प्रेम, सम्मान और आनंद के लिए एक मार्गदर्शिका

मानव जीवन को अन्य प्रजातियों से अलग बनाने वाले पहलुओं में से एक है रिश्ते। जानवरों को रिश्तों से कोई समस्या नहीं होती। वे किसी परामर्श के लिए नहीं जाते हैं, न ही आदिवासी समाज को रिश्तों से कोई समस्या  होती है। हम जितने अधिक उन्नत होते जा रहे हैं, रिश्तों की चुनौतियों का सामना भी उतना ही अधिक कर रहे हैं।

ज्ञान के साथ प्रेम आपको परमानंद की ओर ले जाता है। बिना बुद्धि या अज्ञानता के साथ किया गया प्रेम आपको ईर्ष्या, लालच, क्रोध, हताशा और अन्य नकारात्मक चीजों की ओर ले जाता है। यह सभी नकारात्मक भावनाएँ प्रेम की ही उपज हैं। देखो, अगर किसी में प्रेम नहीं है तो तुम उससे ईर्ष्या नहीं कर सकते। सही हैं न? लालच इसलिए है क्योंकि आप लोगों से ज्यादा कुछ चीजों से प्रेम करते हैं, इसे लालच कहते हैं। आप किसी से जरूरत से ज्यादा प्रेम करते हैं तब इसे अधिकार जताना कहते हैं। और आप पूर्णता से इतना प्रेम करते हैं कि आप अपूर्णता को बर्दाश्त नहीं कर सकते, और आप इसे क्रोध के रूप में दिखाते हैं। है न? प्रेम को थोड़ी बुद्धि से उपयोग में लाने की आवश्यकता है।

प्रेम, जो बुद्धि द्वारा संरक्षित होता है, मांग द्वारा नष्ट होता है, संदेह द्वारा परखा जाता है, तड़प द्वारा पोषित होता है, विश्वास के साथ खिलता है, और कृतज्ञता के साथ बढ़ता है।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

ऐसा रिश्ता कैसे बनाएँ जो पवित्र होते हुए भी वास्तविक हो?

सबसे अच्छा यही है कि आप कोई रिश्ता बनाने की कोशिश न करें। बस आप जैसे हैं वैसे ही रहें। सहज रहें। सरल रहें। आप जानते हैं कि रिश्ते स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं। अगर आप रिश्ता बनाने की कोशिश करते हैं, तो आप थोड़े बनावटी हो जाते हैं, और फिर यह स्वाभाविक नहीं है। जरा सोचिए कि कोई बॉस को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, क्या आपने कभी ऐसा नहीं देखा? अगर कोई आपको प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, तो आप क्या करते हैं? आप दूर चले जाते हैं। देखें कि आप क्या चाहते हैं वहीं दूसरों को भी पसंद होता हैं। आप चाहते हैं कि कोई आपके साथ बहुत ईमानदार, खुला, स्वाभाविक और विनम्र हो। है न? यही तो दूसरे भी आपसे चाहते हैं।

अपने बॉस, या अपनी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड को प्रभावित करने के लिए ज्यादा प्रयास न करें। फिर सब कुछ खराब हो जाता है| सबसे अच्छा है कि आप खुद में बने रहें, स्वाभाविक रहें, क्षमाशील रहें और वर्तमान क्षण में रहें। इससे बहुत फर्क पड़ता है। बहुत सूक्ष्म रहें।

रिश्तों में सम्मान कैसे बनाए रखें?

किसी भी रिश्ते में सबसे बड़ा डर सम्मान खोने का होता है। सम्मान कुछ दूरी की मांग करता है। प्रेम दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता। सभी रिश्तों में यही मूल संघर्ष है। और जब आप केंद्रित नहीं होते और जब आपके भीतर कोई गहराई नहीं होती, जब आप भीतर से इतने उथले होते हैं, तब आप सम्मान कैसे प्राप्त कर सकते हैं? मान खोने का डर होता है। जितना कोई आपके करीब आता है, उसे आपके डर, आपकी चिंताओं और आपकी संकीर्णता के बारे में पता चलता है। तब आपको डर लगता है, “अरे, मैं अपना मान खो सकता हूँ!” और आप अपना मान जरूर खो देते हैं! एक बार मान चला गया तब प्रेम भी अच्छा नहीं लगता।

