चंदन ने बचपन में दोनों माता-पिता खो दिए और उन्हें स्कूल छोड़ देना पड़ा। सबसे बड़े होने के नाते, उन्हें अपने तीन छोटी बहनों की वित्तीय जिम्मेदारी को संभालना पड़ा। आर्ट ऑफ लिविंग ने न केवल चारों भाई बहनों की शिक्षा की, बल्कि उनके आवास और अन्य जीने के खर्चों की भी जिम्मेदारी ली। आज, चंदन ने स्कूल पूरा किया है और आजीविका के लिए स्कूल बस चलाता है। वह एक शिक्षक और मार्गदर्शक बनने की इच्छा रखता है उसी स्कूल में जहाँ उसे उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद समर्थन प्राप्त हुआ था।
अधिकांश भारतीय आदिवासीयों का जीवन आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण है। चंदन जैसे बच्चों की कहानियाँ, और जो बच्चे मजदूरी, बाल विवाह, या शोक के कारण कभी स्कूल नहीं जा सके बहुत व्याप्त है। 1999 में पहले निःशुल्क आदिवासी स्कूल की स्थापना से आर्ट ऑफ लिविंग ने बहुत कुछ हासिल किया है। प्रतिवर्ष, हम उन 3000 से अधिक पहली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते हैं जिन्हें अन्यथा कोई औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त हुई।
आध्यात्मिक दृष्टि से प्रेरित
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर के निःशुल्क शिक्षा के दृष्टिकोण से प्रेरित, आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवक बृज भूषण चावला ने 1999 में झारखंड में एक आदिवासी स्कूल की स्थापना की। उन्होंने कहा, “एक स्कूल बनाना आसान है। लेकिन एक आदिवासी बच्चे की मदद करना जीवन भर का संकल्प है, जो स्वतंत्र रूप से अपने आप को एक उत्तरदायी वयस्क बनाने के लिए सक्षम हो, जो न केवल अपनी आजीविका कमा सके बल्कि जीवन का आनंद भी उठा सके और समुदाय की सेवा कर सके”।
एक गाँव में एक ही कक्षा से शुरू हुई हमारी परियोजना अब भारत में 20 राज्यों में 67,887 छात्रों तक पहुंच चुकी है।
फिर भी, प्रारंभिक वर्ष कठिन थे। बृज भूषण की यादों में, “इस क्षेत्र में कोई सड़कें नहीं थीं, बिजली नहीं थी, और ठीक से पानी की आपूर्ति नहीं थी। इससे दूरस्थ आदिवासी नागरिकों के लिए पहुँच पाना कठिन था। हमारी टीम को इन स्थानों तक पहुंचने के लिए बिजली की लाइनों और सड़कों के निर्माण करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी”।
स्थानीय लोगों की, अपने बड़े बच्चे को बाकी अन्य बच्चों की देखभाल के लिए घर पर छोड़ कर काम पर जाने की आदत ने इस चुनौती को और भी बढ़ा दिया था। आर्ट ऑफ लिविंग ने समुदाय को जोड़ने वाले कार्यक्रमों का आयोजन कर इस समस्या को हल किया। निःशुल्क चिकित्सा शिविर, वृक्षारोपण अभियान, जैविक खेती की कार्यशाला और अभिभावकों के लिए व्यावसायिक क्षेत्र में प्रशिक्षण जैसे हमारे कार्यक्रम ने स्थानीय लोगों के साथ संबंध स्थापित किए और उन्हें नियमित रूप से अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया।
निःशुल्क, समग्र शिक्षा प्रदान करना
हमारे स्कूल निःशुल्क चलते हैं और छात्रों को पुस्तकें, वस्त्र , स्कूल बैग, साइकिल तथा परिवहन, साथ ही दैनिक दोपहर का भोजन और दूध प्रदान करते हैं। बच्चे भाषाएँ, आधुनिक विज्ञान, इतिहास, भूगोल, पारिस्थितिकी और अन्य विषयों को सीखते हैं जो राष्ट्र भर में स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं। साथ ही, उन्हें योग, ध्यान, और प्राचीन मंत्र गायन का अनुभव भी मिलता है।
हमने सुनिश्चित किया कि प्रत्येक आदिवासी स्कूल में एक अपना उद्यान हो, जिसका ध्यान छात्र खुद रखते हैं। हम उन्हें शून्य बजट के प्राकृतिक खेती तकनीकों का उपयोग कर के फल और सब्जियों की खेती करने में सहायता करते हैं। हमने कला, शिल्प, और खेल को छात्रों के पाठ्यक्रम का एक अभिन्न हिस्सा बनाया है।
