संस्कृत के शब्द “वृक्ष” का अर्थ है पेड़। इस आसन में दायीं टाँग को मोड़ कर, दायें पाँव को बायीं जंघा के उद्गम स्थान पर रखते हुए, बायीं टाँग पर सीधे खड़े होना होता है। इस प्रकार इसमें एक वृक्ष की भाँति जमीन पर खड़ा होना होता है। इसलिए इसको वृक्ष आसन कहा जाता है।

वृक्षासन करने की विधि

  • अपने दोनों पैरों को साथ रखते हुए दोनों भुजाओं को बगल में रखें (ताड़ आसन जैसी मुद्रा में)।
  • दायीं टाँग को घुटने से मोड़ते हुए, दायीं जंघा को ऊपर उठाएँ और दायें पाँव के तलवे को जहाँ तक हो सके उतना ऊपर बायीं जंघा के भीतरी भाग पर टिका दें।
  • अब अपने शरीर को बायें पाँव पर संतुलित करते हुए दोनों भुजाओं को सिर से ऊपर उठाएँ। कुहनियाँ सीधी रखते हुए दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में मिला दें। इसी मुद्रा में स्थिर रहते हुए धीरे धीरे लगभग दस साँसें लें और छोड़ें।
  • तत्पश्चात् भुजाओं को नीचे लाएँ, दोनों पाँव साथ और भुजाओं को बगल में रखते हुए पुनः ताड़ आसन की स्थिति में आ जाएँ। कुछ क्षणों के विश्राम के उपरांत विपरीत टाँग से दोहराएँ।
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वृक्षासन के लाभ

  • यह आसन करने के पश्चात आप स्वयं को ऊर्जावान अनुभव करते हैं। यह टाँगों, पीठ और भुजाओं को अच्छा खिंचाव देता है तथा आप को स्फूर्ति से भर देता है।
  • यह आपके शरीर और मन को संतुलित करता है।
  • एकाग्रता में सुधार होता है।
  • यह आसन सायटिका के कुछ मामलों में राहत प्रदान करता है।
  • यह टाँगों को सुदृढ़ करता है, संतुलन बेहतर करता है और कूल्हों के जोड़ों को खोलता है।
  • सायटिका पीड़ितों को राहत प्रदान करता है।

निषेध

यदि आप माइग्रेन, अनिद्रा, कम अथवा उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं, तो यह आसन करने से बचें। तथापि, उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति यह आसन कर सकते हैं, किंतु अपनी भुजाओं को सिर के ऊपर ले कर जाए बिना, क्योंकि उससे रक्त चाप में वृद्धि हो सकती है।

