परम मित्रता की कसौटी
“जब आप किसी मित्र के पास कोई समस्या लेकर जाते हो और आप वहाँ से हल्का अनुभव कर के लौटते हो तो वह अच्छा मित्र है।”
एक अच्छे मित्र की पहचान यही है कि उसके साथ बैठकर, उससे बातें कर के जब उससे विदा होते हो, आप पहले से अच्छा महसूस करते हो। आपकी समस्याएँ बहुत गौण दिखनी चाहिएँ। तब यह समझो कि वह अच्छा मित्र है। और यदि आप किसी के पास जाते हो, उससे आधा घंटा बातें करते हो, अपनी समस्या बताते हो, किंतु जब वहाँ से बाहर निकलते हो तो आपको बहुत भारीपन महसूस हो, और लगे कि आपकी समस्या तो आपकी सोच से भी बहुत बड़ी है, तो वह अच्छा मित्र नहीं है।
एक सच्चा मित्र वही है जिसकी संगति हमारे मनोबल को बढ़ता हैं; और एक झूठा मित्र वह है जिसकी संगति हमें पतन की ओर के जाए।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
अच्छे मित्र के 4 गुण
1. मैं यहाँ तुम्हारे लिए हूँ!
मित्रों से कुछ माँग न करना और उन्हें आश्वस्त करना कि तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो, यही मित्रता का मूलमंत्र है। इस बात पर विश्वास रखो: आपके लिए जो आवश्यक है, वह आपको मिलेगा। देने वाला कोई और है, इसलिए प्रेम की माँग मत करो। जब आप प्रेम की माँग करते हैं तो आप प्रेम को नष्ट रहे होते हैं। इसलिए आपको कभी भी लोगों से प्रेम या ध्यान की अपेक्षा की माँग नहीं करनी चाहिए। यदि आप केवल प्रेम या आदर सम्मान देने के लिए ही हैं तो कोई भी व्यक्ति आपके साथ सहज रहेगा। किंतु यदि आप उनसे कुछ अपेक्षा कर रहे हो तो आप उन्हें बहुत असहज स्थिति में डाल देते हो।
आप यह बात प्रत्येक व्यक्ति को नहीं कह सकते परंतु बुद्धिमान लोग जो यह समझते हैं, अपना रास्ता बना सकते हैं। अपने मित्रों से कहो, “मैं तुम्हारे लिए उपस्थित हूँ”, मुझे तुमसे मित्रता के अतिरिक्त कुछ और नहीं चाहिए। यही आपकी मित्रता को लंबे समय तक बनाए रखेगा। यदि आप ऐसी सोच रखते हो, तो आपको क्या लगता है कि आपका मित्र आपकी सहायता नहीं करेगा? जब भी आपको मदद की आवश्यकता होगी, वे अवश्य मदद के लिए आगे आएँगे। और एक नहीं, दस लोग आपकी सहायता को आगे आएँगे।
2. निःस्वार्थ मदद
जब कभी भी आप उनके लिए कुछ भला काम करो, उसका ढिंढोरा मत पीटो। उनको बार बार उसकी याद मत दिलाओ। आपको कैसा लगता है जब कोई आपकी सहायता करता है और फिर उसी के बारे में बात करता रहता है? आपको घृणा होती है, है न? आप उनसे दूर ही जाना चाहोगे। कोई भी उपकार के बोझ तले रहना नहीं चाहता, इसलिए लोगों को यह महसूस मत करवाओ कि आपने उपकार किया है। लोगों को छोटा महसूस मत करवाओ। यदि आपने किसी के लिए बहुत कुछ अच्छा किया है तो कभी कभी उनसे थोड़ी बहुत सहायता माँग लो, जैसे कि रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे तक पहुँचाने जैसा कार्य। ऐसा ही कोई छोटा कार्य, ताकि आप दूसरे व्यक्ति का आत्मसम्मान बनाए रख सको।
कुछ लोग बहुत सारा दान-पुण्य करते तो हैं किंतु दूसरे व्यक्ति का आत्मसम्मान छीन लेते हैं। यह अच्छी बात नहीं है। एक सज्जन मेरे पास आए और बोले, “मैंने कभी किसी से एक पाई भी नहीं ली, मैंने अपने भाइयों और दोस्तों को केवल दिया ही है। मैंने इतना कुछ किया है, किंतु कोई भी मेरे साथ रहना नहीं चाहता, कोई मुझसे मिलना नहीं चाहता, कोई मुझसे बात नहीं करना चाहता। यह बहुत विचित्र बात है, जबकि मैंने कभी किसी से कुछ नहीं चाहा।” मैंने उससे पूछा, “आपने उनसे तुम्हारे लिए कभी कुछ करने को कहा?” उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं, कभी नहीं, और मैंने दृढ़तापूर्वक कहा भी कि मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए।” इससे क्या हुआ? उसने लोगों के आत्मसम्मान को आहत किया। जब आत्मसम्मान खोने का भय हो तो कोई भी उस व्यक्ति के संग नहीं रहना चाहता।
भ्रमित करने वाला?
