शब्दार्थ: अर्द्ध = आधा; मत्स्येंद्र = मछलियों का राजा; मत्स्य – मछली; इन्द्र = राजा

“अर्द्ध” अर्थात् आधा। “मत्स्येंद्र” उन सिद्ध पुरुषों में से एक हैं जिनका उल्लेख निपुण योगियों द्वारा प्राचीन योग ग्रंथ – “हठ योग प्रदीपिका” में किया गया है। इस आसन को “मेरुदंड का घुमाव” (स्पाइनल ट्विस्ट) देने वाला आसन भी कहा गया है क्योंकि इसमें रीढ़ की हड्डी को धीरे से घुमाया जाता है।

अर्द्धमत्स्येंद्रासन करने की विधि

  • पालथी मार कर आराम से बैठ जाएँ।
  • दोनों टांगों को सामने की ओर फैला लें। दाएँ घुटने को मोड़ कर दाएँ पाँव की एड़ी को बाएँ कूल्हे के निकट ले कर आएँ।
  • साँस लेते हुए, बाएँ घुटने को आकाश की ओर मोड़ कर बाएँ पाँव को जमीन के समतल दायीं टाँग के दाहिनी ओर इस प्रकार से रखें कि एड़ी दायीं जँघा को स्पर्श करे।
  • अब रीढ़ की हड्डी को बायीं ओर घुमाते हुए अपने दाएँ हाथ को सीधा रख कर, बाएँ घुटने के बाहर से घुमा कर बाएँ पाँव को दाएँ हाथ से पकड़ें।
  • अपने सिर को जितना हो सके बायीं ओर घुमाएँ तथा बायीं भुजा को पीठ के पीछे से घुमाएँ। अपनी रीढ़ की हड्डी, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें और बायीं ओर घूमते हुए शरीर में खिंचाव देते रहें।
  • क्रम संख्या 2 से 6 तक की प्रक्रिया विपरीत दिशा में करते हुए इस आसन को दोहराएँ।

अर्द्धमत्स्येंद्रासन के लाभ

  • रीढ़ की हड्डी को आधा घुमाव देना मेरुदंड में लचीलापन लाने और उसे सुदृढ़ बनाने के लिए सर्वोत्तम आसनों में से एक आसन है। यह आसन गर्दन और पीठ के ऊपरी भाग में तनाव, त्रुटिपूर्ण मुद्रा या अधिक देर तक एक ही स्थिति में बैठने से होने वाली अकड़न और जकड़न में राहत प्रदान करता है।
  • इस आसन में उदरीय क्षेत्र में होने वाले क्रमिक संकुचन और उसके निवारण से इस क्षेत्र में रक्त प्रवाह प्रचुर मात्रा में होता है तथा इस क्षेत्र के अंगों की मालिश भी हो जाती है। इस आसन के नियमित अभ्यास से उदर और कूल्हों की माँसपेशियों में लचीलापन भी आता है।
  • आसन की अवधि/ पुनरावृत्ति (दोहराव): जितनी अवधि तक आपके लिए सुविधाजनक हो, आप इस आसन में बने रह सकते हैं। इसके एक दोहराव का अर्थ है दोनों दिशाओं में एक एक बार करना। प्रत्येक अभ्यास सत्र में इसे दो या तीन बार दोहराया जा सकता है।

आसन की अवधि और पुनरावृत्ति (दोहराव)

जितनी अवधि तक आपके लिए सुविधाजनक हो, आप इस आसन में बने रह सकते हैं। इसके एक दोहराव का अर्थ है दोनों दिशाओं में एक एक बार करना। प्रत्येक अभ्यास सत्र में इसे दो या तीन बार दोहराया जा सकता है।

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