भारतीय आध्यात्मिक इतिहास में शक्ति पीठों का बहुत महत्व है। निम्नलिखित लेख में, हमने भारत में और उसके आसपास के शक्ति पीठों से संबंधित सभी उचित जानकारियां प्राप्त करने की कोशिश की है। हमने शक्तिपीठों, उनके स्थान और वहाँ पहुंचने के बारे में सभी उपलब्ध जानकारी को संगठित करने का प्रयास किया है।

शक्तिपीठों से जुड़ी कहानी

यह माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने देवी आदि शक्ति और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया था। देवी आदि शक्ति प्रकट हुईं और शिव से अलग होकर ब्रह्मा को ब्रह्मांड के निर्माण में मदद की। ब्रह्मा बहुत प्रसन्न हुए और देवी आदि शक्ति को शिव को पुनः सौपने का निर्णय लिया। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने माता सती को अपनी बेटी के रूप में प्राप्त करने के लिए यज्ञ किया था। भगवान शिव से विवाह करने के संकल्प से माता सती को इस ब्रह्मांड में लाया गया था और दक्ष का यह यज्ञ सफल रहा।

भगवान शिव के अभिशाप से भगवान ब्रह्मा ने अपने पांचवें सिर को शिव के सामने अपने झूठ के कारण खो दिया था। दक्ष को इसी वजह से भगवान शिव से द्वेष था और भगवान शिव और माता सती की शादी नहीं कराने का निर्णय लिया था। हालांकि, माता सती भगवान शिव की ओर आकर्षित हो गईं और कठोर तपस्या कर अंत में एक दिन, शिव और माता सती का विवाह हुआ।

भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा से दक्ष ने यज्ञ किया। दक्ष ने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा शिव के सामने व्यक्त की। उन्होंने माता को रोकने की पूरी कोशिश की परंतु माता सती यज्ञ में चली गईं। यज्ञ में पहुँचने के पश्चात माता सती का स्वागत नहीं किया गया। इसके अलावा, दक्ष ने शिव का अपमान किया। माता सती अपने पिता द्वारा पति के किए गए अपमान को झेलने में असमर्थ थीं, इसलिए उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया।

अपमान और चोट से क्रोधित भगवान शिव ने तांडव किया और शिव के वीरभद्र अवतार ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और उसका सिर काट दिया। सभी मौजूद देवताओं के अनुरोध के बाद दक्ष को वापस जीवित किया गया और मनुष्य के सिर की जगह एक बकरी का सिर लगाया गया। दुख में डूबे शिव ने माता सती के शरीर को उठाकर, विनाश का दिव्य नृत्य किया। अन्य देवताओं ने विष्णु से इस विनाश को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। जिस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए। शरीर के विभिन्न हिस्से भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।

गुरुदेव से किसी ने पूछा कि यदि शिव एक व्यक्ति नहीं हैं और केवल एक तत्त्व हैं तो माता सती के शरीर के हिस्सों से इतने शक्ति पीठ (ऊर्जा के स्थान) क्यों बने हैं?

शक्ति पीठ का अर्थ है – ऊर्जा का एक स्थल।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

शक्ति पीठ वह जगह है जहाँ लोगों ने लंबे समय तक ध्यान किया है और वहाँ ऊर्जा पाई है। जब आप ध्यान करते और गाते हैं तो उस स्थान पर ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है। जब आप सकारात्मक स्थिति में होते हैं, न केवल आप, यहाँ तक कि खंभे, पेड़ और पत्थर सकारात्मक कंपनों को अवशोषित करते हैं। इसी प्रकार शक्ति पीठ का निर्माण हुआ।

शक्तिपीठ केवल कोई एक स्थान नहीं है, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के अनुसार, यह दैवीय शक्ति से ओत-प्रोत एक जगह है जहाँ पर ध्यान किया जा सकता है।

देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गई है और यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका,और बांग्लादेश, के कई हिस्सों में स्थित हैं।

