यदि आप इस क्षेत्र में नए हैं और योग सीखना चाहते हैं तो नीचे कुछ योगासन दिए गए हैं जो आपके लिए प्रातःकाल दिन का आरंभ करने के लिए उत्तम हैं। इनको नए लोगों के किए उपयुक्त माना गया है और इन्हें स्वयं ही अथवा किसी श्री श्री योग प्रशिक्षक की देखरेख में आसानी से किया जा सकता है।
हम यहाँ आपके लिए आधारभूत योग प्रशिक्षण के लिए योगासनों को निम्नलिखित चार वर्गों में बाँट कर प्रस्तुत कर रहे हैं:
- खड़े हो कर किए जाने वाले योगासन
- बैठ कर किए जाने वाले योगासन
- पेट के बल लेट कर किए जाने वाले योगासन
- पीठ के बल लेट कर किए जाने वाले योगासन
इन चारों वर्गों के आसनों की श्रृंखला को क्रमबद्ध तरीके से करने की अनुशंसा की जाती है।
- सर्वप्रथम खड़े होकर किए जाने वाले आसनों से आरंभ करें
- तत्पश्चात् बैठ कर किए जाने वाले आसन
- उसके उपरांत पेट के आसनों पर जाएँ
- और फिर पीठ के बल लेट कर किए जाने वाले आसन कर के सत्र समाप्त करें।
खड़े हो कर किए जाने वाले योगासन
1. कोणासन (Konasana in Hindi)
कोणासन, जिसमें एक भुजा को ऊपर आकाश की ओर खिंचाव दिया जाता है जबकि दूसरी भुजा टाँग के साथ नीचे रहती है।
कोणासन के लाभ: यह आसन करने से शरीर अधिक लचीला, संतुलित तथा सुदृढ़ होता है। यह आसन तनाव से राहत और रीढ़ तथा कूल्हों के तनाव को कम करने में सहायक है। यह उन लोगों के लिए भी लाभकारी है जो कब्ज की समस्या से ग्रस्त रहते हैं।
निषेध: जिन लोगों को घुटनों, कूल्हे, रीढ़ की हड्डी अथवा गर्दन में समस्या हो तथा उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, सिर दर्द, और डायरिया (अतिसार) से पीड़ित हों, उनको इस आसन से बचना चाहिए।
कोणासन का दूसरा रूप कोणासन 2. इस आसन में दोनों भुजाओं का उपयोग करते हुए बगल से एक ओर और फिर दूसरी ओर झुकना होता है।
2. कटिचक्रासन (Katichakrasana in Hindi)
कटिचक्रासन, रीढ़ की हड्डी, कूल्हों, तथा कमर को खिंचाव और घुमाव देता है।
कटिचक्रासन के लाभ: यह आसन कब्ज में राहत देने और रीढ़, गर्दन तथा कंधों में दृढ़ता लाने में भी सहायक है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद है जिनको अपने पेशे के कारण कुर्सी-मेज पर अधिक समय तक बैठे रहना पड़ता है।
निषेध: हर्निया, रीढ़ संबंधित समस्याओं से ग्रस्त, घुटनों की चोट, उच्च रक्तचाप अथवा हृदय रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को इससे बचना चाहिए।
3. हस्तपादासन (Hastapadasana in Hindi)
हस्तपादासन, योग के नए अभ्यर्थियों के लिए आधारभूत आसनों में एक है जिसमें धड़ और टांगों को आगे की ओर झुकाना होता है।
हस्तपादासन के लाभ: यह स्नायु तंत्र को पुष्ट करता है, मेरुदंड को लचीला बनाता है तथा पीठ की सभी मांसपेशियों को खिंचाव दे कर मजबूत बनाता है।
निषेध: जिन लोगों को पीठ दर्द, गर्दन, टांगों की चोट अथवा मेरुदंड में समस्या हो।
4. अर्धचक्रासन (Ardha Chakrasana in Hindi)
अर्धचक्रासन, इस आसन में बाजू और टाँग को इस प्रकार घुमाव देना होता है कि शरीर के साथ एक अर्ध चक्र आकृति (चंद्राकार) बन जाए।
अर्धचक्रासन के लाभ: यह धड़ के सामने के ऊपर वाले भाग में खिंचाव लाता है और भुजाओं तथा कंधों की मांसपेशियों को टोन करता है।
निषेध: जिनको बाजुओं, कलाईयों, कंधों, गर्दन, पीठ अथवा कूल्हों में चोट लगी हो तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कारण झुकने और शरीर को संतुलित करने में कठिनता आती हो।
5. त्रिकोणासन (Trikonasana in Hindi)
त्रिकोणासन करने और इससे होने वाले लाभ के विषय विस्तार से जान लें।
इस आसन में दोनों टांगों में दूरी रख के खिंचाव देना, एक हाथ नीचे की ओर ले जाना तथा दूसरे हाथ को ऊपर आकाश की ओर इस प्रकार से खींचना होता है कि शरीर एक त्रिभुज का रूप ले ले।
त्रिकोणासन के लाभ: त्रिकोणासन करने से पाचन तंत्र सुचारू होता है, चिंता और तनाव में कमी आती है और पीठ दर्द से राहत मिलती है। यह आसन शारीरिक और मानसिक संतुलन भी सुधारता है।
निषेध: वे लोग जिनको घुटनों, टांगों, कूल्हों में चोट लगी हो तथा जो पीठ, हृदय रोग, चक्कर आना या जिसके लिए शरीर का संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो।
