ऐसा माना जाता है कि हजारों साल पहले, एक युवती एक अनुभव के बाद आनंद में नाचने लगी थी, जिससे उसका जीवन सदैव के लिए बदल गया: उसे यह अनुभव हुआ कि उसका जीवन उस अनंत चेतना से उत्पन्न हुआ है, जो निराकार है और हर रूप में मौजूद है। जो उभर कर आया, वह उस चेतना की स्तुति में इस परमानंद की एक सहज अभिव्यक्ति थी, जिसे आज हम ‘या देवी सर्व भूतेषु‘ के रूप में जानते हैं।
संगीतकार ऋषि वाक ने मानव अस्तित्व के हर हिस्से का वर्णन किया है और इसका श्रेय देवी माँ को दिया है। ऋग्वेद से उद्धृत यह मंत्र दैनिक नवरात्रि प्रार्थना और साधना का हिस्सा बन गया है। जो सरल और गहरा है।
या देवी सर्व भूतेषु का महत्व (Significance of Ya Devi Sarva Bhuteshu)
मंत्र देवी के गहरे पहलुओं को दर्शाता है जो अक्सर छूट जाते हैं। गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर के अनुसार, मंत्र पूरे ब्रह्मांड और समय में देवी की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। जिन चीजों, लोगों और स्थितियों को हम पसंद-नापसंद करते हैं, उनमें देवी की उपस्थिति के संदेश के साथ, मंत्र का उद्देश्य एक भक्त में अपरिवर्तनीय समभाव पैदा करना है। आइए समझें कि देवी हर जगह और हर समय कैसे मौजूद हैं।
- सर्वव्यापी: देवी प्रत्येक व्यक्ति में चेतना के रूप में विद्यमान हैं। ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहाँ देवी उपस्थित न हों।
- सभी रूपों में: प्रकृति और उसकी विकृतियाँ, सभी देवी के रूप हैं। सुंदरता, शांति, यह सब देवी के ही रूप हैं। अगर आप गुस्सा भी करते हैं, तो वह भी देवी ही हैं। अगर आप लड़ते हैं, तो वह भी देवी ही हैं।
- प्राचीन एवं नवीन: प्रत्येक क्षण चेतना से जीवंत है: हमारी चेतना ‘नित नूतन’ है, जो एक ही समय में प्राचीन और नवीन है। वस्तुएं या तो पुरानी होती हैं या नई, लेकिन प्रकृति में आप पुरानी और नई दोनों को एक साथ मौजूद पाएंगे। सूर्य पुराना भी है और नया भी है। एक नदी में हर पल ताजा पानी बहता रहता है, फिर भी वह बहुत पुरानी होती है। इसी प्रकार मानव जीवन भी बहुत प्राचीन है, लेकिन साथ ही नया भी है। तुम्हारा मन भी वही है।
या देवी सर्व भूतेषु
स्तोत्र और अर्थ (Ya Devi Sarva Bhuteshu Lyrics & meaning)
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में विष्णुमाया कहलाती हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्य भिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी सभी प्राणियों में चेतना के रूप में प्रतिबिम्बित होती हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में बुद्धि रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में निद्रा रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में भूख के रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु छाया-रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में छाया रूप में निवास करती हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार है,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में प्यास के रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में सहनशीलता के रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में मूल कारण रूप से स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषू लज्जा-रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में लज्जा रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु शांति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में शांति रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में श्रद्धा रूप से स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में मनोहरता और सौंदर्य के रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में सौभाग्य रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु व्रती-रुपेणना संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में वृत्ति रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृती-रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में स्मृति रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु दया-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में दया रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में संतोष रूप से स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में माता रूप में निवास करती हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु भ्राँति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त प्राणियों में मोह रूप में स्थित हैं,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।
इन्द्रियाणा मधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः॥
जो देवी समस्त लोकों में प्राणियों की इन्द्रियों को नियंत्रित करती हैं,
उनको नमस्कार है, जो समस्त प्राणियों में सदैव व्याप्त रहती हैं।
चितिरुपेण या कृत्स्नम एतत व्याप्य स्थितः जगत।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
(उसे नमस्कार है) जो चेतना के रूप में इस ब्रह्मांड में व्याप्त है और इसमें निवास करती है,
उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको नमस्कार है, उनको बार-बार नमस्कार है।