कुछ महान धार्मिक ग्रंथ जैसे शिव पुराण, देवी भागवत, कल्कि पुराण और अष्टशक्ति के अनुसार चार प्रमुख शक्ति पीठों को पहचाना गया है, जो निम्नलिखित हैं:

1. कालीपीठ (कालिका)

कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह पीठ हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा है और निकटतम मेट्रो स्टेशन कालीघाट है। मंदिर का दौरा करने का सबसे अच्छा समय सुबह या दोपहर है।

2. कामगिरि – कामाख्या

असम के गुवाहाटी जिले में स्‍थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। गुवाहाटी, असम की राजधानी है और सभी प्रकार की यात्रा सुविधाओं से लेस है। यदि हम ट्रेन से जाते हैं और सीधे मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो हमें स्टेशन कामाख्या पर उतरना होगा। वहाँ से पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो मार्ग हैं एक पैदल मार्ग (लगभग 600 कदम) और एक बस मार्ग (कामाख्या द्वार से लगभग 3 किलोमीटर)।

3. तारा तेरणी पीठ

तारा तेरणी मंदिर को सबसे अधिक सम्मानित शक्ति पीठ और हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थान केंद्रों में से एक माना जाता है। यह माना जाता है कि देवी माता सती का स्तन कुमारी पहाड़ियों पर गिरा जहाँ तारा तेरणी पीठ स्थित है। ब्रह्मपुर मंदिर से 35 किमी, भुवनेश्वर से 165 किमी और पुरी से 220 किमी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन दक्षिण-पूर्व रेलवे पर बेरहमपुर है। 165 किमी दूर स्थित, भुवनेश्वर निकटतम हवाई अड्डा है, जहाँ से दिल्ली और कलकत्ता जैसे प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें ली जा सकती हैं।

4. विमला शक्तिपीठ

विमला मंदिर देवी विमला को समर्पित है। यह उड़ीसा राज्य के पुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर स्थित है। यह एक शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ देवी माता सती के पैर गिरे थे।

राज्य परिवहन विभाग द्वारा चलाए जा रहे मिनी बसों से भुवनेश्वर तक पहुँचा जा सकता है। पुरी का अपना रेलवे स्टेशन है जो इसे कोलकाता, नई दिल्ली, अहमदाबाद और विशाखापत्तनम जैसे शहरों से जोड़ता है, जबकि भुवनेश्वर भी ज्यादातर प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर में स्थित है जो 56 किमी की दूरी पर है।

अन्य प्रमुख शक्तिपीठों की सूची इस प्रकार है:

1. किरीट – विमला

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। मुर्शिदाबाद कोलकाता से 239 किलोमीटर की दूरी पर है और वहाँ से यहाँ पहुंचने में लगभग 6 घंटे लगते हैं।

2. वृंदावन – उमा

उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन तहसील में माता के बाल के गुच्छे गिरे थे। वृंदावन, आगरा से 50 किलोमीटर और दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा है जो कि 12 किमी की दूरी पर है।

3. करवीरपुर या शिवहरकर

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित यह शक्तिपीठ है, जहाँ माता की आँखें गिरी थीं। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव हैं। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराणों में प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है। कोल्हापुर सड़क, रेलवे और वायु मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। निकटतम बस स्टैंड कोल्हापुर में है। हैदराबाद, मुम्बई आदि जैसे विभिन्न शहरों से कई सीधी बसें हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन कोल्हापुर में है।जहाँ

4. श्रीपर्वत – श्रीसुंदरी

कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। जुलाई से सितंबर तक सड़क से जाने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मूतवी है जो लद्दाख से 700 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा लेह में है।

5. वाराणसी – विशालाक्षी

उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान की बाली गिरी थी। वाराणसी के दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं: शहर के केंद्र में वाराणसी जंक्शन, और मुगल सराय जंक्शन। शहर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। वाराणसी हवाई अड्डा शहर के केंद्र से लगभग 25 किलोमीटर दूर है।

