नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान किया जाता है, एवं उन्हें पूजा जाता है; जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

माँ दुर्गा के 9 रूप (Navratri Devi Names in Hindi)

  1. शैलपुत्री
  2. ब्रह्मचारिणी
  3. चन्द्रघंटा
  4. कूष्माण्डा
  5. स्कंदमाता
  6. कात्यायनी
  7. कालरात्रि
  8. महागौरी
  9. सिद्धिदात्री

देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती हैं, और सभी नाम ग्रहण करती हैं। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है। असीम आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनों का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व दशहरा मनाने के साथ होता है। नवरात्रि पर्व की 9 रातें देवी माँ के 9 विभिन्न रूपों को समर्पित हैं जिसे नवदुर्गा भी कहा जाता है।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

1. शैलपुत्री (Shailaputri in Hindi)

Devi Shailputri

माँ दुर्गा का पहला ईश्वरीय स्वरुप शैलपुत्री है। शैल का अर्थ है शिखर। शास्त्रों में शैलपुत्री को पर्वत (शिखर) की बेटी के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि देवी शैलपुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री हैं। लेकिन यह बहुत ही सतही विचार है। इसका योग के मार्ग पर वास्तविक अर्थ है – चेतना का सर्वोच्चतम स्थान। यह बहुत दिलचस्प है कि जब ऊर्जा अपने चरम स्तर पर होती है तभी आप इसका अनुभव कर सकते हैं। इससे पहले कि यह अपने चरम स्तर पर न पहुँच जाए तब तक आप इसे समझ नहीं सकते क्योंकि चेतना की अवस्था का यह सर्वोत्तम स्थान है जो ऊर्जा के शिखर से उत्पन्न हुआ है। यहाँ पर शिखर का मतलब है, हमारे गहरे अनुभव या गहन भावनाओं का सर्वोच्चतम स्थान। जब व्यक्ति 100% क्रोध में होता है तो महसूस करेंगे कि क्रोध शरीर को कमजोर कर देता है। दरअसल हम क्रोध को पूरी तरह से व्यक्त नहीं करते, जब 100% क्रोध में होते हैं, और पूरी तरह से क्रोध को व्यक्त करें तो इस स्थिति से जल्द ही बाहर निकल सकते हैं। जब 100% किसी भी चीज में होते हैं, तभी उसका उपभोग कर सकते हैं। ठीक इसी तरह जब क्रोध को पूरी तरह से व्यक्त करेंगे तब ऊर्जा की उछाल का अनुभव करेंगे और साथ ही तुरंत क्रोध से बाहर निकल जाएँगे। क्या कभी देखा है कि बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं? जो भी वे करते हैं, 100% करते हैं। अगर वे क्रोध में हैं, तो वे उस पल में 100% गुस्से में हैं, और फिर तुरंत कुछ ही मिनटों के बाद वे उस क्रोध को भी छोड़ देते हैं। अगर वे नाराज हो जाते हैं, तो भी वे थकते नहीं। लेकिन अगर आप क्रोध हो जाते हैं तो आपका क्रोध आपको थका देता है। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अपना क्रोध 100% व्यक्त नहीं करते। अब इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर समय नाराज ही रहें। तब आपको उस परेशानी का भी सामना करना पड़ेगा जिसकी वजह से क्रोध आता है।
जब आप किसी भी अनुभव या भावना के शिखर तक पहुँचते हैं तो आप दिव्य चेतना के उद्भव का अनुभव करते हैं, क्योंकि यह चेतना का सर्वोत्तम शिखर है। शैलपुत्री का यही वास्तविक अर्थ है।

माँ शैलपुत्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के पहले स्वरुप माँ शैलपुत्री की आराधना कर सकते हैं।

नवरात्रि की प्रतिपदा को पहनें सफेद रंग के कपड़े

प्रतिपदा: नवरात्रि के नौ रंग देवी के विशिष्ट गुणों का प्रतीक है।

2. ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini in Hindi)

Devi Bramhacharini

माँ दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है माँ ब्रह्मचारिणी।

यहाँ ब्रह्म का क्या अर्थ है?

