धन-संपदा अर्जित करने का उद्देश्य आनंदमयी और आरामदायक जीवन की प्राप्ति है। योग भी एक प्रकार की संपत्ति है क्योंकि यह पूर्ण आराम की स्थिति लाता है। वास्तव में योग मानवजीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। योग हमें तनावमुक्त और चिंता रहित जीवन जीने के उपाय और तकनीकें प्रदान करता है। योग के अनेकों लाभ हैं।
योग हमारे जीवन में रोग मुक्त शरीर, हिंसा मुक्त समाज, भ्रम मुक्त मन, संकोच रहित बुद्धि, आघात रहित स्मृति, दुख रहित आत्मा और स्थिर श्वास प्रदान करता है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
योग हमें अधिक कुशल बनाता है
योग कौशल विकसित करने में मदद करता है। योग के प्रतिपादक, भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में कहा है : “योग कर्म में कुशलता है।” योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह इस बात का सूचक है कि आप किसी भी परिस्थिति में कितनी कुशलता से संवाद और कार्य कर सकते हैं। सृजनात्मकता, अंतर्ज्ञान, कौशल और बेहतर संचार – ये सभी योग के प्रभाव हैं। योग सदैव विविधता में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।
आपके भीतर की मौन और शांति सभी कुशलताओं की जननी है। योग पूर्णता की जननी है। कर्म कभी भी पूर्णता की जननी नहीं होती। कर्म से कुशलता नहीं आती है।। कुशलता योग से आती है।
क्या आप जानते हैं कि हमें योग क्यों करना चाहिए? हमें शांत क्यों रहना चाहिए? हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? इस संसार का आनंद लेने के लिए हमें अपने भीतर जाने, योग करने की आवश्यकता है। योग हमारे कार्य में कुशलता लाता है, भीतर की पूर्णता को प्रकट करता है और हमारे आनंद की गुणवत्ता में वृद्धि लाता है।
योग का नियमित अभ्यास आत्मा को पवित्र और उत्थान करने में मदद करता है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
योग संवाद कौशल में सुधार करता है
किसी व्यक्ति का व्यवहार उसके भीतर के तनाव के स्तर पर निर्भर करता है। योग लोगों में मैत्रीपूर्ण स्वभाव और रुचिकर वातावरण का निर्माण करता है। योग से हमारी तरंगों में सुधार लाता है। शब्दों से भी कहीं अधिक, हम अपनी उपस्थिति से व्यक्त करते हैं।
क्वांटम भौतिकशास्त्र की भाषा में कहें तो हम सभी तरंगें उत्सर्जित कर रहे हैं। जब संवाद टूट जाता है तो हम प्रायः कहते हैं, ‘हमारी तरंगें मेल नहीं खातीं’।
हमारी संवाद करने की क्षमता दूसरों से संवाद ग्रहण करने की हमारी क्षमता पर निर्भर करती है। योग हमारे मन, हमारी बुद्धि में स्पष्टता लाने में सहायता करता है।
तनावमुक्त जीवन जीने में सहायक
योग हमें तनावमुक्त और चिंता रहित जीवन जीने के उपाय और तकनीकें प्रदान करता है। अपने दैनिक जीवन में आने वाले सभी प्रकार के तनाव और चिंताओं, विषम परिस्थितियों के होते हुए भी हमारे चेहरे पर मुस्कान लाना ही योग का उद्देश्य है। तनाव – बहुत सारा कार्य, बहुत कम समय, और ऊर्जा की कमी।
तनाव से मुक्त कैसे हों?
- काम के बोझ को कम करने से – आज कल इस की संभावना बहुत कम ही है।
- समय को बढ़ा कर – यह हम कर नहीं सकते, क्योंकि हमें उपलब्ध समय तो प्रकृति द्वारा निश्चित है, जब तक हम किसी अन्य ग्रह पर नहीं जाएँ!