6. सर्वेशेल या गोदावरीतीर

आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर पर माता का बायां गाल गिरा था। निकटतम रेलवे स्टेशन भी बहुत कम दूरी पर है। लोग रेलवे स्टेशन से स्थानीय बस सेवा का प्रयोग कर सकते हैं। राजमुंदरी रेलवे स्टेशन, आंध्र प्रदेश के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है। इस मंदिर के निकट प्रमुख शहरों में हवाई अड्डे की सेवाएं उपलब्ध हैं। राजमुंदरी हवाई अड्डा मधुरपाड़ी के पास स्थित है। वह शहर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है।

7. विरजा – विरजा क्षेत्र

यह शक्ति पीठ उड़ीसा के उत्कल में स्थित है। यहाँ पर माता सती की नाभि गिरी थी। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओड़िशा के अन्य छोटे शहरों से बस का लाभ लेने से पर्यटक स्थल पर पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन जाजपुर केंझार रोड, रेलवे स्टेशन है। निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है।

8.‌ मानसा – दाक्षायणी

तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। इसी जगह पर माता सती का दायां हाथ गिरा था। भारतीय श्रद्धालुओं की एक सीमित संख्या को कैलाश मानसरोवर हर साल यात्रा करने की अनुमति है। भारतीय पक्ष से कैलाश पर्वत तक पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं। उनका उल्लेख नीचे दिया गया है: मार्ग 1: लिपुलख पास मार्ग, दिल्ली में 3-4 दिन के प्रवास के साथ शुरू होता है। मार्ग 2: नाथु ला पास मार्ग यात्रा, दिल्ली से 3-4 दिन के प्रवास के साथ शुरू होती है।

9. नेपाल – महामाया

नेपाल के पशुपतिनाथ में स्थित इस शक्तिपीठ में माँ सती के दोनों घुटने गिरे थे। यहां पहुंचने के कई साधन हैं। श्रद्धालु बस, ट्रेन और हवाई रास्ते द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं।

10. हिंगलाज

पकिस्तान, कराची से 125 किमी उत्तर पूर्व में हिंगला या हिंगलाज शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता सती का सर गिरा था। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहाँ वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं।

11. सुगंधा – सुनंदा

बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंधा का शक्तिपीठ जहाँ माता सती की नासिका गिरी थी। भारत से जाने वाले लोगों को इस तीर्थ यात्रा के लिए वीजा प्राप्त करना होगा। श्रद्धालु वायु, समुद्र या सड़क के माध्यम से इस शक्तिपीठ तक पहुंच सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए बरीयाल शहर में एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

12. कश्मीर – महामाया

कश्मीर के पहलगांव जिले के पास माता का कंठ गिरा था। इस शक्तिपीठ को महामाया के नाम से जाना जाता है। जम्मू और श्रीनगर सड़क के माध्यम से इससे जुड़े हुए हैं। यात्रा के इस भाग के लिए बसें उपलब्ध की जा सकती हैं। जम्मू और श्रीनगर तक पहुँचने के लिए हवाई रास्ते का भी प्रयोग किया जा सकता है।

13. ज्वालामुखी – सिद्धिदा (अंबिका)

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में माता सती की जीभ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ज्वालाजी स्थान कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी दक्षिण में स्थित है। धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है। मनाली, देहरादून और दिल्ली आदि से धर्मशाला के लिए कई निजी बसें उपलब्ध कराई जाती हैं।

14. जलंधर – त्रिपुरमालिनी

पंजाब के जलंधर छावनी के पास देवी तालाब है जहाँ माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था। यह निकटतम रेलवे स्टेशन से लगभग 1 किलोमीटर दूर है और शहर के केंद्र में स्थित है।

15. वैद्यनाथ – जयदुर्गा

झारखंड में स्थित वैद्यनाथधाम पर माता का हृदय गिरा था। यहाँ माता के रूप को जयमाता और भैरव को वैद्यनाथ के रूप से जाना जाता है। निकटतम रेलवे स्टेशन देवघर है जो 7 किमी की शाखा लाइन का एक टर्मिनल स्टेशन है, जो कि हावड़ा-दिल्ली मुख्य लाइन पर जसीडिह जंक्शन से शुरू हो रहा है।