प्रेम, सम्मान, यह सारी भावनाएँ और संवेदनाएँ आपके अंदर बनी रहती हैं। जब आपका दिल और दिमाग साफ होगा, तो सही समय पर सही भावनाएँ आएँगी। प्रेम, सम्मान – यह सब होता है। आप इसे होने नहीं दे सकते। आप किसी को अपना सम्मान करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

अगर आप प्रेम या सम्मान पाने की कोशिश करेंगे तो यह असफल होगा। सम्मान की चाहत मत रखिए। आप बस इतना कर सकते हैं कि खुद को तनाव से मुक्त करें और मन में ज्ञान रखें। ज्ञान का मतलब है दुनिया को एक बड़े नजरिए से देखना। देखें कि क्या अस्थायी है और क्या स्थायी। लोगों की सभी राय अस्थायी होती हैं। वे आती हैं और जाती हैं। यह आपको याद रखना चाहिए।

सम्मान की अपेक्षा करना हमारी कमजोरी दर्शाता है और लोगों को सम्मान देना, चाहे वे कोई भी हों या उनके मानक कुछ भी हों, हमारी बुद्धिमत्ता दर्शाता है।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

आत्मसम्मान एक चीज है और अहंकार दूसरी चीज। आत्मसम्मान एक ऐसी चीज है जिसे कोई भी आपसे नहीं छीन सकता। अगर आपके पास आत्मसम्मान है तो आप मुस्कुराते रहेंगे, भले ही लाखों लोग आपको गालियाँ दें। आलोचना स्वीकार करें! यह दूसरे व्यक्ति की अपनी पसंद है कि वह क्या कहना चाहता है। अगर कोई तुम्हें कुछ कहता है, तो आप उसे कह सकते हैं कि उसे अपनी अज्ञानता को प्रदर्शित करने का पूरा अधिकार है। दूसरों की अज्ञानता पर हम अपना दिमाग क्यों खराब करें? किसी भी कीमत पर अपना दिमाग बचाएँ।

प्रेम इस सृष्टि का मूल आधार है। यह कभी गायब नहीं हो सकता। यह हमेशा मौजूद रहता है। पुन: प्रेम दें और यह आपके पास लाखों गुना ज्यदा वापस आएगा।

रिश्तों में अपेक्षाओं से कैसे निपटें?

प्रेम में अपेक्षाएँ होती हैं और यदि पूरी न हों तो दुख होता है। किसी रिश्ते में हम प्रेम को एक भावना के रूप में देखते हैं। हम यह कहकर शुरू करते हैं, ‘ओह मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ!’ फिर माँग करना शुरू करतें हैं। ‘देखो, मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ, तुमने मेरे लिए क्या किया है? क्या तुम नहीं देखते कि मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ, क्या तुम नहीं समझते?’  हमारा स्वर प्रेम से माँग में बदल जाता है।

मांग प्रेम को नष्ट कर देती है

एक रिश्ता सहयोग की भावना से उत्पन्न होना चाहिए, न कि माँग की भावना से, तभी वह पोषणकारी होगा। हर रिश्ते में, अगर हम सोचते हैं, “मैं इस व्यक्ति से क्या ले सकता हूँ, या इस व्यक्ति से क्या पा सकता हूँ?” तो यह बहुत परेशान करने वाला होगा। लेकिन जब आप इस दृष्टिकोण से आगे बढ़ते हैं कि, “मैं इस व्यक्ति के जीवन का एक हिस्सा बनूंगा, जो कुछ भी मैं दे सकता हूँ, और जो कुछ भी मैं इस व्यक्ति के जीवन में योगदान दे सकता हूँ, वह दूंगा”, तब वह रिश्ते लंबे समय तक चलतें है।