6. वीरभद्रासन (Virabhadrasana in Hindi)
वीरभद्रासन करने व इससे होने वाले लाभों के विषय में विस्तार से जानें।
यह एक ऐसा आसन है जिसमें एक पैर को आगे और दूसरे पैर को पीछे करके छलांग लगाने की स्थिति में खड़ा होना होता है, जबकि हाथ ऊपर की ओर फैले होते हैं।
वीरभद्रासन के लाभ: वीरभद्रासन शारीरिक क्षमता बढ़ाता है, बाजुओं को सशक्त बनाता है और साहस तथा शारीरिक विन्यास बढ़ाता है। जिन लोगों को अधिकतर समय बैठे बैठे काम करना पड़ता है, उनके लिए यह उत्कृष्ट आसन है। कंधे की अकड़न से पीड़ितों के लिए यह अत्यंत लाभकारी है।
निषेध: ऐसे व्यक्ति जो घुटनों, टांगों, कूल्हों, अथवा पीठ की चोट, उच्च अथवा कम रक्तचाप, और हृदय संबंधी रोगों से ग्रस्त हों।
7. प्रसारित पादहस्तासन (Prasarita Padahastasana in Hindi)
प्रसारिता पादहस्तासन में दोनों टांगों को क्षमतानुसार फैला कर खड़े होना और फिर ऊपरी शरीर को कूल्हों से आगे की ओर झुकाना होता है। दोनों भुजाएँ आगे की ओर फैला कर हथेलियों को नीचे फर्श पर टिकाया जाता है।
प्रसारित पादहस्तासन के लाभ: यह एक विश्राम देने वाला और ग्राउंडिंग आसन है जो हैमस्ट्रिंग, कूल्हों और पीठ के निचले भाग में खिंचाव लाता है और मन को शांत करता है।
निषेध: जिनको पीठ के निचले भाग का दर्द, घुटनों में चोट, अथवा जिनके हैमस्ट्रिंग में चोट या दर्द हो, और जो पीठ के निचले भाग पर बोझ कम करने और ऊपरी भाग को सहारा देने के लिए कृत्रिम आश्रय का उपयोग करते हों। इसके अतिरिक्त गर्दन अथवा रीढ़ की चोट से ग्रस्त लोगों को अपना सिर ऊपर की ओर ही रखने और अधिक न झुकने की आवश्यकता हो सकती है। इस आसन को गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में करने से बचना चाहिए या कृत्रिम आश्रय के साथ संशोधित रूप में करना चाहिए।
8. वृक्षासन (Vrikshasana in Hindi)
यह आसन टाँगों को सशक्त बनाता है तथा संतुलन और स्थिरता में वृद्धि करता है। वृक्षासन में एक पाँव जमीन पर स्थिर रहता है जबकि दूसरा पाँव खड़ी हुई टाँग की जंघा पर इस प्रकार रखते हैं कि यह किसी वृक्ष के तने जैसा प्रतीत होता है। साधारणतया, इस आसन में दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर नमस्ते मुद्रा में जोड़ा जाता हैं।
वृक्षासन के लाभ: एकाग्रता बढ़ाने के लिए यह आसन अति लाभकारी है। यह टाँगों को सशक्त बनाता है, शारीरिक संतुलन में वृद्धि होती है और कूल्हों के जोड़ों को खोल देता है। यह साइटिका रोग, जिसमें पीड़ा की लहर श्रोणी से आरंभ हो कर कूल्हों और जंघाओं तक जाती हैं, से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी लाभदायक है।
निषेध: जिन व्यक्तियों को घुटनों, एड़ियों, अथवा कूल्हों में चोट अथवा अन्य कारणों से कोई समस्या है और उनको जिन्हें उच्च रक्तचाप अथवा सिर में चक्कर आने की बीमारी रहती है।
9. पश्चिम नमस्कारासन (Paschim Namaskarasana in Hindi)
पश्चिम नमस्कारासन में दोनों हाथों को पीठ के पीछे नमस्कार मुद्रा में ऐसे लाया जाता है कि हाथों की उँगलियाँ ऊपर आकाश की ओर उठी हों।
पश्चिम नमस्कारासन के लाभ: यह छाती और कंधों को खोलने में सहायक, शरीर की मुद्रा को संतुलित और मन को शांत करता है।
निषेध: जो लोग कंधों में किसी प्रकार की चोट/व्याधि से पीड़ित हैं उन्हें नहीं करना चाहिए।
10. गरुड़ासन (Garudasana in Hindi)
गरूड़ासन में भुजाओं और टांगों को आपस में इस प्रकार बांधना है कि वह एक गरूड़ जैसे दिखाई दें। इस आसन में बहुत एकाग्रता और स्थिरता तथा टाँगों, एड़ियों और मुख्य मांसपेशियों में शक्ति की आवश्यकता होती है।
गरुड़ासन के लाभ: यह एक प्रकार से शरीर को संतुलित करने का आसन है जिससे विभिन्न अंगों में समन्वयता और स्थिरता बढ़ती है। यह कूल्हों, जंघाओं, कंधों और पीठ के ऊपरी भाग को खिंचाव देता है। गरूड़ासन गठिया (संधिवात) और सिएटिका जैसी व्याधियों के लिए अति उत्तम आसन है।
निषेध: जिन व्यक्तियों को घुटनों की चोट, गर्दन में दर्द, या पीठ के नीचे के भाग में कोई समस्या हो, उन्हें इससे बचना चाहिए।
11. उत्कटासन (Utkatasana in Hindi)
