हिंदू पुराणों में भगवान विष्णु और मधु-कैटभ से उनके युद्ध की एक कहानी है। भगवान विष्णु के कान के मैल से पैदा हुए दो राक्षस मधु और कैटभ भगवान को परेशान कर रहे थे। मधु का अर्थ है ‘मनभावन/पसंद/रुचिकर’ और कैटभ का अर्थ है ‘घृणा/नापसंद’। भगवान विष्णु ने एक हजार वर्ष तक युद्ध किया लेकिन वह उन पर विजय नहीं पा सके।
लेकिन वह उस राग और द्वेष को कैसे नष्ट कर सकते थे जिसे उन्होंने स्वयं पैदा किया था? इसलिए उन्होंने देवी (दिव्य चेतना) को पुकारा। जब चेतना का उदय होता है तो राग और द्वेष विलीन हो जाते हैं। जल की सहायता से देवी ने मधु और कैटभ को नष्ट कर दिया। यहाँ जल ‘प्रेम’ का प्रतीक है। अत: प्रेम की सहायता से चेतना पसंद और घृणा/नापसंदगी को नष्ट कर देती है। जब चेतना प्रेम से भर जाती है तो न तो कुछ रुचिकर रहता है और न ही घृणा – केवल शाश्वत प्रेम ही रहता है।
क्रोध और घृणा का उदय सुनने से होता है। न तो रचयिता (ब्रह्मा) और न ही संहारकर्ता (शिव) सुनते हैं। दोनों बस अपना काम करते हैं और प्रस्थान करते हैं। पर जो दुनिया और उसके मामलों का प्रबंधन करते हैं (विष्णु), उन्हें हर किसी को सुनना पड़ता है। तभी क्रोध प्रकट होता है।
लोग क्यों लड़ते हैं: मूल कारण
लोग लड़ते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सही हैं। सही होने की यही भावना उन्हें लड़ने की शक्ति देती है। अगर किसी को लगता है कि वह गलत है तो उसमें लड़ने की शक्ति नहीं होती।
सही की इस सीमित और संकीर्ण समझ ने दुनिया में खराब स्थिति पैदा कर दी है। विश्व के सभी युद्ध इसी कारण हुए हैं।
यदि हम अपनी दृष्टि का विस्तार करें और निष्पक्षता से सत्य को देखें तो हमें एक अलग तस्वीर दिखाई देगी। हमारी सही होने (नीतिपरायणता) की भावना एक मानसिक अवधारणा है; किसी भी प्रभाव का वास्तविक कारण इसके परे है। बुद्धिमत्ता उस वास्तविक और परम कारण को देखने में है।
आज की दुनिया में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो हमें क्रोधित करती हैं, क्रोध के बाद अपराधबोध, हिंसा, घाव, घृणा और आहत होने के भाव आते हैं। इस चक्र को तोड़ना कठिन हो जाता है। क्रोध से निपटने के लिए 5 युक्तियां इस तरह हैं:
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क्रोधित व्यक्तियों को पटाखे की तरह समझें
क्रोधित व्यक्ति को एक पटाखे की तरह देखें। दिवाली पर हम पटाखे जलाते हैं और फिर भाग कर दूर से उसका आनंद लेते हैं। कुछ समय बाद वह शांत हो जाता है। क्रोधित व्यक्ति भी ऐसा ही होता है।
लेकिन हम घर के अंदर न तो पटाखे जलाते हैं और न ही उसके नजदीक कोई कीमती चीज रखते हैं। इसलिए बस यह देखिये कि क्रोधित लोगों के आसपास कोई कीमती चीज न हो।
क्रोधित लोगों के बिना इस दुनिया में कोई मजा नहीं है। इसलिए खुद को बचाएं और दूर से ही उन्हें देखें। उनमें फंसें नहीं, आपको मजा आएगा!
