प्रज्ञा योग - अंत:प्रज्ञा प्रक्रिया
अंतः प्रज्ञा वह ज्ञान है जो भीतर से आता है। यह उसके विपरीत होता है जो आपने प्राप्त किया है या जो आपने सुना है या आप अपनी बुद्धि के द्वारा जिसका अनुमान लगा सकते हैं। हम सभी ने अपने दैनिक जीवन में अंतः प्रज्ञा संबंधी क्षणों को अनुभव किया है। बच्चों के लिए इस अंतः प्रज्ञा को अनुभव करना एवं इसे विकसित करना सरल होता है। बच्चों का मन सरल होता है | उनमें आसक्ति कम होती है और वह प्रकृति के साथ लयबद्ध होते हैं
प्रज्ञा योग - सरल व्यायाम और ध्यान के द्वारा अंतः प्रज्ञा क्षमताओं को विकसित करने का एक अद्वितीय तरीका है। यह कार्यक्रम तीव्र ग्रहण शक्ति, सतर्कता, सीखने की कुशलताओं में सुधार, निर्णय लेने की कुशलता और अनजाने भय को मिटाकर बच्चों का सशक्तिकरण करता है। नियमित अभ्यास बच्चों को दैनिक जीवन में अंतः प्रज्ञा विकसित करने में सहायता करता है। जिससे उन्हें उनकी पढ़ाई - लिखाई, प्रतिभाओं, संवाद-क्षमता और रचनात्मकता को अधिक विकसित करने में मदद मिलती है |
इस स्थिति में आपके मन में बहुत सारे प्रश्न आ रहे होंगे। अंतः प्रज्ञा क्या है? क्या इसे वास्तव में विकसित किया जा सकता है? क्या हम सभी यह कार्यक्रम कर सकते हैं?
आपको प्रज्ञा योग कार्यक्रम में इन सभी प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे जिससे आपको अंतः प्रज्ञा में स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्राप्त हो और इसके द्वारा आप अंतः प्रज्ञा को कैसे सुधार सकते है|
प्रज्ञा योग क्या है? - अंत:प्रज्ञा प्रक्रिया
‘अंतः प्रज्ञा का अर्थ है - सही समय पर सही विचार।’
– गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
हमारी चेतना में अत्यधिक क्षमता है। प्रज्ञा योग बच्चों को मन की अनंत संभावनाओं तक पहुंचने में सहायता करती है। यह मन को पांच इन्द्रियों से परे जाने और अंतः प्रज्ञा या छठी इंद्री को समझने में सक्षम बनाती है। एक विकसित अंतः प्रज्ञा अच्छे निर्णय लेने, बेहतर तरीके से संवाद करने और आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायता करती है। अंतः प्रज्ञा खोज करने और नव परिवर्तन लाने में सहायता करती है। इससे शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन और पारस्परिक सम्बन्धों में सुधार आता है।
हालांकि यह कुछ ऐसा है जो हमारे भीतर अंतर्निहित है और हमारे दैनिक जीवन में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता है। अब प्रश्न यह उठता है कि अंतः प्रज्ञा को प्रासंगिक एवम् रुचिकर तरीके से कैसे विकसित किया जाए।
बुद्धि की सीमा पर
विश्वभर के सफल लोग काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि अंतः प्रज्ञा सफलता की यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रतिभागियों के अनुभव
प्रज्ञा योग पर शोध - अंत:प्रज्ञा प्रक्रिया
पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रत्येक व्यक्ति अंतः प्रज्ञा का अनुभव कर सकता है। बच्चों में यह सरलता से जागृत हो जाती है क्योंकि उनका मन ताज़ा और अधिक खुला हुआ होता है। इस जन्मजात क्षमता को विकसित करना और इसे मजबूत बनाना संभव है।
प्रज्ञा योग कार्यक्रम उन गहन और रहस्यपूर्ण विद्याओं को जागृत करता है, जो प्रत्येक बच्चे में अव्यक्त रूप में मौजूद होती हैं। इन विद्याओं को खिलने और विकसित होने के लिए आपके मन को उचित पोषण की आवश्यकता होती है। यही प्रज्ञा योग का मर्म है, जो आपको यह सिखाता है कि किस प्रकार से विधिपूर्वक अपनी अंतः प्रज्ञा कुशलताओं तक पहुंचना है और उनका उपयोग करना है।