योग के नए अभ्यर्थियों के लिए योगासनों में से एक, उत्कटासन, हमारी टाँगों, पीठ और शरीर के अंतर्भाग (मुख्य भाग) को सशक्त बनाता है। इसमें घुटनों को मोड़ कर कूल्हों को इस प्रकार से नीचे की ओर लाया जाता है जिससे यह आभास हो कि आप किसी काल्पनिक कुर्सी में बैठे हुए हैं। दोनों बाजुओं को सिर से ऊपर उठा कर आसन को पूर्ण रूप दिया जाता है।
उत्कटासन के लाभ: यह आसन पीठ के निचले भाग और धड़ को सबल बनाता है, शरीर को संतुलित करता है और इच्छाशक्ति को विकसित करता है।
निषेध: जिन व्यक्तियों के घुटने चोटग्रस्त हैं, एड़ियों में चोट है अथवा कमर/ पीठ के निचले भाग में कोई समस्या है।
बैठ कर किए जाने वाले योगासन
1. जानुशीर्षासन (Janu Shirasasana in Hindi)
जानुशीर्षासन एक खिंचाव देने वाला योगासन है जिसमें हैमस्ट्रिंग, कमर से नीचे के भाग और कूल्हों पर प्रभाव पड़ता है। इस आसन में पाँव को धरती पर समतल टिकाते हुए एक टाँग को आगे की ओर बढ़ाया जाता है जबकि दूसरे पाँव को पीछे जंघा की ओर खींचते हुए दूसरी टाँग को मोड़ कर रखा जाता है। इसके पश्चात धड़ को आगे बढ़ी हुई टाँग पर आगे की ओर झुकाते हुए पाँव तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है।
जानुशीर्षासन के लाभ: यह आसन पीठ के निचले भाग में खिंचाव देता है तथा पेट के अंगों की मालिश करता है।
निषेध: जिन व्यक्तियों को घुटनों अथवा पीठ के निचले भाग में कोई समस्या है।
2. पश्चिमोत्तानासन (Paschimottanasana in Hindi)
पश्चिमोत्तानासन करने की विधि और इससे होने वाले लाभों के विषय में विस्तार से जान लें।
यह एक खिंचाव देने वाला योगासन है जिसका उद्देश्य हैमस्ट्रिंग, पीठ के निचले भाग और रीढ़ पर असर करता है। इस आसन में दोनों टाँगों को सामने की ओर फैला कर धड़ को सामने टाँगों की ओर मोड़ा जाता है। सामान्यतः इसमें दोनों हाथों को एड़ियों अथवा पाँवों तक लाया जाता है।
पश्चिमोत्तानासन के लाभ: पश्चिमोत्थान आसन से श्रोणी भाग तथा पेट के अंगों की मालिश होती है और कंधों में लचीलापन आता है।
निषेध: जिनको कमर के निचले भाग अथवा हैमस्ट्रिंग की चोट या उससे संबंधित समस्या हो, उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए।
3. पूर्वोत्तानासन (Poorvottanasana in Hindi)
पूर्वोत्तानासन का प्रभाव भुजाओं, कंधों और शरीर के मुख्य अंतर्भाग भाग पर पड़ता है। इस आसन में शरीर को हाथों और पैरों पर टिका कर छाती तथा कूल्हों को छत की ओर ऊपर उठाया जाता है।
पूर्वोत्तानासन के लाभ: पूर्वोत्तानासन थाइरोयड ग्रंथि को प्रेरित करता है और श्वसन प्रक्रिया को उन्नत करता है।
निषेध: जिनको कलाइयों, कंधों अथवा गर्दन की चोट लगी हो। गर्भवती महिलाओं को भी गर्भ की प्रथम तिमाही में इसे करने से बचना चाहिए।
4. अर्द्धमत्स्येंद्रासन (Ardha Matsyendrasana in Hindi)
अर्धमत्स्येंद्रासन एक घुमाव देने वाला आसन है जो मेरुदण्ड और कूल्हों पर प्रभाव डालता है। इस आसन में दोनों टांगों को पालथी मार कर, धड़ को मुड़ी हुई एक टाँग की ओर घुमाव देकर, दूसरी भुजा को पीठ के पीछे से मोड़ना होता है।
अर्द्धमत्स्येंद्रासन के लाभ: यह आसन करने से मेरुदंड अधिक लचीला होता है और फेफड़ों में ऑक्सीजन का अधिक प्रवाह होता है।
निषेध: जिनको गर्दन अथवा पीठ के निचले भाग में कोई चोट हो, उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी गर्भ के प्रथम तिमाही में, अन्य बैठ कर किए जाने वाले आसनों के साथ साथ इसे भी नहीं करना चाहिए।
5. बद्धकोणासन (तितली आसन – Butterfly Pose in Hindi)
बद्धकोणासन का लक्ष्य कूल्हों, जाँघों के अंतर्भाग और श्रोणी को प्रभावित करना है। इसमें दोनों पाँव के तलवों को साथ मिला कर घुटनों को बाहर की ओर इस प्रकार से फैलाना होता है कि वे किसी तितली के पंखों जैसे लगते हैं।
बद्धकोणासन के लाभ: इससे मूत्राशय की समस्याओं, महिलाओं को माहवारी संबंधी असुविधा में राहत देने और मल-त्याग में सहायता मिलती है।
निषेध: जिन व्यक्तियों को घुटनों, अथवा पीठ के निचले भाग संबंधित कोई चोट अथवा अन्य समस्या हो। गर्भवती महिलाओं को द्वितीय और तृतीय तिमाही में यह आसन नहीं करना चाहिए।
6. पद्मासन (Padmasana in Hindi)