आपको यह थोड़ा भ्रमित करने वाला लग सकता है। एक ओर तो मैं कह रहा हूँ कि मुझे कुछ नहीं चाहिए और दूसरी ओर यह भी कह रहा हूँ कि दूसरों के आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए उनसे कोई माँग करो। यही तो एक कला है! यह दोनों परस्पर विरोधाभासी स्थितियाँ हैं। दूसरे व्यक्ति के आत्मसम्मान को बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है, और दूसरा उनसे कोई भी अपेक्षा न रखना। इसलिए पहले दृढ़ता, तत्पश्चात विनम्रता।
3. जगह देना
“आपकी माँ आपको कई बार बोलती है, ‘भाड़ में जाओ!’ यदि आप सच में भाग गए तो उसकी हालत क्या होगी? उसे दिल का दौरा आ जाएगा! इसलिए शब्दों को अधिक महत्व न दें। शब्दों के परे देखना सीखें।”
बहुत बार हम ऐसा कुछ बोल देते हैं, जिसका अर्थ वह नहीं होता जैसा हमने बोला हो। कभी सोचा है, क्या होगा यदि लोग आपके कहे शब्दों को सही मान लें और उन शब्दों के पीछे के अर्थ या उनके परे न देखें? क्या आप यह पसंद करोगे? नहीं। आप चाहते हो कि लोग आपके शब्दों से आगे जा कर समझें। क्या आप ऐसा करते हो? शायद अधिक नहीं। क्या आप उनके शब्दों को अक्षरशः मान लेते हो? आप दूसरों से अपेक्षा करते हो कि वे आपके शब्दों को उस रूप में न लें जैसे उन्हें कहा गया है। आप उनसे तो अपेक्षा करते हो कि वे शब्दों से परे जा कर उन्हें समझें परंतु आप दूसरों के शब्दों को वैसा ही समझ लेते हो। आप उन्हें संदेह का लाभ नहीं देना चाहते। हो सकता है आप जो कह रहे हों उसका सही अर्थ वह न हो। आप यह भी जानते हो कि आपने इस प्रकार बहुत सारे संबंध बिगाड़े हैं। ऐसा हुआ है न? क्या उससे आपकी मित्रता पर उसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है? चूँकि हम उन्हीं शब्दों को सही मान लेते हैं जो दूसरों द्वारा कहे गए हैं। हम यह देखने का प्रयास ही नहीं करते कि उनके द्वारा कहे गए शब्दों के पीछे का मंतव्य क्या है।
जो लोग केवल शब्दों द्वारा ही लोगों से जुड़े होते हैं, वास्तव में अच्छे मित्र नहीं होते। उनकी मित्रता सतही होती है। वह बनावटी होती है। आप भली भाँति जानते हो कि कोई आए और तुमसे कहे, “ओह, धन्यवाद, मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ।” किंतु, यदि आप थोड़े भी संवेदनशील हो तो यह जानते हो कि वह जो कह रहे हैं, सिर्फ दिखावटी प्रेम है। यह बिल्कुल सतही है। आप समझदार हो, आप यह जानते हो। आप पहचान गए हो कि वह व्यक्ति विश्वसनीय नहीं है। यह किसी भी सभ्य, संस्कारी व्यक्ति का लक्षण है क्या? ऐसे व्यक्ति केवल किसी के शब्दों को पकड़ कर नहीं बैठते और उसे बार बार दोहराते नहीं रहते।