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क्रोध पर चेतना से विजय प्राप्त करें
जब आप क्रोधित होते हैं और उसे व्यक्त नहीं करते तो आपको घुटन महसूस होती है। वहीं जब आप उसे व्यक्त करते हैं तो आपको अपराधबोध होता है, समाधान है इन दोनों से ऊपर उठना। जीवन को एक अलग दृष्टिकोण से देखें।
अपनी भावनाओं को एक सजावट के रूप में देखें – जैसे केक पर विभिन्न रंगों और डिज़ाइनों की आइसिंग। इस सजावट से पदार्थ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी प्रकार यह भावनाएँ आपको बंधन में डालने वाली या आपको अपराधबोध महसूस करवाने वाली नहीं होनी चाहिये । यह तब होगा जब आप अपनी चेतना में विकसित होंगे।
नवरात्रि के दौरान हम सत्संग करते हैं और आहार का ध्यान रखते हैं, जिससे मन भक्ति की लहरों में गोता लगाने लगता है। इस तरीके से हम क्रोध व अन्य बुराइयों के सभी अवसरों से बच जाते हैं।
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आक्रामकता से निपटने के लिए शक्ति का प्रयोग करें
आपमें आक्रामकता क्यों उदय होती है? जब आप सोचते हैं कि कोई आपसे बड़ा है तो आप आक्रामक हो जाते हैं, है ना? इसके बारे में सोचिए। जब कोई वास्तव में आपसे बड़ा होता है, या वह बहुत छोटा होता है, तो आप आक्रामक नहीं होते हैं। लेकिन जब आप सोचते हैं कि कोई आपके बराबर है, या आपसे थोड़ा सा ही बड़ा या छोटा है, तो आप आक्रामक हो जाते हैं। यह स्वयं की ताकत के बारे में अज्ञानता के कारण होता है। जागो और देखो कि तुम क्या हो और किसके साथ आक्रामक हो रहे हो।
जब आपने मच्छर को मारना होता है तो आप आक्रामक नहीं हो जाते! आप जानते हैं कि यह सिर्फ एक मच्छर है और इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता। इसी प्रकार अपनी ताकत के प्रति जागरूक हों।
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थोड़ी अपूर्णता मन के लिए स्वास्थ्यप्रद है
पूर्णता की अत्यधिक अपेक्षा मन में क्रोध और हिंसा लाती है इससे अपूर्णता को स्वीकार करना कठिन हो जाता है। कभी-कभी काम योजना के अनुसार नहीं होते। ऐसी स्थिति को संभालने के लिए व्यक्ति को तैयार रहना चाहिए।
अपूर्णता को भी जीवन में थोड़ा स्थान दें यह आवश्यक है। यह आपमें अधिक धैर्य लाती है। धैर्य के बढ़ने से क्रोध कम होता है और क्रोध कम होने से हिंसा नहीं होती।
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प्रेम को ज्ञान की ढाल दो
यदि कोई व्यक्ति जिससे आप प्रेम करते हैं, आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप व्यवहार नहीं करता तो आप दुखी हो जाते हैं। सड़क चलते किसी अनजान व्यक्ति से तो आप आहत नहीं होते ! लेकिन यदि कोई व्यक्ति जिसे आप प्यार करते हैं या अपना करीबी समझते हैं, जब वह आपका अभिवादन नहीं करता या आपकी ओर देखकर नहीं मुस्कुराता तो आप आहत हो जाते हैं।
जब लोग आहत हो जाते हैं तो वे खुद को बंद कर लेते हैं, कठोर दिल वाले बन जाते हैं और क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते हैं।
प्यार एक सुन्दर और नाज़ुक भावना है; यह आसानी से आहत हो जाती है और जल्दी ही घृणा, क्रोध, दोष, विद्वेष, कड़वाहट या ईर्ष्या में बदल सकती है।
आप इस नाजुक भावना को हमारे समाज में विकृत होने से कैसे बचा सकते हैं? ज्ञान से। यह इस प्यार की रक्षा के लिए सही ढाल है। ज्ञान प्रेम की पवित्रता को बनाये रखता है और उसे सभी प्रकार के विकारों से दूर रखता है। संतों का प्रेम सदा पवित्र होता है क्योंकि उसकी रक्षा के लिए ज्ञान का कवच होता है।
साथ ही जब आप साधना की गहराई में जाते हैं तो आप बहुत सूक्ष्म स्तर पर प्रेम का अनुभव कर सकते हैं।
क्रोध कब अच्छा है?
क्या कभी भी क्रोध न करना संभव है?
आपका अनुभव क्या रहा है? बचपन में जब आपसे टॉफ़ी छीन ली जाती थी तो आप क्रोधित हो जाते थे। जब आप स्कूल, कॉलेज और ऑफिस में थे तो आपको अलग-अलग कारणों से अलग-अलग व्यक्तियों पर क्रोध आ जाता था। हम सभी क्रोधित होते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि आप कितनी जल्दी अपने गुस्से से बाहर आते हैं। तीन कारक इसे तय करते हैं:
- पहला कारक है आपके क्रोध की आवृत्ति। यह आपकी ताकत के विपरीत अनुपात में होती है यानि आप जितने कमज़ोर होते हैं, आपमें क्रोध की संभावना उतनी ही अधिक होती है। आप जितने मजबूत होते हैं, आपमें क्रोध की संभावना उतनी ही कम होती है। इसलिए निर्धारित करें कि आपकी ताकत कहाँ है। आप इसे क्यों खो रहे हैं ?
- दूसरा कारक है आपकी दृष्टि। अपने आस-पास के लोगों के बारे में आपकी समझ कितनी गहरी है?
- तीसरा है आपके लगाव का स्तर। क्रोध के पीछे यदि आराम, सुख या अहंकार की इच्छा है तो आपकी प्रतिक्रिया उस समय से भिन्न होगी जब आपके क्रोध का कोई उद्देश्य होता है। यदि आपका क्रोध चीजों को ठीक करने के लिए है, तो वह उपयोगी है।
तो क्रोध सदैव बुरा नहीं होता। यह तब अच्छा हो सकता है जब इसका संयम से उपयोग किया जाए। यदि आप प्रतिदिन इसका उपयोग करते हैं, तो इसका कोई मूल्य नहीं है। बल्कि यह आपके महत्व को कम करता है। इसलिए क्रोध को आपका इस्तेमाल न करने दें। इसके बजाय आप इसे सकारात्मक परिवर्तन के साधन के रूप में उपयोग करें।
सहज समाधि ध्यान योग आपकी ऊर्जा को दिशा दे कर आपको एक सकारात्मक, चिंतनशील और ऊर्जावान स्थान की ओर ले जाने में मदद कर सकता है।