पद्मासन का उपयोग प्राय: ध्यान करने और प्राणायाम के लिए किया जाता है। इस आसन में एक पाँव को विपरीत टाँग की जंघा पर इस प्रकार रखा जाता है कि बैठने की एक स्थिर और आरामदेह मुद्रा बन जाती है।
पद्मासन के लाभ: ध्यान करने के लिए यह आदर्श आसन है। यह पाचन तंत्र को सुधारता है और माहवारी संबंधी असुविधाओं को कम करता है। चिंताग्रस्त रहने जैसी स्थितियों से निपटने के लिए भी इस आसन को किया जा सकता है।
निषेध: चोटग्रस्त घुटनों और कूल्हों से पीड़ितों को यह आसन नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को द्वितीय और तृतीय तिमाही में यह आसन नहीं करना चाहिए।
7. मार्जरी आसन (Marjariasana in Hindi)
मार्जरी आसन करने की विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जानें।
यह योगासन मेरुदंड, गर्दन और कूल्हों के लिए लाभप्रद है। इस आसन में शरीर को एक बिल्ली की भाँति बारी बारी से धनुषाकार और गोलाकार मुद्रा में स्थिर किया जाता है। प्रायः यह आसन इसके विपरीत आसन, गौ मुद्रा, के साथ धाराप्रवाह क्रम में किया जाता है।
मार्जरी आसन के लाभ: यह आसन मन को विश्राम देता है, मेरुदंड को लचीला बनाता है, और पाचन क्रिया को सुचारू करता है। आप मेरुदंड में लचीलेपन के लिए यह आसन कर सकते हैं।
निषेध: वे व्यक्ति जिनकी गर्दन अथवा पीठ का निचला भाग चोटग्रस्त है। गर्भवती महिलाओं को भी गर्भ के प्रथम तिमाही में इसे करने से बचना चाहिए।
8. एकपाद राजकपोतासन (Eka Pada Raja Kapotasana in Hindi)
एकपाद राजकपोतासन करने की विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जानें।
यह पीठ को गहरे से मोड़ने वाला योगासन है जिससे कूल्हे, जंघाएँ, पीठ और छाती लाभान्वित होती है। इस आसन में शरीर को हाथों और घुटनों के सहारे रख कर एक टाँग शरीर से पीछे की ओर फैलाई तथा दूसरी धड़ के नीचे झुकाई जाती है।
एकपाद राजकपोतासन के लाभ: यह योगासन शरीर को तनाव और व्यग्रता से मुक्त करता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी आसन है जो श्रोणी क्षेत्र से आरंभ हो कर कूल्हों और जघाओं तक पहुँचने वाली क्रमिक पीड़ा से त्रस्त रहते हैं।
निषेध: जिन व्यक्तियों को घुटनों, कूल्हों अथवा पीठ के निचले भाग संबंधित कोई चोट अथवा अन्य समस्या हो। गर्भवती महिलाओं को द्वितीय और तृतीय तिमाही में यह आसन नहीं करना चाहिए।
9. शिशुआसन (Shishuasana in Hindi)
शिशुआसन तनाव दूर करने के लिए एक उत्तम आसन है जो कूल्हों, जंघाओं तथा पीठ के निचले भाग के लिए अत्यंत लाभकारी है। इस आसन में दोनों घुटनों में दूरी रखते हुए, शरीर को कमर से आगे की ओर इस प्रकार झुकाया जाता है कि माथा चटाई पर रखा जाए।
शिशुआसन के लाभ: यह आसन तंत्रिका तंत्र को शांत करता है और कब्ज से राहत दिलाता है।
निषेध: जिनको घुटनों अथवा एड़ियों में चोट लगी हो। गर्भवती महिलाएँ गर्भावस्था की प्रथम तिमाही में यह आसन न करें।
10. चक्कीचलनासन (Chakki Chalanasana in Hindi)
चक्कीचलनासन शरीर के लिए अति उपयोगी व्यायाम है जिसमें हाथों से चलाने वाली गेहूं पीसने की चक्की को चलाने की नकल की जाती है। इस आसन में दोनों पैरों को फैला कर धड़ को कमर से झुकाते हुए दाएँ और फिर बाएँ, गोला बनाते हुए, कई बार घुमाया जाता है।
चक्कीचलनासन के लाभ: यह योगासन पेट की चर्बी को कम करती है। यह पाचन तंत्र को सुदृढ़ करता है और मेरुदंड को अधिक लचीला बनाता है। इससे गर्दन और पीठ को पर्याप्त खिंचाव मिलता है जिससे इन अंगों में तनाव कम होता है और रक्त प्रवाह सुचारू होता है। महिलाओं द्वारा इसे नियमित रूप से करने पर पीड़ादायक मासिक चक्र से भी आराम मिलता है।
निषेध: जो लोग पीठ अथवा घुटनों की चोट से ग्रस्त हों, मेरुदंड की समस्या से पीड़ित हों, उनके लिए यह आसन वर्जित है। गर्भावस्था में भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
11. वज्रासन (Vajrasana in Hindi)
वज्रासन भूतल (फर्श) पर बैठ कर किया जाने वाला आसन है। इस आसन में टांगों को मोड़ कर दोनों पाँव के पंजों को मिला कर और घुटनों को फैला कर एड़ियों पर बैठना होता है। दोनों हाथों को खोल कर घुटनों पर तथा पीठ को सीधा रख कर बैठना होता है।
