया था। इसके होने वाले कुछ लाभ हैं
- जिस स्थान पर इसका पाठ किया जाता है, वहाँ देवी का प्रकट होना
- सभी परेशानियों का निवारण
- आपदाओं से राहत
- दरिद्रता दूर होना
- शत्रुओं, अग्नि तथा सैलाब से सुरक्षा
- ग्रहों के प्रभाव से रक्षा
- दुष्ट आत्माओं से रक्षा
- धन, धान्य तथा संतान की प्राप्ति
देवी कथाएँ बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं। संभवतः इसी शाश्वत सत्य का स्मरण कराने के लिए लोग नवरात्रि के नौ दिन अपने घरों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। देवी की महिमा तथा माहात्म्य का श्रवण करने से भक्तों को देवी माँ की सर्वशक्तिमत्ता की अनुभूति होती है।