वह जिसका कोई आदि या अंत न हो, वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके परे कुछ भी नहीं। जब आप आँखे बंद कर के ध्यानमग्न होते हैं तब अनुभव करते हैं कि ऊर्जा अपनी चरम सीमा या शिखर पर पहुँच जाती है। तब वह देवी माँ के साथ एक हो गई है और उसी में ही लिप्त हो गई है। दिव्यता, ईश्वर आपके भीतर ही है, कहीं बाहर नहीं।

आप यह नहीं कह सकते कि “मैं इसे जानता हूँ”, क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण ‘आप जान जाते हैं’, यह सीमित बन जाता है। और आप यह नहीं कह सकते कि “मैं इसे नहीं जानता”, क्योंकि यह वहीं है – तो आप कैसे नहीं जानते? क्या आप कह सकते हैं कि “मैं अपने हाथ को नहीं जानता।” आपका हाथ तो वहाँ है, है न? इसलिए, आप इसे जानते हैं। और साथ ही में यह अनंत है अतः आप इसे नहीं जानते। यह दोनों अभिव्यक्ति एक साथ चलती हैं।

अगर कोई आपसे पूछे कि “क्या आप देवी माँ को जानते हैं?” तब आपको चुप रहना होगा क्योंकि अगर आपका उत्तर है कि “मैं नहीं जानता” तब यह असत्य होगा और अगर आपका उत्तर है कि “हाँ मैं जानता हूँ” तो तब आप अपनी सीमित बुद्धि से उस ‘जानने’ को सीमा में बाँध रहे हैं। यह (देवी माँ) असीमित, अनन्त हैं जिसे न तो समझा जा सकता है न ही किसी सीमा में बाँध कर रखा जा सकता है। ‘जानने’ का अर्थ है कि आप उसको सीमा में बाँध रहे हैं। क्या आप अनन्त को किसी सीमा में बाँध कर रख सकते हैं? अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो फिर वह अनन्त नहीं।

ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है – एक है गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है। इसका अर्थ यह भी है कि तुच्छता और निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के समक्ष हैं। वासना हमेशा सीमित बँटी हुई होती है, और चेतना का मात्र सीमित क्षेत्र में संचार होता है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्वव्यापक चेतना है।

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर सकते हैं ।

नवरात्रि की द्वितीया को पहनें लाल रंग के कपड़े

द्वितीया लाल रंग, क्रिया और शक्ति का प्रतीक है। यह देवी के उग्र रूप का प्रतीक है।

3. चन्द्रघंटा (Chandraghanta in Hindi)

Devi Chandraghanta

देवी माँ के तृतीय ईश्वरीय स्वरुप का नाम माँ चन्द्रघण्टा है।

चन्द्रघण्टा शब्द का क्या अर्थ है?

चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिए और अपने मन को स्वच्छ करने के लिए संघर्ष करते हैं। इससे कुछ नहीं होने वाला। आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जाएँ, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जाएँ, आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया समान है।

जैसे ही हमारे मन में नकरात्मक भाव व विचार आते हैं तो हम निरुत्साहित और अशांत महसूस करते हैं। हम विभिन्न तरीकों से इनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं पर यह मात्र कुछ समय के लिए ही काम करता है। कुछ समय पश्चात वही विचार फिर हमें घेर लेते हैं और वापस वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ से हमने शुरुआत की थी। अतः इन विचारों से पीछा छुड़ाने के संघर्ष में न फँसे। ‘चंद्र’ हमारी बदलती हुई भावनाओं, विचारों का प्रतीक है (ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रमा घटता व बढ़ता रहता है)। ‘घंटा’ का अर्थ है जैसे मंदिर के घण्टे-घड़ियाल। आप मंदिर के घण्टे-घड़ियाल को किसी भी प्रकार बजाएँ, उसमे से एक ही ध्वनि आती है। इसी प्रकार एक अस्तव्यस्त मन जो विभिन्न विचारों, भावों में उलझा रहता है, जब एकाग्र होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है, तब ऊपर उठती हुई दैवीय शक्ति का उदय होता है – और यही चन्द्रघण्टा का अर्थ है।

एक ऐसी स्थिति जिस में हमारा अस्तव्यस्त मन एकाग्रचित्त हो जाता है; अपने मन से भागे नहीं क्योंकि यह मन एक प्रकार से दैवीय रूप का प्रतीक या अभिव्यक्ति है। यही दैवीय रूप दुःख, विपत्ति, भूख और यहाँ तक कि शान्ति में भी उपस्थित है। इसका सार यह है कि सबको एक साथ लेकर चलें – चाहे खुशी हो या दुःख – सब विचारों, भावनाओं को एकत्रित करते हुए एक विशाल घण्टे-घड़ियाल के नाद की तरह। देवी के इस नाम ‘चन्द्रघण्टा’ का यही अर्थ है और तृतीय नवरात्रि के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है।

माँ चंद्रघंटा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा का आवाहन कर सकते हैं ।

नवरात्रि की तृतीया को पहनें शाही नीले रंग के कपड़े

तृतीया: रॉयल ब्लू शांति और गहरे नीले आकाश की गहराई का प्रतीक है। यह देवी के पास ज्ञान की गहराई का प्रतिनिधित्व है।

4. कूष्माण्डा (Kushmanda in Hindi)

Devi Kushmanda

देवी माँ के चतुर्थ रूप का नाम है, देवी कूष्माण्डा।

कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है कद्दू।

कूष्माण्डा का अर्थ क्या है?