वज्रासन के लाभ: इस आसन को ध्यान की एक मुद्रा माना गया है और इसे प्रायः भोजनुपरान्त भोजन को शीघ्र पचन के लिए तथा रक्त संचार सुचारू करने के लिए किया जाता है। यह आसन तनाव और व्याकुलता को कम करता है तथा पीठ और टाँगों की मांसपेशियों को सुदृढ़ करता है।
निषेध: जो लोग घुटनों, पीठ अथवा एड़ियों की चोट या समस्या से पीड़ित हों।
12. गोमुखासन (Gomukhasana in Hindi)
गोमुखासन कूल्हों, जंघाओं और कंधों पर प्रभाव डालता है। इस आसन में एक भुजा पीठ के पीछे की ओर बढ़ाई जाती है और दूसरी भुजा शरीर के सामने मोड़ कर दोनों हाथों को एक दूसरे के समीप लाने का प्रयास किया जाता है।
गोमुखासन के लाभ: व्याकुलता और उच्च रक्तचाप से राहत देता है और श्रोणी क्षेत्र से जंघाओं तक होने वाली पीड़ा को कम करता है।
निषेध: जिन व्यक्तियों को कंधों अथवा कलाइयों में चोट लगी हो। गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था की प्रथम तिमाही में यह आसन करने से बचना चाहिए।
पेट के बल लेट कर किए जाने वाले योगासन
1. वशिष्ठासन (Vasisthasana in Hindi)
वशिष्ठासन एक संतुलन सुधारने वाला योगासन है जो भुजाओं, शरीर के अंतर्भाग (मुख्य भाग) और कूल्हों को सशक्त करता है। इस आसन में टांगों को सीधे रखते हुए सिर से पाँव तक पूरे शरीर को एक सीधी रेखा बनाते हुए, एक बाजू पर संतुलित किया जाता है।
वशिष्ठासन के लाभ: यह आसन पेट को मजबूत बनाता है तथा शारीरिक संतुलन सुधारता है।
निषेध: उन व्यक्तियों को जिनकी कलाई या कंधों में चोट लगी हो। गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था की द्वितीय और तृतीय तिमाही में यह आसन नहीं करना चाहिए।
2. अधोमुख श्वानासन (Adho Mukha Svanasana in Hindi)
अधोमुख श्वानासन करने की विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जानें।
अधोमुख श्वानास भुजाओं, टांगों, पीठ तथा शरीर के मुख्य भाग को प्रभावित करती है। इस आसन में शरीर को औंधा तथा कूल्हे छत की ओर रखते हुए , हाथ और पाँव पर स्थिर करना होता है।
अधोमुख श्वानासन के लाभ: मेरुदंड को लंबा करने के साथ साथ यह आसन मन को शांत करता है। यह आसन सिर दर्द, अनिद्रा और थकान से भी राहत दिलाता है।
निषेध: उन व्यक्तियों को जिनकी कलाइयों, कुहनियों या कंधों में चोट लगी हो। गर्भवती महिलाओं को द्वितीय और तृतीय तिमाही में यह आसन नहीं करना चाहिए।
3. मकर अधोमुख श्वानासन (Makara Adho Mukha Svanasana in Hindi)
मकर अधोमुख श्वानासन एक ऐसा योगासन है जिसका उपयोग प्रायः अधोमुख श्वानासन की तैयारी के लिए किया जाता है। इस आसन में शरीर को हाथों और अग्रबाहुओं (कुहनियों से कलाई तक) पर सहारा देकर टांगों को पीछे की ओर धकेलते हुए पीठ को धनुष की तरह मोड़ा जाता है।
मकर अधोमुख श्वानासन के लाभ: यह आसन शरीर को सशक्त और ऊर्जावान बनाता है, विशेष रूप से मुख्य भाग को, तथा संतुलन बढ़ाने व कंधों, भुजाओं और टांगों में लचीलापन बढ़ाने में भी सहायक होता है। यह शारीरिक संतुलन बढ़ाने और अंगों में समन्वय बढ़ाने के लिए एक उत्तम आसन है।
निषेध: जिन व्यक्तियों की कलाइयाँ चोटग्रस्त हों या जिनको कार्पल टनल सिंड्रोम की समस्या हो, उन्हें इस आसन को अपनी सुविधानुसार कुछ परिवर्तित रूप में करना चाहिए अथवा इसको करने से बचना चाहिए। ऐसे मामलों में हाथों को गुटकों पर टिका कर या चटाई के कुछ भाग को लपेट कर हाथों को उस पर रखा जा सकता है ताकि कलाइयों पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सके।
4. धनुरासन (Dhanurasana in Hindi)
धनुरासन करने की विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जान लें।
धनुरासन एक सक्रिय गतिशीलता तथा ऊर्जा प्रदान करने वाला आसन है जिसमें शरीर को पेट पर स्थिर करते हुए, दोनों टांगों को ऊपर उठाते हुए, पीछे से धनुष की भाँति मोड़ कर दोनों एड़ियों को हाथों से पकड़ना होता है। यह आसन पीठ, गर्दन और टांगों में खिंचाव देता है और उन्हें सशक्त बनाता है।
धनुरासन के लाभ: यह आसन शरीर के संतुलन और लचीलेपन के लिए अति लाभकारी है और पाचन तथा प्रजनन प्रणाली को उत्प्रेरित करता है। यह शरीर के संतुलन और अंगों में समन्वय बढ़ाने के लिए भी एक उत्तम आसन है। महिलाओं द्वारा इस आसन को माहवारी के दिनों में भी किया जा सकता है।