कंप्यूटर जैसे आधुनिक माध्यम का उपयोग करते हुए भी, हम उन्हें अपनी परंपरागत भाषा और परिधान में नृत्य-नाटिका करने के लिए प्रोत्साहित करके उनकी जातीय सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखते हैं।
प्रभाव
आज, इन आदिवासी गाँवों और उनके छात्रों और माता-पिता की सोच में एक विशेष अंतर है। शिक्षा स्तर में वृद्धि के अलावा, गाँव में बाल मजदूरी की कमी, बालिका विवाह की कमी, और संघर्ष के कम मामले हैं।
माता-पिता अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उत्साह दिखा रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में परियोजना समन्वयक मित्रा अग्रवाल ने कहा, “बालिका विवाह के संबंध में सांस्कृतिक संविदा के समय के बाद माता-पिता की प्रतिक्रिया प्रेरणादायक है। माता-पिता की प्रतिक्रिया इतनी उत्साहजनक है कि हमने निर्धारित किया है कि हम वयस्कों के लिए भी कक्षाएँ शुरू करेंगे।”
कुछ स्कूलों में लड़कियों और लड़कों की समान संख्या है, और छात्रों की सामान्य उपस्थिति लगभग 89 प्रतिशत है – जो आदिवासी क्षेत्रों में संचालित स्कूलों के लिए एक अत्यधिक उपलब्धि है। वास्तव में, प्रवेश के लिए आवेदनों की संख्या हर साल बढ़ रही है।
इसके अलावा, आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा नियमित रूप से आयोजित मुफ्त चिकित्सा शिविरों ने इन क्षेत्रों को बेहतर स्वास्थ्य और स्वच्छता की ओर पहुंचाया है। परियोजना की शुरुआत से पहले, क्षेत्र में मलेरिया बहुत फैली हुई थी, और बच्चों की मृत्यु दर काफी अधिक थी। आज, आर्ट ऑफ लिविंग स्वयंसेवकों द्वारा नियमित चिकित्सा सहायता की आपूर्ति ने मृत्यु दर को कम किया है, जिससे यह पहल सफल हुई है।
अब तक यात्रा कैसी दिखती है?
- झारखंड, पश्चिम बंगाल, और त्रिपुरा के दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में 20 स्कूल हर साल अधिकतम 3000 छात्र मुफ्त शिक्षा प्राप्त करते हैं।
- 10% के आसपास बच्चे ही स्कूल छोड़ते हैं – देश की समान स्कूलों की तुलना में बहुत कम।
- उपस्थिति दर 89% तक।
- बाल मजदूरी में कमी।
- बाल विवाह, किशोरावस्था में गर्भावस्था, और गर्भपात के मामलों में कमी।
- बाल मृत्यु दर कम है।
- राष्ट्रीय औसत से बेहतर – प्रति 30 छात्रों के लिए 1 शिक्षक।
- 48 लड़कियाँ और 52 लड़के – राष्ट्रीय औसत से बहुत बेहतर।
दूरगामी दृष्टि
जब छात्रों से पूछा जाता है कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं, तो उनका सर्वसम्मति से जवाब होता है, “मैं डॉक्टर या शिक्षक बनना चाहता हूँ और अपने समुदाय की सेवा करना चाहता हूँ”। हमारे स्वयंसेवक छात्रों को स्कूल से पास होने के बाद इन छात्रों के लिए आगे के करियर के अवसरों को सक्षमता पूर्वक खोजते हैं। इसके मद्देनजर, हमने छात्रों को उनकी जीविका कमाने में मदद करने वाले कौशल सीखने के लिए एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र ‘विज्ञान आश्रम’ की स्थापना की।
हमारे केंद्र में कृषि, पशुपालन, मैकेनिकल वर्कशॉप, इलेक्ट्रिकल और मैसनरी कार्य, और प्राकृतिक ऊर्जा संसाधनों का उपयोग जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
हम इन स्कूलों की बुनियादी संरचना को विस्तृत करने और परिचालन व्ययों को प्रबंधित करने के लिए साझेदारी के अवसरों की तलाश में हैं। हमारे साथ जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे।