अवलोकन

झारखंड के नक्सलवाद पट्टे के बीचों बीच स्थित, अमझोर गाँव में सुबह के 5 बजे हैं। एक छोटी सी बच्ची और उसका भाई एक अन्‍य दिन की शुरुआत के लिए उठते है, दंतमंजन करते है, उन्होंने स्कूल में जो भजन सीखा था, गुनगुनाते हुए नहाने जाते है। जतन से बालों में तेल लगाते है, माँ उन्हें स्कूल के लिए विदा कर बहुत प्रसन्न है। बढ़िया से जूते जो कि वर्ष तक टिक पाएँगे, के साथ सफेद यूनिफॉर्म में सुसज्जित बहन और भाई स्कूल के लिए रवाना हो जाते है। यही कोई 5 कि.मी. गाँव और जंगल से होते हुए रास्ते से वे रोज जाते थे। यह स्‍कूल ‘श्री श्री ज्ञान मंदिर’, पाताम्‍दा के आंतरिक क्षेत्र में जाजरादीह नामक आदिवासी गाँव में तीन कक्षाओं को मिला कर स्‍कूल बनता है। एक है जहाँ लंबे से टिन शेड के नीचे, पहली से लेकर पाँचवीं श्रेणी के छोटे बच्चे बैठकर पढ़ते है, और अन्य दो, इमली के दो बड़े पेडों के नीचे ठंडी छाँव में बड़े बच्चे (छठवीं और 7वीं श्रेणी) बैठते और पढ़ते हैं। बच्चे इस जगह के बीच में एकत्रित होते हैं और अपनी सुबह की प्रार्थना करते हैं – ‘इतनी शक्ति हमें दे ओ दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न’ (भगवान से प्रार्थना कि उन्हें इतनी शक्ति दे कि वे डगमगाए नहीं)। इस युगल भाई और बहन की तरह, रोज सुबह, आसपास के गाँवों से बहुत सारे बच्चे पैदल इस पाठशाला में आते हैं।

“उपहार दें एक मुस्कान’’ हमारा एक नवीन विचारों वाला उन्‍नत स्कूल और सेवा का कार्यक्रम है जिसमें ऐसे बच्चों के जीवन में अंतर लाना संभव हुआ है। इस  शिविर का लक्ष्य समाज के हाशिये पर पड़े हुए समुदाय  के बच्चों के लिए आधुनिक और सम्पूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाना  है ।

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हम क्‍या बदलाव लेकर आए हैं?

कक्षा 7 से विद्यार्थी रह चुकी शिल्पा, बताती है, “पहली बार मुझे लगा कि महिलाएँ पुरूषों से नीचे नहीं हैं – हम समान हैं और चीजों को वैसे ही अच्‍छे से बल्कि और अच्छे से कर सकती हैं।

बाली किक्‍सू कहते हैं, “मेरी बड़ी बहन गड़रिया है। मैं भी शायद यही काम करता। लेकिन आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवक मेरे पिता से मिले और मुझे चकदाह के स्कूल में भेजने के लिए राजी किया”।

स्कूल की मौजूदगी एवं उनकी गतिविधियों ने इन समुदायों को पूर्णरूपेण मजबूती देने में बड़ी अहम भूमिका निभाई है। आज इन क्षेत्रों में, विद्यार्थियों एवं उनके माता-पिता की मानसिकता में उल्लेखनीय अंतर स्पष्ट है।

इस शिक्षा में हमारी पहल, स्‍वयंसेवकों की समर्पित टीम द्वारा संचालित होती है, जो अपनी प्रेरणा और ऊर्जा एक शक्तिशाली श्वसन प्रक्रिया – सुदर्शन क्रिया से प्राप्त करते हैं। अपने घरों के आरामदायक वातावरण में सुविधा पूर्वक इस अस्त्र को सीखें।

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अभी तक का सफर कैसा रहा?

  • भारत के सर्वत्र 22 राज्यों में 1098+ निःशुल्क विद्यालयों में करीब 82,000 बच्चे पढ़ते हैं।
  • 95% उपस्थिति दर – राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक।
  • 37% के राष्ट्रीय दर के मुकाबले हमारे 90% विद्यार्थी स्कूलों की पढ़ाई समाप्त कर लेते हैं।
  • हमारे 100% विद्यार्थियों ने कक्षा 10वीं को पार किया है।
  • लिंग अनुपात 48 लड़कियाँ : 52 लड़कों का है,जो कि राष्ट्रीय औसत से महत्वपूर्ण रूप से कहीं अधिक है।

हम कैसे कार्य करते हैं ?

हमारे स्कूल, शरीर, मन और चेतना सहित पूर्ण रूप से बच्चे का विकास करते हैं। पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करते हैं एवं सामाजिक बाधाओं के प्रगतिपूर्ण प्रवृत्ति से प्रतिस्थापित करते हैं। लक्ष्य होता है पूर्णरूपेण, मूल्य आधारित शिक्षा, इस तरह सशक्त और जिम्मेदार व्यक्तित्व को स्वरूप देते हैं। इन स्कूलों की कुछेक प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  • राज्‍य का पाठ्यक्रम (राज्य सरकार द्वारा मान्‍यता प्राप्‍त) इस प्रकार बच्‍चों को शिक्षा की मौजूदा मुख्यधारा में प्रवाहित होने के लिए नियत करना।
  • ज्यादातर बच्चे पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं, भविष्य में आने वाली पीढ़ी को शिक्षित परिवारों के लिए रास्ता साफ करते हुए।
  • खेल और पाठ्यक्रम संबंधी अतिरिक्त गतिविधियाँ स्कूलों में प्रदान की जाती हैं जो कि बच्चों का चहुंमुखी विकास ओर कल्याण को प्रोत्साहित करती हैं।
  • योग, ध्यान, प्राणायाम और श्वसन तकनीक दैनिक दिनचर्या का भाग है।
  • वरिष्ठ विद्यार्थियों को वांछित व्यावहारिक और रचनात्मक योग्‍यता हेतु व्यावसायिक और कला की कक्षाएँ होती हैं जो उनके वैयक्तिक जीवन को पूर्ण बनाती हैं।
  • विभिन्न गतिविधियाँ जैसे स्वास्थ्य जाँच शिविर, पौधारोपण अभियान, वयस्‍क शिक्षा आदि द्वारा सामुदायिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहन।

“नित्य प्रतिदिन एक चुनौती है और एक चमत्कार है। उन्हें अब स्कूल आना अच्छा लगता है और कभी कभी तो हमें उन्हें जबरदस्ती घर भेजना पड़ता है!” शुभांगी करवीर, एक स्कूल की प्रधानाचार्य साझा करती हैं।

आप कैसे योगदान दे सकते हैं?

नए क्षेत्रों में इस तरह के बदलाव के लिए हम निरंतर प्रयासरत हैं। आप मूलभूत सुविधाओं के निर्माण हेतु या फिर परिचालन व्यय हेतु सहयोग देकर, अपने हाथ हमारे साथ मिला सकते हैं।

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