इस आसन को मत्सय आसन के नाम से पुकारा जाता है। संस्कृत के मूल शब्द ‘मत्सय’ का अर्थ है, मीन या मछली, इसलिए इसे मछली आसन भी कहते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मत्सय एक दैवीय अवतार है, जिसने मानवता को संपूर्ण ब्रह्मांड में बाढ़ के कारण आई प्रलय से बचाया था।

मत्स्यासन करने की विधि

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1. पीठ के बल शवासन में लेट जाएँ।

2. कूल्हों को फर्श पर ही टिकाए रखते हुए, एक गहरी साँस लें और अपना सिर, कंधे, पीठ और ऊपरी बाजुओं को ऊपर उठाएँ तथा पीठ को घुमाव देते हुए छाती को ऊपर आकाश की ओर ऊँचा करें। अब अपने सिर को पीछे की ओर झुकाते हुए सिर के ऊपरी भाग को फर्श पर रख दें।

3. अब अपनी कुहनियों को फर्श से ऊपर उठाते हुए हाथों को छाती के जरा सा नीचे तक लाएँ और दोनों हथेलियों को आपस इस प्रकार मिलाएँ कि दोनों हाथों की उंगलियाँ सीधी आसमान की ओर हों और अंजलि मुद्रा बन जाए। साँस को क्षमता अनुसार रोकें और आसन में बने रहें अथवा नासिका से धीरे धीरे गहरी साँस लेते व छोड़ते रहें और आसन अधिक देर तक बनाए रखें।

4. साँस छोड़ते हुए वापस शवासन में लेट जाएँ।

आसन की अवधि और पुनरावृत्ति: यह कठिन आसन नहीं है, इसलिए धीरे धीरे गहरी साँस लेते हुए, दो से चार मिनट तक इस आसन में बने रहने की अनुशंसा की जाती है। यदि आप साँस लेने में असहज होते हैं, तो जब तक अंदर गई साँस रोकने की क्षमता है, तब तक आसन में बने रहें। इसको दो से तीन बार दोहराएँ।

मत्स्यासन के लाभ

  • छाती और गर्दन को खिंचाव देता है।
  • गर्दन और कंधों के तनाव को दूर करता है।
  • गहरी साँसों का अभ्यास करने के कारण श्वसन सम्बंधी समस्याओं से राहत प्रदान करता है।
  • पैरा थायरायड,पिट्यूटरी और पिनीयल ग्रंथियों को लचीला बनाता है।

निषेध

यदि आप उच्च अथवा निम्न रक्तचाप की समस्या से पीड़ित हैं, तो यह आसन करने से बचें। माइग्रेन (सिर दर्द) और अनिद्रा के रोगियों को भी यह आसन करने से परहेज करना चाहिए। जिन लोगों को पीठ के निचले भाग अथवा गर्दन में चोट की समस्या हो, उन्हें यह आसन करने की सलाह नहीं दी जाती।

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