निषेध: जो व्यक्ति पीठ की चोट से पीड़ित हों और स्पाइनल स्टेनोसिस या हर्निएटेड डिस्क जैसी समस्याओं से ग्रस्त हों, उनको यह आसन नहीं करना चाहिए अथवा किसी कंबल, गुटके आदि का सहारा देकर इसे परिवर्तित रूप में करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जिन लोगों को उच्च रक्त चाप या गर्दन में चोट आदि की समस्या हो, उन्हें अपना सिर और गर्दन चटाई पर आराम से टिका कर इसे करना चाहिए अथवा इसे करने से बचना चाहिए।
5. भुजंगासन (Cobra Pose in Hindi)
भुजंगासन का उपयोग प्रायः विन्यास प्रवाह योग (पद्मसाधना, सूर्य नमस्कार आदि धाराप्रवाह योग आसन) में किया जाता है। इस आसन में अभ्यासकर्ता अपने हाथ कंधों के नीचे और कुहनियाँ शरीर के समीप रखते हुए पेट के बल लेट जाते हैं। तत्पश्चात् छाती को जमीन से ऊपर उठाया जाता है और सिर तथा गर्दन को ऊपर और पीछे की ओर करते हुए छाती को ऊपर की ओर उठाया जाता है।
भुजंगासन के लाभ: भुजंगासन थकान और तनाव को दूर करता है और श्वास की समस्याओं से ग्रस्त लोगों के लिए लाभकारी आसन है।
निषेध: जिन लोगों को पीठ, गर्दन आदि में सूजन है या इस भाग में कोई चोट है अथवा मेरुदंड में समस्या है, उन्हें यह आसन करने से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी इस आसन को अपनी सुविधानुसार परिवर्तित रूप में करना चाहिए या गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही में इसे नहीं करना चाहिए।
6. सलंब भुजंगासन (Salamba Bhujangasana in Hindi)
सलंब भुजंगासन पीठ को मोड़ने की एक सौम्य आसान है। यह छाती को खोलने में भी सहायक है, जिससे हृदय भी खुल जाता है।
सलंब भुजंगासन के लाभ: यह योगासन रक्त प्रवाह को सुचारू करने और पीठ में खिंचाव देने में सहायक है।
निषेध: जिन लोगों को गर्दन, पीठ या कंधों में व्याधि हो या वे उच्च रक्त चाप से ग्रस्त हों, उन्हें इस आसन को करने से बचना चाहिए अथवा किसी प्रशिक्षित योग शिक्षक के निर्देशानुसार इसमें सुविधाजनक परिवर्तन करके करना चाहिए। इसी प्रकार गर्भवती महिलाओं को भी इसमें उचित परिवर्तन करके इसे करना चाहिए या बिलकुल नहीं करना चाहिए।
सलंब भुजंगासन तथा इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जान लें।
7. विपरीत शलभासन (Superman Pose in Hindi)
विपरीत शलभासन में भूमि/चटाई पर पेट के बल लेट कर दोनों भुजाओं को सिर के आगे फैलाया जाता है जबकि दोनों टांगों को साथ रखते हुए भूमि से ऊपर उठाना होता है।
विपरीत शलभासन के लाभ: शारीरिक विन्यास को उन्नत करने के लिए यह एक उत्तम आसन है। यह शरीर में लचीलापन लाने के लिए एक उत्कृष्ट आसन है जो पीठ, कूल्हों और टाँगों की मांसपेशियों को सशक्त करता है। यह शारीरिक संतुलन तथा अंग समन्वय में सुधार के लिए भी उत्तम आसन है।
निषेध: जो व्यक्ति पीठ की चोट अथवा स्पाइनल स्टेनोसिस या हर्निएटेड डिस्क जैसी समस्याओं से पीड़ित हैं उन्हें इस आसन से बचना चाहिए या किसी प्रशिक्षित योग शिक्षक की देखरेख में, कंबल, गुटके आदि का सहारा लेकर उचित परिवर्तन के साथ करना चाहिए।
8. शलभासन (Shalabasana in Hindi)
शलभासन में व्यक्ति पेट के बल लेटता है और अपनी भुजाओं, टाँगों तथा धड़ को भूमि से ऊपर उठाता है। यह एक मध्यवर्ती स्तर का का आसन माना जाता है जो पीठ, गर्दन और टांगों को सशक्त बनाता है।
शलभासन के लाभ: यह आसन संपूर्ण पीठ को लचीला बनाता है और पाचन क्रिया में सुधार करता है।
निषेध: जिन लोगों को पीठ के निचले भाग, गर्दन या कलाइयों में चोट लगी हो। गर्भवती महिलाओं को भी यह नहीं करना चाहिए क्योंकि इस आसन से शरीर के उदरीय क्षेत्र पर दबाव पड़ता है।
शलभासन करने की विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जान लें।
9. ऊर्ध्वमुख श्वानासन (Urdhva Mukha Svanasana in Hindi)
ऊर्ध्वमुख श्वानासन वह मुद्रा है जिसमें व्यक्ति पहले पेट के बल लेट कर और फिर अपनी दोनों भुजाएँ सामने फैलाते हुए, छाती और दोनों टाँगों को भूमि से ऊपर उठाता है।
ऊर्ध्वमुख श्वानासन के लाभ: यह आसन मेरुदंड, छाती और टाँगों में खिंचाव देता है और भुजाओं, कंधों तथा पीठ की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है।
