देवी अथवा देवी माँ वह शक्ति है जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड में स्थित खगोलीय तारों, ग्रहों, उपग्रहों आदि एवं अवचेतन मन और उससे जुड़ी सभी प्रकार की भावनाओं की उत्पत्ति हुई है। वही देवी माँ, जिसे हम शक्ति, अर्थात् ऊर्जा भी कहते हैं, इस सृष्टि को चला भी रही है।
नवरात्रि के नौ दिन वह समय होता है जब इस ऊर्जा को ग्रहण करके इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए एक उपाय है देवी माँ के सभी नामों तथा रूपों की उपासना करना।
दिव्यता तो सर्वव्यापक है, किंतु सुप्त अवस्था में। पूजा एक विधि है जिससे इसको जगाया जा सकता है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
देवी माँ अथवा शक्ति के मुख्यतः तीन रूप हैं: दुर्गा- रक्षा की देवी; लक्ष्मी- धन-सम्पत्ति की देवी; सरस्वती- ज्ञान की देवी। नवरात्रि की नौ रातों और दस दिनों में देवी के इन्हीं तीन रूपों का आह्वान किया जाता है।
दुर्गा
नवरात्रि के प्रथम तीन दिन माँ के देवी दुर्गा रूप का उत्सव मनाया जाता है। दुर्गा की विद्यमानता में नकारात्मक शक्तियाँ क्षीण होने लगती हैं। देवी माँ नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित कर देती है।
दुर्गा को ‘जय दुर्गा’ के नाम से भी बुलाया जाता है। ‘जय दुर्गा’ अर्थात् जो जीत या सफलता लाती है। दुर्गा के कुछ मुख्य गुण निम्नलिखित हैं:
- लाल रंग
दुर्गा का सम्बंध लाल रंग से है। उसको सदा लाल रंग की साड़ी पहने हुए ही दिखाया जाता है। लाल रंग उत्साह का, ‘गतिशील ऊर्जा’ का प्रतीक है। संभव है कि आप प्रशिक्षित एवं निपुण हों, किंतु यदि आप परिस्थितियों, लोगों और अपने प्रयासों में सामंजस्य नहीं रख पाते तो आपको आशातीत परिणाम मिलने में देरी होगी और आप कार्यकुशल नहीं हो पाओगे। और जब आप दुर्गा माँ को प्रार्थना करते हो तो वह आपको शीघ्र ही उत्साह से भर देती हैं जिससे सब कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
- नव दुर्गा
नव दुर्गा, देवी दुर्गा के नौ रूप हैं जो सभी प्रकार की नकारात्मकता से बचाने में एक कवच का काम करते हैं। देवी माँ के इन गुणों का स्मरण मात्र करने से हमारे मन में पड़े हुए अवरोध दूर हो सकते हैं। देवी के इन नौ नामों की स्तुति से हमारी चेतना ऊपर उठ जाती है जो हमें अधिक केंद्रित, साहसी तथा शांतचित्त बनाती है। चिंताओं, आत्मसंदेह और भय से त्रस्त लोगों के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है।
- दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी रूप
देवी दुर्गा अपने महिषासुर मर्दिनी रूप में महिषा की ध्वंसक हैं। महिषा का शाब्दिक अर्थ है भैंस, जो आलस्य, निष्क्रियता और जड़ता का प्रतीक है। यह वह गुण हैं जो व्यक्ति की आध्यात्मिक तथा भौतिक, दोनों प्रकार की उन्नति में बाधक हैं। देवी सकारात्मक ऊर्जा का भंडार हैं, इसलिए उनकी उपस्थिति मात्र से निष्क्रियता और जड़ता लेशमात्र भी नहीं रह जाती ।
लक्ष्मी
नवरात्रि उत्सव के अगले तीन दिनों में देवी के लक्ष्मी रूप की स्तुति की जाती है। लक्ष्मी धन-संपत्ति तथा समृद्धि की देवी हैं। हमारे जीवन को सही ढंग से चलाने तथा उसमें उन्नति के लिए धन की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसका अर्थ है ज्ञान, कुशलताओं तथा प्रतिभाओं का बाहुल्य। लक्ष्मी वह ऊर्जा है जो व्यक्ति के पूर्ण भौतिक तथा आध्यात्मिक कल्याण के रूप में प्रकट होती है।