यह 2 दिन का प्रोग्राम है,जो 5 से 18 वर्ष के बच्चों और किशोरों के लिए तैयार किया गया है। बच्चे इस कार्यक्रम को अच्छे से समझ सकें, इसके लिए बच्चों के दो समूह बनाए गए हैं:
- समूह 1 : 5 से 7 वर्ष
- समूह 2 : 8 से 18 वर्ष
आयु समूह 1 :
- आयु : 5 से 7 वर्ष
- समय अवधि : २ दिन
- प्रतिदिन समयावधि : 2.5 घंटे
आयु समूह 2 :
- आयु : 8 से 18 वर्ष
- समय अवधि : 2 दिन
- प्रतिदिन समयावधि : 3.5 घंटे
प्रज्ञा योग प्राचीन यौगिक तकनीकों पर आधारित है और इसमें विभिन्न प्रकार के व्यायामों के साथ ध्यान सिखाया जाता है। प्रज्ञा योग मन की अंतः प्रज्ञा क्षमताओं तक पहुंचने में मदद करती है। इस कार्यक्रम में बच्चों का निम्नलिखित से परिचय करवाते हैं -
- यौगिक तकनीकें, जो बच्चों के मन को विश्राम और ध्यान को अधिक केंद्रित करने में सहायता करती है।
- निर्देशित ध्यान और विश्राम करने की तकनीकें।
- क्रियाएं जैसे - आंखों पर पट्टी बांधकर रंग पहचानना, पढ़ना, खेल खेलना, जो प्रतिभागियों को अंतः प्रज्ञा तक पहुंचने और उसका प्रयोग करने में मदद करती हैं।
- घर पर अभ्यास करने के क्रम।
अंतः प्रज्ञा को दृढ़ करने और जो प्रोग्राम में सिखाया गया है, उसे अंतर्निहित करने के लिए घर पर प्रतिदिन अभ्यास करने की आवश्यकता है। ये सभी क्रियाएं एक उपकरण हैं जो बच्चे को यह सिखाती हैं कि अपनी अंतः प्रज्ञा कुशलताओं को किस प्रकार से विकसित करना है।
हम सभी का जन्म एक सहज अंतः प्रज्ञा क्षमता के साथ हुआ है, जिससे हम अपनी इन्द्रियों से परे जा सकते हैं। यह क्षमता विशेषकर बच्चों में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका मन अधिक ताज़ा है,उसमें आसक्ति कम है और वह प्रकृति के साथ अधिक लयबद्ध है।
विस्तृत रूप में बात करते हुए,इस कार्यक्रम से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं -
- अंतः प्रज्ञा में सुधार
- इन्द्रियों की क्षमता में वृद्धि
- सजगता और अन्तर्दृष्टि में सुधार
- आत्मविश्वास में वृद्धि
- अज्ञात के प्रति भय का नष्ट होना
- रचनात्मकता एवम् बुद्धिमत्ता में वृद्धि
इसके अलाव इस कार्यक्रम में बच्चे यह कार्य करने में भी सक्षम हो जाते हैं -
- उत्सुकता में वृद्धि और बेहतर तार्किक क्षमता के कारण किसी विषय को समझने की क्षमता में सुधार।
- स्कूल के कार्यों में रुचि दिखाना
- समस्याओं को सुलझाने की मानसिकता का विकास।
- नई भाषाओं को धाराप्रवाह में सीखना।
- मौलिकता से सोचना और दूसरों के विचारों को समझना और उनकी प्रशंसा करना।
- दूसरों की सेवा करने की भावना का विकास।
- विविधता और भिन्नता के प्रति संवेदनशील होना और उनका आदर करना।
- दूसरों के साथ स्वस्थ और खुले मन से संवाद करना एवम अच्छे संबंध बनाना।
बहुत सारे बच्चे कार्यक्रम में सीखी हुई कुशलताओं का प्रयोग अपनी पढ़ाई या अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों में प्रदर्शन को सुधारने में करते हैं। वे अपने कार्यों को अधिक ध्यान और दिशा बोध से करते हैं।
कार्यक्रम से होने वाले लाभों को सभी लोगों को देखना चाहिए। आप बच्चों और माता-पिता के बहुत सारे वीडियो देख सकते हैं जिनमें वे कार्यक्रम में सिखाई गई तकनीकों का अनुसरण करने के पश्चात होने वाले अनुभवों के बारे में बता रहे हैं।
प्रत्येक बच्चा अद्वितीय है और उसकी अंतः प्रज्ञा के विकास का अपना एक स्तर है। उन्नति या रूपांतरण बच्चे के अपने प्रयासों और प्रतिदिन के अभ्यास पर निर्भर करता है। इस कार्यक्रम में बच्चों को यह परामर्श दिया जाता है कि वे प्रतिदिन घर पर 15 से 25 मिनट अभ्यास करें। निरंतर अभ्यास से बच्चों और माता-पिता ने अंतः प्रज्ञा क्षमताओं में सुधार देखा।
बच्चों को अद्भुत कार्य करते हुए देखें!