निषेध: कार्पल टनल सिंड्रोम, कलाइयों और कंधों में चोट से पीड़ित व्यक्तियों को यह आसन नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी यह नहीं करना चाहिए क्योंकि इस आसन से शरीर के उदरीय क्षेत्र पर दबाव पड़ता है। जिन को पीठ के निचले भाग में दर्द रहता हो या चोट लगी हो, उनको भी यह आसन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
पीठ के बल लेट कर किए जाने वाले योगासन
1. नौकासन (Boat Pose in Hindi)
नौकासन योग सीख रहे नए अभ्यर्थियों के लिए सुझाए गए योगासनों का एक परिवर्तित रूप है जिसमें शरीर को नौका के आकार में स्थिर किया जाता है। इस आसन से उदरीय क्षेत्र और कमर के निचले भाग में रक्त संचार द्रुत गति से होता है।
नौकासन के लाभ: यह योगासन हर्निया रोगियों के लिए लाभकारी है। यह पेट की चर्बी को कम करने में सहायक है। यह रक्त संचार सुचारू करने और पाचन तंत्र की समस्याओं से निदान के लिए भी लाभकारी है।
निषेध: जिन लोगों की अभी हालही में पेट की सर्जरी हुई हो या जो अल्सर पीड़ित हों। उच्च अथवा कम रक्त चाप पीड़ितों, हृदय रोगियों और अस्थमा पीड़ितों को भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
2. सेतु बंधासन (Bridge Pose in Hindi)
सेतु बंधासन एक ऐसा आसन है जिसमें भुजाओं, टाँगों और पीठ के सहारे शरीर को एक ब्रिज (सेतु) की मुद्रा में रखा जाता है। यह एक मध्यम स्तरीय आसन माना जाता है जो शारीरिक और मानसिक स्तर पर अनेक प्रकार से लाभप्रद है।
सेतु बंधासन के लाभ: यह योगासन मस्तिष्क को शांत, व्याकुलता को कम और थायरॉइड की समस्याओं को भी कम करता है।
निषेध: जिन लोगों की गर्दन या मेरुदंड चोटग्रस्त है, जिनको उच्च रक्त चाप है या जिनको आँखों की गंभीर बीमारी हो, उन्हें यह नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह वर्जित है।
सेतु बंधासन करने की विधि और इसके लाभों के विषय में विस्तार से जान लें।
3. मत्स्यासन (Fish Pose in Hindi)
मत्स्यासन ऐसा योगासन है जिसमें पीठ के बल लेट कर भुजाओं की सहायता से छाती और सिर को ऊपर उठाया जाता है। यह आसन गर्दन, गले और छाती में गहरा खिंचाव देता है।
मत्स्यासन के लाभ: यह आसन श्वास की समस्याओं से राहत देता है। यह आसन शारीरिक विन्यास को उन्नत करने, थायरॉइड ग्रंथि को उत्तेजित करने तथा तनाव और व्याकुलता को कम करने में सहायक है।
निषेध: गर्दन या कंधों की चोट, उच्च रक्त चाप पीड़ितों या जिनकी अभी हाल ही में गर्दन, कंधों या बाहों में सर्जरी हुई हो, उनको यह आसन नहीं करना चाहिए। पीठ की समस्याओं से पीड़ित लोगों को भी इससे बचना चाहिए।
4. पवनमुक्तासन (Pawanmuktasana in Hindi)
पवनमुक्तासन योग सीख रहे नए अभ्यर्थियों के लिए योगासनों में से एक परिवर्तित आसन है जिसमें पीठ के बल लेट कर टाँगों का उपयोग पेट पर हल्का दबाव डालने के लिए किया जाता है।
पवनमुक्तासन के लाभ: यह आसन पाचन क्रिया को सुचारू करने, कूल्हों और कमर के निचले भाग में लचीलापन लाने और वायु निर्गमन करने में लाभप्रद है।
निषेध: हर्निया पीड़ितों, बड़ी आँत में अल्सर रोगियों, कूल्हों और पीठ की गंभीर समस्याओं से पीड़ितों या जिनकी अभी हाल ही में उदरीय सर्जरी हुई हो। गर्भवती महिलाओं को भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
5. सर्वांगसन (Shoulder Stand in Hindi)
सर्वांगसन में टाँगों को ऊपर छत की ओर रखते हुए, पूरे शरीर को कंधों और गर्दन पर टिकाना होता है। इस आसन को योग के अग्रवर्ती स्तर का आसन माना जाता है और इससे अनेक शारीरिक और मानसिक लाभ होते हैं, जिनमें उन्नत रक्त संचार और तनाव से राहत भी सम्मिलित हैं।
सर्वांगसन के लाभ: यह आसन कब्ज, अपच और वैरिकोज वेंज से राहत दिलाता है। इसके अन्य लाभों में रक्त संचार सुचारू करना और तनाव को कम करना भी सम्मिलित हैं।
निषेध: जिनको गर्दन या मेरुदंड में कोई चोट हो, जो उच्च रक्त चाप, मोतियाबिंद, खंडित रेटिना या आँख के अन्य गंभीर रोगों से पीड़ित हों, उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। जो महिलाएँ माहवारी में अथवा गर्भावस्था में हों, उन्हें भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