किसी भूखे इंसान के विषय में सोचो, जिसकी दृष्टि केवल भोजन पर है और वो उस भोजन को पाने के लिए उस पर टूट पड़ता है। अब उन लोगों के विषय में सोचो जो शालीन हैं, जिनको यदि एक या दो दिन भूखा भी रहना पड़े तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। आप जानते हो, उन दोनों की मनोदृष्टि में बहुत बड़ा अंतर है।
लोग या तो भावनाओं के भूखे हैं, या वे पहचान/ मान्यता के भूखे हैं, वे ऐसी वस्तुओं के लिए लालायित हैं जिसके विषय में उन्हें आभास ही नहीं कि उन्हें चाहिए क्या। इसलिए वे ऐसा व्यवहार करते हैं, ऐसे शब्द बोल जाते हैं, जो कहने का उनका मतलब नहीं होता। परंतु क्या हम उन्हें थोड़ा स्थान नहीं दे सकते? उन्हें समायोजित करो। कोई बात नहीं, उन्हें समझ आ जाएगा। इससे क्या होगा? यह आपके मन को बचाएगा। यह तो आपको पता ही है, और यही हमारा मंत्र भी है, ‘अपने मन को किसी भी कीमत पर बचाओ।’ यदि आप अपने मन को बचा लेते हो तो आप किसी भी स्थिति पर विजय पा सकते हो। इसलिए यदि लोग ऐसा वैसा कुछ बोल भी दें तो उन्हें संदेह का लाभ दो, उनके कहे शब्दों को पकड़ कर मत बैठो और उस के कारण उनका विरोध मत करो। कोई बात नहीं, जाने दो। ऐसा कर के आप गलत हो गए तो? कोई बात नहीं, उन्हें चंद गलतियाँ करने दो। आप देखोगे कि आप एक अच्छे मित्र प्रमाणित होओगे और आपकी मित्रता गहरी हो जाएगी।
4. दिलेर मित्रताएँ
“दिलेर वे हैं जो मित्रता को मित्रता के लिए निभाते हैं। ऐसी मित्रता न तो कभी नष्ट नहीं होती है और उसमें कभी कड़वाहट आएगी, क्योंकि वह व्यक्ति की मैत्रीपूर्ण प्रवृत्ति से उपजी है।”
अपनी दोस्तियों पर दृष्टि डालो, वे प्रायः किसी उद्देश्य के लिए बनी होती हैं। मित्रता होने के अनेक कारण हो सकते हैं:
- आप किसी को दोस्त बनाते हो क्योंकि आप दोनों के शत्रु एक ही हैं।
- डर और अस्तित्व का संकट लोगों को एक साथ ला सकता है।
- आप मित्र बनाते हैं क्योंकि आप की समस्याएँ एक समान है। आप अपनी समस्याओं के विषय में बात करते हो और मित्र बन जाते हो। उदाहरण के लिए कोई बीमारी, नौकरी के कारण असंतोष आदि।
- लोग आपस में जुड़ते हैं क्योंकि उनकी हित एक समान होते हैं। उदाहरण के लिए व्यापारिक मामलों को लेकर अथवा व्यवसाय के कारण (जैसे डाक्टर, आर्किटेक्ट, समाज सेवी इत्यादि)।
- आप मित्र बनाते हो क्योंकि आपकी रुचियाँ एक जैसी हैं। खेलों में, सिनेमा, मनोरंजन, संगीत, शौक पालने वाले आदि में रुचि एक जैसी हो सकती है।
- करुणा और सेवा भी लोगों को निकट लाती है। किसी के प्रति करुणा और दया की भावना भी आपको उनसे मित्र बना सकती है।
- लंबे समय तक रहने वाली जान-पहचान भी मित्रता में परिवर्तित हो सकती है।
केवल ज्ञान द्वारा ही किसी व्यक्ति की प्रवृति मैत्रीमय हो सकती है।
कोमल शक्ति: नूडल्स से सीखें!