16. गंडकी – गंडकी

नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ है जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। काठमांडू से पोखरा और फिर पोखरा से जेमॉम हवाई अड्डे तक जाया जा सकता है। वहाँ से मुक्तिनाथ शक्तिपीठ तक जीप ली जा सकती है। कांठमांडू में एक हवाई अड्डा है। इस हवाई अड्डे में दोनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रावधान है।

17. बहुला – बहुला (चंडिका)

बंगाल के वर्धमान जिले से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर बाहुल शक्तिपीठ स्थापित है जहाँ माता सती का बायां हाथ गिरा था। देश के अन्य प्रमुख शहरों से कटवा तक कोई नियमित उड़ानें नहीं हैं। निकटतम हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र हवाई अड्डा है। कटवा नियमित ट्रेनों के माध्यम से देश के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

18. उज्जयिनी – मांगल्य चंडिका

बंगाल में वर्धमान जिले के उज्जय‍िनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। निकटतम रेलवे स्टेशन गसकारा स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 16 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा दमदम हवाई अड्डा है। वहाँ से शक्ति पीठ तक पहुंचने के लिए कार या ट्रेन उपलब्ध की जा सकती है।

19. त्रिपुरा – त्रिपुर सुंदरी

त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधा किशोरपुर गांव पर माता का दायां पैर गिरा था। निकटतम हवाई अड्डा अगरतला में है, जहाँ से आप आसानी से सड़क के रास्ते मंदिर पहुंच सकते हैं। निकटतम रेल प्रमुख एन ए ई रेलवे पर कुमारघाट है। यह अगरतला से 140 किमी की दूरी पर है। यहाँ से आप मंदिर तक पहुंचने के लिए बस या टैक्सी चुन सकते हैं।

20. चट्टल – भवानी

बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगांव) जिले के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। रेल गाड़ियां और बसें, चटगांव से, ढाका से (6 घंटे), सिलेहट (6 घंटे) और अन्य शहरों से उपलब्ध हैं। यहाँ एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है।

21. त्रिस्रोता – भ्रामरी

बंगाल के सालबाढ़ी ग्राम स्‍थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। हम हवा या रेल द्वारा पंचागढ़ तक नहीं पहुंच सकते। ढाका और पंचगढ़ के बीच सड़क की दूरी 344 कि.मी. है। हिनो-कुर्सी कोच सेवाएं (निजी क्षेत्र), ढाका के गब्तपोली, शेमॉली और मीरपुर रोड बस टर्मिनलों से, पंचागढ़ शहर तक उपलब्ध हैं। यहाँ पहुंचने में लगभग 8 घंटे लगते हैं।

22. प्रयाग – ललिता

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के संगम तट पर माता की हाथ की उंगली गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं। प्रयागराज और ललिता देवी मंदिर (शक्तिपीठ) के बीच ड्राइविंग दूरी लगभग 3 किलोमीटर है।

23. जयंती – जयंती

यह शक्तिपीठ आसाम की जयंतिया पहाड़ी पर स्थित है जहाँ देवी माता सती की बाईं जंघा गिरी थी। यहाँ देवी माता सती की जयंती और भगवान शिव की कृमाशिश्वर के रूप में पूजा की जाती है।

24. युगाद्या – भूतधात्री‌

पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है। हमें निगम स्टेशन से बर्दवान-कटोआ रेलवे लेनी चाहिए।

