अवलोकन
स्थान: बेंगलुरु
अवधि: 2012 – वर्तमान
मैडम सरिता (एक युवाचार्य) के आने से पहले, हम हर दिन कक्षा में बहस और लड़ाई करते थे। उन्होंने हमें सिखाया कि ध्यान कर के कैसे शांत रहें और बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित करें। हमने यह भी सीखा कि एक-दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार कैसे किया जाए। अब कक्षा में झगड़े नहीं होते। हम हर दिन हंसते हैं और कक्षा का आनंद लेते हैं।
यशोदा, 12 वर्ष, छात्रा, श्रीरामपुरा सरकारी कन्या हाई स्कूल
भारत में, प्राथमिक शिक्षा आरंभ करने वाले हर तीन में से एक छात्र समाप्त होने से पहले ही पढ़ाई छोड़ देता है। जो लोग जारी रखते हैं, उनमें से कई अपने दर्जे के अनुरूप सीखने का प्रदर्शन नहीं करते हैं। सरकारी स्कूलों में कक्षा IV-VI के लगभग 30-40% छात्रों में पढ़ने और लिखने की बुनियादी क्षमता नहीं है। उन्हें सलाह देने और सिखाने वाला/ मार्गदर्शन करने वाला न होने के कारण, कम आय वाले परिवारों के युवा छात्र स्कूल जाने से बचते हैं और अपराध, नशीली दवाओं और बाल श्रम में शरण लेते हैं।
इस प्रकार, शिक्षा देने में सुधार के लिए, हमने विद्या शिल्प आरंभ किया – एक कार्यक्रम जिसमें छात्रों, अभिभावकों, प्रशिक्षकों और स्कूल अधिकारियों को संलग्न करना शामिल है। हमारे प्रयासों से बेंगलुरु की शहरी झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों के सात हजार से अधिक छात्रों को लाभ हुआ है। जिन विद्यालयों में हमने काम किया, वहाँ उपस्थिति के स्तर में सुधार हुआ, कई छात्र जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी, वे फिर से कक्षाओं में शामिल हो गए, और जो छात्र कन्नड़ पढ़ या लिख नहीं सकते थे, उनकी साक्षरता दर में वृद्धि हुई।
हम क्या बदलाव लाए?
- हमने झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में लगभग सात हजार बच्चों के लिए कार्यरत तीस से अधिक सरकारी स्कूलों की जिम्मेदारी ली।
- लगभग 1500 छात्र जो कन्नड़ में पढ़ने/लिखने में असमर्थ थे, उत्थान (विशेष) कक्षाओं के माध्यम से साक्षर हो गए।
- छात्रों की औसत उपस्थिति में 10% का सुधार हुआ।
- दो सौ पचास से अधिक छात्र जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी, वे फिर से स्कूल में आने लगे।
- विभिन्न स्कूलों में अपने बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी में दस से तीस प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- इस पहल के एक भाग के रूप में आयोजित चिकित्सा और पर्यावरण जागरूकता शिविरों में सत्ताईस सौ से अधिक बच्चों ने भाग लिया।
- छात्रों की व्यक्तिगत स्वच्छता और साफ-सफाई के साथ-साथ उनके पारस्परिक संबंधों में भी सुधार हुआ।
- शिक्षक की प्रभावकारिता में उल्लेखनीय सुधार हुआ, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार हुआ
हमारे शिक्षा उपक्रम स्वयंसेवकों के एक प्रतिबद्ध समूह द्वारा संचालित होते हैं, जो प्रभावशाली श्वसन तकनीक, सुदर्शन क्रिया से अपनी प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इस साधन को अपने घर पर आराम से बैठकर भी सीखें।
हमने कैसे काम किया?
हमने इस परियोजना के एक भाग के रूप में निम्नलिखित कार्यक्रम आयोजित किए:
- छात्रों के लिए उत्कर्ष योग और मेधा योग – इन कार्यशालाओं का उद्देश्य छात्रों की बौद्धिक और भावनात्मक क्षमताओं में सुधार करना और उन्हें उनकी पूरी क्षमता का उपयोग करने में मदद करना है।
- मूल्यों पर आधारित शिक्षा के पाठ का शिक्षकों/प्रशासकों के लिए सीधा प्रसारण – मूल्यों के प्रति आत्मजागरूकता लाने और जिन बच्चों को वे पढ़ाते हैं, उनमें इन मूल्यों का पोषण कैसे करें, इसके लिए एक प्रभावी कार्यशाला।
- माता-पिता के लिए केवाईसी (अपने बच्चे को जानें) – ऐसे कार्यक्रम जो माता-पिता को अपने लिए, अपने बच्चों के लिए अधिक जिम्मेदारी लेने और उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने में सक्षम बनाते हैं।
- बेहतर बुनियादी ढांचे और बच्चे के विकास में अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए नियमित एसडीएमसी (स्कूल विकास प्रबंधन समिति) और अभिभावक-शिक्षक बैठकें।
हमने क्या सीखा?
भारत के एक बड़े वर्ग के पास पर्याप्त शैक्षणिक सुविधाएँ हैं। किंतु सर्वोत्तम शिक्षण परिणाम प्राप्त करने के लिए, माता-पिता और स्कूल प्रशासन से अपने बच्चों की शिक्षा में अधिक शामिल होने का आग्रह किया जाना चाहिए।
आप कैसे योगदान दे सकते हैं?
एक छात्र को स्कूल में मिलने वाला समुपदेशन और मार्गदर्शन छात्र के विकास को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। आपकी मदद से, हम अधिक स्कूलों और बच्चों को शामिल करने के लिए इन परियोजनाओं की व्यापकता बढ़ा सकते हैं।