प्राचीन काल से ही नवरात्रि को हम एक धार्मिक उत्सव के रूप में मनाते आए हैं क्योंकि इसके साथ हम सब की आस्था जुड़ी हुई है। हम यह भी जानते हैं कि नवरात्रि हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख उत्सवों में से एक है, जिसे समूचे देश में अति चाव और उत्साह से मनाया जाता है। किंतु हम में से अनेक इस बात से अनभिज्ञ होंगे कि यह त्योहार अलग अलग ऋतुओं में वर्ष में पाँच बार मनाया जाता है। यह हैं, चैत्र नवरात्रि, आषाढ़ नवरात्रि, शरद नवरात्रि और पौष/माघ नवरात्रि। इनमें से शरद नवरात्रि वर्षा ऋतु (शरद ऋतु का आरंभ) में तथा चैत्र नवरात्रि (वसंत ऋतु में), अधिक महत्वपूर्ण हैं।
चैत्र नवरात्रि
चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है। सामान्यतया इनका आगमन मार्च या अप्रैल मास में होता है और इनके आरंभ से ही हिंदू पंचांग के अनुसार नव वर्ष के प्रथम दिन की शुरुआत होती है। नौ दिन तक चलने वाले इस उत्सव को उत्तर भारत में बहुत उल्लास से मनाया जाता है। यह नवरात्रि महोत्सव हिंदू पंचांग के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में, जो मार्च और अप्रैल के बीच के पड़ता है, मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस पर्व के प्रथम दिवस को गुड़ी पर्व तथा कश्मीर में नवरेह के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार को उत्तरी तथा पश्चिमी भारत में अति उल्लासपूर्ण ढंग से मनाया जाता है जो रंग बिरंगी वसंत ऋतु को और भी मनमोहक तथा दिव्य बना देता है।
‘ चैत्र’ का अर्थ है नव वर्ष का आरंभ। इसलिए नव वर्ष का आगमन नौ दिन के लिए अंतर्मुखी होने से, जिसमें प्रार्थना, ध्यान और जाप का समावेश होता है, मनाया जाता है। इस प्रकार हम समूची सृष्टि में उपस्थित उस दिव्यता को स्वीकार करते हैं और इस को अनुभव करते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
शरद नवरात्रि
यह नवरात्रि उत्सव सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण है, इसलिए इसको महा नवरात्रि भी कहा जाता है। यह महोत्सव हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास में, सितंबर या अक्टूबर के महीने में शरद ऋतु के प्रारंभ में मनाया जाता है। इस नवरात्रि को संपूर्ण भारतवर्ष के कोने कोने में मनाया जाता है। शरद नवरात्रि का पर्व माँ शक्ति के नौ रूपों – दुर्गा, भद्रकाली, जगदंबा, अन्नपूर्णा, सर्वमंगला, भैरवी, चण्डिका, ललिता, भवानी तथा मुकंबिका को समर्पित है।
नवरात्रि उत्सव देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक असुर के संहार का भी प्रतीक है और उत्सव का दसवाँ दिन (दशमी) विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है; यह वही दिन है जब भगवान श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त करके माता सीता को छुड़ाया था। दक्षिण भारत में इस त्योहार में देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती का भी पूजन किया जाता है।
इन दिनों में विशेष होम (हवन) आयोजित किए जाते हैं, अभिषेक और तर्पण किए जाते हैं, पूजाएँ आयोजित की जाती हैं जिनमें देवी माँ की आराधना, स्तुती, प्रार्थनाओं तथा पुष्प अर्पित करके की जाती है। लोग यह दोनों त्योहार उपवास, ध्यान, और देवी के नौ रूपों की पूजा अर्चना द्वारा करके मनाते हैं। कुछ लोग तो पूरे नौ दिन उपवास करते हैं जबकि कुछ प्रथम तथा अंतिम दिन उपवास करके इस उत्सव के आरंभ और समाप्ति को मनाते हैं।