- अपने भीतर की ऊर्जा को बढ़ा कर – मात्र यही एक विकल्प है।
जब हमारे भीतर पर्याप्त शक्ति और उत्साह होता है, तो हम किसी भी परिस्थिति, किसी भी चुनौती से निपट सकते हैं।
योग भावनात्मक बुद्धिमत्ता को सुधारता है
प्रायः हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को लेकर असहाय महसूस करते हैं। हम अपनी नकारात्मक भावनाओं से कैसे निपटें, इस विषय में न तो हमें स्कूल में और न ही घर पर कोई कुछ सिखाता है। यदि हम दुखी होते हैं, तो बस दुखी रहते हैं या समय के साथ ठीक होने की प्रतीक्षा करते हैं। योग में इस मनोस्थिति को बदलने का रहस्य छिपा है। अपनी भावनाओं का शिकार होने अपेक्षा, यह आपको किसी भी समय वैसा अनुभव करने की शक्ति देता है, जैसा आप करना चाहते हो। योग आपको स्वतंत्र कर देता है।
जब प्राण ऊर्जा कम होती है, तो आत्महत्या की प्रवृत्ति आती है। प्राणायाम और योग की सहायता से आप तुरन्त ही इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण कर सकते हैं।
योग हमारी भावनाओं को कोमल और अधिक शांतिमय बनाता है। यह हमारी अभिव्यक्ति और विचारों के स्वरूप में खुलापन लाता है। यही योग के वास्तविक लक्षण हैं।
योग का उद्देश्य मात्र शरीर में लचीलापन लाने तक ही सीमित नहीं है। यह सही है कि वह भी योग का ही एक अंग है। इससे शरीर में लचीलापन और मन में विश्वास तथा दृढ़ता बढ़ती हैं। यदि आपके साथ यह सब हो रहा है तो जान लो कि यह योग का उपहार है और आप स्वयं को एक योगी मानें।
योग आपकी भावनाओं को कोमल और शांत करता है और आप अपनी भावनाओं में खिलने लगते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
व्यक्तिगत विकास में योग की भूमिका
योग का अर्थ केवल योगासन नहीं है। वे तो वास्तव में योग का एक अंश मात्र हैं। मुख्य भाग स्वयं के बारे में, चेतना के बारे में है। यह एक उच्चकोटि का बौद्धिक अभ्यास है और इसके सूक्ष्म बिंदुओं को समझने के लिए आपका तीक्ष्ण बुद्धि और सजग होना अति आवश्यक है। इसलिए मैं प्रायः योग को ‘चेतना का विज्ञान‘ कहता हूँ।
हमें योग को एक विज्ञान के रूप में देखना चाहिए – कल्याण का विज्ञान। योग दूसरे लोगों के साथ हमारे संबंधों तथा व्यवहार में सुधार ला सकता है। यह हमारी भावनाओं को स्थिर और हमारी अंतर्ज्ञान संबंधी योग्यता को सशक्त बनाता है।
प्रत्येक व्यवसायी में अंतर्ज्ञान योग्यता और उद्यमशीलता का होना आवश्यक है। यह हमें योग से मिल सकते हैं।
योग मानवता के लिए ऐसा वरदान अथवा उपहार है कि कोई भी इससे वंचित नहीं रहना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को शांति का अधिकार है; प्रत्येक को गहरे प्रेम का अधिकार है और प्रत्येक को स्वस्थ रहने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रेम के सागर (जो कि हम हैं ही) तक पहुँचने का अधिकार है।
विद्यार्थियों के लिए लाभकारी
योग मन को एकाग्रता प्रदान करता है, विशेषकर छात्रों के लिए। उनके लिए अध्ययन एक सहज प्रक्रिया बन जाती है। आपको सीखने के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं है। आपकी याददाश्त तेज हो जाती है। आपकी बुद्धि तेज हो जाती है और कुल मिलाकर, आपकी ऊर्जा बहुत सकारात्मक हो जाती है।
स्वाभाविक रूप में एक सकारात्मक नशा
हमारे बहुत से युवा नशे की लत से परेशान हैं। यदि वे योग के मार्ग पर चलें तो उनके भीतर से ही एक अलग नशा और ऊर्जा प्रस्फुटित होगी जो उन्हें एक ऊँचे स्तर पर ले जाएगी। योग भी एक प्रकार का नशा ही है, किंतु यह नशा आपका उत्थान करता है और आपको सफलता की ऊंचाइयों पर पहुँचा देता है। यह अज्ञानता और नकारात्मकता के पतन से भी आपको बचाता है। यह पूरे समाज में सद्भाव और अपनत्व की लहर लाता है।