25. कन्याश्री – सर्वाणी

कन्याश्रम में माता की पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी के नाम से जाना जाता है। कन्याश्राम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है। कन्याकुमारी दक्षिण भारत के सभी शहरों से सड़क के मार्ग से जुड़ा हुआ है। कन्याकुमारी ब्रॉड गेज द्वारा त्रिवेंद्रम, दिल्ली और मुंबई से जुड़ा हुआ है। तिरुनेलवेली (85 किमी) अन्य नजदीकी रेलवे जंक्शन है जिससे सड़क मार्ग द्वारा नागरकोइल (19 किमी) तक पहुंचा जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा त्रिवेंद्रम (87 किमी) में स्थित है।

26. कुरुक्षेत्र – सावित्री

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में माता के टखने गिरे थे। इस शक्तिपीठ को सावित्री के नाम से जाना जाता है। थानेसर यानी पुराना कुरुक्षेत्र, अब कुरुक्षेत्र जिले में ही है एवं दिल्ली से 160 किलोमीटर और चंडीगढ़ से 90 किलोमीटर दूर है। यह पिपली से 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 1 (एक महत्वपूर्ण सड़क जंक्शन) पर है। यह कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर और पिपली बस स्टैंड से 7 किलोमीटर दूर है।

27. मणिदेविक – गायत्री

मनीबंध, अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में पुष्कर के पास गायत्री पहाड़ के निकट स्थित है जहाँ माता की कलाई गिरी थी। अजमेर से ट्रेन और बस सुविधा उपलब्ध हैं। वहाँ से, हमें पुष्कर पहुंचने के लिए टैक्सी या रिक्शा मिल सकता है। पुष्कर से निकटतम हवाई अड्डा जयपुर में है।

28. श्रीशैल – महालक्ष्मी

बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। बांग्लादेश को दुनिया के किसी भी हिस्से से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय हवाई अड्डा ढाका में है, जो शहर से 20 किमी की दूरी पर है।

29. कांची – देवगर्भा

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर, देवी स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में जानी जाती है, जहाँ माता का श्रोणि (पेट का निचला हिस्सा) गिरा था।

30. पंचसागर – वाराही

पंचासागर शक्तिपीठ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है जहाँ माता सती के निचले दांत गिरे थे। निकटतम हवाई अड्डा इलाहाबाद में है और यहाँ तक राष्ट्रीय उड़ानें उपलब्ध हैं। अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए, दिल्ली निकटतम हवाई अड्डा है। निकटतम रेलवे स्टेशन वाराणसी रेलवे स्टेशन है। दिल्ली, अहमदाबाद, पटना और अन्य प्रमुख शहरों से सड़क द्वारा वाराणसी पहुँचा जा सकता है।

31. करतोयातट – अपर्णा

अपर्णा शक्तिपीठ एक ऐसी जगह है जहाँ देवी माता सती की बाईं पायल गिरी थी। यहाँ देवी की अपर्णा या अर्पान के रूप में पूजा की जाती है जो कि कुछ भी नहीं खातीं और भगवान शिव को बैराभा का रूप मिला। भवानीपुर गांव करवतया नदी के किनारे पर है, शेरपुर (सेरापुर) से 28 किमी। हम ढाका से भानापुर जामुना ब्रिज तक जा सकते हैं। सिराजगंज जिले में चांदिकोना गुजरने के बाद, हम घोगा बोट-टूला बस स्टॉप पर पहुंचते हैं, जहां से भवानीपुर मंदिर पास है।

32. विभाष – कपालिनी

पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर स्थान पर माता के बाएं टखने गिरे थे। यह कोलकाता से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर है, और बंगाल की खाड़ी के करीब रून्नारयन नदी के तट पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन तमलुक है।

33. कालमाधव – देवी काली

मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी के पास माता का बायां नितंब गिरा था। शाहडोल, उमरिया, जबलपुर, रीवा, बिलासपुर, अनुपपुर और पेंद्र रोड से अमरकंटक शहर तक बस सुविधा उपलब्ध है। निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर (228 के.एम.) और रायपुर (230 कि.मी.) है।

34. शोणदेश – नर्मदा (शोणाक्षी)