यदि आपका रिश्ता व्यक्तिगत जरूरतों पर आधारित है, तो यह लंबे समय तक नहीं चल सकेगा। एक बार जब आवश्यकता पूरी हो जाती है, चाहे वह शारीरिक स्तर पर हो या भावनात्मक स्तर पर, तो मन किसी और चीज की तलाश करेगा और कहीं और चला जाएगा। अगर आपका रिश्ता साझा करने के स्तर का है, तो यह लंबे समय तक चल सकता है।

जब आप अपने साथी से सुरक्षा, प्रेम और आराम की उम्मीद करते हैं, तो आप कमजोर हो जाते हैं, तब आप प्राप्त करने वाले या माँग करने वाले छोर पर हैं। और जब आप कमजोर होते हैं, तो सभी नकारात्मक भावनाएँ आपके पास आती हैं। जब माँग आपसे आती है तब वह प्रेम को नष्ट कर देती है। अगर हम सिर्फ यह एक बात जान लें तो हम अपने प्रेम को खराब होने से बचा लेंगे। यह शब्द बहुत अच्छा है, ‘प्रेम में पड़ना।’ बल्कि, प्रेम में मत पड़ो, ‘प्रेम में बढ़ो।’

दूसरी तरफ, “ओह! देखो, मैंने इतना कुछ किया लेकिन फिर भी वह व्यक्ति मुझसे प्रेम नहीं करता।” क्यों? क्योंकि वे असहज महसूस करते हैं। प्रेम तब होता है जब आदान-प्रदान होता है। और यह तब हो सकता है जब आप उन्हें अपने लिए कुछ करने का अवसर भी देते हैं। इसके लिए थोड़े कौशल की आवश्यकता है। हमें दूसरों से बिना माँगे भी योगदान करवाने में कुशल होना होगा। हम जानते हैं कि किसी से कुछ करवाने का एकमात्र तरीका है माँग करना। यह काम ज्यदा कुशलता से करना होगा। रिश्ते में, ध्यान रखें कि दूसरा भी आपके जीवन में योगदान दे ताकि वे खुद को पूरी तरह से बेकार न समझें। प्रेम को पनपने के लिए, आत्मसम्मान जरूरी है।

दुनिया में लोग आपसे इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि आप उन्हें सुख देते हैं। यदि आप उनसे उनके प्रेम का प्रमाण माँग रहे हैं, तो क्या आप उन्हें सुख दे रहे हैं? अगर कोई आपके प्रेम पर शक करता है और आपको लगातार उसे साबित करना पड़ता है, तो यह आपके लिए एक भारी बोझ बन जाता है। आपका स्वभाव किसी भी बोझ को उतार देने का है, इसलिए जब प्रेम पर सवाल उठाया जाता है, तो आप सहज महसूस नहीं करते।

प्रेम का सबूत मत मांगो, कि दूसरा व्यक्ति तुमसे प्रेम करता है

जब आपके पैर में दर्द होता है तो आप डॉक्टर के पास जाकर नहीं पूछते, “क्या डॉक्टर मुझें दर्द है? मुझे बताइए। मुझे नहीं पता। मैं उलझन में हूँ।” डॉक्टर कहेगा, “मुझे नहीं पता कि आपको दर्द है या नहीं, लेकिन एक बात मैं निश्चित कह सकता हूँ कि आपको मनोचिकित्सक को जरूर दिखाना चाहिए।” तुम अपने दर्द का सबूत माँग रहे हो। यह हास्यास्पद है। प्रेम ही सबूत है। जब आप किसी को देखते हैं, अगर उसमें प्रेम है तो आप उस प्रेम की चमक देख सकते हैं। इसलिए, यह सबूत मत माँगिए कि दूसरा व्यक्ति आपसे प्रेम करता है। प्रेम को किसी सबूत की आवश्यकता नहीं है। क्रियाएँ और शब्द प्रेम को साबित नहीं कर सकते।

रिश्तों में झगड़े कैसे संभालें?

