यह बहुत अच्छा होगा की हम बच्चों को इस कठिन दौर में खुशी के वातावरण मे बड़ा करें, हम उन्हें प्यार देने के अतिरिक्त, उनके लिए ऐसा कर सकते है जबकि ध्यान करने के लिए उनकी उम्र बहुत छोटी है?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: आप बस उनके साथ खेलो । हर समय उनका अध्यापक बनके उन्हें पढ़ाने की कोशिश न करें। बल्कि आप उनसे सीखें और उनकी सराहना करें। बच्चो के साथ ज्यादा गंभीर न हों ।
मुझे याद है बचपन में जब पिताजी शाम को घर आते थे तो बस ताली बजाते थे और हमें हसाते थे। माँ बहुत सख्त थी और पिताजी ताली बजाते और हम सबको हँसाते खाने से पहले। सब लोग साथ में बैठ के खाना खाते थे। जब पिताजी ताली बजाते तो घर के सब लोग खाने के लिए बैठ जाते थे।
इसलिए बच्चो को हर समय पढ़ाने की कोशिश न करें , उनके साथ खेलें, यह सबसे अच्छी बात है।
यदि हम हर समय उनके पीछे डंडा लेके एक ही बात बोलेंगे,“ यह मत करो, वह मत करो”तो यह अच्छा नहीं है।
बच्चों के साथ हमें ज्यादा खेलना चाहिए और उन्हे कई बार कहानियाँ भी सुनानी चाहिए ।जब हम बच्चे थे तो हमें बहुत सी कहानियाँ सुनाई जाती थी । हर दिन एक नयी कहानी। बच्चों को मूल्यों के साथ बड़ा करने का बहुत अच्छा तरीका है। यदि हम बच्चो को रोचक कहानियाँ सुनाएँगे तो वे दिन भर टीवी के सामने नहीं बैठेंगे। बच्चो के लिए कई सारी कहानियाँ है जैसे की पंचतंत्र । हमारे एक वॉलंटियर है जो पंचतंत्र के कार्टून बनाते है , जल्द ही ये प्रकाशित होंगे ।
इसलिए माता पिता के लिए बच्चों के साथ बैठना अच्छा है। कहानी जिसमें अच्छी शिक्षा दी गयी हो वो बच्चो को बतानी चाहिए । वह आधे एक घंटे का समय जो आपने बच्चो के साथ बिताया वह बहुत है।
उनको 5-6 घंटे तक अपने साथ बैठा के परेशान न करें। 45 मिनट का गुणवत्ता वाला समय अच्छा है और यह समय दिलचस्प होना चाहिए। उनको आपके पास आ कर कहानी सुनने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
हमारे एक अंकल थे, जो बहुत ही मोटे थे, उनका रंग गोरा था, उनका मुह गोल था, वो हर रविवार हमारे यहाँ आते थे और हमें कहानियाँ सुनाते थे। हम सब उनके साथ बैठके अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनते थे, अंत में वे कुछ कौतुहल रहने देते थे।
हमारे आस पास कुछ ऐसे व्यक्ति होते है, जो बहुत ही रोचक कहानियां सुनाते हैं। हमारा अपना बच्चा भी जाकर दूसरे बच्चों को कहानियाँ सुना सकता है। उनके माता– पिता भी बहुत खुश होंगे। उनको बच्चों के साथ बैठने के लिए कोई मिल जायेगा। यह आपका एक सेवा प्रोजेक्ट भी हो सकता है।
इस प्रकार से वह मानवीय स्पर्श आवश्यक है।
आज के समय में बच्चे सब सुबह उठते है वे बस टीवी के सामने बैठ जाते है, बच्चे टीवी के सामने बैठ के बस चैनल बदलते रहते हैं , उनकी माँ बच्चो को बोलती है, “आओ नाश्ता कर लो”, और बच्चे सुनते ही नहीं है, कई बार माँ को बच्चो को नाश्ता टीवी के सामने ही देना पड़ता है, इस तरह व्यवहार ठीक नहीं है। आप इसके बारे में क्या सोचते है? आप में से कितने लोग इस बात से सहमत है?
