ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के आसपास महर्षि पतंजलि नामक एक ऋषि हुए; वे योग की प्राचीन प्रथाओं को व्यवस्थित करने वाले पहले व्यक्ति थे। वे योग के जनक माने जातें हैं और उनके 196 योग सूत्र आज योग अभ्यास का आधार बन गए हैं।
फिटनेस की आधुनिक धारणाओं ने योग को एक ऐसी क्रिया के समान मान लिया है जो केवल वजन कम करने, शरीर के विभिन्न भागों को सुडौल बनाने और माँसपेशियों के निर्माण में ही हमारी मदद करती है, जिससे इस समग्र जीवनशैली के बारे में हमारी समझ सीमित हो जाती है। इसका दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह है कि हम यह भूल गए हैं कि योग का वास्तविक उद्देश्य क्या है – शरीर, मन और आत्मा का सर्वांगीण विकास। यह हमारे लिए ज्ञान और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने का एक साधन है।
महाऋषि पतंजलि का अष्टांग योग (योग के आठ अंग) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर कहते हैं कि दिव्य चेतना और शाश्वत आनंद का अनुभव करने के लिए हमें योग के इन आठ अंगों का एक साथ विकास करना चाहिए।
पतंजलि द्वारा अष्टांग योग – योग के आठ अंग
योगांग अनुष्ठानाद शुद्धि क्षये ज्ञान दीप्तिर विवेक ख्याते:॥ (॥ सूत्र 28)
“योग के आठ अंगों के निरंतर अभ्यास से अशुद्धियाँ नष्ट हो जाती हैं और ज्ञान, विवेक का प्रकाश चमकता है।”
इस ज्ञान को पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
यम नियमासन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधयोsष्टावङ्गानि॥ (॥ सूत्र 29)
“यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि; ये आठ योग के अंग हैं।”
अष्टांग योग – योग के आठ अंग
आइए विस्तार से जानें कि इनमें से प्रत्येक अंग किससे संबंधित है।
1. यम – सामाजिक कर्तव्य
यम हमें वे दृष्टिकोण सिखाते हैं जिनका हमें उस पर्यावरण के संबंध में पालन करना चाहिए जिसमें हम रहते हैं। यह वे आचार संहिताएँ हैं जो हमें संयम का अभ्यास करना सिखाती हैं।
क. अहिंसा
अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्याग॥ (॥ सूत्र 35)
“जब कोई व्यक्ति अहिंसा में स्थापित हो जाता है, तो उसकी उपस्थिति में हिंसा समाप्त हो जाती है।”
सजगता से अहिंसा के मार्ग पर चलने का चुनाव करें, तथा विनाश की ओर झुकाव रखने वाले सभी इरादों को त्याग दें, क्योंकि यही इरादे आपके आधार और जड़ को नष्ट कर सकते हैं।
जब आप अहिंसा में निहित होते हैं, तो आपकी आभा आपके आसपास के लोगों को भी प्रभावित करती है। जब आप अहिंसा का अभ्यास करते हैं, तो आप भीतर से शांत हो जाते हैं, और जब आप भीतर से शांत हो जाते हैं, तो आप अहिंसा की ओर प्रवृत्त होते हैं। यह दो तरफा रास्ता है।
ख. सत्य
सत्य प्रतिष्ठायां क्रिया फला श्रययत्वम्॥ (॥ सूत्र 36)
“जब कोई व्यक्ति सत्य में स्थित हो जाता है तो कर्म का फल उसे अवश्य मिलता है।”
हमारे अंदर एक अपरिवर्तनशील गुण है और यम उसी को संदर्भित करता है। हमें केवल शब्दों में ही सत्य नहीं बोलना चाहिए। यह हमारे कार्यों, हमारे दिल और दिमाग और इरादे के माध्यम से ही होता है जो वास्तव में मायने रखता है। यह हमारे मूल की गहराई है जो अपरिवर्तनीयता की ओर अग्रसर होनी चाहिए। यही सत्य है।
ग. अस्तेय – चोरी न करना
अस्तेय प्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम्॥ (॥ सूत्र 37)
“जब चोरी न करने का नियम स्थापित हो जाता है, तो सभी रत्न (धन) व्यक्ति के पास आ जाते हैं।”