इस दैवी शक्ति के आठ गुण (आयाम) है जो हमें प्राप्त हो सकते हैं:
- आदि लक्ष्मी
आदि लक्ष्मी का अर्थ है स्रोत का स्मरण होना। जब हम भूल जाते हैं कि हम इस संपूर्ण सृष्टि का ही अंश हैं, तो हम स्वयं को अल्प और असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। आदि लक्ष्मी देवी का वह प्रारूप है जो हमें अपने स्रोत से जोड़ता है जिससे मन में शांति और शक्ति आती है।
- धन लक्ष्मी
यह भौतिक धन-सम्पत्ति के रूप में विद्यमान है।
- विद्या लक्ष्मी
इस रूप में देवी ज्ञान, कुशलताओं तथा प्रतिभाओं के रूप में प्रकट होती हैं।
- धान्य लक्ष्मी
यह देवी का वह रूप है जो खाद्यान्न के रूप में प्रकट है।
- संतान लक्ष्मी
इस रूप में देवी संतान तथा सृजनता के रूप में प्रकट होती हैं। सृजनात्मकता, कुशलताओं व प्रतिभाओं से संपन्न लोगों पर देवी के इस रूप का ही आशीर्वाद होता है।
- धैर्य लक्ष्मी
इसमें देवी साहस के रूप में प्रकट होती हैं।
- विजय लक्ष्मी
विजय/सफलता के रूप में प्रकट देवी।
- भाग्य लक्ष्मी
यह देवी का सौभाग्य तथा समृद्धि देने वाला रूप है।
किसी व्यक्ति के जीवनकाल में देवी लक्ष्मी इन रूपों में अपनी कृपा बरसा सकती हैं। देवी लक्ष्मी को समर्पित नवरात्रि के इन तीन दिनों में हम देवी माँ की आराधना कर धन-संपत्ति के इन सभी रूपों में आशीर्वाद माँगते हैं।
सरस्वती
नवरात्रि के अंतिम तीन दिन माँ सरस्वती को समर्पित होते हैं।
सरस्वती ज्ञान की देवी हैं – अर्थात् वह जो स्व: (स्वयं) का सार प्रदान करती हैं। इस देवी के बहुत से आयाम हैं जो उनके विषय में कुछ न कुछ वृत्तांत दर्शाते हैं।
शिला: देवी सरस्वती को प्राय: एक शिला पर विराजित हुआ दर्शाया जाता है। ज्ञान, शिला की ही भाँति है, दृढ़ आधार की तरह। यह कभी हमारा साथ नहीं छोड़ता।
वीणा: देवी सरस्वती को प्राचीन संगीत यंत्र, वीणा बजाते हुए दर्शाया जाता है, जिसके सुमधुर सुर मन में शांति और समरसता लाते हैं। ठीक इसी प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान भी जीवन में विश्रांति और उत्सव लेकर आता है।
हंस: इस देवी का वाहन हंस है। कहते हैं कि यदि किसी हंस को दुग्ध और जल का मिश्रण दिया जाए तो वह केवल दुग्ध ही पियेगा। यह गुण विवेक की शक्ति का प्रतीक है जिसका उपयोग कर के हमें जीवन से केवल सकारात्मकता को ही ग्रहण करना चाहिए और नकारात्मकता को त्यागते जाना चाहिए।
मोर: मोर सदैव सरस्वती देवी के संग रहते हैं। मोर केवल वर्षा से पूर्व ही नाचता है और अपने रंग बिरंगे पंखों की अनुपम छटा बिखेरता है, हर समय नहीं। दैवीय शक्ति भी सही ज्ञान को उचित स्थान और उचित समय पर अभिव्यक्त करने की क्षमता प्रदान करती है।
देवी सरस्वती ऐसी चेतना है जो विभिन्न प्रकार के ज्ञान से तरंगित होती है। वह आध्यात्मिक प्रकाश का स्रोत, सभी प्रकार के अज्ञान को दूर करने वाली और ज्ञान का असीमित भंडार है।
जब हम नवरात्रि के नौ दिन देवी के विभिन्न नामों और गुणों का मंत्रोच्चार द्वारा सत्कार करते हैं तो हम उन गुणों को स्वयं में जीते हैं। वह गुण आवश्यकता अनुसार और सही समय पर हमारे भीतर भी प्रकट हो जाते हैं।
– भानुमति नरसिम्हन, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर की बहन