अंतः प्रज्ञा का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में से एक महाभारत में किया गया है। कुरुक्षेत्र के युद्ध के समय राजा के सलाहकार और सारथी, संजय अपनी अंतः प्रज्ञा की शक्ति के द्वारा दिव्या चक्षु (अंधे) राजा धृतराष्ट्र को युद्ध में हो रही घटनाओं के बारे में बताता था। इस दृष्टि ने राजा की युद्ध क्षेत्र में हो रही घटनाओं का हाल बताया |
1) नमन के माता - पिता ( 8 वर्ष )
नमन प्रज्ञा योग तकनीकों का पिछले दो वर्षों से अभ्यास कर रहा है। मैंने उसमें कुछ उल्लेखनीय सकारात्मक परिवर्तन देखे। वह और भी अधिक आत्मविश्वासी बन गया है; उसकी एकाग्रता, बातों को ग्रहण करने की क्षमता और सोच में तीव्रता से सुधार हुआ है। उसकी सजगता बहुत तीव्र हो गई है। उसने बंगलौर में हुई कर्नाटक स्टेट ताइक्वांडो चैंपियनशिप 2018 में स्वर्ण पदक जीता है।
2) वैष्णवी अनिल के माता - पिता ( 12 वर्ष )
वैष्णवी ने प्रज्ञा योग कार्यक्रम २०१५ में किया था। प्रोग्राम करने के पश्चात उसमें उत्पन्न हुई प्रतिभाओं को देखकर हम अचंभित हो गए थे।वह चित्रों,रंगों और मुद्रा को पहचान लेती थी,पहेलियों को सुलझाती थी,कार्ड्स पढ़ती थी,फोन पर गेम खेलती थी और आंखों पर पट्टी बांधकर गणित के सवालों को सुलझा लेती थी।
साथ ही साथ हमने उसके व्यक्तित्व में होने वाले अद्भुत रूपांतरण को भी देखा।वह बहुत शर्मीली बच्ची थी और वह लोगों से संवाद करने में भी बहुत अच्छी नहीं थी।इस कार्यक्रम को करने के पश्चात,उसके व्यक्तित्व में 180 ° का परिवर्तन आया! वह अधिक आत्मविश्वासी हो गई,वह बहुत अच्छे से संवाद करने लगी और मंच पर खड़े होकर बोलने का उसका भय चला गया!
3) प्रीत चंद्रेश थुम्मर के माता - पिता ( 9 वर्ष )
प्रीत अंतर्मुखी, संकोची स्वभाव का था। वह लोगों से बहुत कम बात करता था और किसी भी गतिविधि में भाग नहीं लेता था। जब वह बोलता था तो आंखों में देखकर बात नहीं करता था। वह कक्षा में विषयों को ठीक से नहीं समझ पा रहा था।
प्रज्ञा योग कार्यक्रम करने के पश्चात, हमने यह समझा कि यह उसके आत्मविश्वास के बजाय उसकी समझ में कमी थी जिसके कारण वह चुप रहता था। इस कार्यक्रम ने उसे डर की भावना, शर्मीलेपन और झिझक से उबरने में सहायता की। अब वह लोगों के साथ बड़े आत्मविश्वास से बात करता है। वह कक्षा में होने वाली विवेचनाओं में भी भाग लेता है और स्कूल में उसके प्रदर्शन में सुधार हुआ है।
उसे अपना प्रतिदिन का अभ्यास, ध्यान और अन्य प्रक्रियाएं करना बहुत पसंद है, जिनके बारे में वह कहता है कि ये अभ्यास उसे अन्दर से खुशी और विश्राम देते हैं।
4) नित्या जीतेश पटेल के माता - पिता ( 10 वर्ष )
नित्या ने प्रज्ञा योग कार्यक्रम दिसंबर 2016 में किया था। तब से वह प्रतिदिन दो बार अपनी साधना लगातार कर रही है।
हमने देखा कि उसका ध्यान अधिक केंद्रित हो गया है| वह जिम्मेदार हो गई है और अपने शिक्षकों और मित्रों से बहुत अच्छे से संवाद कर रही है। वह शिक्षकों द्वारा की जाने वाली आलोचना का साहस पूर्वक और सजगता से सामना भी कर रही है। वह घर में हमारे साथ इसकी चर्चा अधिक आत्मविश्वास से करने लगी और अपनी गलतियों को खुलकर स्वीकार करने लगी। वह और भी अधिक कुशलता से पढ़ाई करने लगी और पहले की अपेक्षा आधे समय में ही अपना कार्य पूरा कर लेती है।
इस कार्यक्रम के द्वारा उसमें सेवा करने का गुण भी विकसित हुआ। वह आवश्यकता पड़ने पर किसी की सहायता करने के लिए तैयार रहती है।
आप प्रज्ञा योग कार्यक्रम के बारे में और अधिक समीक्षाएं यहां देख सकते हैं।
जर्मन मनोवैज्ञानिक गर्ड गीगरेंजर ने हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में यह कहा था कि अंतः प्रज्ञा बुद्धिमत्ता का एक अचेतन रूप है जो बहुत सारे अनुभवों पर आधारित होता है। यह एक उपयोगी आंतरिक शक्ति होती है जो इस अनिश्चितता के संसार में परम आवश्यक होती है, जहाँ हम रहते हैं।
तो बच्चे के लिए क्या खरीदना है,इसके लिए अपना दिमाग मत लगाइए! आर्ट ऑफ लिविंग का प्रज्ञा योग कार्यक्रम एक अमूल्य उपहार है जो आप अपने बच्चे को दे सकते हैं। इसके द्वारा आप अपने बच्चे को निश्चित रूप से आंतरिक प्रतिबद्धता एवम् अंतः प्रज्ञा के साथ अज्ञात और अनिश्चित भविष्य के लिए तैयार कर सकते हैं|