एक घंटे से ज़्यादा बच्चो को टीवी नहीं देखने देना चाहिए। टीवी देखने का समय सीमित चाहिए, नहीं तो बच्चो में अटेंशन डेफिश्यंसी सिंड्रोम हो जाती है, मस्तिष्क में इसके इतना गहरा प्रभाव होता है, फिर उसमें और कोई भी बात नहीं दर्ज होती, और बाद में बच्चे और भी जड़ हो जाते हैं। वे और किसी भी बात पर ध्यान नहीं दे पाते।
शुक्र है, जब हम बच्चे थे तो टेलीविजन नहीं था। कितने बच्चो का बचपन बिना टीवी के बीता है? हम सभी टीवी के बिना बड़े हुए है, इसलिए अधिक टेलीविजन के साथ बड़े होने वाले बच्चे उतने बुद्धिमान नहीं लगते। आपको एक दिन में टेलीविजन को अधिकतम दो घंटे तक ही सीमित रखना चाहिए।
बड़ो के लिए भी एक से दो घंटे टीवी देखना बहुत है। इससे ज़्यादा टीवी देखना बड़ों के लिए भी बहुत ज्यादा हो जाता है, टीवी देखने से मस्तिष्क की सभी कोशिकाएँ इतनी थक जाती है की वो कुछ और समझ ही नहीं पाती ।
बहुत बार लोग बोलते है की गुरुदेव ये बहुत अच्छा है, परंतु मैं इसको ज्यादा नहीं देख सकता, कुछ समय बाद ही मन थक जाता है।
मुझे आश्चर्य है कि लोग सप्ताह में दो से तीन फिल्में कैसे देखते हैं। वास्तव में हम मस्तिष्क की कोशिकाओं को ख़त्म कर रहे हैं, मैं आपको बताता हूँ।
उन लोगो को देखिये जो सिनेमा देख के बाहर आते है, क्या आपको उनमे ऊर्जा दिखाई देती है, क्या उनके चेहरे पर प्रसन्नता नज़र आती है? यह जरूर देखे कि किस तरह लोग सिनेमा हाल में जाते है और जिस तरह बाहर आते है।
यदि आपने ध्यान नहीं दिया है, तो बस किसी मूवी थिएटर के बाहर खड़े हो जाइए। आपको देखना चाहिए कि लोग थिएटर में कब जा रहे हैं और कब बाहर आ रहे हैं। आपको साफ फर्क नजर आएगा.
आपमें से कितने लोगों ने इस पर ध्यान दिया है? यहां तक कि आप में भी। किसी भी मनोरंजन बहलाव आपको ऊर्जावान बनाना चाहिए, लेकिन फिल्में देखने के साथ ऐसा नहीं होता है।
मान लीजिये की आप एक शो देखने गए है, यह कुछ बेहतर है, आप इतने थक नहीं जाते, आप कोई संगीत कार्यक्रम में गए तो भी आप इतना नहीं थकते। कुछ थकान तो होती है पर उतनी नहीं, क्या आपने कभी इस बात पे ध्यान दिया है?
और जब आप सत्संग में आते है, तो यह बिलकुल उल्टा हो जाता है, जब हम सत्संग में आते है हम ऊर्जा से भर जाते है।
क्या बच्चों को डरावनी कहानियाँ सुनानी चाहिए, क्योंकि कुछ जर्मन कहानियां जो डरावनी है उनमे यह बताया गया है की बच्चो को ये नहीं बतानी चाहिए?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: डरावनी कहानियाँ कुछ मात्रा में बतानी चाहिए। मान लीजिये की छोटे बच्चों को डरावनी कहानियाँ नहीं सुनाई गयी, और जब वे बड़े हुए तो उन्हें डरावनी कहानियों के बारे में जानकारी हुई, तो वे उनसे और अधिक डर जाएंगे, और वे कमजोर बन जाएंगे।
और यदि उन्हें बहुत अधिक डरावनी कहानियाँ सुनाई जाएं तो वो डर जाएंगे। दोनों। थोड़ी बहुत डरावनी हो सकती है पर ज्यादा नहीं, खास कर की विडियो गेम्स।
मुझे ऐसा लगता है की विडियो गेम्स में हिंसा नहीं होनी चाहिए, बच्चे उसमें गोलियां चलाते हैं और उनको लगता है की ये बस एक खेल है, और फिर वे असली जिंदगी में लोगो को मारना शुरू कर देते हैं उनको असल जिंदगी और वर्चुअल जिंदगी में फर्क नहीं समझ आता, यह भी एक परेशानी है।
इसलिए मेरे अनुसार बच्चो को हिंसक विडियो गेम्स नहीं देने चाहिए।
क्या सभी रिश्ते पुराने कर्मा पे आधारित होते है?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: हाँ।
क्या आप जानते है की कभी कोई आत्मा जिससे इस धरती पे जन्म लेना होता है तब वह एक पुरुष और एक महिला को चुनता है, और उनके बीच एक आकर्षण बनता है। फिर यह दो लोग पास आते है, और जिस क्षण पहला बच्चा होता है तो प्यार कम होने लगता है।
आप में से कितने लोगों ने यह बात होते हुए देखी है?