जब किसी ने मुल्ला नसीरुद्दीन से पूछा कि वह अपनी पत्नी से इतना क्यों झगड़ते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, “क्योंकि मैं उनसे बहुत प्रेम करता हूँ। मैं किसी से झगड़ता हूँ और किसी और से प्रेम करता हूँ? ऐसा नहीं होना चाहिए!” मैं हर काम एक ही व्यक्ति के साथ करता हूँ।” झगड़े भी जीवन का एक हिस्सा हैं। जब आप एक दूसरे पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं, तो झगड़े होते हैं।

दो समान्तर रेखाओं के उदाहरण पर विचार करें।

यदि दो रेखाएँ समानांतर चल रही हैं, तो वे अनंत तक जाती हैं। लेकिन यदि वे एक-दूसरे पर केंद्रित हैं, तो वे एक-दूसरे को पार करेंगी और एक-दूसरे से बहुत दूर चली जाएँगी।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

किसी भी रिश्ते में यही बात लागू होती है। अगर आप चाहते हैं कि यह रिश्ता हमेशा बना रहे तो आपका एक ही लक्ष्य होना चाहिए और एक दूसरे पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए या एक दूसरे पर निगरानी नहीं रखनी चाहिए। यदि आपका ध्यान केवल एक दूसरे पर है, तो एक दिन आप ‘मधुर’ होंगे और अगले दिन आप ‘कड़वे’ हो जाएँगे।

यदि आप दोनों का लक्ष्य एक ही है, सेवा करना, समाज का उत्थान करना, तो झगड़े नहीं होते और प्रेम पनपता है और हर जोड़े के लिए कार्य की भरमार होती है। भारतीय विवाह परंपरा में सप्तपदी नामक एक विधि होती है, जिसमें जोड़े को सात कदम साथ मिलकर उठाने होते हैं। इनमें से एक कदम (प्रतिज्ञा का प्रतीक) यह है कि जोड़े समाज के उत्थान के लिए मिलकर काम करें।

पिछली सदी में, या इस सदी में भी, इस सदी के आरम्भ में भी माता पिता का एक ही लक्ष्य था – अपने बच्चों के लिए। बच्चे ही उनका लक्ष्य थे। इसलिए दोनों ही परिवार को चलाने में अपना सौ प्रतिशत लगाते थें। यद्यपि वे एक दूसरे के खिलाफ शिकायतें करते, फिर भी परिवार एकजुट रहता। और फिर भी वे एक दूसरे से बहुत प्रेम करते।

इसके अलावा, टकराव के लिए भी कुछ जगह छोड़ दें। आप नहीं चाहते कि हर कोई आपके जैसा हो। यह बहुत नीरस और उबाऊ होगा। टकराव की अपनी जगह है। इससे जीवन अधिक चुनौतीपूर्ण, दिलचस्प और अधिक प्रेमपूर्ण हो जाता है।

इसके अलावा, जीवन में और विशेषकर रिश्तों में हास्य बहुत आवश्यक है। यह आपके गुस्से को कम कर सकता है। यह आपके उस गुस्से को कम कर सकता है जो किसी गंभीर बातचीत के कारण आपके अंदर पैदा हो जाता है। देखिए, मतभेद भी रह सकते हैं। लेकिन जब हास्य होता है, तो यह नुकसानदेह नहीं होता। हास्य के बिना, मतभेद आपको विभाजित कर सकते हैं और आपको अलग-अलग कोनों में डाल सकते हैं।

हास्य एक जोड़ने वाली शक्ति है

लड़ाई सिर्फ बराबर वालों में ही हो सकती है। जब आप किसी से लड़ते हैं तो आप उसे बराबर बना देते हैं। लेकिन असल में आपके बराबर कोई नहीं है। जब आप लोगों को अपने से ऊपर या नीचे रखते हैं, तो कोई लड़ाई नहीं होती। जब वे आपसे ऊपर होते हैं, तो आप उनका सम्मान करते हैं। जब वे आपसे नीचे होते हैं, तो आप उनसे प्रेम करते हैं और उनके प्रति दया महसूस करते हैं।

या तो समर्पण या करुणा आपको कुछ ही समय में लड़ाई से बाहर निकाल सकतें है

जब आप लड़ते-लड़ते थक जाते हैं, तो इसे देखने का एक तरीका यह है। जब आप अच्छी तरह से आराम कर लें, तो बस, लड़ें और मजे करें।