मध्यप्रदेश के अमरकंटक जिले में स्थित नर्मदा के उद्ग्म पर माता का दायां नितंब गिरा था। शाहडोल, उमरिया, जबलपुर, रीवा, बिलासपुर, अनुपपुर और पेंद्र रोड से अमरकंटक शहर तक बस सुविधा उपलब्ध की जा सकती है। निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर (228 के.एम.) और रायपुर (230 कि.मी.) है।

35. रामगिरि – शिवानी

उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां स्तन गिरा था। चित्रकूट के लिए निकटतम रेल प्रमुख चित्रकूट धाम (11 किलोमीटर) झांसी-माणिकपुर मुख्य लाइन पर है। चित्रकूट बांदा, झांसी, महोबा, चित्रकूट धाम, हरपालपुर, सतना और छतरपुर के साथ सड़क से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो (175 किमी) में है। मन्दाकिनी नदी के तट पर चित्रकूट के 2 किमी दक्षिण में स्थित जानकी सरोवर नाम का एक पवित्र तालाब, शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। कुछ लोग इसे राजगिरि (आधुनिक राजगीर) कहते हैं। यह एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थान है। राजगीर के गिद्ध के पीक (ग्रीधकोटा / ग्राध्रुका) को शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है।

36. शुचि – नारायणी

तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता के ऊपरी दांत गिरे थे। कन्याकुमारी तक पहुंचने के लिए रेलवे सबसे सामान्य साधन है। कन्याकुमारी से सुचितंद्र मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय परिवहन की आवश्यकता होती है। निकटतम हवाई अड्डा त्रिवेन्द्रम में है।

37. प्रभास – चंद्रभागा

गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। वायुमार्ग के संदर्भ में, दोनों अंतर्राष्ट्रीय और  राष्ट्रीय हवाईअड्डे जूनागढ़ के पास स्थित हैं। देश के हर हिस्से से ट्रेनें इस शहर की तरफ आती हैं। कई निजी बस सेवाएं हैं जो विभिन्न शहरों से जूनागढ़ तक आती हैं।

38. भैरवपर्वत – अवंती

मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ऊपरी ओष्ठ गिरे थे। उज्जैन भारत के सभी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और लोग यहाँ आने के लिए परिवहन के सभी साधनों का उपयोग कर सकते हैं। निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में है और यह 52 किलोमीटर की दूरी पर है। निकटतम रेलवे स्टेशन उज्जैन में ही है।

39. जन्मस्थान – भ्रामरी

बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर माता का दायां कंधा गिरा था। रेल और सड़क परिवहन देश के इस हिस्से में आने के सबसे सामान्य साधन हैं। यद्यपि इस भाग के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है, इसलिए तीर्थयात्रियों को यहाँ तक पहुँचने के लिए ट्रेन बदलने की जरूरत है। हावड़ा एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो खानाकुल से लगभग 81 किलोमीटर की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता में है, और इस हवाई अड्डे पर दोनों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रावधान है।

41. मिथिला – उमा (महादेवी)

भारत-नेपाल की सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां कंधा गिरा था। निकटतम हवाई अड्डा पटना में है। निकटतम रेलवे स्टेशन जनकपुर स्टेशन है। मिथिला – उमा देवी शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए कई सार्वजनिक और निजी वाहनों का प्रयोग किया जा सकता है।

42. नालहाटी – कालिका

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में माता की स्वर रज्जु गिरी थी। निकटतम बस स्टैंड नालहाटी बस स्टैंड है और निकटतम रेलवे स्टेशन नालहाटी जंक्शन है। निकटतम हवाई अड्डा,दमदम कोलकाता में स्थित है।

43. देवघर – बैद्यनाथ

झारखंड के बैद्यनाथ में जयदुर्गा मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ माता सती का हृदय गिरा था। मंदिर को स्थानीय रूप से बाबा मंदिर / बाबा धाम कहा जाता है। परिसर के भीतर, जयदुर्गा शक्तिपीठ बैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के ठीक सामने मौजूद है। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा-पटना-दिल्ली लाइन से जसीडिह (10 किमी) है। निकटतम हवाईअड्डे – रांची, गया, पटना और कोलकाता में हैं।

