दशहरा या विजयादशमी उत्सव का क्या महत्व है?

नवरात्रि के नौ दिनों के बाद, दसवां दिन, जिसे दशहरा या विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

इस दिन हम क्षुद्रता पर उदारता की, छोटे मन पर विशाल मन की विजय का उत्सव मनाते हैं।

रामायण के अनुसार, विजयादशमी वह दिन है जब भगवान राम ने राजा रावण को हराया था। नवरात्रि के बाद का दसवां दिन राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का प्रतीक भी है।

आम तौर पर जब मन नकारात्मक प्रवृत्तियों के घेरे में आ जाता है, तो हम उससे लड़ते रहते हैं। यह तब होता है जब हम उसे ईश्वर के सामने समर्पित कर देते हैं और कहते हैं, “मैं अपने मन से नहीं लड़ सकता, इसलिए आप मुझे रास्ता दिखाइए।”

नवरात्रि के नौ दिन इसी का प्रतीक हैं, अर्थात् आध्यात्मिक शक्ति की संकीर्णता और छोटी बातों व घटनाओं पर उच्चतर आत्मा की विजय।

मन की कई स्थितियाँ या अवस्थाएँ होती हैं, लेकिन आम तौर पर आप उन्हें तीन प्रकारों में वर्गीकृत कर सकते हैं:

  • जब लालसा होती है या सांसारिक या आध्यात्मिक अनुभवों की लालसा
  • जब नीरसता हो न तो किसी चीज में कोई लालसा है और न ही किसी चीज में कोई रुचि। हमारे मन में जड़ता का भाव है। आप बस जड़ता के साथ चलते रहते हैं। यह स्थिति जीवन में कभी कभी आ सकती है।
  • जब संतोष, खुशी और आनंद होता है इस उत्सव का उद्देश्य जड़ता से आनंद की ओर बढ़ना; लालसा से संतोष की ओर बढ़ना है।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने मन की ओर देखते ही नहीं, बस काम करते रहते हैं। फिर कुछ ऐसे भी होते हैं जो हर समय अपने मन की ओर देखते रहते हैं। दोनों ही अच्छे नहीं हैं। बीच का रास्ता अपनाएँ। कभी कभी मन पर दृष्टि डालें, लेकिन हर समय नहीं। क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ? नहीं तो आप आत्मकेंद्रित हो जाएँगे, हर समय सोचते रहेंगे, मैं क्या चाहता हूँ? या ‘मैं ऐसा महसूस कर रहा हूँ’।

भूल जाइए कि आप कैसा महसूस करते हैं। भावनाएँ बदलती रहती हैं। एक पल वे अच्छी हैं, अगले पल वे अच्छी नहीं हैं, तो क्या हुआ! वीरता और साहस के साथ आगे बढ़ें। छोटे मन पर विजय पाना ही विजयादशमी है।

छोटे मन में कलह, निर्णय और सभी प्रकार का शोर चलता रहता है। नवरात्रि इन प्रवृत्तियों पर विजय पाने और स्रोत के साथ एक होने का समय है।