जब मन शांत और स्थिर होता है तो इसमें किसी भी विचार को पूरा करने की शक्ति आ जाती है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
प्राणायाम क्या है? प्राणायाम का अर्थ मूलतः यह है: प्राण के आयाम में कार्य करना है। प्राण ऊर्जा वह सूक्ष्म, किंतु महत्वपूर्ण शक्ति है जो हमारे अस्तित्व के स्थूल तथा अवचेतन स्तर पर जीवित रहने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण ऊर्जा है, जिसके बिना यह शरीर नष्ट हो जाएगा। हमारे भीतर यह ‘प्राण’ अर्थात् जीवनी शक्ति ही है जो हमारे मन को पोषित करती है और शरीर को जीवित रखती है।
प्राणायाम क्या है? (Pranayama in Hindi)
महर्षि पतञ्जलि द्वारा बताए गए योग के आठ अंगों में से एक, चौथे अंग को प्राणायाम कहा गया है और इसका अभ्यास प्रायः प्राणायाम योग में किया जाता है। ऐसा कहा गया है कि अपनी श्वास को नियंत्रित करके आप अपने मन की शक्ति को नियंत्रित कर सकते हैं।
‘प्राणायाम’ शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों, “प्राण” और “आयाम” से मिल कर बना है जिनका क्रमश: अर्थ है “श्वास” और “विस्तार”। योगिक श्वसन क्रिया के अभ्यास से हम अपनी जीवनी ऊर्जा, अर्थात् प्राण को नियंत्रित कर सकते हैं।
प्राणायाम गहराई से साँस लेने की क्रिया है जो हजारों सालों से भारतीय योग परंपराओं के रूप में चली आ रही है। इसमें श्वास प्रक्रिया को भिन्न भिन्न लम्बाई, आवृतियों तथा अवधियों के लिए विनियमित किया जाता है। इस का उद्देश्य होता है प्राणायाम के अभ्यास से शरीर तथा मन को परस्पर जोड़ना। शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने के अतिरिक्त प्राणायाम शरीर को प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन संचारित करता है तथा शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित करके रोग निदान क्षमता भी बढ़ाता है। किसी भी प्राणायाम चक्र की तीन अवस्थाएँ (तीन भाग) होती हैं:
- पूरक (श्वास लेना)
- कुंभक (श्वास रोकना)
- रेचक (श्वास छोड़ना)
प्राण क्या है? (Prana in Hindi)
प्राण का श्वास से सम्बंध है, परन्तु प्राण श्वास नहीं है। प्राण एक ऊर्जा है जो शरीर की हजारों सूक्ष्म ऊर्जा नालियों और ऊर्जा केंद्रों, जिन्हें क्रमश: नाड़ियाँ और चक्र कहा जाता है, में निरंतर प्रवाहित हो रही है। यह शरीर के चारों ओर एक आभामंडल बनाता है। इस प्राण शक्ति की मात्रा और गुणवत्ता तथा यह किस ढंग से नाड़ियों और चक्रों में से प्रवाहित हो रही है, हमारे मन की स्थिति का निर्धारण करती है।
प्राण की गति और ऊर्जा, जिसे हम अपने भीतर और बाहर, चारों ओर प्रवाहित हो रही ब्रह्मांडीय ऊर्जा भी कहते हैं, हमारे क्रिया कलापों, विचारों तथा विशेष रूप से हमारे साँस लेने के तरीके से प्रभावित होती है।
यदि प्राण का स्तर ऊंचा है और उसका प्रवाह निरंतर, सुचारू और स्थिर है, तो हमारा मन शांत, सकारात्मक और उत्साहपूर्ण बना रहता है। किंतु श्वास के प्रति अनभिज्ञता और ध्यान की कमी है तो इससे नाड़ियों और चक्रों में आंशिक अवरोध उत्पन्न हो सकते हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसी अवस्था में प्राण ऊर्जा का प्रवाह झटकेदार और खंडित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप हमारी चिंताएँ, भय, अनिश्चितताएँ, तनाव, द्वंद तथा अन्य नकारात्मक गुण बढ़ जाते हैं। कोई भी समस्या पहले अवचेतन स्तर पर उत्पन्न होती है और बाद में स्थूल स्तर पर दिखाई देती है। कोई भी बीमारी, जिससे आप शारीरिक रूप में ग्रस्त होते हैं, सर्वप्रथम आपके प्राणिक स्तर पर ही दिखाई देती है।
प्राणायाम के प्रकार (Types of Pranayama in Hindi)
प्राचीन भारतीय ऋषि मुनियों को यह ज्ञान था कि गहरी लंबी श्वास लेना सरल है और इनके अभ्यास से शरीर तथा मन को गहन विश्राम दिया जा सकता है। अब जब हमने यह जान लिया है कि प्राणायाम क्या है, तो आइए देखें कि हम विभिन्न प्रकार के प्राणायामों का अभ्यास कर सकते हैं। इन विभिन्न प्रकार की श्वसन तकनीकों का अभ्यास आसानी से, जब हमारा पेट खाली हो, दिन में किसी भी समय पर किया जा सकता है।
