नाड़ी शोधन प्राणायाम क्या है?
नाड़ी = सूक्ष्म ऊर्जा वाहक; शोधन = सफाई, शुद्धिकरण; प्राणायाम = श्वसन प्रक्रिया
शरीर में नाड़ियाँ, सूक्ष्म ऊर्जा के चैनल हैं जो कि विभिन्न कारणों से अवरुद्ध हो जाती हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम, एक श्वसन प्रक्रिया है जो ऊर्जा वाहिकाओं के अवरोधों को खाली करने में मदद करती है और मन को शांत करती है। इस तकनीक को अनुलोम विलोम प्राणायाम भी कहते हैं।
नाड़ियों को क्या बाधित करता है?
- तनाव की वजह से नाड़ियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं।
- स्थूल शरीर के विषैले तत्व भी नाड़ियों को रुकावट की ओर ले जाते हैं।
- शारीरिक और मानसिक आघात नाड़ियों को अवरुद्ध करता है।
- अस्वस्थ जीवनशैली।
अवरुद्ध नाड़ियों का प्रभाव
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना, यह तीन मानव शरीर की अति मुख्य नाड़ियाँ हैं। जब इड़ा नाड़ी बाधित है, तब सर्दी, अवसाद, मंद मानसिक ऊर्जा और निष्क्रिय पाचन क्रिया अनुभव करते हैं एवं बायीं नासिका बंद रहती है। जबकि, जब पिंगला नाड़ी सुचारू रूप से नहीं चल पा रही या बाधित हो, तब गुस्सा, गर्मी और चिड़चिड़ाहट को अनुभव करते हैं और शरीर में खुजली, शुष्क त्वचा और गला, अतिशय भूख और कामवासना की अनुभूति होती है। तब दायीं नासिका अवरुद्ध रहती है।
नाड़ी शोधन अभ्यास करने के लिए तीन मुख्य कारण
- नाड़ी शोधन प्राणायाम से मन को विश्राम मिलता है और इसे ध्यान की अवस्था में जाने के लिए तैयार करता है।
- प्रतिदिन इसका कुछ क्षणों के लिए अभ्यास करने से मन के शांत, प्रसन्न और स्थिर रहने में मदद मिलती है।
- संचित तनाव और थकान से मुक्ति में मदद करता है।
कैसे करें (Nadi Shodhan Pranayama Steps)
- अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए आराम से बैठ जाएँ, कंधों को ढीला छोड़ दें। चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान रखें।
- अपने बायें हाथ को घुटनों पर रखें, हथेलियाँ आसमान की ओर खुली हुई या चिन मुद्रा (अंगूठा और तर्जनी उंगली के पोर आपस में हल्के से स्पर्श करते हुए)।
- सीधे हाथ की तर्जनी और मध्यमा के पोरों को अपनी दोनो भौहों के बीच रखें, अनामिका और कनिष्ठा को अपने बायीं नासिका और अंगूठे को दायीं नासिका पर रखें। अनामिका और कनिष्ठा को हम बायीं नासिका और अंगूठे को दायीं नासिका को खोलने एवं बंद करने के लिए प्रयोग करेंगे।
- अपने अंगूठे से दायीं नासिका को दबाएँ और हल्के से बायीं नासिका से श्वास छोड़ें।
- अब बायीं नासिका से श्वास अन्दर लें और बायीं नासिका को धीरे से अपनी अनामिका और कनिष्ठा से धीरे से दबाएँ। धीरे से दाएँ अंगूठे को दायीं नासिका से हटाते हुए श्वास को दायीं ओर से बाहर छोड़ें।
- दायीं नासिका से साँस लें और बाएँ से छोड़ें। अब यहाँ आपने नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक चक्र पूरा किया। इसी क्रम से बारी बारी नासिकाओं से श्वास लेते और छोड़ते रहें।
- बारी बारी से दोनों नासिकाओं से ऐसे 9 चक्र पूर्ण करें। हर बार, श्वास छोड़ने के बाद, याद रखें, श्वास को उसी तरफ की नासिका से अंदर लेना है जिस तरफ की नासिका से आपने श्वास को छोड़ा है। इस पूरे दौरान अपनी आँखें बंद रखें और लंबी, गहरी, बिना ज्यादा जोर दिए या बिना अधिक प्रयास के आरामदायक साँस लेते रहें।
सावधानियाँ
- श्वास पर जोर न लगाएँ, प्रवाह को सौम्य और सहज रखें। श्वास लेते वक्त मुँह से श्वास न लें और न ही कोई आवाज करें।
- उज्जयी श्वास का प्रयोग न करें।
- माथे और नासिका पर उंगलियों को बहुत हल्के से रखें। ज्यादा जोर देने की जरूरत नहीं है।
- अगर आपको नाड़ी शोधन प्राणायाम करने के बाद सुस्ती लगे और उबासियाँ आएँ, तो श्वास अंदर और बाहर करने में आप कितना वक्त ले रहे है, नोट करें। श्वास को छोड़ने का समय, श्वास अंदर भरने के समय से ज्यादा होना चाहिए।
सुझाव
- नाड़ी शोधन प्राणायाम के बाद थोड़े समय के लिए ध्यान करना अच्छा है।
- इस श्वसन प्रक्रिया का अभ्यास पद्म साधना के हिस्से के क्रम में भी कर सकते है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ (Nadi Shodhan Pranayama Benefits – अनुलोम विलोम प्राणायाम के फायदे)
- मन को शांत और केंद्रित करने के लिए बेहद उत्कृष्ट तकनीक।
- हमारे मन की प्रवृत्ति है, अतीत के दुखों पर ग्लानि करना या सुखों की स्तुति में लगे रहना, अथवा भविष्य के लिए चिंतित रहना। नाड़ी शोधन प्राणायाम मन को वर्तमान क्षण में लाने में मदद करता है।
- हमारे संचार और श्वसन प्रणाली की ज्यादातर समस्याओं के लिए उपचारात्मक तौर पर काम करता है।
- शरीर और मन में संचित तनाव को प्रभावी रूप से मुक्त करता है और विश्राम में सहायक है।
- दिमाग के दाएँ और बाएँ गोलार्ध में तालमेल बैठाता है, जो हमारे व्यक्तित्व के तर्क और भावनात्मक पक्षों से परस्पर संबंधित हैं।
- सूक्ष्म ऊर्जा की वाहिकाएँ – नाडियों के संतुलन और शुद्धिकरण में मदद करता है, फलस्वरूप प्राण ऊर्जा (जीवन ऊर्जा) का पूरे शरीर में प्रवाह सुनिश्चित करता है।
- शरीर के तापमान को बरकरार रखता है।
अंतर्विरोध
इस प्राणायाम का कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं हैं। श्री श्री योग से इस श्वसन तकनीक को सीखने के बाद, आप इसका अभ्यास, खाली पेट दिन में 2 से 3 बार कर सकते हैं।
योग का अभ्यास, शरीर और मन में बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ लाता है, तथापि यह औषधि का विकल्प बिल्कुल नहीं है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि योगासनों को सीखना और उसका अभ्यास किसी प्रशिक्षित श्री श्री योग प्रशिक्षक के देखरेख में हो। किसी भी मेडिकल कंडीशन में, योगासनों का अभ्यास किसी चिकित्सक या फिर किसी श्री श्री योग प्रशिक्षक के परामर्श के बाद करना चाहिए।
नाड़ी शोधन प्राणायाम पर बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न
व्यक्ति के दिमाग के दाएँ और बाएँ गोलार्ध को तार्किक और भावनात्मक आयामों को परस्पर जोड़ता करता है।