लौकी, कद्दू गोलाकार है। अतः यहाँ इसका अर्थ प्राणशक्ति से है – वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति है।

भारतीय परंपरा के अनुसार लौकी, कद्दू का सेवन मात्र ब्राह्मण, महा ज्ञानी ही करते थे। अन्य कोई भी वर्ग इसका सेवन नहीं करता था। लौकी, कद्दू आपकी प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति को बढ़ाते हैं। लौकी, कद्दू के गुण के बारे में ऐसा कहा गया है कि यह प्राणों को अपने अंदर सोखते हैं और साथ ही प्राणों का प्रसार भी करते हैं। यह इस धरती पर सबसे अधिक प्राणवान और ऊर्जा प्रदान करने वाली शाक, सब्जी है। जिस प्रकार अश्वथ का वृक्ष 24 घंटे ऑक्सीजन देता है उसी प्रकार लौकी, कद्दू ऊर्जा को ग्रहण या अवशोषित कर उसका प्रसार करते हैं।

सम्पूर्ण सृष्टि – प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष , अभिव्यक्त व अनभिव्यक्‍त – एक बड़ी गेंद , गोलाकार कद्दू के समान है। इसमें हर प्रकार की विविधता पाई जाती है – छोटे से बड़े तक।

‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने का और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है, जिसकी व्याख्या देवी कूष्मांडा करती हैं। इसका अर्थ यह भी है कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं।

कुछ क्षणों के लिए बैठकर अपने आप को एक कद्दू के समान अनुभव करें। इसका यहाँ पर यह तात्पर्य है कि अपने आप को उन्नत करें और अपनी प्रज्ञा, बुद्धि को सर्वोच्च बुद्धिमत्ता जो देवी माँ का रूप है, उसमें समा जाएँ। एक कद्दू के समान आप भी अपने जीवन में प्रचुरता, बहुतायत और पूर्णता अनुभव करें। साथ ही सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें। इस सर्वव्यापी, जागृत, प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा है।

माँ कूष्मांडा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कूष्मांडा की आराधना कर सकते हैं।

नवरात्रि की चतुर्थी को पहनें पीले रंग के कपड़े

चतुर्थी: पीला रंग खुशी और जयकार का रंग है, जो कि देवी के प्रतीक हैं।

5. स्कंदमाता (Skandamata in Hindi)

Devi Skandmata

बुद्धिमता, ज्ञान की देवी: माँ स्कंदमाता

देवी माँ का पाँचवां रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं – वह जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।

शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है। इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया या कर्म भी कह सकते हैं।

प्रायः ऐसा देखा गया है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। आप स्कूल, कॉलेज में भौतिकी, रसायन शास्त्र पढ़ते हैं जिसका प्रायः आप दैनिक जीवन में कुछ अधिक प्रयोग नहीं करते हैं। और दूसरी ओर चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। जब आप टेलीविजन ठीक करना सीख जाते हैं तो अगर कभी वह खराब हो जाए तब आप उस ज्ञान का प्रयोग कर टेलीविजन ठीक कर सकते हैं। इसी तरह जब कोई मोटर खराब हो जाती है और यदि आप उसे ठीक करना जानते हैं तो उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मातृ देवी का एक और रूप है।

हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौन सा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।

स्कंदमाता की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमतायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरुप माँ स्कंदमाता का आवाहन कर सकते हैं ।

नवरात्रि की पंचमी को पहनें हरे रंग के कपड़े

पंचमी: हरा रंग हर क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक वृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है।

6. कात्यायनी (Kathyayini in Hindi)

Devi Katyayani

देवी माँ का छठा रूप का नाम है, देवी कात्यायनी है।

हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, जरूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियाँ अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है।

सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं, जो अदृश्य या समझ के परे है। माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं।

क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है? इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है। आप केवल ऐसा मत सोचिए कि क्रोध मात्र एक नकारात्मक गुण या शक्ति है। क्रोध का अपना महत्व, एक अपना स्थान है। सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है, और वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है। सकारात्मक क्रोध एक प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है। क्रोध अगर अज्ञान व अन्याय के प्रति है तो वह उचित है। अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है अतः वह उचित है! किंतु अगर आप गहराई में, सूक्ष्मता से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है। इन स्थितियों में क्रोध एक बंधन बन जाता है। अतः सकारात्मक क्रोध जो अज्ञान, अन्याय के प्रति है, वह माँ कात्यायनी का प्रतीक है।