आइए हम विभिन्न प्रकार के प्राणायाम और उनके करने की विधि के विषय में एक एक कर के जानें।
1. भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayama Benefits in Hindi)
क्या आपके मन में विचारों और क्रियाकलापों कि गतिविधि हलचल मचाए रखता है? किसी व्यक्ति ने आपके विषय में कुछ बोला और आप उसे सोच सोच कर दुखी हो जाते हैं? अपने अशांत मन को शांत करने के लिए एक शांत कोना ढूँढो और इस प्राणायाम का अभ्यास करके देखो। यह प्राणायाम उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए वरदान है।
भ्रामरी प्राणायाम, जिसे भिनभिनाने वाली मक्खी की आवाज वाली श्वास भी कहते हैं, एक प्रकार की योगिक श्वास है जो हमारे तंत्रिका तंत्र को शांत करती है और हमें अपने सच्चे स्वरूप से जुड़ने में सहायता करती है। नए लोगों के लिए अनुशंसित प्राणायामों में सम्मिलित इस प्राणायाम का नाम मक्खी की मधुर भिनभिनाहट के पीछे किया गया है और गले के पीछे से आवाज निकाल कर इसका अभ्यास किया जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम तथा इसको करने के तरीके के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त कर लें।
2. कपालभाती (Kapalbhati Pranayama Benefits in Hindi)
कपालभाती एक योगिक श्वसन प्रक्रिया है जिसका नाम संस्कृत के शब्दों ‘कपाल’, जिसका अर्थ “मस्तक” और ‘भाती’ अर्थात् “चमकना“ से मिल कर बना है।
अनेक गहन श्वास क्रियाओं में से यह योग प्राणायाम सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस प्राणायाम के अनेक लाभों में से एक लाभ यह है कि यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर शरीर को शुद्ध करता है तथा ऊर्जा संवाहनियों (नालियों) को साफ करता है।
कपालभाती मध्यम से अग्रिम स्तर के योग साधकों के स्तर का प्राणायाम है। यह हमारी रक्त संचार प्रणाली और तंत्रिकाओं को ऊर्जावान बनाता है, फेफड़ा को सशक्त बनाता है तथा पेट के अंगों की सफाई भी करता है।
3. भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama Benefits in Hindi)
क्या आप अपनी ऊर्जा में कमी अनुभव कर रहे हैं? भस्त्रिका प्राणायाम (धौंकनी जैसी साँस) के तीन चक्र आपके ऊर्जा स्तर को ऊँचा उठा देंगे! तो, भस्त्रिका प्राणायाम क्या है?
धौंकनी जैसी श्वास, जिसे भस्त्रिका प्राणायाम भी कहा जाता है, एक ऊर्जा बढ़ाने वाली गहन श्वास तकनीक है जो आग भड़काने के लिए दी जाने वाली हवा की निरंतर धारा से मेल खाती है। भस्त्रिका संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “धौंकनी”, और इस श्वसन क्रिया में फेफड़ों और पेट को बलपूर्वक भरा और खाली किया जाता है। यह शरीर तथा मन की आंतरिक अग्नि को उत्तेजित करता है जो पाचन क्रिया को प्रत्येक स्तर पर स्वस्थ करता है।
भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि और इससे होने वाले लाभों के विषय में विस्तार से जानें।
4. नाड़ी शोधन प्राणायाम (Anuloma Viloma Pranayama Benefits in Hindi)
क्या आप जिस कार्य को कर रहे होते हो उसमें स्वयं को एकाग्र नहीं कर पाते? तो नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम विलोम प्राणायाम) के नौ चक्र और तदुपरांत दस मिनट तक लघु ध्यान कर के देखें। नाड़ी शोधन प्राणायाम मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों में सामंजस्य (संतुलन) स्थापित करके उसे शांत और केंद्रित करता है।
अनुलोम विलोम श्वास क्रिया, जिसे प्राय: नाड़ी शोधन के नाम से जाना जाता है, एक शक्तिशाली गहन श्वास क्रिया है जिसके बहुआयामी लाभ हैं।
संस्कृत में ‘शोधन’ शब्द का अर्थ है “शुद्धिकरण”, और ‘नाड़ी’ का अर्थ है ‘नाली या प्रवाह’। इसलिए नाड़ी शोधन का मुख्य उद्देश्य शरीर और मन की नाड़ियों का शुद्धिकरण करते हुए समूचे शारीरिक तंत्र को संतुलन प्रदान करना है। यह शरीर की तीनों दोषों को संतुलित करता है और प्रत्येक व्यक्ति के लिए उत्तम व्यायाम है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के विषय में और इसे करने की सही विधि के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
प्राणायाम के लाभ (Pranayama Benefits in Hindi)