पहले बच्चे के बाद उस चेतना का काम हो जाता है, वह इस दुनिया में आ चुका है। फिर उससे इस बात की परवाह नहीं होती की माता पिता क्या कर रहे हैं, इसलिए अचानक से पहले बच्चे के बाद दंपत्तियों में आकर्षण कम हो जाता है।
यह हमेशा सबके साथ नहीं होता पर कुछ लोगो के साथ ये अक्सर होता है। कई बार यह तीसरे या चौथे बच्चे के बाद होता है। अचानक दोनों एक साथ नहीं रह पाते, क्योंकि दोनों व्यक्तियों को उस आत्मा द्वारा इकट्ठे लाया गया था, जो इस दुनिया में आना चाहती थी।
इसलिए यह होता है, लेकिन हमेशा नहीं। आप कह सकते हैं, कि लगभग 30% लोगों में यह होता है, और अंत में तलाक इसलिए होता है क्योंकि उनकी वो एक नहीं दूसरे से बिलकुल अलग होते है, उनका कोई मेल नहीं होता, और फिर इस बात का आभास होता है कि, ‘’हम तो जीवनसाथी थे, फिर यह क्या हुआ, हम दोनों बिलकुल अलग है और हमारा मिलान नहीं हो सकता।
ये बात सामने आती है।
जीवन ऐसा ही है, दोस्त दुश्मन बन जाते है और दुश्मन दोस्त बन जाते है।
आपने किसी के साथ अच्छा नहीं किया और वे लोग आपके साथ अच्छा व्यवहार करने लगते है, इसलिए दोस्त या दुश्मन यह माने नहीं रखता। आपका जीवन कर्म के सिद्धान्तो पर निर्भर है, इसलिए अपने दोस्तों और दुश्मनों को एक ही जगह क्योंकि दस साल की दोस्ती दुश्मनी में बदल सकती है, और दुश्मन दोस्त बन सकता है, और एक दुश्मन आपका दोस्त बन सकता है किसी भी समय पर। ये आप पर और आपके कर्म पर निर्भर करता है।
अपने प्रियजनों के मृत्यु को कैसे स्वीकार करें?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: समय के साथ हो जाता है, इसको स्वीकार करने की कोशिश न करें और न ही कुछ करें। जो भी आपको लग रहा है वह समय के साथ ठीक हो जाएगा, समय सभी जख्मों को भर देता है, जैसे जैसे समय बीतता है वह आपको इससे दूर ले जाता है, इसलिए कुछ करने की कोशिश मत कीजिये, समय इसका ध्यान रखेगा।
जागो और देखो की एक दिन सभी ने जाना है, उन्होने आपसे पहले उड़ान भरी आप बाद वाली उड़ान भरेंगे।
इसलिए जो लोग जा चुके है उन्हे बोलें, कुछ साल बाद हम आपको वहीं मिलेंगे, अभी के लिए अलविदा। आप उन्हें बाद में एक अलग स्थान पे देखेंगे।
मेरा कोई परिवार नहीं है, मैं क्या कर सकता हूँ जिससे मुझे अकेलापन महसूस न हो?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: आओ। मैंने तुमको इतना बड़ा परिवार दिया है, ऐसा परिवार जो सच में तुम्हारा ध्यान रखता है।
यह कभी मत सोचो की तुम्हारा परिवार नहीं है, इसलिए मैं हर साल क्रिसमस और नए साल पे यहाँ आता हूँ। नहीं तो मैं यहाँ क्यों आता?
आप को खुश करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: आप स्वयं खुश रहो और दूसरों को भी खुश रखो।
आप को मुझे खुश करने का प्रयास नहीं करना। मैं तो खुश ही हूँ,पर मैं और भी ज्यादा खुश हो जाऊंगा जब आप दूसरों की मदद करोगे। ये सिर्फ उनको तोहफे देकर या उनके लिए पार्टी करके नहीं, पर उनको ज्ञान के मार्ग पर लाकर और उनको अंदर से मजबूत बना के आप उनको सच्ची खुशी दे सकते हो।
यदि आप किसी को इस ज्ञान के मार्ग पे ला सकते हैं तो सबसे अच्छा होगा।
जब लोग अष्टावक्र गीता को सुनते है और वे बोलते है की हमारी जिंदगी परिवर्तित हो चुकी है। आप में से कितने लोगों ने इसका अनुभव किया है?
जब आप अष्टावक्र गीता सुनते हैं, तो जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण बदल जाता है।