मित्रता आपके स्वभाव में होनी चाहिए। कभी भी यह कह कर अपने अहंकार को मत दर्शाओ कि तुमने न तो कभी किसी से कुछ नहीं लिया और न ही कुछ लेना चाहते हो। हो सकता है यह सत्य भी हो, परंतु आपको इसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। ऐसा कहना , “मैं तो बहुत विनम्र हूँ”, विनम्रता कदापि नहीं है।
आत्मीयता के साथ मर्यादा: बहुत से लोग जो अधिक गरिमामय और मर्यादित होते हैं, स्वयं को पृथक रखते हैं। ऐसे लोगों में स्नेह और विनम्रता नहीं होती। जो लोग स्नेहमयी और विनम्र होते हैं, वे गरिमा खो देते हैं। नूडल्स की भाँति वे बहुत रुचिकर और घुमावदार तो होते हैं। नूडल्स की कल्पना करो, वे किसी पेस्ट की भाँति एक साथ इस प्रकार जुड़ी होती हैं कि आप उन्हें काँटे से भी उठा नहीं पाते। वे किसी काम की नहीं हैं।
नूडल्स का एक अच्छा उदाहरण है। वे न ज्यादा मुलायम और चिपचिपे होते हैं, न ही बहुत सख्त। बीच का मार्ग – विनम्रता और मर्यादा, यही मित्रता का रहस्य है। जब भी किसी व्यक्ति का मनोबल गिरा हुआ हो, उसे ऊपर उठाओ।
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से साथ काम करना पसंद करोगे जो हर समय चिड़चिड़ा ही बना रहता हो? जो हर समय अहंकार में डूबा रहता हो? नहीं। जो हर समय अभद्र व्यवहार करता रहता हो? क्या आपमें भी ऐसे गुण (अवगुण) हैं? बेहतर है कि आप स्वयं पर दृष्टि डाल कर जाँच कर लें। क्या आप अहंकारी हैं, दुष्ट हैं, दूसरों के लिए चिड़चिड़े बने रहते हैं? यदि ऐसा है तो ‘ध्यान’ करो। कुछ मिनटों का ध्यान आपके मन को शांत कर देगा। इससे आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा और मित्रता का भाव विकसित होगा। आपकी उपस्थिति को लोग पसंद करेंगे। आप ज्यादा मित्र बनाने में आनंद महसूस करेंगे।
“जब आप मैत्रीपूर्ण होते हैं तो सारा संसार आपका मित्र बन जाता है। हर कोई आपके पास आना चाहता है। ”
क्या आप जानते हैं?
अपने मित्रों के साथ होते हुए आप अपना केंद्रीकरण खो देते हो। और आपका दुश्मन आपको वापस तुम्हें केंद्रित कर देता है! आपके मित्र आपके साथ सहानुभूति रखने लगते हैं और आपको भौतिकता में विश्वास करना सिखाते हैं। आपका शत्रु आपको असहाय महसूस करवाता है किंतु आपको आत्मा की ओर ले जाता है! इसलिए आपका शत्रु वास्तव में आपका मित्र है और आपका मित्र आपका शत्रु!
जो व्यक्ति हर जगह (यहाँ तक कि स्वयं से भी) अनासक्त और अप्रभावित रहता है, उसकी चेतना स्थिर होती है और उसकी जागरूकता दृढ़ रहती है।
– श्री कृष्ण
एक मित्र आपका शत्रु है और शत्रु आपका मित्र।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर