चन्द्र नमस्कार

चन्द्र नमस्कार का अभ्यास सूर्य नमस्कार का प्रतिबिम्बन है; जिस प्रकार चंद्रमा की अपनी कोई रोशनी नहीं होती, वह केवल सूर्य की रोशनी को ही प्रतिबिंबित करता है, आसनों की श्रृंखला सूर्य नमस्कार के समान ही होती है, केवल अश्व संचलनासन के बाद अर्ध चंद्रासन जुड़ जाता है। चन्द्र नमस्कार का अभ्यास रात के समय करना उत्तम है, जब चाँद दिखाई देता है। चन्द्र नमस्कार करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि पेट खाली हो।

चन्द्र नमस्कार के लाभ

चंद्र नमस्कार हमारी चंद्र ऊर्जा को सक्रिय करने में मदद करता है। चन्द्र ऊर्जा में ठंडक प्रदान करने, विश्राम देने तथा सृजनात्मकता को विकसित करने जैसे गुण होते हैं। चन्द्र नमस्कार मेरुदंड, हैमस्ट्रिंग और जंघाओं के पीछे के भाग में खिंचाव लाता है तथा टाँगों, भुजाओं, पीठ और पेट की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। अन्य सभी योगासनों की भाँति, यह आवश्यक है कि आप समुचित देख-रेख और मार्गदर्शन में ही चन्द्र नमस्कार का अभ्यास करना सीखें।

1. प्रणाम आसन

दोनों पाँव को आपस में जोड़ कर सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों हथेलियों को प्रणाम मुद्रा में आपस में जोड़ लें।

2. हस्तउत्तानासन

गहरी साँस लेते हुए, दोनों भुजाओं को सामने और फिर ऊपर की ओर ले जाते हुए अपनी क्षमतानुसार खिंचाव दें। भुजाओं को पीछे की ओर, पीठ को वृत चाप मुद्रा में घुमाते हुए श्रोणी को आगे की ओर धकेलें। कुहनियाँ और घुटने सीधे और सिर दोनों भुजाओं के बीच में तथा ठुड्डी ऊपर छत की ओर उठी हुई हो।

3. पादहस्तासन

साँस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें। दोनों हाथों को जमीन पर टिकाएँ। घुटनों को मोड़ें। हाथों को जमीन पर ही रखते हुए, घुटनों को सीधा करें।

4. अश्व संचालनासन

दायीं टाँग को जितना हो सके, पीछे की ओर धकेलें। दायाँ घुटना जमीन पर टिकाते हुए पैर के तलवे को छत की ओर रखें और ऊपर देखें।

5. अर्ध चंद्रासन

हाथों को ऊपर उठाएँ और पीछे ले जाएँ व बाजुओं की द्विशिर पेशियों (बाइसेप्स) को कानों के समीप रखें और आकाश की ओर देखें।

6. दंडासन

साँस लें, रोकें और बायीं टाँग को भी पीछे की ओर ले जाएँ। घुटने सीधे रखते हुए शरीर को एक सीधी रेखा में लायें।

7. अष्टांग नमस्कार

आगे की ओर आते हुए अपनी ठुड्डी को जमीन के पास रखें। आपकी ठुड्डी, छाती, हथेलियाँ (छाती के दोनों ओर), दोनों घुटने और पंजे जमीन को स्पर्श कर रहे हों। अपने पिछवाड़े (पृष्ठ भाग) को ऊपर की ओर उठाएँ।

8. भुजंगासन

साँस लेते हुए कोबरा मुद्रा में आ जाएं। दोनों हाथ कंधों के नीचे, कुहनियाँ शरीर के निकट और दोनों एड़ियाँ साथ जुड़ी हुई हों। अपनी श्रोणी (वस्ति-प्रदेश) को जमीन पर दृढ़ता से टिकाते हुए शरीर को आगे से ऊपर उठाएँ। पीठ के ऊपरी भाग को पीछे की ओर घुमाने पर ध्यान देते रहें।

9. पर्वतासन

साँस छोड़ते हुए अपने हाथों और पैरों पर आते हुए उलटे ‘V’ की मुद्रा में आ जाएँ। अपने हाथों और कूल्हों का उपयोग करते हुए शरीर को पीछे की ओर धकेलें। एड़ियों को जमीन पर ही टिकाने का प्रयास करें।

10. अश्व संचालनासन

साँस लेते हुए अपने दाएँ पाँव को आगे की ओर लाएँ। ऊपर की ओर देखते हुए बाएँ घुटने को जमीन पर टिकाएँ। बाएँ पाँव का तलवा छत की ओर रहे।

11. अर्ध चंद्रासन

हाथों को ऊपर उठाएँ और पीछे ले जाएँ व बाजुओं की द्विशिर पेशियों (बाइसेप्स) को कानों के समीप रखें और आकाश की ओर देखें।

12. पादहस्तासन

साँस छोड़ते हुए बाएँ पाँव को भी दाएँ पाँव के पास ले आएँ।

13. हस्तउत्तानासन

साँस लेते हुए, अपनी भुजाओं को ऊपर की ओर खिंचाव देते हुए खड़े हो जाएँ और पीठ को पीछे की ओर तथा श्रोणी (वस्ति-प्रदेश) को सामने की ओर धकेलें।  

14. ताड़ासन

साँस छोड़ते हुए दोनों भुजाओं को अपनी बगल में नीचे की ओर लाएँ। शरीर के दोनों ओर में अंतर को अनुभव करें।

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