इस दुनिया में हमें जो कुछ भी दिखाई देता है, वह सब ऊर्जा से ही निर्मित है। सूर्य की किरणों से लेकर बहती हुई नदियों तक, मोबाइल फोन की ध्वनि से लेकर दिल में लगने वाले पेसमेकर तक, हर जगह ऊर्जा का ही अस्तित्व है। जैसा कि महान वैज्ञानिक न्यूटन के एक सिद्धांत में बताया गया है कि “ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है, न ही नष्ट; इसको केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।” किंतु प्रश्न उठता है, फिर ऊर्जा का स्त्रोत क्या है? तो सभी वस्तुओं, सजीव अथवा निर्जीव, में पल पल प्रवाहित होने वाली ऊर्जा कहाँ से आती है?

हिंदू दर्शनशास्त्र के अनुसार देवी माँ, अथवा देवी ही सभी प्रकार की शक्ति का मूल स्रोत हैं। उनके इस गुण के कारण ही उनको ‘शक्ति’ भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ ही है ‘शक्ति अथवा ऊर्जा’। देवी माँ ही समूची सृष्टि में प्रत्येक वस्तु को ऊर्जित करती हैं और उस ऊर्जा को बनाए भी रखती हैं। नवरात्रि का पर्व और कुछ नहीं, बस देवी की स्तुति और आराधना का एक उपाय है जो हम अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मनाते हैं।

जिस प्रकार एक शिशु माँ के गर्भ में नौ माह तक रह कर बड़ा होता है, उसी प्रकार नवरात्रों की नौ रातें भी विश्राम करने और स्वयं को फिर से ऊर्जावान बनाने के लिए हमें अपने मूल स्रोत में जाने का अवसर प्रदान करती हैं। किंतु यहाँ विश्राम का अर्थ केवल शारीरिक गतिविधि से ही नहीं अपितु मानसिक गतिविधियों से भी विश्राम है। हमारे मस्तिष्क में निरंतर होने वाला कोलाहल हमारी ऊर्जा को क्षीण कर देता है और हमें गहन विश्राम की अवस्था का अनुभव ही नहीं करने देता।

यह संसार ऊर्जा से भरपूर है – वह ऊर्जा जिसका उपयोग कर हम स्वयं को पुनः ऊर्जावान बना सकते हैं। ऊर्जा के इस अथाह कोष का उपयोग करने के लिए हमें केवल स्वयं को उसके अनुकूल ढालने की आवश्यकता है। जब हमारा मन शांत होता है तो वह अपने आस पास के वातावरण से ऊर्जा ग्रहण करता है तथा फैलता है। इस प्रक्रिया से सजगता में वृद्धि, मन में शांति, तथा उत्पादकता में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त ध्यान तथा उपवास जैसी आध्यात्मिक क्रियाएँ भी ऐसी मनोस्थिति पाने के उत्तम उपाय हैं।

यद्यपि ध्यान और उपवास मन को शांत करने तथा मानसिक हलचल को कम करने में सहायता करते हैं, तथापि यह मौन ही है जो इस अनुभव को गहराई प्रदान करता है। गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर कहते हैं कि मौन से न केवल हमारी वाणी में शुद्धता आती है, अपितु हमारे कौशल में भी निपुणता आती है। इसके अतिरिक्त मौन में रहने से मन में स्थिरता आती है और हमारी एकाग्रता पूर्णतः अंतर्मुखी हो कर और अधिक गहराई में उतरने में सहायता करती  है।

किंतु, मौन का अर्थ केवल कम बोलने तक ही सीमित नहीं है। इसका विशाल आयाम/ परिप्रेक्ष्य भी है। संक्षेप में मौन को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

  • जब व्यक्ति किसी से भी बात न करे।
  • जब मन की अपने आसपास की वस्तुओं/ घटनाओं/ व्यक्तियों में कोई रुचि न हो बल्कि वह अंतर्मुखी होने में ही केंद्रित हो।
  • जब हम समष्टि के साथ पूर्णतः एक तथा संतुष्ट हो जाएँ।

प्रथम प्रकार के मौन में हम शब्दों अथवा इशारों का उपयोग न कर के अपनी ऊर्जा को बचाते हैं। दूसरे प्रकार के मौन में हम एक कदम और आगे जा कर इंद्रिय सुखों में लिप्त नहीं होते। हर बार, जब भी हम इंद्रिय सुखों में पड़ते हैं तो हमारा मन क्रियाशील रहता है और यही उसका आहार भी है। इसलिए मन को विश्राम देने के लिए इंद्रिय सुखों से बचा जाता है। उससे भी आगे की स्थिति तीसरे प्रकार के मौन में आती है जब हमें कोई आवश्यकता नहीं होती और हम अपने आसपास की प्रत्येक उपलब्ध वस्तु में ही शांति तथा संतुष्टि का अनुभव करते हैं। यह स्थिति मन को स्थिर होने तथा अपने स्रोत में पुनः लौटने के योग्य बनाती है। 

क्या आप भी सोचते हैं कि उत्सव का अर्थ शोर करना और मौन का अर्थ शोक मनाना है? सामान्यतः जब लोग उत्सव मनाते हैं तो वे अत्यधिक शोर शराबा करते हैं और जब वे शांत होते हैं तो वे केवल शोक मना रहे होते हैं। किसी की मृत्यु हो गई हो अथवा कोई विकट परिस्थिति में हो तो लोग मौन ही होते हैं। किंतु हमारे यहाँ उत्सव का अर्थ एकदम भिन्न है, हमारा मौन भी बिलकुल विपरीत प्रकार का है। इसमें हम आनन्दपूर्ण रहते हुए मौन रखते हैं। इससे ही हमारा आनंद अत्यंत गहरा होता है तथा सही अर्थ में मौन हमारे जीवन की प्रमुख शक्ति बन जाता है। इस प्रकार यह मौन उदासी भरा मौन नहीं है और यह उत्सव भी उथला और सतही नहीं होता। उत्सव को गहरा बनाने के लिए मौन की आवश्यकता होती है। और मौन को अपने संपूर्ण वैभव में प्रकट होने के लिए उत्सव की आवश्यकता है।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

जैसे जैसे अब नवरात्रि के दिन निकट आ रहे हैं, सचेत हो कर जितना हो सके मौन धारण करने का प्रयास करें और अपने भीतर हो रहे परिवर्तन को स्वयं देखें और अनुभव करें। जब देवी माँ की पूजा हो रही है तो स्वयं को उसकी वास्तविक शक्ति में डूबने का अवसर दें तथा देवी की शाश्वत शक्ति की झलक पाएँ।