खड़े होकर किए जाने वाले सभी योगासन

सभी योगासन
पिछला योगासन: प्रसारित पादहस्तासन
अगला योगासन: पश्चिम नमस्कारासन

वृक्षासन को लेकर किए जाने वाले सामान्य प्रश्न

आपके लिए इसे करने में जितना समय सुविधाजनक हो, उतनी देर इसे कर सकते हैं। सामान्यतः एक बार में प्रत्येक टाँग पर एक मिनट तक आसन में स्थिर बने रहें। आप प्रत्येक टाँग पर इसे पाँच बार तक दोहरा सकते हैं।
यदि आप माइग्रेन, अनिद्रा, चक्कर आने, घुटनों अथवा एड़ियों की पीड़ा, और कम अथवा उच्च रक्त चाप से ग्रस्त हैं, तो वृक्षासन करने से बचें। हाथों को सिर से ऊपर ले जाना रक्त चाप को बढ़ाता है। इसलिए जिन लोगों को उच्च रक्त चाप की समस्या है, उन्हें हाथों को ऊपर नहीं उठाना चाहिए। तथापि वे अपने शरीर को प्रत्येक टाँग पर संतुलित कर सकते हैं।
वृक्षासन में क्या करें: आसन करते समय सामने किसी दूर की वस्तु पर दृष्टि रखें। दृष्टि स्थिर रखने से शरीर का संतुलन बनाए रखना सुगम हो जाता है। भुजाओं को अपनी बगल में रखते हुए सीधे और तन कर खड़े हों। अपने दायें घुटने को मोड़ें और दायें पाँव को बायीं जंघा पर जितना ऊपर तक हो सके टिकाएँ। इसके लिए आप अपने हाथ का उपयोग कर सकते हैं। पाँव का तलवा जंघा के मूल पर समतल टिका होना चाहिए। सुनिश्चित करें कि आपकी बायीं टाँग बिलकुल सीधी हो। अब संतुलन बनाएँ। पाँव का दबाव जंघा पर और जंघा का दबाव पाँव पर पड़ना चाहिए।
एक टांग पर आप स्थिरतापूर्वक संतुलित हो जाएँ, तो गहरी साँस लें और दोनों भुजाओं को धीरे धीरे ऊपर उठाते हुए सिर से ऊपर की ओर ले जाएँ और हाथों को ‘नमस्ते मुद्रा’ में आपस में मिला दें। अपने शरीर को ऊपर की ओर खिंचाव देते रहें। यह आवश्यक है कि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। आपका पूरा शरीर किसी तनी हुई रबर बैंड की तरह होना चाहिए। गहरी, लंबी साँसें लेते रहें और प्रत्येक साँस छोड़ते समय शरीर को और अधिक ढीला छोड़ते जाएँ। हल्की मुस्कान बनाये रखते हुए अपने शरीर और साँस के साथ बने रहें। साँस छोड़ते हुए धीरे धीरे बाजुओं को बगल से नीचे लेकर आएँ। दायीं टाँग को भी धीरे से नीचे ले आएँ। पुनः सीधे और तन कर वैसे ही खड़े हो जाएँ जैसे आसन आरंभ करते समय थे।
इसी प्रक्रिया को बायीं टाँग को भूमि से ऊपर उठा कर दायीं जंघा पर टिकाते हुए दोहराएँ। वृक्षासन का अभ्यास उतनी देर तक ही करें जितना आपके लिए सुविधाजनक हो। इस आसन को एक एक मिनट तक प्रत्येक टाँग पर बनाये रखें। दोनों टांगों पर इसे पाँच बार तक दोहरा सकते हैं।
वृक्षासन में क्या न करें: यदि आप माइग्रेन, अनिद्रा, चक्कर आने, घुटनों या एड़ियों की चोट या पीड़ा, और उच्च या कम रक्तचाप की समस्या से पीड़ित हैं, तो यह आसन न करें। हाथों को सिर से ऊपर ले जाना रक्त चाप को बढ़ाता है। इसलिए जिन लोगों को उच्च रक्त चाप की समस्या है, उन्हें हाथों को ऊपर नहीं उठाना चाहिए। तथापि वे अपने शरीर को प्रत्येक टाँग पर संतुलित कर सकते हैं।
कुछ लोगों को वृक्षासन के अभ्यास से लंबा होने में लाभ हुआ है। यह आसन टांगों में खिंचाव ला कर उन्हें सुदृढ़ बनाता है। शरीर के भार को एक टाँग पर संतुलित करने से उसकी माँसपेशियाँ सशक्त होती हैं। हाथों को सिर से ऊपर खींचने से गर्दन को भी ऊपर की ओर खिंचाव मिलता है। यह पिट्यूटरी ग्रंथि को उत्प्रेरित करता है, जिससे वृद्धि करने वाले हार्मोन्स का स्राव बढ़ता है।
आनुवंशिकी, जीवनशैली, योगाभ्यास, व्यायाम और पोषण आदि कुछ ऐसे कारक हैं, जो हमारे शरीर की लंबाई को प्रभावित करते हैं। 25 वर्ष की आयु होने के उपरान्त लम्बाई बढ़ने पर विराम लग जाता है। हाँ, आप लंबा दिखने के लिए कुछ उपाय अवश्य कर सकते हैं। जैसे जैसे आपकी आयु बढ़ती है, आपके कंधे और पीठ झुकने लगती है, जिससे लंबाई कम होने का आभास होने लगता है। योग आसनों के नियमित अभ्यास से हम लंबाई में होने वाली इस अवनति को थाम सकते हैं।
रीढ़ की हड्डी, घुटने, एड़ियाँ तथा भुजाओं का मोड़ना, लचकना और झुकना स्वतः ही हो जाता है। कूल्हे भी बाहर की ओर घूमते और खुलते हैं। एड़ियाँ पीछे की ओर मुड़ती हैं तथा संकुचित होती हैं।
वृक्षासन की सावधानियाँ : 
1. माइग्रेन 
2. उच्च या कम रक्त चाप (जिन लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या है, उन्हें हाथों को सिर के ऊपर नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से रक्त चाप और बढ़ सकता है)
3. अनिद्रा

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