हमने यह तो जान लिया कि प्राणायाम क्या है और वह कितने प्रकार के हैं। आइए अब हम प्राणायाम से होने वाले लाभ पर ध्यान दें। गहरे श्वास लेने वाले व्यायाम करने से व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पूर्ण रूप से परिवर्तित हो सकती है।
स्वास्थ्य के लिए योगिक श्वसन प्रक्रियाओं के लाभों का अध्ययन करके उनका परिणाम बहुत सारे चिकित्सा और वैज्ञानिक प्रकाशनों में वर्णित किया गया है। यद्यपि प्रत्येक प्रकार के प्राणायाम के अपने कुछ विशेष लाभ हैं, तथापि प्राणायाम के सामान्य हितों को जानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यदि आप प्राणायाम से होने वाले लाभों को अनुभव करने के इच्छुक हैं तो यह आवश्यक है कि आप इनको उचित ढंग से करने की विधि और इसमें सावधानियों तथा दुष्प्रभावों का विस्तार से अध्ययन करके ही अभ्यास आरंभ करें।
प्राणायाम के सामान्य लाभ:
- शरीर में प्राण ऊर्जा की मात्रा एवं गुणवत्ता, दोनों में सुधार होता है जिससे शरीर के ऊर्जा स्तर में वृद्धि होती है।
- अवरोधित नाड़ियों और चक्रों को खोलता है जिससे हमारी आभा में विस्तार तथा आत्मा का स्तर ऊपर उठता है।
- व्यक्ति को ऊर्जावान, उत्साही, शांत और सकारात्मक बनाता है। ऐसी मानसिक अवस्था तथा मानसिक शक्ति बढ़ने से हमें सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है तथा चुनौतियों और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने हेतु बल मिलता है और हम अधिक प्रसन्न रहते हैं।
- शरीर, मन तथा आत्मा में अनुकूलतम सामंजस्य स्थापित होता है जो हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर सशक्त करता है।
- यह मन में स्पष्टता और शरीर में स्वास्थ्य लाता है।
ध्यान और प्राणायाम से हम स्वयं को उत्तम ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं
जीवन में सबसे कठिन कार्य है अपनी भावनाओं को सही ढंग से अभिव्यक्त करना और दूसरों की भावनाओं को ठीक से समझना। आज के समय में इस निपुणता का अभाव समाज में सबसे बड़ी चुनौती है और इसे विकसित करना होगा। यह कभी भी निष्कलंक या दोषहीन नहीं हो सकता; इसमें उतार चढ़ाव आते ही हैं। जैसे कि हम जो अनुभव करते हैं, वह पूर्ण रुपेण व्यक्त नहीं कर सकते और जैसा दूसरे सोचते हैं, उसे ठीक से समझ नहीं सकते।
यह जीवन में होता ही रहता है। किंतु जब हम अधिक शांत और प्रसन्न होते हैं तो हम दूसरों के मन को अधिकाधिक सही ढंग से समझने लगते हैं। इसलिए ध्यान, प्राणायाम आदि का अभ्यास करना अति आवश्यक है। इससे हमारी आंतरिक स्पष्टता में सुधार होने लगता है, हम दूसरों को अच्छे से समझने लगते हैं तथा अपने आपको उत्तम तरीके से अभिव्यक्त कर सकते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
हमारी श्वासों का संबंध हमारी भावनाओं से है। प्रत्येक भावना के लिए साँस में एक विशेष लय होती है। इसलिए जब आप अपनी भावनाओं को सीधे शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर पाते तो यह कार्य आप श्वास की सहायता से कर सकते हो।
यदि आप थियेटर में कार्य करते हो तो आपको पता होगा कि जब क्रोध व्यक्त करने का सीन करना हो तो निर्देशक आपको तेजी से साँस लेने को कहता है। और यदि कोई शांत सीन करना हो तो निर्देशक आपको धीरे धीरे और कोमलता से साँस लेने को कहता है। इसलिए यदि हम अपनी साँसों की लय को समझ जाते हैं तो हम अपने मन को नियंत्रण में रख सकते हैं। हम किसी भी नकारात्मक भावना, जैसे कि क्रोध, ईर्ष्या, लालच आदि पर विजय पा सकते हैं और तब हम हृदय से खुल कर मुस्कुरा सकते हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
नोट: योगाभ्यास से शरीर तथा मन का विकास होता है तथापि यह दवा का विकल्प नहीं है। यह अति आवश्यक है कि योग का अभ्यास किसी योग्य योग प्रशिक्षक की देख रेख में ही सीखा जाए। यदि आपका पहले से ही कोई उपचार चल रहा है तो योगाभ्यास आरंभ करने से पहले अपने डाक्टर तथा श्री श्री योग प्रशिक्षक से परामर्श अवश्य कर लें। चूँकि प्राणायाम अथवा श्वास क्रियाएँ सूक्ष्म जीवन शक्ति से संबंधित हैं, इन तकनीकों को लेकर प्रयोग करना उचित नहीं है।