व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास करता है
योग वह है जो व्यक्ति को उच्च चेतना से जोड़ता है। योग आत्मा और परमात्मा को मिलता है। परमात्मा कहीं ऊपर स्वर्गलोक में नहीं बैठे हैं। परमात्मा तो वह सर्वव्यापक परम शक्ति है जो हमारे भीतर गहराई में छिपी हुई है। उस दिव्य ऊर्जा को जागृत करने की कला ही योग है।
योग में ऐसी शक्ति है जो सम्पूर्ण विश्व को हिला कर जागृति ला सकती है। योग वह है जो व्यक्ति को उच्च चेतना से जोड़ता है। योग आत्मा और परमात्मा को मिलता है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
संसार को रहने के लिए एक बेहतर स्थान बनाता है
‘ईश्वर का निवास मेरे भीतर है (अहम् ब्रह्माऽस्मि)‘ से ‘वासुधैव कुटुंबकम (हम सब एक हैं)’ की यात्रा ही योग है। प्रत्येक के साथ एकता का भाव और प्रत्येक चेहरे से आँसू पोंछ कर उस पर मुस्कान लाने का प्रयास करते रहना – सच्चे अर्थों में यही योग है। इसी को वासुदैव कुटुम्बकम कहते हैं।
योग हमारे वातावरण में सामंजस्य लाता है। यह व्यक्ति की चेतना का ब्रह्मांडीय चेतना के साथ तालमेल करता है। प्रत्येक के साथ एकता का भाव और प्रत्येक चेहरे से आँसू पोंछ कर उस पर मुस्कान लाने का प्रयास करते रहना – सच्चे अर्थों में यही योग है। इसी को वासुदैव कुटुम्बकम कहते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
योग के प्रतिपादक, महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों में योग के उद्देश्य का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा ‘हेयं दुःखम् अनागतम्’। उनके अनुसार दुःख को आने से पहले ही रोक देना, यह योग का उद्देश्य है।
जब कहीं पर कोई संघर्ष उभर रहा हो, उन लोगों को कहें कि गहरी साँसे लें, मिल कर बैठें और संवाद करें। आप देखोगे कि आपने उस संघर्ष को जड़ से ही समाप्त कर दिया है। योग द्वारा सभी नकारात्मक भावनाओं, चाहे वह लोभ, ईर्ष्या, क्रोध, घृणा अथवा निराशा हो, इन सभी का उपचार किया जा सकता है या उनकी दिशा मोड़ी जा सकती है।
योग से पारस्परिक संवाद में सुधार
किसी धर्म विशेष, किसी जाति, लिंग, वर्ग, शैक्षणिक स्तर, आर्थिक स्तर आदि – इन विभिन्न प्रकार के पूर्वाग्रहों ने लोगों के मन को कुंठा से भर दिया है। इन्हीं के कारण समाज में संघर्ष उत्पन्न होते हैं। योग हमें आगे आ कर पूर्वाग्रहों के कारण उत्पन्न संघर्षों का समाधान खोजने में सहायता करता है। अपने आप और सहजता से ही योग हमारे मन को पूर्वाग्रहों से मुक्त करता है।
योग सदैव ही विविधता में सामंजस्य को बढ़ाता है। यह विविधता को प्रोत्साहित करता है। वास्तव में ‘योग‘ शब्द का अर्थ ही है ‘जोड़ना’ (अस्तित्व के, जीवन के विविध पहलुओं को जोड़ना)।
देखभाल और साझा करने की प्रवृत्ति को बढ़ाना
योग लोगों को अधिक जिम्मेवार बनाने में सहायता करता है और जीवन में अधिक जिम्मेदारियाँ उठाने को प्रोत्साहित करता है। इसे कर्म योग कहते हैं। कर्म योगी वह है जो जिम्मेदारियाँ उठाने को तत्पर रहता है।
हम सब अपने अपने जीवन में अनेक भूमिकाएँ निभाते हैं। हमारे सम्मुख अपनी भूमिका एक योगी अथवा अयोगी; जो जिम्मेदार है या उतना जिम्मेदार नहीं है, के रूप में निभाने का विकल्प है। आप एक जिम्मेदार अध्यापक, जिम्मेदार डॉक्टर या जिम्मेदार व्यवसायी, जो दूसरों की चिंता करता है।
दूसरों की देखभाल करना, दूसरों के साथ साझा करना और जिम्मेदारी उठाना, ऐसे गुण हैं जो योग हमारे भीतर विकसित करता है।