आर्ट ऑफ लिविंग का ‘श्री श्री विद्या मंदिर’ एशिया के सबसे मलिन क्षेत्र धारावी, मुंबई में पहला अंग्रेजी माध्यम विद्यालय है। आज इन विद्यालयों की संख्या 220 बच्चों तक और छठी कक्षा तक पहुंच गई है।
कई रुकावटें जैसे कि बच्चों की कठिन पृष्ठभूमि, जमीन उपलब्ध न होना, माता पिता की पढ़ाई के प्रति उदासीनता, सबके बावजूद विद्यालय ऐसे पढ़ाई से वंचित बच्चों तक पहुँच कर उन्हें औपचारिक व समग्र शिक्षा प्रदान कर रहा है।
मानसिक एवं शारीरिक शोषण से राहत
बहुत से बच्चों का इतिहास शारीरिक व मानसिक शोषण, जुए व नशीली पदार्थों की आदत और सबसे बुरी आदत हथियारों के प्रयोग का रहा है। ऐसी स्थिति में श्री श्री विद्या मंदिर केवल औपचारिक शिक्षा ही नहीं देता, बल्कि बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी करता है। विद्यालय बच्चों को अलग से कार्यशाला व सेहत की वार्षिक मुफ्त जाँच भी प्रदान करता है।
आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के शिक्षक व स्वयंसेवक नियमित योग व ध्यान के परामर्श सत्र लेते हैं, जो बच्चों को दिन प्रतिदिन आने वाली चुनौतियों पर काबू पाने के लिए तैयार करते हैं।
पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी!
विद्यालय द्वारा अनुभव की गई सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि बच्चों के माता पिता का पढ़ाई के प्रति बड़ा ही उदासीन रवैया था। उनका कहना था कि हम बच्चों को विद्यालय में रुकने के लिए कैसे उत्साहित करें? इसके लिए विद्यालय ने खास परामर्श सत्र रखे, जिसमें बच्चे के माता पिता के साथ अध्यापक की बैठक हो सके। माता पिता को इस बात के लिए भी उत्साहित किया गया कि वे विद्यालय की गतिविधियों, जैसे वार्षिक उत्सव व चिकित्सा शिविर में सम्मिलित हुआ करें। यह बच्चे के विकास में बड़ा योगदान देता है। कुछ ऐसे छात्र भी हैं, जो अपने परिवार में विद्यालय आने वाली पहली पीढ़ी है।
राहुल की कहानी
राहुल की माता जी बताती हैं कि उसके पिता बहुत शराब पीते हैं। परिवार में केवल वही रोटी कमाने वाली है और वह सुबह 8 बजे से रात के 10.30 बजे तक काम करती है। राहुल मैले कपड़ों में विद्यालय आता है और उसका मन भी नहीं टिकता है। हमने उसका पालन पोषण किया। जब परीक्षाएँ आरंभ हुईं, तो आर्ट ऑफ लिविंग का एक स्वयं सेवक उसके साथ बैठता था और उसे परीक्षा की तैयारी में सहायता करता था, क्योंकि सब जानते थे कि राहुल पढ़ने में अच्छा है। उसकी तरफ खास ध्यान देने से उसने परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।
हमारी शिक्षा की पहल स्वयं सेवकों के एक समूह द्वारा चलाई जाती है, जो श्वास की एक प्रभावशाली तकनीक, सुदर्शन क्रिया द्वारा प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यह तकनीक आप अपने घर बैठे सीख सकते हैं।
अब राहुल प्रोत्साहित होकर अधिक जिम्मेदारी लेता है। विद्यालय आना उसे अच्छा लगता है। उसकी माता जी कहती हैं कि वह अपने आप उठता है और सुबह 5 बजे विद्यालय आने के लिये तैयार हो जाता है! जब वह राहुल के विद्यालय आती हैं, तो उनकी आँखें कृतज्ञता के आँसुओं से भर जाती हैं।
शुभांगी करवीर, विद्यालय की प्रधानाध्यापिका कहती हैं कि हर दिन एक चुनौती भी है और चमत्कार भी है। मैं हैरान हूँ कि विद्यालय की सारी आवश्यकताएँ कैसे पूरी हो रही हैं। लोग स्वयंसेवक की तरह आते हैं और विद्यालय की आवश्यकताओं के अनुसार सहयोग करते हैं। हम अपने छात्रों को सर्वोतम देना चाहते हैं। हम उन्हें केवल पढ़ना लिखना ही सिखाना नहीं चाहते, बल्कि एक अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं। हम एक व्यावसायिक प्रशिक्षण विद्यालय और एक पुस्तकालय खोलने की सोच रहे हैं। अब बच्चों को विद्यालय आना अच्छा लगता है। कभी कभी हमें उन्हें घर जाने के लिए मजबूर करना पड़ता है।
समुदायों का विकास
विद्यालय के परिसर में आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवक नशा मुक्ति कैंप लगाते हैं, जागरुकता अभियान, तनाव दूर करने के अभियान एवं युवाओं के लिए युवा नेतृत्व व प्रशिक्षण कैंप लगाये जाते हैं, ताकि समुदाय में सद्भाव व शांति आ सके।
हमारे काम से प्रभावित होकर यहाँ रहने वाले लोगों ने लगभग 4000 वर्ग फुट जमीन, जहाँ केवल कूड़ा फेंका जाता था, उसे अब एक बगीचे में बदल दिया है। यह अब धारावी में हरियाली देखने की एक खास जगह है।
यह देखकर खुशी होती है कि मुंबई के एक वंचित क्षेत्र में विद्यालय खुलने से न केवल बच्चों की जीवन शैली में बदलाव आया है, बल्कि वयस्कों और आसपास के समुदायों में भी सकारात्मक प्रभाव आया है।
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