यही बात मन पर भी लागू होती है। जब तक मन यह सोचता है कि वह इन्द्रियों के बराबर है, तब तक संघर्ष जारी रहता है। जब उसे यह अहसास हो जाता है कि वह इंद्रियों से बड़ा है, तो कोई संघर्ष नहीं होता। और जब मन इंद्रियों से छोटा होता है, जैसे जानवरों में होता है, तो कोई संघर्ष नहीं होता। जब मन इंद्रियों में फंस जाता है, तो लगातार संघर्ष होता रहता है। जब यह इंद्रियों से परे हो जाता है, तो यह अपने असली स्वरूप में वापस आ जाता है, जो कि मासूमियत है – मतलब जिसे कोई समझ नही है’। लग सकता है, कि इसका कोई अर्थ नहीं है। पर यह हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है – मासूमियत/ भोलेपन का अपना स्थान है।

रिश्तों में गलतफहमी को कैसे संभालें?

यदि कोई गलतफहमी है, तो इसे अनदेखा करें। शिक्षित करें और अनदेखा करें। पोस्टमॉर्टम मत करो। “तुमने वैसा क्यों कहा? तुमने ऐसा क्यों कहा? तुम मुझे पसंद करते हो। तुम मुझे पसंद नहीं करते। तुम मुझसे प्रेम करते हो। तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।” कितना समय बर्बाद हुआ! हम भावनात्मक कचरे में डूबे रहते हैं! आपको उन्हें बाहर फेंक देना चाहिए और पूरे उत्साह के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

शिकायत करते हैं और लोगों से स्पष्टीकरण मांगते रहते हैं। पारिवारिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए आपको दो चीजों की जरूरत है:

कोई स्पष्टीकरण नहीं और कोई शिकायत नहींबस इतना ही।

दूसरों से स्पष्टीकरण माँगना एक मूर्खतापूर्ण बात है और दूसरों को यह सोचकर समझाना कि वे समझ जाएँगे, एक और मूर्खतापूर्ण बात है। यह दोनों तरह से काम नहीं करता।

रिश्तों में ईर्ष्या और असुरक्षा से कैसे निपटें?

आप किसी से उसके गुणों की वजह सें प्रेम करतें हैं और उसके प्रति आत्मीयता की भावना भी नहीं रखतें। तब इस तरह का प्रेम प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या को जन्म देता है।

आप पाएँगे कि बच्चों में भी यह स्वभाव का हिस्सा है। जैसे ही घर में दूसरा बच्चा पैदा होता है, बड़े बच्चे को ईर्ष्या होने लगती है। किसी को उन्हें ईर्ष्या करना सिखाने की जरूरत नहीं है।

आपको अपनी प्रतिभा पर बहुत गर्व है, आप उस पर गर्व करते हैं। और अगर आपको लगता है कि किसी और के पास आपसे बेहतर प्रतिभा है तो ईर्ष्या होने लगती है। क्या करें? मानव जीवन इसी कुएँ में फंसा हुआ है।

हालांकि, आपको जलन इसलिए होती है क्योंकि आपका कोई बहुत करीबी व्यक्ति आपसे कहीं ज्यादा हासिल कर रहा है। लेकिन जरा खुद को उनकी जगह रखकर देखिए। मान लीजिए कि आप कुछ हासिल कर रहे हैं। क्या आप चाहेंगे कि दूसरे लोग आपसे ईर्ष्या करें? हम इस बारे में सोचने के लिए कभी समय नहीं निकालते। क्या आप चाहेंगे कि दूसरे लोग आपसे ईर्ष्या करें क्योंकि आपने कुछ हासिल किया है या आपके पास कुछ अद्भुत है? आप ऐसा नहीं चाहते। क्या आप चाहते हैं कि दूसरे भी आपकी खुशी में, आपके आनंद में भागीदार बनें?  आप भी ऐसा ही करें।

