नवरात्रि का अर्थ है ‘नौ रातें’।

रात का समय शरीर को विश्राम देने और पुनः ऊर्जावान बनाने का समय होता है। यदि हम रात्रि में विश्राम और निद्रा नहीं करते तो अगले दिन हमारे लिए सामान्य दिनचर्या के कार्य करना कठिन भी हो जाता है, है न?

इसी प्रकार नवरात्रि का समय हमारी आत्मा के लिए विश्रांति का समय होता है। यह वह समय होता है जब हम सभी प्रकार के इंद्रिय उपभोगों (खाना, बोलना, देखना, स्पर्श, सुनना, सूंघना) को त्याग कर स्वयं में केंद्रित हो कर विश्राम करते हैं। सभी इंद्रिय क्रियाकलापों से दूर रह कर हम अपने भीतर अधिक गहराई तक उतर सकते हैं, जो जीवन में परम् आनंद, उल्लास तथा उत्साह का मूल स्रोत है।

हममें से अधिकांश इसका अनुभव नहीं कर पाते क्योंकि हम निरंतर किसी न किसी क्रियाकलाप में लगे रहते हैं। हम सदैव ही मन के खेल में उलझे रहते हैं। नवरात्रि का समय ऐसा है जब हम अपने मन से विमुख हो कर तथा आत्मा अथवा स्वयं की चेतना में स्थिर हो कर विश्राम पा सकते हैं। यही समय है जब हम अपनी चेतना को अनुभव कर सकते हैं।

अतः, इस नवरात्रि को स्थूल भौतिक जगत से सूक्ष्म आध्यात्मिक जगत के परिवर्तन की यात्रा का अवसर बनाएँ। साधारण शब्दों में, अपने सामान्य दैनिक कार्यों तथा व्यावसायिक जिम्मेदारियों से अवकाश लेकर स्वयं पर केंद्रित होने का प्रयास करें। आप कौन हैं, कहाँ से आए हैं, और आपका यहाँ आने का उद्देश्य क्या है, इस पर विचार करें। स्वयं के भीतर जा कर देवी माँ के वात्सल्य को स्मरण करते हुए, उसके प्रति कृतज्ञ हो जाएँ और विश्राम करें।

अपने स्रोत से जुड़ें

हम इस सृष्टि से, किसी ऐसी सर्वोच्च शक्ति से जुड़े हुए हैं, जो इसको चला रही है। यह शक्ति प्रेम से ओत-प्रोत है, वास्तव में यह पूरी सृष्टि ही प्रेममयी है। नवरात्रि का समय ऐसा है जब हम अनुभव कर सकते हैं कि यह सृष्टि हमसे अथाह प्रेम करती है और हम इस प्रेम के सागर में विश्राम कर सकते हैं। जब आप विश्राम करके इससे बाहर, स्थूल जगत में आते हो तो स्वयं को अधिक सशक्त, बुद्धिमान, ऊर्जावान, आनंदित और सामंजस्यपूर्ण महसूस करते हैं। 

दैनिक जीवन में हम विभिन्न क्रियाकलापों में ही उलझे रहते हैं। हमारे मन में कई प्रकार के क्लेश, तर्क वितर्क, दूसरों को आंकने जैसी कई प्रकार की उथल पुथल और शोर लगा ही रहता है। नवरात्रि के समय हम इन प्रवृत्तियों को लांघ कर अपने स्रोत के साथ एक हो सकते हैं।

नवरात्रि को कैसे अनुभव करें तथा अपनी आत्मा से कैसे जुड़ें

आध्यात्मिक जीवन में उतरने, अपने निजी स्वरूप को अनुभव करने का मार्ग है, मौन, उपवास, मंत्रोच्चार तथा ध्यान। 

मौन

आंतरिक शांति और गहरे विश्राम का अनुभव पाने में सबसे बड़ी बाधा है हमारा अपना मन, जो निरंतर व्यस्त, और सोच विचार में  तथा कभी कभी तो किसी न किसी आसक्ति में भी डूबा रहता है। थोड़े समय के लिए मौन धारण करने से हम अपने मन की उथल पुथल को शांत कर सकते हैं। जब मन शांत हो, तभी हम गहरे विश्राम, शांति तथा स्पष्टता का अनुभव कर सकते हैं। इसके परिणाम स्वरूप हम स्वयं को अधिक सुस्पष्टता से व्यक्त कर सकते हैं। अत: मौन धारण करने के लिए कुछ समय अवश्य निकालें क्योंकि मन को स्वच्छ और निर्मल बनाने के उत्कृष्ट उपायों में से यह एक उत्तम उपाय है।

