दिवाली क्यों मनाते हैं?
इतिहास में कभी कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हुईं हैं, उनके उपलक्ष्य में ही आज त्यौहार मनाये जाते हैं। हम क्रिसमस मनाते हैं क्योंकि उस दिन कुछ महत्त्वपूर्ण बात हुई थी। लोग ईद मनाते हैं क्योंकि भूतकाल में उसी दिन कुछ अच्छा हुआ था। इस प्रकार हम उत्सव मनाते हैं।
हर त्यौहार के पीछे कोई कहानी है या फिर उसका कोई ज्योतिषीय महत्त्व है। जैसे करवाचौथ पूर्णिमा के चौथे दिन होता है जिसमें महिलाएँ पूरा दिन अपने पति के कल्याण के लिए व्रत करती हैं और फिर उसके बाद उत्सव मनाती हैं व अच्छा भोजन करती हैं। यह प्रथा है और इसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं।
नरकासुर की कथा
इसी तरह, दिवाली जो ‘प्रकाश का त्यौहार’ है – उसके पीछे भी कुछ कहानियाँ हैं। इनमें से एक है कि इस दिन श्रीराम 14 साल के वनवास के बाद वापिस घर लौटे थे।
एक अन्य कहानी के अनुसार एक दुष्ट व्यक्ति जो सबको परेशान करता था – उसकी हार हो गयी और फिर उससे पूछा गया कि उसकी आखिरी इच्छा क्या है? तब उसने बोला कि जिस दिन पृथ्वी पर उसका आखिरी दिन हो, उस दिन पृथ्वी का प्रत्येक व्यक्ति दिया जलाए और अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर करके उसकी मृत्यु का उत्सव मनाये। देखिये, यह कितनी अच्छी इच्छा है! वह भी एक ऐसे इंसान की जो हिटलर की तरह था, लोगों को कष्ट देता था।
श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने उसे युद्ध में पराजित किया था। वह इतना शक्तिशाली था कि कोई भी पुरुष उसे परास्त नहीं कर पाया था लेकिन जब उसके सामने एक महिला आयी, तो उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। उसने सोचा, ‘यह महिला क्या कर सकती है?’ मगर वास्तव में महिला ने ही उसे परास्त कर दिया। कृष्ण की पहली पत्नी ने उसे हराया और उसके पीछे कृष्ण ही थे। उसका नाम ‘नरकासुर’ इसलिए पड़ा था क्योंकि वह जहाँ भी जाता था, वहाँ लोगों को कष्ट देकर उस जगह को नरक बना देता था। इसलिए मरते समय जब उससे पूछा गया, कि अब तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? तब उसने कहा, ‘मेरी आखिरी इच्छा है कि मेरी मृत्यु सबके जीवन में प्रकाश लाये। ’तो फिर सभी लोगों ने दिए जलाए, जितने हो सके उतने अधिक दिए जलाए, जीवन का उत्सव मनाया। सभी कड़वाहट भूलकर जीवन को उल्लासित होकर मनाया और इसी तरह दिवाली का जन्म हुआ। इसी तरह बहुत सी कहानियाँ हैं।
14 वर्ष के वनवास के पश्चात भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है दिवाली
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से हर्षित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारत के लोग प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है और असत्य की हार होती है।
कार्तिक अमावस्या के दिन समुद्र मंथन से हुआ था माँ लक्ष्मी का अवतरण, इसलिए दिवाली पर करते हैं माँ लक्ष्मी का पूजन
हर बार दीपावली का त्यौहार हिन्दी कैलंडर के अनुसार कार्तिक महीने की “अमावस्या” के दिन मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। माता लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इसलिए हर घर में दीप जलाने के साथ-साथ हम माता लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता से संकलित