आपको दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। अगर कोई खुश है तो आप उसकी खुशी में भागीदार बनें। या तो आप उनके अच्छे होने की कामना कर सकते हैं या आप उनके ग्रेड, खेल में उनकी उपलब्धियों और फिर अंततः रिश्ते के बारे में ईर्ष्या कर सकते हैं। आप किसी से प्रेम करते हैं और वह व्यक्ति किसी और से प्रेम करता है। इस तरह की स्थिति निश्चित रूप से आपके अंदर ईर्ष्या और उथल-पुथल पैदा करती है। यहाँ आपको यह जान लेना चाहिए कि जीवन इन अलग-अलग घटनाओं से कहीं बड़ा और सरल है। इसमें ईर्ष्या करने जैसी कोई बात नहीं है।

जो तुम्हारा है वो हमेशा तुम्हारा ही रहेगा। जो कुछ भी चला जाता है वो पहले कभी तुम्हारा नहीं था। अगर तुम ये जान लोगे तो तुम शांति से रहोगे।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

रिश्ते में दुख से कैसे उभरें?

चोट लगना या न लगना आपकी मर्जी है। लोग आपको चोट नहीं पहुँचाते। यह आपका मन, आपकी कमजोरी और आपकी अपनी भावनाएँ हैं जो आपको उलझाती हैं और आपको चोट पहुँचाती हैं।

मैं तुमसे कहता हूँ, पहले दया करो, उन्हें चेतावनी दो। देखो, ‘मैं तुम्हारी चोट सहना जारी नहीं रख सकता। यह मुझे दुखी कर रहा है।’ उनसे पूछो, ‘क्या तुम्हें इस बात का एहसास है? तुम क्या कह रहे हो? क्या तुम्हारा इरादा मुझे दुख पहुँचाना है?’ एक, दो, तीन मौके। अगर यह चलता रहता है, तो आप कहते हैं, ‘मैं अपना दिमाग बचाना चाहता हूँ।’ अगर उनका व्यवहार अच्छा नहीं है, तो आप कहते हैं कि वे ठीक नहीं हैं, वे बीमार हैं या कुछ और,  केमिस्ट्री मेल नहीं खा रही है, वे आपके साथ मेल नहीं खा रहे हैं। फिर आप कह सकते हैं, ‘आपकी अपनी जिंदगी है। अगर आप चाहते हैं कि हम साथ रहें, तो आप जिस तरह से चल रहे हैं, वैसे हम नहीं चल सकते।’

दर्द और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

दीर्घकालिक संबंध में कैसे सफल हों?

प्राचीन ऋषियों ने इसके लिए एक योजना बनाई थी। वे जानते थे कि हर कोई पूर्ण आनंद की स्थिति में तब तक नहीं रह सकता जब तक कि उसे इस बात का ध्यान न रहे कि कोई उनका सम्मान करता है या नहीं। उन्होंने एक नियम बनाया कि चाहे कोई किसी से कितना भी प्रेम क्यों न करे, साल में एक महीने के लिए उसे उससे अलग रहना होगा और उसे जगह देनी होगी। भारत के कुछ भागों में यह प्रथा प्रचलित है, जहाँ पत्नी बरसात के मौसम में एक महीने के लिए अपने मायके चली जाती है। परंपरा कहती है कि पति-पत्नी उस एक महीने के दौरान एक ही दरवाजा पार नहीं कर सकते। दूरी के साथ प्रेम बढ़ता है। जब कोई अपने साथी के साथ 24 घंटे रहता है, तो कोई मतलब नहीं रह जाता। जब तक कोई भी संवाद अनकहा नहीं होता, तब तक कोई भी तड़प नहीं होती।

प्रेम और तड़प को साथ-साथ चलना चाहिए। तड़प प्रेम को समृद्ध करती है और प्रेम तड़प को समृद्ध करता है” 

दोनों का होना जरूरी है। उस तड़प को पैदा करने के लिए एक दूरी बनाने की जरूरत है। आपको विरोधाभास को जानने की जरूरत है और किसी भी चीज का अनुभव करने के लिए आपको विरोधाभास का अनुभव करने की जरूरत है। जीवन ऐसे विरोधाभासों का एक समूह है।

    Hold On!

    Don't leave without a smile

    Talk to our experts and learn more about Sudarshan Kriya

    Reverse lifestyle diseases | Reduce stress & anxiety | Raise the ‘prana’ (subtle life force) level to be happy | Boost immunity

    *
    *
    *
    *