44. कर्णाट – जयादुर्गा

कर्णाट शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है जहाँ माता सती के दोनों कान गिरे थे। यहाँ देवी की जयदुर्गा या जयदुर्ग और भगवान शिव की अबिरू के रूप में पूजा की जाती है। निकटतम हवाई अड्डा गगल हवाई अड्डा है। यह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित है, जहाँ से कांगड़ा केवल 18 किलोमीटर है।

45. यशोर – यशोरेश्वरी

यशोर स्थान पर माता के हाथ की हथेली गिरी थी। यह ईश्वरपुर, सातखिरा जिला, बांग्लादेश में स्थित है। निकटतम हवाई अड्डा बांग्लादेश की राजधानी ढाका में स्थित है, और इस हवाई अड्डे पर दोनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रावधान है। दोनों देशों के बीच कोई रेल मार्ग नहीं है। ऐसे में कुछ बसें हैं जो भारत के प्रमुख शहरों से इस पवित्र स्थल तक जाती हैं।

46. अट्टहास – फुल्लरा

पश्चिम बंगाल के अट्टहास स्थान पर माता का निचला ओष्ठ गिरा था। यह कोलकाता से 115 किमी दूर है।अहमपुर कटवा रेलवे स्टेशन से लगभग 12 किमी दूर है। नेताजी सुभाष चंद्र हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जो कि लाहपुर से लगभग 196 किलोमीटर दूर है।

47. नंदीपूर – नंदिनी

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में माता का गले का हार गिरा था। बीरभूम में विभिन्न स्थानों से शुरू होने वाली कई सीधी बसें हैं। यह शक्तिपीठ स्थानीय रेलवे स्टेशन से केवल 10 मिनट की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

48. लंका – इंद्राक्षी

श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। यह पीठ, नैनातिवि (मणिप्लालम) श्रीलंका के जाफना से 35 किलोमीटर, नल्लूर में है। रावण (श्रीलंका के राजा) और भगवान राम ने भी यहाँ पूजा की थी।

49. विराट – अंबिका

यह शक्तिपीठ राजस्थान में भरतपुर के विराट नगर में स्थित है जहाँ माता के बाएं पैर कि उंगलियां गिरी थीं। निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है और राष्ट्रीय उड़ानों के साथ-साथ यहाँ से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी उपलब्ध हैं। भरतपुर रेलवे स्टेशन पर कई सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। भरतपुर रेलवे स्टेशन से अंबिका शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए स्थानीय ट्रेन से जाना पड़ता है।

50. सर्वानंदकरी

बिहार के पटना में माता सती की दायीं जांघ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वानंदकरी के नाम से जाना जाता है। निकटतम हवाई अड्डा जय प्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो शक्तिपीठ से 8 किलोमीटर दूर स्थित है।

51. चट्टल

यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में सूचीबद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि माता सती का दाहिना हाथ यहाँ गिरा था। चट्टल शक्तिपीठ चटगांव, सताकुंडा स्टेशन, बांग्लादेश में स्थित है।

बांग्लादेश में सड़क परिवहन सबसे आम साधन है यद्यपि इस भाग के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है। इसलिए तीर्थ यात्रियों को चटगांव से यहाँ तक पहुँचने के लिए ट्रेन बदलने की जरूरत है। निकटतम हवाई अड्डा शाह अमानत अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इस शक्ति पीठ को देखने के लिए भारतीय तीर्थ यात्रियों को वीज़ा के लिए आवेदन करना होगा।

सुगंध

सुगंध शक्तिपीठ देवी सुनंदा को समर्पित एक मंदिर है। यह बांग्लादेश से, 10 किलोमीटर उत्तर बुलिसल के शिखरपुर गांव में स्थित है। यह कहा जाता है कि माता सती की नाक यहाँ गिरी थी। बरिएसल सिटी में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। झालकाटी रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है।

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