मानवीय मूल्यों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था (IAHV) के स्वयंसेवकों ने अपना घर और दिल उन बच्चों के लिए समर्पित कर दिया जो अपने माता पिता और घर को में कश्मीर में आए भूकम्प में खो चुके थे। आई ए एच वी आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की एक सहायक संस्था है जिसे गुरूदेव श्री श्री रविशंकर जी ने वर्ष 2000 में स्थापित किया।

अक्तूबर 2005 में कश्मीर में एक भयंकर भूकम्प आया जिसने लगभग 3.3 मिलियन लोगों को बेघर कर दिया। तूफान के 48 घंटों के भीतर IAHV के स्वयंसेवकों ने उरी, बारामूला, श्रीनगर, कमलकोट, तंगधर और कुपवाड़ा में राहत पहुँचानी शुरु की।

कमजोर बच्चों के लिए सुरक्षित आश्रय बनाना

रोज सुबह मैं एक झटके के साथ उठता, मेरा पूरा शरीर दर्द करता और रात को मैं शोर से बहुत डरने लगा। मैं अपनी माँ को याद करता था, जिन को मैंने भूकम्प में खो दिया था पर अब मैं काफी राहत महसूस करता हूँ और मुझे शोर से डर भी नहीं लगता। 

उत्कर्ष योग ग्रैजुएट द्वारा बताया गया संस्मरण

बहुत से बच्चों ने अपने माता पिता को खो दिया था व बेघर हो गए थे। उनको जल्दी ही सहारा चाहिए था और हमारे आई़ ए एच वी के स्वयंसेवक उन्हें बचाने के लिए आए। हमारे स्वयंसेवकों ने किराये पर एक घर लिया और जरुरत की सभी वस्तुएँ दीं। बहुत से बिस्तर भी दिये ताकि उन्हें ठंड से बचा सकें। रसोई की सभी जरूरी वस्तुएँ, कुकिंग गैस (सर्दी में बहुत कठिनाई से मिलने वाली) सभी सामान एक सप्ताह से भी कम समय में प्रदान किया गया।

जल्द ही 150 कश्मीरी बच्चे IAHV बच्चों की देखभाल संस्था, श्रीनगर पहुँचे। देवराज बेदी, एक IAHV स्वयंसेवक उस दिन का संस्मरण बताती हैं, जब बच्चे इस सहायता क्षेत्र में पहुँचे थे, बच्चे भूख और ठंड से एक दूसरे से चिपके हुए और डेयर हुए थे कि उनके साथ अब क्या होने वाला है। दिलराज ने उनके दिल को छूने की कोशिश की, “बिना कुछ बोले उन्हें तसल्ली दी कि वे अब घर पहुँच गये हैं”।जनवरी के आधे गुजरने तक हमारी संस्था में आपातकालीन आधार पर 100 और बच्चे आए, उन्हें ठहराने के लिए हमनें एक और आश्रय घर लिया।

सांस के द्वारा दुखद हानि और आघात से बाहर निकाला गया

सालों की हिंसा के बाद, हाल ही में आये भूकम्प की याद, गरीबी और घरेलू हिंसा के कारण बच्चों की भय एक मनोवृति बन गई। इस डर व तनाव से बाहर आने के लिए हमने इन बच्चों को साँस की एक विधि उत्कर्ष योग सिखाया गया। यह गुरदेव श्री श्री रविशंकर जी द्वारा तैयार किया गया एक कोर्स है जो 8 वर्ष से 13 वर्ष के बच्चों को मन एवं भावनाओं पर नियंत्रण रखने की कला सिखाता है।

हमारी शिक्षा की पहल एक स्वयं सेवकों के ऐसे समूह द्वारा संचालित होती है जो प्रेरणा और ऊर्जा साँस की एक विधि से पा सकते हैं जो उन्हें उत्कर्ष योग कार्यक्रम में सिखाई जाती है। यह कोर्स आप अपने घर से भी कर सकते हैं।