हमें किसी भी कार्य, कर्म या विचार से ऐसी कोई वस्तु हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए जो हमारे अधिकार में न हो। चोरी का मतलब केवल संपत्ति से नहीं है – बाह्य, बौद्धिक या भौतिक वस्तुएँ; इसका मतलब विचारों से भी है।
जब हम चोरी न करने का दृढ़ निश्चय कर लें और ईमानदार हों, तो धन अनायास ही आ जाएगा।
घ. ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभ:॥ (॥ सूत्र 38)
“ब्रह्मचर्य में स्थित होने पर शक्ति प्राप्त होती है।”
ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल अविवाहित जीवन ही नहीं होता। इसका अर्थ है अनंत में विचरण करना। जब हम ध्यान करते हैं, तो हम शरीर, मन और सभी इंद्रियों को भूल जाते हैं और अनंत चेतना में विचरण करते हैं। यह हमें हमारी विशाल प्रकृति से जोड़ता है। यह हमें शक्ति और उत्साह प्रदान करता है। इंद्रियों की सनक और कल्पनाओं में लिप्त न होना और अपने भीतर की अनंत चेतना के साथ एक होना हमें शक्तिशाली बना सकता है। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है।
ङ. अपरिग्रह – लालच न करना
अपरिग्रह स्थैर्ये जन्मकथन्ता संबोध:॥ (॥ सूत्र 39)
“अपरिग्रह में स्थित होने से सभी पूर्व और भविष्य के जन्मों का ज्ञान हो जाता है।”
अपरिग्रह का अर्थ केवल किसी भी वस्तु को इकट्ठा न करना या किसी से कुछ भी न लेना ही नहीं – अपितु अपने अस्तित्व में खुश और संतुष्ट रहना भी हैं, और यह समझना कि देना ही सबसे बड़ा सुख है। जब हम किसी को कुछ देते हैं, तो सकारात्मक कंपन (उर्जा) हमारे पास वापस आती हैं।
2. नियम – व्यक्तिगत नियम
शौच संतोषतपः स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि नियमा:॥ (॥ सूत्र 32)
“स्वच्छता, संतोष, तपस्या, स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण यह पाँच नियम हैं।”
नियम वे अभ्यास हैं जो हमें विकसित करते हैं और हमारे धर्म को बनाए रखने में हमारी सहायता करते हैं:
- शौच (स्वच्छता): शारीरिक शुद्धता बनाए रखना (स्नान के माध्यम से बाहरी शुद्धि और पीने के पानी के माध्यम से आंतरिक शुद्धि) और जिस वातावरण में हम रहते हैं उसकी शुद्धता के साथ साथ मानसिक शुद्धता – चिंताओं से मुक्त रहना।
- संतोष (खुशी, संतुष्टि): बिना शर्त के खुश रहना – चाहे कुछ भी हो – और अपने सच्चे स्वरूप को समझना।
- तप (तपस्या, आध्यात्मिक तपस्या): अनुशासन और तपस्या के माध्यम से नकारात्मक विचारों को जलाना ताकि हम अपने भीतर गहराई तक जा सकें, मौन में विश्राम कर सकें।
- स्वाध्याय (स्व-अध्ययन): स्वयं की बेहतर समझ प्राप्त करने के लिए शास्त्र पढ़ना साथ ही अनुभव और पढ़ने के माध्यम से भी सीखना।
- ईश्वर प्रणिधान (समर्पण या ईश्वर के प्रति समर्पण): जीवन को विशाल ब्रह्मांड के संदर्भ में देखना – प्रेम, सौंदर्य और सत्य से परिपूर्ण अनंत और विशाल चेतना में गोते लगाना और उसके प्रति समर्पण करना।
आधुनिक विश्व में यम और नियम किस प्रकार सार्थक हैं, इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें।
3. आसन – शारीरिक मुद्राएँ
स्थिरसुखमासनम्॥ (॥ सूत्र 46)
“वह मुद्रा जो स्थिर और आरामदायक है, आसन है।”