आपने बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुना होगा। कुछ लोग इसे प्रकृति का प्रकोप भी कहते हैं। उदाहरणतः बहुत से स्थानों पर बड़े – बड़े भूकम्प आ जाते हैं या तीव्र बाढ़ का सामना करना पड़ता है। यह सब घटनाएँ देवी कात्यायनी से संबंधित हैं। सभी प्राकृतिक विपदाओं का संबंध माँ के दिव्य कात्यायनी रूप से है। वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं। माँ का दिव्य कात्यायनी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मकता का विनाश कर धर्म की स्थापना करता है। ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है,जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार माँ कात्यायनी क्रोध का वह रूप है, जो सब प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

माँ कात्यायनी की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के छठें स्वरुप माँ कात्यायनी का आवाहन कर सकते हैं ।

नवरात्रि की षष्ठी को पहनें स्लेटी रंग के कपड़े

षष्टी: ग्रे रंग संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।

7. कालरात्रि (Kaalaratri in Hindi)

Devi Kalratri

देवी माँ के सप्तम रूप का नाम है माँ कालरात्रि।

यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है।

माँ कालरात्रि की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’ जप से आप माँ दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा कर सकते हैं

नवरात्रि की सप्तमी को पहनें नारंगी रंग के कपड़े

सप्तमी: संतरा रंग प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है।

8. महागौरी (Maha Gauri in Hindi)

Devi Mahagauri

देवी माँ का आठवाँ स्वरुप है महागौरी।

सौन्दर्य का प्रतीक : माँ महागौरी

महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान हैं, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान, शांत हैं – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वह रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।

यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिए पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसलिए बुद्ध ने कहा है, “आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं। जरा बैठिए और ध्यान करिए। ईश्वर के विषय में न सोचिए। शून्यता में जाइए, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गए, तो अगला कदम वह है जहाँ आपको विभिन्न मंत्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वह सभी जागृत होंगी।”

बौद्ध मत में भी, वे इन सभी देवियों का पूजन करते हैं। इसलिए, यदि आप ध्यान कर रहे हैं, तो सभी यज्ञ, सभी पूजन अधिक प्रभावी हो जाएँगे। नहीं तो उनका इतना प्रभाव नहीं होगा। यह ऐसे ही है, जैसे कि आप नल तो खोलते हैं, परन्तु गिलास कहीं और रखते हैं, नल के नीचे नहीं। पानी तो आता है, पर आपका गिलास खाली ही रह जाता है। या फिर आप अपने गिलास को उलटा पकड़े रहते हैं। 10 मिनट के बाद भी आप इसे हटाएँगे, तो इसमें पानी नहीं होगा क्योंकि आपने इसे ठीक प्रकार से नहीं पकड़ा है।

सभी पूजाएँ ध्यान के साथ शुरू होती हैं, और हजारों वर्षों से इसी परम्परा का अनुसरण किया जा रहा है। ऐसा पवित्र आत्मा के सभी विविध तत्वों को जागृत करने के लिए, उनका आह्वान करने के लिए किया जाता है। हमारे भीतर एक आत्मा है। उस आत्मा की कई विविधताएँ हैं, जिनके कई नाम, कई सूक्ष्म रूप हैं और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़ी है।

इन सभी तत्वों का इस धरती पर आह्वान, जागरण और पूजन करना ही नवरात्रि पर्व का ध्येय है।

माँ महागौरी की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।

नवरात्रि की अष्टमी को पहनें मोरपंखी हरे रंग के कपड़े

अष्टमी: मोरपंखी हरा विशिष्टता और वैयक्तिकता का प्रतिनिधित्व करता है।

9. सिद्धिदात्री (Siddhidhatri in Hindi)

Devi Siddhidatri

देवी के नौंवे रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।

देवी महागौरी आपको भौतिक जगत में प्रगति के लिए आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करती हैं, ताकि आप संतुष्ट होकर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ें।

माँ सिद्धिदात्री आपको जीवन में अद्भुत सिद्धि, क्षमता प्रदान करती हैं ताकि आप सब कुछ पूर्णता के साथ कर सकें। सिद्धि का क्या अर्थ है? सिद्धि, सम्पूर्णता का अर्थ है – विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र से ही, बिना किसी कार्य किए आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना, यही सिद्धि है।

आपके वचन सत्य हो जाएँ और सबकी भलाई के लिए हों। आप किसी भी कार्य को करें वह सम्पूर्ण हो जाए – यही सिद्धि है। सिद्धि आपके जीवन के हर स्तर में सम्पूर्णता प्रदान करती है। यही देवी सिद्धिदात्री की महत्ता है।

माँ सिद्धिदात्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के नौवें स्वरुप माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं ।

नवरात्रि की नवमी को पहनें गुलाबी रंग के कपड़े

नवमी: गुलाबी रंग प्यार, स्नेह और एकता का प्रतीक है।