मौन से हमारा मन कुशाग्र होता है; आप जो बोलते हो उसके बारे में अधिक सजग होते हैं, और आपकी प्रज्ञा भी सशक्त होती है।

उपवास

शरीर के विषैले तत्त्वों को उत्सर्जित करने के लिए उपवास किया जाता है। आहार की श्रेणी, गुणवत्ता तथा उसकी मात्रा का हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव होता है। कुछ खाद्य पदार्थ शरीर में विषैले तत्त्वों की वृद्धि करते हैं; इनको उपवास कर के शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। एक बार शरीर शुद्ध होने के उपरांत सही प्रकार के भोजन, सही मात्रा में सेवन कर, हम अपने शारीरिक तंत्र को स्वच्छ रख सकते हैं।

शरीर तथा मन का बहुत गहरा सम्बंध है। इसलिए जब उपवास करने से हमारा शरीर शुद्ध हो गया हो तो मन की शुद्धि भी स्वतः हो जाती है। और एक निर्मल मन शांत तथा अधिक स्थिर होता है।

इसलिए इन नवरात्रों में अपने शरीर को हल्का बनाए रखने के लिए थोड़े से फलों अथवा सुगमता से पचने वाले आहार के साथ उपवास करें। इससे आप स्वयं अपने मन पर होने वाले प्रभाव का अनुभव करेंगे। यदि आप अपने शरीर की आयुर्वेदिक संरचना अथवा प्रकृति के अनुसार भोजन ग्रहण करते हैं तो यह और भी उत्तम रहेगा। आप अपनी प्रकृति तथा अपने शरीर लिए उपवास की विशिष्ट आवश्यकताओं के विषय में जानने के लिए किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर सकते हैं।  

ध्यान

ध्यान आपको अपने भीतर की गहराइयों तक ले जाता है। ध्यान आपको अपने मन से भी परे, तथा और आगे जाने में सहायता करता है। यह अपनी आत्मा को अनुभव करने का मार्ग है। अतः इन नवरात्रों में प्रतिदिन ध्यान करने का संकल्प लें।

ध्यान से आपका शरीर सशक्त होता है, मन में स्पष्टता आती है, भावनाएँ सकारात्मक और कोमल होती हैं जिससे आपके समग्र स्वास्थ्य में सुधार आता है। आपकी प्रज्ञा तीक्ष्ण होती है। यह आपके चारों ओर के वातावरण में तरंगों को सकारात्मक बनाता है जिससे जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ने लगती है।

इसके अतिरिक्त यदि आप समूह में ध्यान करते हैं तो यह एक यज्ञ का रूप ले लेता है। समूह में ध्यान करने से ध्यान के लाभ कई गुणा बढ़ जाते हैं क्योंकि सामूहिक चेतना में आपको द्रुतगति से ऊँचा उठाने की शक्ति होती है।

मंत्रोच्चार

अधिकतर शब्दों के साथ कुछ न कुछ विशेष प्रकार की ऊर्जा का समावेश होता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई अप्रिय शब्दों से आपका अपमान करे तो उसका आपके मन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत यदि कोई आपको ‘सुंदर, ‘दयालु, आदि शब्द बोल कर प्रशंसा करे तो उससे आपका उत्साहवर्द्धन होता है।

मंत्र अति प्राचीन ध्वनियाँ हैं जो अपने साथ गहन तथा परिवर्तनकारी शक्तियाँ लाती हैं। और चूँकि इन मंत्रों का उपयोग हजारों वर्षों से निरंतर होता आ रहा है, यह ध्वनियाँ अत्यधिक बलशाली हो गई हैं।

मंत्रों के उच्चारण से अथवा मात्र उनका श्रवण करने से भी मन पर गहरा और परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ता है। यह मन को शांत और निर्मल करने में सहायता करते हैं। यदि आप सजगतापूर्वक दृष्टिपात करेंगे, तो पाएँगे कि मंत्रोच्चार करने अथवा उनका श्रवण करने के उपरांत सकारात्मक विचार ही आपके मन में आने लगते हैं तथा नकारात्मक विचार लुप्त होने लगते हैं। 

मंत्रों को सुनने या उनका जाप करने से आपके मन की हलचल कम हो जाती है। यह सकारात्मक संचार को बढ़ाता है, मन में स्पष्टता लाता है और सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है। मंत्रों के कई लाभ हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण लाभों में से एक यह है कि वे आपकी चेतना में परिष्कार लाते हैं।