आसन शारीरिक मुद्राएँ हैं जो ध्यान के लिए शरीर को स्थिर करने में मदद करती हैं। यह सुनिश्चित करता है कि शरीर स्वस्थ और तंदुरुस्त है, साथ ही बीमारी और बेचैनी से मुक्त। शारीरिक रूप से स्वस्थ होना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें भीतर गोता लगाने और आंतरिक आत्म का पता लगाने के लिए तैयार करता है। शारीरिक स्तर पर संतुलन मानसिक, बौद्धिक और अंततः आध्यात्मिक स्तर पर संतुलन को सक्षम बनाता है।
4. प्राणायाम – साँस पर नियंत्रण
प्राण का अर्थ है जीवन शक्ति। श्वास तकनीकें जो हमारी जीवन शक्ति को बढ़ावा देती हैं, प्राणायाम कहलाती हैं। महाऋषि पतंजलि कहते हैं कि साँस को एक विशेष तरीके से रोकना और विभाजित करना तथा साँस की लय को बदलना, प्राणायाम कहलाता है। जब हम शरीर के विभिन्न भागों पर ध्यान देते हुए, गिनती के साथ लंबी साँस लेकर साँस की गति को रोकते हैं, तो इससे मन की अशुद्धियाँ साफ हो जाती हैं।
5. प्रत्याहार – इन्द्रियों को सजगता पूर्वक हटना
यह एक ऐसी अवस्था है जब इंद्रियाँ बाहरी वातावरण से नहीं जुड़तीं, बल्कि चेतना की ओर मुड़ जाती हैं। इस अवस्था में, इंद्रियों को नियंत्रित करना आसान होता है। हमारे पास पाँच आवरण या परतें हैं, पंचकोष, जो आंतरिक आत्मा या चेतना को घेरे रहते हैं:
- अन्नमय कोष – भोजन कोष
- प्राणमय कोष – श्वास का कोष
- मनोमय कोष – मन का कोष
- विज्ञानमय कोश – बुद्धि कोष
- आनंदमय कोष – आनंद का कोष
ध्यान के माध्यम से व्यक्ति कोषों में प्रवेश कर उनसे परे जा सकता है और अंततः चेतना से जुड़ सकता है, जो प्रत्याहार का उद्देश्य है।
धारणा और ध्यान का अक्सर समानार्थी के रूप में उपयोग किया जाता है। आइए देखें कि यह एक दूसरे की ओर कैसे ले जातें है।
6. धारणा
इसका मतलब है किसी एक खास वस्तु, विचार या जगह पर ध्यान देना और उसे वहीं स्थिर करना। कभी कभी लोग ऐसा करने के लिए मंत्र या साँस का उपयोग करते हैं। जब आप अपना मन किसी विशिष्ट बिंदु पर केंद्रित करते हैं, तो समय के साथ आपका मन डगमगाना बंद कर देता है; आप संघर्ष से मुक्त हो जाते हैं; यह एक अनूठा समय होता है जब आपके विचार और कार्य एकरूप होते हैं। इसलिए, आप धीरे धीरे और लगातार स्वयं को स्थिर करें और शान्त हो जाएँ, जैसे ही आप पल के साथ घुलमिल जाते हैं। जैसे ही आप क्षण के साथ एक हो जाते हैं, आप सहजता से ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं।
7. ध्यान
इस अवस्था में आप अपने मन को स्थिर होते हुए देखते हैं। ध्यान का एक परिणाम एकाग्रता है। ध्यान की अवस्था में आप गहन विश्राम भी प्राप्त करते हैं जो समाधि की ओर ले जाता है।
8. समाधि – स्वयं में लीन होना
यह चेतना की चरम अवस्था है। यह एक पारलौकिक विचार है। यहाँ आप केवल स्वयं के प्रति जागरूक होते हैं और अपने सच्चे स्वरूप – प्रेम, आनंद और शक्ति से जुड़े हुए हैं। यह वह अंतिम लक्ष्य है जिसे हम जीवन में प्राप्त करना चाहते हैं।
यदि आप लोग योग को केवल आसन के रूप में सोचते रहे हैं, तो हम आशा करते हैं कि इससे आपको केवल शारीरिक कल्याण के बजाय सम्पूर्ण कल्याण की ओर अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में मदद मिली होगी। योग के इन आठ अंगों से आप सीखेंगे कि अपने शरीर, इंद्रियों और मन को कैसे नियंत्रित करें। अपने आंतरिक स्व की ओर तब तक बढ़ें जब तक कि आप अंततः अपनी चेतना के संपर्क में न आ जाएँ – जहाँ आप अंतहीन, विशाल, अनंत हैं।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर की पतंजलि योग सूत्र पर टिप्पणियों के ज्ञान पत्रक पर और श्री श्री योग स्कूल के शिक्षक, प्रमोद तिमसिनिया के इनपुट के पर आधारित।