6. हलासन (Halasana in Hindi)
योग के आरंभिक स्तर के आसनों में से एक आसन, हलासन में पीठ के बल लेट कर दोनों टाँगों को सिर के ऊपर से मोड़ कर पीछे फर्श को स्पर्श करवाना होता है। यह आसन गर्दन, पीठ तथा टाँगों को गहरा खिंचाव देता है और शरीर को लचीला बनाने के साथ साथ तनाव से भी मुक्ति देता है।
हलासन के लाभ: यह आसन तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को शांत करता है, तनाव से राहत प्रदान करता है तथा शरीर में लाचीलेपन को बढ़ाता है।
निषेध: जिनकी गर्दन और मेरुदंड चोटग्रस्त हो, जिन्हें उच्च रक्तचाप हो, अथवा जिनकी हाल ही में गर्दन, कंधों अथवा पीठ की सर्जरी हुई हो, उनके लिए यह आसन वर्जित है। माहवारी के दिनों में और गर्भवती महिलाओं को भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
हलासन करने की सही विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।
7. नटराजासन (Natarajasana in Hindi)
नटराजासन करने की विधि और इसके लाभ के विषय में विस्तार से जान लें।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, लेट कर शरीर को घुमाव देने की मुद्रा में शरीर को एक पाँव पर संतुलित करके दूसरे हाथ को आगे की ओर बढ़ाना होता है।
नटराजासन के लाभ: यह आसन टाँगों को सशक्त बनाने, शरीर का संतुलन बढ़ाने, छाती, पीठ तथा कूल्हों की मांसपेशियों को खिंचाव देने के साथ साथ, शरीर तथा मन को गहरा विश्राम भी देता है।
निषेध: जिनको अभी हाल ही में एड़ियों, घुटनों या कूल्हों में चोट लगी हो अथवा दीर्घकाल से इन अंगों की चोट से पीड़ित हों, या जिन को शारीरिक संतुलन बनाने में समस्या हो, उन्हें इस आसन से बचना चाहिए।
8. विष्णु आसन (Vishnuasana in Hindi)
विष्णु आसन एक ऐसी योग आसन है जिसका उपयोग विश्राम और तनाव मुक्ति के लिए किया जाता है। इस आसन में शरीर को उत्तान मुद्रा (आलसी, आरामदायक) में भूमि पर लिटा कर भुजाओं और टाँगों को विश्राम स्थिति में सीधा फैलाना होता है।
विष्णु आसन के लाभ: यह एक बलवर्धक आसन है जो मन को शांत करता है, तनाव और व्याकुलता को कम करता है, और नींद की गुणवत्ता में सुधार लाता है। यह आसन पीठ और कूल्हों में लचीलापन बढ़ाने और शरीर के रक्तप्रवाह को सुचारू बनाने के लिए भी उत्तम है।
निषेध: जिन लोगों की पीठ चोट ग्रस्त हो या जिन्हें स्पाइनल स्टेनोसिस या हर्निएटेड डिस्क जैसी समस्या हो, उन्हें इस आसन से बचना चाहिए अथवा कंबल या गुटके जैसी चीजों का सहारा लेकर इसे परिवर्तित रूप में करना चाहिए।
9. शवासन (Corpse Pose in Hindi)
इस आसन में एकदम विश्राम/ आलसी अवस्था में दोनों हाथों और पैरों को फैला कर जमीन पर लेटना होता है। शव मुद्रा योगाभ्यास में एक महत्वपूर्ण आसन है क्योंकि यह शरीर और मन को विश्राम देने और पुनः स्फूर्तिवान बनाने के लिए एक शांत और तनावमुक्त वातावरण प्रदान करता है। इस आसन का उपयोग साधारणतया योग सत्र के अंत में मन को शांत करने, तनाव और चिंता को कम करने तथा नींद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है।
शवासन के लाभ: यह आसन करने से गहरे ध्यान में उतरने जैसा विश्राम मिलता है और यह रक्तचाप, चिंता कम करता है और अनिद्रा से राहत प्रदान करता है।
निषेध: जिन लोगों की पीठ चोट ग्रस्त हो या जिन्हें स्पाइनल स्टेनोसिस या हर्निएटेड डिस्क जैसी समस्या हो, उन्हें इस आसन से बचना चाहिए अथवा कंबल या गुटके जैसी चीजों का सहारा लेकर इसे परिवर्तित रूप में करना चाहिए।
शवासन करने की सही विधि और इससे होने वाले लाभ के विषय में विस्तार से जान लें।
यद्यपि योगाभ्यास शरीर तथा मन को विकसित करने के अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार से लाभप्रद है, तथापि यह किसी चिकित्सा का विकल्प नहीं है। यह आवश्यक है कि योग मुद्राएँ सीखने और इनसे होने वाले लाभों के विषय में प्रशिक्षण किसी श्री श्री योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही प्राप्त किया जाए। किसी प्रकार के रोग की स्थिति में योग का अभ्यास डाक्टर और श्री श्री योग प्रशिक्षक से परामर्श ले कर ही करना चाहिए।