हिलाल एहमद भटृ और इशफाक धरे ‘अपना घर’ संस्था के विद्यार्थी अपनी खुशी जाहिर करते हैं जब एक विज्ञान मेले में 4500 छात्रों में से उनकी सौर लालटेन परियोजना को जीत के लिए चुना गया। वे यह बात साझा करते हैं कि यह उनके लिए बहुत गौरव का विषय था और एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उन्हें मुख्य शिक्षा अधिकारी से वजीफा और नकद पुरस्कार भी मिला।

आघात से राहत पहुँचाने के उपरांत शिक्षा और सेहत की ओर

धीरे धीरे यह पहला घर, बच्चों के लिए पढ़ाई और मनोरंजन के स्थान में बदल गया कयोंकि यहाँ रहने वाले बच्चे एक आवासीय क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिये गए। इस मनोरंजक स्थान पर 20 कम्प्यूटरस की एक लाइब्रेरी बनाई गई। एक टीवी सैट लगाया गया जो उनका मनोरंजन कर सके व बच्चों को उनकी मातृ भाषा कश्मीरी के संपर्क में रखे।इस तरह इस किराये के घर में छोटे से मैदान वाला यह विद्यालय शुरू हुआ।

पौष्टिक खाना, पढ़ाई और मनोरंजन की सुविधाएँ देने के साथ साथ यह भी ध्यान रखा गया कि बच्चों को अच्छी सेहत की सुविधा भी मिले।इसके लिए उन्हें बिना फीस लिए चिकित्सा जाँच के लिए भेजा जाता था।हमने स्थानीय शिक्षक नियुक्त किए जो प्रतिदिन हमारे बच्चों के लिए तीन घंटे का टयूशन सत्र लेते थे। एक आर्ट ऑफ लिविंग का प्रशिक्षक जो तनाव मुक्त करने की शिक्षा देता है उसने स्थानीय अध्यापको को प्रशिक्षित किया। बच्चों के लिए अंग्रेजी कक्षाएँ भी लगाई गईं।

फरवरी 2006 के आखिर तक 120 जरूरतमंद बच्चे रुके और ठंड से बचने के लिए जो आरामगाह बना था अब वह शिशु आरामगाह सेंटर बनाया था जहाँ लड़कों और लड़कियों के लिए अलग छात्रावास बना दिया गया और एक विद्यालय किराये पर लिया गया।

लगभग 70 बच्चे, लड़कियाँ काजिकहैंड, बुलवामा, बानदीपुरा और उरी से और लड़के बारामूला, अनंतनाग और मानसबल से इस विद्यालय में पढ़े। मुफ्त में इन लड़कियों को सिलाई सिखाई। सामाजिक पहुँच का हिस्सा होते हुए कई प्रभावित लड़कियों को सिलाई सिखाई।

स्थानीय सरकार की सहायता से अपना घर विद्यालय शुरु करना

ओमार गुडडु एक ‘अपना घर’ विद्यालय के छात्र जिहोने श्रीनगर में एक फुटबॉल मैच में एक मैडल जीता व खुशी से इस मैडल को IAHV को समर्पित किया।

एक परियोजना को नियमित बनाए रखने के लिए हमने जम्मू काश्मीर के शिक्षा विभाग से सहयोग लिया ताकि विद्यालय चला सके। सरकार ने एक इमारत को जो कि आतंकवादी हमले के कारण काम में नहीं आ रही थी, उसे एक स्थायी विद्यालय में परिवर्तित किया। विद्यालय का नाम ‘अपना घर’ मतलब ‘हमारा घर’ रखा गया। श्री श्री रवि शंकर ने मई 2007 में नए विद्यालय का उदघाटन किया, सरकार मुख्याध्यापिका और आठ अध्यापकों को तनख्वाह देती थी बाकी अध्यापकों को आई़ ए एच वी से सहायता मिलती थी एवं विद्यालय योगदान करने वालों की सहायता से चलता था।

परियोजना की परिणति

हमारी परियोजना नवम्बर 2011 में पूरी हुई। जो बच्चे पिछले 6 सालों से आवास घरों में रह रहे थे उन सब का सफलतापूर्वक उनके परिवार व विद्यालयों में पुनर्वास किया गया।

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